CLASS XII POL SC UNIT II आधुनिक राजनीतिक अवधारणाएँ

आप हमसे जरूर जुड़े



CLASS XII POL SC UNIT I प्रमुख अवधारणाएंSANSKRIT WORKBOOK CLASS III TO VIIICLASS XII POL SC UNIT I प्रमुख अवधारणाएं

UNIT : 2  आधुनिक  राजनीतिक अवधारणाएं

L – 5 :  राजनीतिक माजीकरण

 माजीकरण :-

             समाजीकरण समाज में निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति समाज के रीति-रिवाजों, परंपराओं, मूल्यों और मान्यताओं को स्वीकार कर उसका एक क्रियाशील सदस्य बनता है।

राजनीतिक समाजीकरण :-

           राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्तियों को राजनीतिक संस्थाओं, व्यवस्थाओं और दृष्टिकोणों की शिक्षा प्रदान की जाती है।

            जिस प्रकार समाज के अपने रीति-रिवाज, परंपराएं और मूल्य होते हैं, ठीक उसी प्रकार एक राजनीतिक व्यवस्था के भी अपने रीति-रिवाज, परंपराएं और मूल्य होते हैं जिन्हें हम राजनीतिक संस्कृति के नाम से जानते हैं।

      इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के व्यक्तियों में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में राजनीतिक संस्कृति का हस्तांतरण या अभिज्ञान करवाया जाता है।

 राजनीतिक समाजीकरण की सर्वप्रथम व्याख्या हर्बर्ट साइमन ने अपनी पुस्तक “Political Socialization अथवा राजनीतिक समाजीकरण” में की है।

राजनीतिक समाजीकरण के साधन

 व्यक्ति में राजनीतिक समझ विकसित करने वाली अनेक संस्थाएं होती हैं जिनमें से कुछ औपचारिक तरीकों से कार्य करती हैं जैसे – राजनीतिक दल, राष्ट्रीय प्रतीक, जनसंचार के साधन आदि और कुछ अनौपचारिक तरीकों से कार्य करती हैं जैसे – परिवार, शिक्षण संस्थाएं, धार्मिक संस्थाएं आदि ।

1. परिवार :-

Ø
 परिवार व्यक्ति की प्रथम पाठशाला होती हैं ।

Ø  परिवार के माध्यम से ही व्यक्ति रीति-रिवाजों और परंपराओं को सीखता है।

Ø  परिवार में हम माता पिता की आज्ञा का पालन करते हैं जिससे हमें उनकी सत्ता का बोध होता है।

Ø
 परिवार ही हमें सिखाता है कि कैसे सबके साथ मिलकर रहा जाता है, परिवार में परस्पर कैसे सहयोग किया जाए और अपनी मांगों को मनवाने के लिए किस प्रकार दबाव बनाया जाए।

    उपरोक्त सभी बातें सीखकर व्यक्ति अपने आप को राजनीति व्यवस्थाओं के अनुरूप ढालता है और राजनीतिक व्यवहार करता है।  इसी प्रकार परिवार का मुखिया जिस राजनीतिक दल का समर्थक होता है, परिवार के अन्य सदस्य भी मुखिया का अनुसरण करते हुए उस राजनीतिक दल का समर्थन करते हैं।

अतः स्पष्ट है कि परिवार ही व्यक्ति में  राजनीति की प्रारंभिक समझ विकसित करता है।

2.  शिक्षण संस्थाएं :-

Ø
बालक परिवार से जो भी राजनीतिक अनुभव सीखता है, शिक्षण संस्थाओं में और अधिक दृढ़ हो जाते हैं।

Ø
शिक्षण संस्थाओं में विभिन्न राजनैतिक पृष्ठभूमि के बालक आते हैं जिससे बालक राजनीतिक व्यवस्थाओं की विविधताओं और विरोधाभासों के साथ समायोजन करना सीखता है।

Ø
बालक की शिक्षा जितनी व्यापक होगी उसकी राजनीति के प्रति रुचि उतनी ही अधिक होगी और उसका राजनीतिक ज्ञान का विकास भी अधिक होगा।

Ø
शिक्षण संस्थाओं का पाठ्यक्रम, बालक की मित्र-मंडली और बालक के शिक्षकों का राजनीतिक व्यवस्थाओं के प्रति जो दृष्टिकोण होगा, वह दृष्टिकोण भी बालक के राजनीतिक विचारों को प्रभावित करता है।

         इस प्रकार स्पष्ट है कि बालक परिवार से जो भी राजनीतिक समझ प्राप्त करता है, शिक्षण संस्थाएं उनमें उन्नयन कर दृढ़ता प्रदान करती है।

