संगत का असर, कर्तव्य, तेजस्वी बालक नरेंन्द्रनाथ, जीवन और समस्याएं, संघर्ष का महत्व
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K. L. SEN MERTA
प्रेरक प्रसंग 1 – ‘संगत का असर’
एक अध्यापक अपने शिष्यों के साथ घूमने जा रहे थे । रास्ते में वे अपने
शिष्यों के अच्छी संगत की महिमा समझा रहे थे । लेकिन शिष्य इसे समझ नहीं पा रहे थे
। तभी अध्यापक ने फूलों से भरा एक गुलाब का पौधा देखा । उन्होंने एक शिष्य को उस पौधे
के नीचे से तत्काल एक मिट्टी का ढेला उठाकर ले आने को कहा ।
जब शिष्य ढेला उठा लाया तो अध्यापक बोले – “ इसे अब सूंघो ।”
शिष्य ने ढेला सूंघा और बोला – “ गुरु जी इसमें से तो गुलाब की बड़ी अच्छी
खुशबू आ रही है ।”
तब अध्यापक बोले – “ बच्चो ! जानते हो इस मिट्टी में यह मनमोहक महक कैसे
आई ? दरअसल इस मिट्टी पर गुलाब के फूल, टूट टूटकर गिरते रहते हैं, तो मिट्टी में भी
गुलाब की महक आने लगी है जो की ये असर संगत का है और जिस प्रकार गुलाब की पंखुड़ियों
की संगति के कारण इस मिट्टी में से गुलाब की महक आने लगी उसी प्रकार जो व्यक्ति जैसी
संगत में रहता है उसमें वैसे ही गुणदोष आ जाते हैं ।
संगति का असर कहानी से सीख Moral
of the Story on Sangati Ka Asar : इस शिक्षाप्रद कहानी से सीख मिलती है कि हमें सदैव
अपनी संगत अच्छी रखनी चाहिए ।
किसी भी
व्यक्ति के जीवन मे अगर शील यानी चरित्र ना हो तो उनके जीवन के अन्य सभी सद्गुण निरर्थक
है। हमारी संस्कृति में बल, बुद्धि, विद्या,धन और शील यह पांच सद्गुणों का बहुत बड़ा
महत्व है। लेकिन इन पांचो सद्गुणों में शील यानी चरित्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अगर
अच्छा चरित्र नहीं है तो बल, बुद्धि और विद्या का कोई अर्थ नहीं रहता। किसी ने ठीक
ही कहा है-
“when wealth is lost nothing is lost, when
health is lost something is lost but when character is lost everything is lost”
प्रेरक प्रसंग 2 – ‘कर्तव्य’
एक समय की बात है । एक नदी में एक महात्मा स्नान कर रहे थे । तभी एक बिच्छू
जो पानी में डूब रहा था, उसे बचाते हुए बिच्छु ने महात्मा को डंक मार दिया ।
महात्मा ने उसे कई बार बचाने की कोशिश की । बिच्छू ने उन्हें बार – बार
डंक मारा । अंतत: महात्मा ने उसे बचाकर नदी के किनारे रख दिया । थोड़ी दूर खड़े यह सब
महात्मा के शिष्य देख रहे थे । जैसे ही वे नदी से बाहर आये तो शिष्यों ने पूछा कि जब
वह बिच्छू आपको बार – बार डंक मार रहा था तो आपको उसे बचाने की क्या आवश्यकता थी ।
तब महात्मा ने कहा – बिच्छू एक छोटा जीव है, उसका कर्म काटना है, जब वह
अपना कर्तव्य नहीं भूला, तो मैं मनुष्य हूँ मेरा कर्तव्य दया करना है तो मैं अपना कर्तव्य
कैसे भूल सकता हूँ ।
कर्तव्य की कहानी से सीख Moral
Of Kartvya Ki Kahani : इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मार्ग कितना भी कठिन क्यों
न हों । मनुष्य को कभी अपना कर्तव्य नहीं भूलना चाहिए ।
प्रेरक प्रसंग 3 – ‘तेजस्वी बालक
नरेंन्द्रनाथ’
