प्रसन्नता का राज, सरदार पटेल की कर्तव्यनिष्ठा, अस्पृश्य (अछूत), स्वभाव बदलो, काम लेने का तरीका, अंत का साथी
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देश के महान स्वतंत्रता सैनानी और हिंदुत्ववादी चिंतक विनायक दामोदर सावरकर का संपूर्ण जीवन हमारे लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। वे ऐसे पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। उनके अद्मय साहस और धर्य का लोहा अंग्रेज अधिकारी भी मानते थे।
K. L. SEN MERTA
1- प्रसन्नता का राज
एक बार एक संत एक पहाड़ी टीले पर बैठे बहुत ही प्रसन्न भाव से सूर्यास्त
देख रहे थे। तभी दिखने में एक धनाढ्य व्यक्ति उनके पास आया और बोला, “बाबाजी! मैं एक
बड़ा व्यापारी हूँ। मेरे पास सुख-सुविधा के सभी साधन हैं। फिर भी में खुश नहीं हूँ।
आप इतना अभावग्रस्त होते हुए भी इतना प्रसन्न कैसे हैं? कृपया मुझे इसका राज बताएं।”
संत ने एक कागज लिया और उस पर कुछ लिखकर उस व्यापारी को देते हुए कहा,
“इसे घर जाकर ही खोलना। यही प्रसन्नता और सुख का राज है।” सेठ जी घर पहुंचे और बड़ी उत्सुकता से उस कागज को खोला। उस पर लिखा
था– जहां शांति और संतोष होता
है, वहां प्रसन्नता खुद ही चली आती है।
शिक्षा : इसलिये सुख और प्रसन्नता के
पीछे भागने की बजाय जो है उसमें संतुष्ट रहना ही प्रसन्नता का राज है।
देश के महान स्वतंत्रता सैनानी और हिंदुत्ववादी
चिंतक विनायक दामोदर सावरकर का संपूर्ण जीवन हमारे लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। वे
ऐसे पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। उनके अद्मय साहस
और धर्य का लोहा अंग्रेज अधिकारी भी मानते थे।
जा रहे हैं, जो मुख्यतः अंडमान-निकोबार के सेल्लुलर जेल में दि जाने वाली कठोर यातनाओं
और सावरकर के साहस के विषय में हैं।
2- सरदार पटेल की कर्तव्यनिष्ठा
सरदार बल्लभ भाई पटेल अदालत में एक मुकदमे की पैरवी कर रहे थे। मामला
बहुत गंभीर था। थोड़ी सी लापरवाही भी उनके क्लायंट को फांसी की सजा दिला सकती थी। सरदार
पटेल जज के सामने तर्क दे रहे थे। तभी एक व्यक्ति ने आकर उन्हें एक कागज थमाया। पटेल
जी ने उस कागज को पढ़ा। एक क्षण के लिए उनका चेहरा गंभीर हो गया। लेकिन फिर उन्होंने
उस कागज को मोड़कर जेब में रख लिया।
मुकदमे की कार्यवाही समाप्त हुई। सरदार पटेल के प्रभावशाली तर्कों से
उनके क्लायंट की जीत हुई। अदालत से निकलते समय उनके एक साथी वकील ने पटेलजी से पूछा
कि कागज में क्या था? तब सरदार पटेल ने बताया कि वह मेरी मेरी पत्नी की मृत्यु की सूचना
का तार था। साथी वकील ने आश्चर्य से कहा कि इतनी बड़ी घटना घट गई और आप बहस करते रहे।”
सरदार पटेल ने उत्तर दिया, “उस समय मैं अपना कर्तव्य पूरा कर रहा था।
मेरे क्लायंट का जीवन मेरी बहस पर निर्भर था।मेरी थोड़ी सी अधीरता उसे फांसी के तख्ते
पर पहुंचा सकती थी। मैं उसे कैसे छोड़ सकता था? पत्नी तो जा ही चुकी थी। क्लायंट को
कैसे जाने देता?”
ऐसे गंभीर और दृढ़ चरित्र के कारण ही वे लौहपुरुष कहे जाते हैं।
3- अस्पृश्य (अछूत)
भगवान बुद्ध की धर्मसभा चल रही थी। गौतम बुद्ध ध्यानमग्न अवस्था में
बैठे चिंतन कर रहे थे। तभी बाहर खड़ा कोई व्यक्ति चिल्लाकर बोला- “आज मुझे इस सभा में
बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गयी है?” शांत सभा में उसके क्रोधित शब्द गुंजायमान
हो उठे। लेकिन बुद्ध उसी प्रकार ध्यानमग्न ही रहे। उसने पुनः पहले से तेज आवाज में
अपना प्रश्न दोहराया।
शिष्यों ने सभा की शांति को बनाये रखने के लिए भगवान बुद्ध से उसे अंदर
आने की अनुमति देने के लिए कहा। बुद्ध ने कहा, ” वह अंदर बैठने के योग्य नहीं है। वह
अछूत है।” शिष्य आश्चर्य में पड़ गए और
बोले, “भगवन! आपके धर्म में तो जाति पांति को कोई स्थान नहीं है। कोई ऊंचा नीचा नहीं
है। फिर यह अस्पृश्य या अछूत कैसे है?”