3.  राजनीतिक दल :-

Ø
राजनीतिक दल अपनी नीतियों, विचारधाराओं और विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा राजनीतिक समाजीकरण का कार्य करते हैं ।

Ø
 राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए लोगों को अपने अनुकूल करने का प्रयास करते है।

Ø
चुनावों के समय नारों, पोस्टरों, चुनावी-सभाओं, रैलियों, मीडिया आदि द्वारा लोगों को राजनीतिक रुप से प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें अपने अनुकूल बनाने का प्रयास किया जाता है।

Ø
चीन जैसे साम्यवादी व सर्वाधिकारवादी देशों में राजनीतिक दलों पर कठोर नियंत्रण होता है जबकि लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक दलों पर शासन का नियंत्रण नहीं होता है।

        इस प्रकार स्पष्ट है कि राजनीतिक दल अपनी नीतियों और विचारधाराओं से व्यक्तियों को प्रभावित कर राजनीतिक समाजीकरण का प्रयास करते हैं।

4.  राष्ट्रीय प्रतीक :-

Ø
 राष्ट्रीय प्रतीकों जैसे राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय दिवस पर सेना की परेड आदि के माध्यम से व्यक्तियों में राजनीतिक व्यवस्था और आदर्शों के प्रति आस्था के भाव पैदा किए जाते हैं।

Ø
विभिन्न महापुरुषों की जयंती पर होने वाले उत्सव, उद्घाटन कार्यक्रम आदि द्वारा व्यक्तियों और विशेषकर बच्चों में उन महापुरुषों के राजनीतिक आदर्शों और देश के प्रति आस्था के भाव का पाठ पढ़ाया जाता है।

5.  जनसंचार के साधन :-

Ø वर्तमान समय में जनसंचार के साधन जैसे समाचार-पत्र, रेडियो, टीवी, इंटरनेट, मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर आदि व्यक्ति के राजनीतिक समाजीकरण के सशक्त साधन हैं।

Ø
 वर्तमान में यह माना जाता है कि चुनाव मीडिया के दफ्तरों से लड़ा जाता है। विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रवक्ता मीडिया दफ्तरों में अपनी पार्टी की नीतियों, विचारों, कार्यक्रमों आदि को जनता के सामने रखते हैं और अन्य दलों या अन्य दलों की सरकारों की आलोचना कर जनता को प्रशिक्षित करते हैं।

Ø इसी प्रकार सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, टि्वटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि के माध्यम से राजनीति दल व्यक्तियों को जोड़ने और प्रभावित करने का कार्य भी करते हैं ।

Ø
 नरेंद्र मोदी के Namo एप से करोड़ों व्यक्ति जुड़े हैं और वे लोग मोदी की नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में सीधी और विश्वसनीय जानकारी इस एप से प्राप्त कर सकते हैं ।

इस प्रकार विश्वसनीय और सटीक जानकारी प्रदान कर जन संचार के साधन राजनीतिक समाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

L – 6 : राजनीतिक संस्कृति

 

राजनीतिक संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा  :-

                          जिस प्रकार प्रत्येक समाज अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं, आदर्शों, मूल्यों, प्रथाओं आदि से सामाजिक संस्कृति का निर्माण करते हैं, ठीक उसी प्रकार प्रत्येक राजनीति व्यवस्थाओं के प्रति व्यक्तियों की अभिवृत्तिओं, विश्वासों, प्रतिक्रियाओं, अपेक्षाओं और राजनीति व्यवहारओं से राजनीतिक संस्कृति का निर्माण होता है।

                राजनीतिक संस्कृति को विभिन्न राजनीतिज्ञों ने भिन्न-भिन्न नाम दिए हैं :-

                  विचारक                    राजनीतिक संस्कृति का नाम

                    आमण्ड             –           कार्य के प्रति अभिमुखीकरण

                    डेविड ईस्टन       –           पर्यावरण

                    स्पिरो                –           राजनीतिक शैली

                   राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा तृतीय विश्व के देशों से संबंधित हैं। इसमें अमेरिका को आदर्श मानते हुए विकासशील देशों की संस्कृति का अध्ययन किया जाता है। सर्वप्रथम आमण्ड ने अपनी पुस्तक Comparative Political System-1956 में राजनीतिक संस्कृति शब्द का प्रयोग किया।

     आमण्ड-पावेल के अनुसार, “राजनीतिक संस्कृति किसी राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों की राजनीति के प्रति व्यक्तिगत अभिवृत्तिओं और अभिमुखीकरणों का प्रतिमान है।