स्वामी विवेकानंदजी जी को बचपन में सब लोग बिले नाम से पुकारते थे। बाद
में नरेन्द्रनाथ दत्त कहलाये। नरेन्द्रनाथ बहुत उत्साही और तेजस्वी बालक थे। इस बालक
को बचपन से ही संगीत, खेलकूद और मैदानी गतिविधियों में रुचि थी। नरेन्द्रनाथ बचपन से
ही अध्यात्मिक प्रकृति के थे और यह खेल – खेल में राम, सीता, शिव आदि मूर्तियों की
पूजा करने में रम जाते थे। इनकी माँ इन्हें हमेशा रामायण व महाभारत की कहानियां सुनाती
थी जिसे नरेन्द्रनाथ खूब चाव से सुनते थे।
एक बार बनारस में स्वामी विवेकानंद जी माँ दुर्गा जी के मंदिर से निकल
रहे थे कि तभी वहां पहले से मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया। वे उनसे प्रसाद
छिनने के लिए उनके नजदीक आने लगे। अपने तरफ आते देख कर स्वामी स्वामी जी बहुत भयभीत
हो गए। खुद को बचाने के लिए भागने लगे। पर
वे बंदर तो पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं थे।
पास में खड़ा एक वृद्ध संयासी ये सब देख रहा था, उन्होंने स्वामी जी को
रोका और कहा – रुको ! डरो मत, उनका सामना करो और देखों कि क्या होता है। बृद्ध संयासी
की बात सुनकर स्वामी जी में हिम्मत आ गई और तुरंत पलटे और बंदरों की तरफ बढ़ने लगे।
तब उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उनके सामना करने पर सभी बंदर भाग खड़े हुए थे। इस
सलाह के लिए स्वामी जी ने बृद्ध संयासी को बहुत धन्यवाद दिया।
इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर शिक्षा मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक
सभा में इस घटना का जिक्र किया और कहा – यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो, तो उससे
भागों मत, पलटो और सामना करों। वास्तव में, यदि हम अपने जीवन में आये समस्याओं का सामना
करे तो यकीन मानिए बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जायेगा।
प्रेरक प्रसंग 4 – ‘जीवन और समस्याएं’
किसी शहर में, एक आदमी प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था। वो अपनी ज़िन्दगी
से खुश नहीं था, हर समय वो किसी न किसी समस्या से परेशान रहता था। एक बार शहर से कुछ
दूरी पर एक महात्मा का काफिला रुका । शहर में चारों और उन्ही की चर्चा थी। बहुत से
लोग अपनी समस्याएं लेकर उनके पास पहुँचने लगे, उस आदमी ने भी महात्मा के दर्शन करने
का निश्चय किया।
छुट्टी के दिन सुबह-सुबह ही उनके काफिले तक पहुंचा । बहुत इंतज़ार के बाद
उसका का नंबर आया।
वह बाबा से बोला- “बाबा , मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ, हर समय समस्याएं
मुझे घेरी रहती हैं, कभी ऑफिस की टेंशन रहती है, तो कभी घर पर अनबन हो जाती है, और
कभी अपने सेहत को लेकर परेशान रहता हूँ …।”
बाबा कोई ऐसा उपाय बताइये कि मेरे जीवन से सभी समस्याएं ख़त्म हो जाएं
और मैं चैन से जी सकूँ ?
बाबा मुस्कुराये और बोले – “पुत्र, आज बहुत देर हो गयी है मैं तुम्हारे
प्रश्न का उत्तर कल सुबह दूंगा … लेकिन क्या तुम मेरा एक छोटा सा काम करोगे …?”