तब बुद्ध ने शिष्यों को समझाया, “आज यह क्रोध में है। क्रोध से शांति
एवं एकाग्रता भंग होती है। क्रोधी व्यक्ति हिंसा करता है। अगर वह शारीरिक हिंसा से
बच भी जाये तो मानसिक हिंसा अवश्य करता है।” “किसी भी कारण से क्रोध करने
वाला मनुष्य अछूत है। उसे कुछ समय तक एकांत में रहकर पश्चाताप करना चाहिए। तभी उसे
पता चलेगा कि अहिंसा महान कर्तव्य है। परम धर्म है।”
शिष्य समझ गए कि अश्पृश्यता
क्या है और अछूत कौन है?
4- स्वभाव बदलो
एक बार संत अबू हसन के पास एक व्यक्ति आया। वह बोला, “मैं गृहस्थी के
झंझटों से बहुत परेशान हो गया हूँ। पत्नी-बच्चों से मेरी पटती नहीं है। मैं सब कुछ
छोड़कर साधू बनना चाहता हूँ। आप अपने पहने हुए साधू वाले वस्त्र मुझे दे दीजिए। जिससे
मैं भी आप की तरह साधू बन सकूं।”
उसकी बात सुनकर अबू हसन मुस्कुराकर बोले, “क्या किसी पुरुष के वस्त्र
पहनकर कोई महिला पुरुष बन सकती है या किसी महिला के वस्त्र पहनकर कोई पुरुष महिला बन
सकता है?” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।”
संत ने उसे समझाया, “साधू बनने के लिए वस्त्र नहीं स्वभाव बदलना पड़ता
है। अपना स्वभाव बदलो। फिर तुम्हे गृहस्थी भी झंझट नहीं लगेगी। बात उस व्यक्ति की समझ
में आ गयी। उसने अपना स्वभाव बदलने का संकल्प लिया।
5- काम लेने का तरीका
एक खेत में कुछ मजदूर काम कर रहे थे। एक गहनता काम करने के बाद वे बैठकर
आपस में गप्पें मारने लगे। यह देखकर खेत के मालिक ने उनसे कुछ नहीं कहा। उसने खुरपी
उठायी और खुद काम में जुट गया। मालिक को काम करता देख मजदूर शर्म के मारे तुरंत काम
में जुट गए। दोपहर में मालिक मजदूरों के पास जाकर बोला, “भाइयों! अब काम बंद कर दो।
भोजन कर के आराम कर लो। काम बाद में होगा।”
मजदूर खाना खाने चले गए। थोड़ा आराम करके वे शीघ्र ही फिर काम पर लौट
आये। शाम को छुट्टी के समय पड़ोसी खेत वाले ने उस खेत के मालिक से पूछा, ” भाई! तुम
मजदूरों को छुट्टी भी देते हो। उन्हें डांटते भी नहीं हो। फिर भी तुम्हारे खेत का काम
मेरे खेत से दोगुना कैसे हो गया। जबकि मैं लगातार अपने मजदूरों पर नजर रखता हूँ । डांटता
भी हूँ और छुट्टी भी नहीं देता।”
तब पहले खेत के मालिक ने बताया, “भैया! मैं काम लेने के लिए सख्ती से
अधिक स्नेह और सहानुभूति को प्राथमिकता देता हूँ। इसलिए मजदूर पूरा मन लगाकर काम करते
हैं। इससे काम ज्यादा भी होता है और अच्छा भी।”
6- अंत का साथी
एक व्यक्ति के तीन साथी थे। उन्होंने जीवन भर उसका साथ निभाया। जब वह
मरने लगा तो अपने मित्रों को पास बुलाकर बोला, “अब मेरा अंतिम समय आ गया है। तुम लोगों
ने आजीवन मेरा साथ दिया है। मृत्यु के बाद भी क्या तुम लोग मेरा साथ दोगे?”
पहला मित्र बोला, “मैंने जीवन भर तुम्हारा साथ निभाया। लेकिन अब मैं
बेबस हूँ। अब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।” दूसरा मित्र बोला, ” मैं मृत्यु
को नहीं रोक सकता। मैंने आजीवन तुम्हारा हर स्थिति में साथ दिया है। मैं यह सुनिश्चित
करूंगा कि मृत्यु के बाद तुम्हारा अंतिम संस्कार सही से हो।
तीसरा मित्र बोला, “मित्र! तुम चिंता मत करो। में मृत्यु के बाद भी
तुम्हारा साथ दूंगा। तुम जहां भी जाओगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।” मनुष्य के ये तीन मित्र हैं- माल (धन), इयाल (परिवार) और आमाल (कर्म)।
तीनों में से मनुष्य के कर्म ही मृत्यु के बाद भी उसका साथ निभाते हैं|
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