   एलन बॉल के अनुसार, “राजनीतिक संस्कृति का निर्माण समाज की उन अभिवृत्तिओं, विश्वासों तथा मूल्यों के समूह से होता है जिनका संबंध राजनीतिक व्यवस्था और राजनीतिक विषयों से हैं।

                    इस प्रकार स्पष्ट है कि राजनीतिक व्यवस्था और राजनीतिक मुद्दों से संबंधित व्यक्तियों की धारणाओं, विश्वासों, संवेदनाओं और मूल्यों को ही राजनीतिक संस्कृति कहते हैं।

 राजनीतिक संस्कृति के घटक  :-

                     आमण्ड ने  राजनीतिक संस्कृति को कार्य के प्रति अभिमुखीकरण
का नाम दिया और बताया कि राजनीतिक संस्कृति में
अभिमुखीकरण और राजनीति विषय नामक दो घटक होते हैं जो कि निम्न प्रकार हैं :-

I.       अभिमुखीकरण :-

अभिमुखीकरण का शाब्दिक अर्थ है
झुकाव या प्रवृत्ति

आलमंड पावेल
के अनुसार अभिमुखीकरण के तीन अंग हैं :-

1.      ज्ञानात्मक अभिमुखीकरण :-

                    इसका आशय राजनीतिक विषयों के
ज्ञान और उसके अस्तित्व के प्रति सजगता से जुड़ा होता है।  इस अवस्था में व्यक्ति को राजनीति विषयों का ज्ञान
सही और गलत दोनों रूपों में प्राप्त हो सकता है लेकिन दोनों ही स्थिति में लिया गया
संज्ञान व्यक्ति के राजनीति व्यवहार
को प्रभावित करता है।

2.
भावानात्मक अभिमुखीकरण :-

                 इसका अभिप्राय राजनीतिक व्यवस्था, प्रक्रिया और राजनीति विषयों
के प्रति व्यक्ति के मन में उत्पन्न होने वाले एवं आकार लेने वाले भावावेगों,  अभिवृत्तियों,  अनुभूतियों,  सहमति-असहमति, विश्वास, आस्था आदि भावनाओं से हैं ।

3.
मूल्यांकनात्मक  अभिमुखीकरण :-

                 इसका अभिप्राय राजनीतिक प्रक्रियाओं, विषयों एवं मुद्दों पर व्यक्ति के मत या
निर्णय की अभिव्यक्ति से हैं  अर्थात
यह  व्यवस्थागत राजनीति, राजनीति प्रक्रियाओं और राजनीतिक विषयों पर व्यक्ति के मूल्य निर्णय हैं, उचित-अनुचित का मूल्यांकन है।

II.
 राजनीति विषय  :-

               इसके चार विषय है :-

1.
राजनीतिक
व्यवस्था :-

                     इसमें राजनीतिक व्यवस्था का समग्र स्वरूप जिसमें ऐतिहासिक विकासक्रम, स्थान, आकार-प्रकार, सत्ता और संवैधानिक विशेषताएँ शामिल है।

2.        राजनीतिक
संरचना
या आगत प्रक्रिया :-

                    इसमें वे शक्तियाँ है जो निर्णय निर्माण और निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करती है। जैसे – राजनीतिक दल, दबाव समूह, हित समूह, जनसंपर्क के स्थान आदि।

3.        समस्याएं और नीतियां या निर्गत प्रक्रिया :-

                  इसमें नीति निर्माण करने, नीतियों को क्रियान्वित करने तथा उनकी व्याख्या करने व संरक्षण देने वाले विभागों के कार्य शामिल है।

4.
राजनीतिक
व्यक्ति
या मूल्यांकन प्रक्रिया :-

                   इसमें राजनीतिक गतिविधियों के क्षेत्र में व्यक्ति की स्वयं द्वारा निभायी जा रही भूमिका का मूल्यांकन शामिल है।

 राजनीतिक संस्कृति के निर्धारक तत्व :-

1. इतिहास :-

      प्रत्येक देश का इतिहास उस देश की राजनीतिक संस्कृति की प्रकृति निर्धारित करता है। जैसे भारत की राजनीतिक संस्कृति शांतिवादी व लोकतांत्रिक हैं, इंग्लैंड की राजनीतिक संस्कृति वहां की राजनीतिक निरंतरता का परिणाम है और फ्रांस की राजनीतिक संस्कृति विभिन्न क्रांतियां का परिणाम है।

2. धार्मिक विश्वास :-

     विभिन्न देशों में विद्यमान बहुसंख्यक धार्मिक विश्वासों के आधार पर राजनीतिक संस्कृतियाँ निर्धारित होती है। जैसे भारत में समन्वयवादी, पाकिस्तान में मुस्लिम धर्म आधारित, इजराइल में ईसायत आधारित आदि।