“हमारे काफिले में सौ ऊंट हैं, मैं चाहता हूँ कि आज रात तुम इनका खयाल
रखो …जब सौ के सौ ऊंट बैठ जाएं तो तुम भी सो जाना …”
ऐसा कहते हुए महात्मा अपने तम्बू में चले गए ।
अगली सुबह महात्मा उस आदमी से मिले और पुछा – ” कहो बेटा, नींद अच्छी
आई।”
वो दुखी होते हुए बोला – “कहाँ बाबा, मैं तो एक पल भी नहीं सो पाया। मैंने
बहुत कोशिश की पर मैं सभी ऊंटों को नहीं बैठा पाया, कोई न कोई ऊंट खड़ा हो ही जाता
“
बाबा बोले – “बेटा, कल रात तुमने अनुभव किया कि चाहे कितनी भी कोशिश कर
लो सारे ऊंट एक साथ नहीं बैठ सकते, तुम एक को बैठाओगे तो कहीं और कोई दूसरा खड़ा हो
जाएगा। इसी तरह तुम एक समस्या का समाधान करोगे तो किसी कारणवश दूसरी खड़ी हो जाएगी
” पुत्र जब तक जीवन है ये समस्याएं तो बनी ही रहती हैं … कभी कम तो कभी ज्यादा …।”
“तो हमें क्या करना चाहिए ?” – आदमी ने जिज्ञासावश पुछा।
“इन समस्याओं के बावजूद जीवन का आनंद लेना सीखो”
कल रात क्या हुआ ? :
1) कई ऊंट रात होते -होते खुद ही बैठ गए,
2) कई तुमने अपने प्रयास से बैठा दिए,
3) बहुत से ऊंट तुम्हारे प्रयास के बाद भी नहीं बैठे … और बाद में तुमने
पाया कि उनमे से कुछ खुद ही बैठ गए …।
कुछ समझे? समस्याएं भी ऐसी ही होती हैं।।
1) कुछ तो अपने आप ही ख़त्म हो जाती हैं ,
2) कुछ को तुम अपने प्रयास से हल कर लेते हो
3) कुछ तुम्हारे बहुत कोशिश करने पर भी हल नहीं होतीं ,
ऐसी समस्याओं को समय पर छोड़ दो, उचित समय पर वे खुद ही ख़त्म हो जाती हैं।
जीवन है, तो कुछ समस्याएं रहेंगी ही रहेंगी, पर इसका ये मतलब नहीं की
तुम दिन रात उन्ही के बारे में सोचते रहो …
समस्याओं को एक तरफ रखो और जीवन का आनंद लो, चैन
की नींद सो, जब उनका समय आएगा वो खुद ही हल हो जाएँगी”
बिंदास मुस्कुराओ क्या ग़म है, ज़िन्दगी में टेंशन
किसको कम है ।।
अच्छा या बुरा तो केवल भ्रम है, जिन्दगी का नाम ही,
कभी ख़ुशी कभी ग़म है।
प्रेरक प्रसंग 5 – ‘संघर्ष का महत्व’
एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया। कभी बाढ़ आ जाये, कभी
सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये। हर बार कुछ ना कुछ कारण
से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये। एक दिन बड़ा तंग आ कर उसने परमात्मा से कहा – देखिये
प्रभु,आप परमात्मा हैं, लेकिन लगता है आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है,
एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये, जैसा मैं चाहूँ वैसा मौसम हो, फिर आप
देखना मै कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा। परमात्मा मुस्कुराये और कहा – ठीक है, जैसा
तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा।
अब, किसान ने गेहूं की फ़सल बोई, जब धूप चाही, तब धूप मिली, जब पानी चाही
तब पानी। तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और
किसान की ख़ुशी भी, क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी। किसान ने मन ही मन सोचा
अब पता चलेगा परमात्मा को की फसल कैसे करते हैं, बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान
करते रहे।
फ़सल काटने का समय भी आया, किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन
जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक भी बाली के
अन्दर गेहूं नहीं था, सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा
से कहा – प्रभु ये क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले – ”ये तो होना ही था , तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा
सा भी मौका नहीं दिया। ना तेज धूप में उनको तपने दिया, ना आंधी ओलों से जूझने दिया,
उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया, इसीलिए सब पौधे खोखले
रह गए। जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले गिरते हैं तब पौधा अपने बल से ही खड़ा
रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता
है वो ही उसे शक्ति देता है, उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है। सोने को भी
कुंदन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता
है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है। ”
इसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो, चुनौती
ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाता। ये चुनौतियां
ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली
बनना है तो चुनौतियां तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे।
अगर जिंदगी में प्रखर बनना है, प्रतिभाशाली बनना है, तो संघर्ष और चुनौतियों का सामना
तो करना ही पड़ेगा।
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