3. भौगोलिक परिस्थितियां :-

        विभिन्न देशों की भौगोलिक परिस्थितियां भी वहां की राजनीतिक संस्कृति को निर्धारित करती हैं जैसे भारत जैसे विशाल देश की राजनीतिक संस्कृति यूरोप के छोटे-छोटे देशों से सर्वथा भिन्न है।

4.  सामाजिकआर्थिक परिवेश :-

     विभिन्न देशों और समाजों के सामाजिक-आर्थिक परिवेश के आधार पर राजनीतिक संस्कृतियाँ भी अलग अलग होती हैं। सामाजिक व

आर्थिक आधार पर राजनीतिक संस्कृतियों को  विकसित, विकासशील व अल्प-विकसित में वर्गीकृत किया जाता है।

5.  विचारधाराएं :-

                      विभिन्न देशों में विद्यमान अलग-अलग विचारधाराओं के आधार पर भी अलग अलग राजनीति संस्कृतियों का विकास होता है। जैसे उदारवाद, मार्क्सवाद, पूंजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद, उपयोगितावाद, सर्वसत्तावाद, संविधानवाद आदि के आधार पर विभिन्न राजनीतिक संस्कृतियाँ विद्यमान है।

       इसके अतिरिक्त शिक्षा का स्तर, भाषा, रीति-रिवाज आदि भी राजनीतिक संस्कृति के निर्धारक तत्व हैं।

 

 राजनीतिक संस्कृति की विशेषताएं  :-

1. अमूर्त स्वरूप :-

           राजनीतिक संस्कृति का मूल आधार व्यक्ति और समाज के मूल्य, विचार, विश्वास और दृष्टिकोण होते हैं।  इन मूल्यों, विचारों, विश्वासों, आदर्शों व दृष्टिकोणों को केवल समझा या अनुभव किया जा सकता है। इनका मूर्त रूप नहीं होता है। अतः राजनीतिक संस्कृति एक अमूर्त विचारधारा है।

2.  गतिशीलता :-

             व्यक्ति और समाज के जीवन मूल्य, विचार, विश्वास और दृष्टिकोण परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं। अत: राजनीति संस्कृति में भी निरंतर परिवर्तन होता रहता है अर्थात राजनीतिक संस्कृति गत्यात्मक हैं।

3.  समन्वयकारी स्वरूप :-

                किसी देश की राजनीतिक संस्कृति उस देश में विद्यमान विभिन्न समाजों, धार्मिक समुदायों और विभिन्न तत्वों के समन्वय से निर्मित होती हैं। अतः इसका स्वरूप समन्वयकारी है।

4. राजनीतिक संस्कृति आनुभविक आस्था और विश्वासओं का परिणाम है।

5. राजनीतिक संस्कृति व्यक्तियों की मूल्य अभिरुचियाँ और प्रभावी अनुक्रिया है।

6. राजनीतिक संस्कृति शिक्षणीय और हस्तांतरणीय होती है।

  राजनीतिक संस्कृति के प्रकार

 

( I ) संख्या, शक्ति और सहभागिता के आधार पर :-

              संख्या, शक्ति और सहभागिता के आधार पर राजनीतिक संस्कृति दो प्रकार की होती हैं :-

1. अभिजन संस्कृति :-

      वे लोग जो सत्ता में होते हैं और सरकारी निर्णयों में सहभागी होते हैं व उत्तरदायी होते हैं, अभिजन कहलाते है। अभिजन अल्पसंख्यक होते हुए भी सामाजिक व राजनीतिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2. जनसाधारण की संस्कृति :-

                      साधारण लोग जो सरकारी निर्णयों में विशेष सहभागी नहीं होते हैं। इनकी आशाएं, व्यवहार व कार्य पद्धतियाँ अलग-अलग प्रकार की होती हैं। इसे जनसाधारण की संस्कृति कहते हैं।

( II ) सत्ता में सैन्य भूमिका के आधार पर :-

           प्रोफेसर एस.ई. फाईनर ने अपनी पुस्तक ” The Man on Horse Back ” में सैनिक सत्ता की भूमिका के आधार पर राजनीति संस्कृति के तीन प्रकार बताए हैं :-

1.  परिपक्व :-

      इसमें शासन सशस्त्र सेनाओं पर निर्भर नहीं करता है। जैसे ब्रिटेन, अमेरिका आदि देश।

2. विकसित :-

      इस संस्कृति में सैनिक दबाव के कारण असैनिक सरकारों को या तो खतरा बना रहता है या उन्हें नुकसान पहुंचाया जाता है।  जैसे क्यूबा, मिश्र, पाकिस्तान आदि।

3. निम्न :-

      इस संस्कृति में लोग कम संगठित होते हैं और सैनिक सत्ता प्रभावी होती हैं। जैसे सीरिया, लीबिया, म्यांमार आदि ।

( III ) सहभागिता के आधार पर :-

                         वॉइजमैन ने अपनी पुस्तक पॉलिटिकल सिस्टम सम सोशियोलॉजिकल अप्रोच ( Political
System : Some Sociological Approach ) में राजनीतिक संस्कृति के 3 विशुद्ध और तीन मिश्रित रूप बताए हैं।

 राजनीतिक संस्कृति के तीन विशुद्ध रूप है :-

1. संकुचित राजनीतिक संस्कृति

2. अधीनस्थ या पराधीन राजनीतिक संस्कृति

3. सहभागी राजनीतिक संस्कृति

 राजनीति संस्कृति के तीन मिश्रित रूप है :-

1. संकुचित प्रजाभावी

2. प्रजाभावी सहभागी

3. संकुचित सहभागी

( IV ) राजनीति व्यवस्था की भूमिका के आधार पर :-

आमण्ड ने राजनीति व्यवस्था की भूमिका के आधार पर राजनीति संस्कृति को निम्न चार वर्गों में विभाजित किया है :-

1. आंग्लअमेरिकी राजनीतिक संस्कृति :-

             इस प्रकार की राजनीति संस्कृति में राजनीतिक लक्ष्यों व साधनों के विषयों में आम सहमति रहती हैं। राजनीति व्यवस्था को निर्धारित नियमों के अनुसार संचालित किया जाता है। जैसे ब्रिटेन, अमेरिका और स्विट्जरलैंड की संस्कृति ।

2. महाद्वीपीय यूरोपीय राजनीतिक व्यवस्था :-

             यूरोपीय महाद्वीप के देशों में राजनीतिक संस्कृति में सामंजस्य के बजाय विघटन और खंडित स्वरूप प्रभावी रूप से नजर आता है। यहां एक संस्कृति के बजाय अनेक उप संस्कृतियाँ होने से समय-समय पर संघर्ष व हिंसा की स्थितियां उत्पन्न हो जाती है। जैसे फ्रांस, इटली, जर्मनी आदि।

3. गैरपश्चिमी या पूर्व औद्योगिक राजनीतिक व्यवस्था :-

            ऐसी संस्कृति तृतीय विश्व अर्थात एशिया व अफ्रीका के देशों में पाई जाती हैं जो अतीत में औपनिवेशिक शोषण के शिकार रहे हैं और जहां आर्थिक विकास व लोकतंत्र अभी भी अल्प विकसित अवस्था में है ।

4.  सर्वाधिकारवादी राजनीतिक व्यवस्था :-

              यह व्यवस्था उन देशों में पाई जाती हैं जहां शासन दमन व उत्पीड़न पर आधारित होता है, जनता की सहमति व सहभागिता  नाममात्र की होती है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं होती है,  संचार के साधनों पर सरकारी नियंत्रण होता है और विपक्ष के विरोध की संभावना नहीं होती है। जैसे चीन, उत्तरी कोरिया, बुल्गारिया आदि।

 

राजनीतिक संस्कृति एवं राजनीतिक समाजीकरण में संबंध :-

             राजनीतिक समाजीकरण व राजनीतिक संस्कृति एक दूसरे से जुड़े हैं। राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा ही राजनीतिक संस्कृति के मानकों, मान्यताओं और विश्वासों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचारित किया जाता है। इस प्रक्रिया में कई अभिकरण जैसे परिवार, शिक्षण संस्थाएं, राजनीतिक दल, संचार के साधन आदि अपनी अहम भूमिका निभाते हैं । राजनीतिक समाजीकरण की इस प्रक्रिया से राजनीतिक जीवन में निरंतरता बनी रहती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा :-

1. राजनीतिक संस्कृति को बनाए रखा जाता है,

 2. राजनीतिक संस्कृति में परिवर्तन किया जाता है और

3. राजनीतिक संस्कृति को उत्पन्न किया जाता है ।

 

राजनीतिक संस्कृति का महत्व  :-

राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा के उत्पन्न होने के पश्चात राजनीतिक प्रणाली की स्थिरता और अस्थिरता के कारणों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। इसका महत्व इस प्रकार हैं :-

1. राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा से ही अध्ययनकर्त्ता का केंद्र बिंदु औपचारिक संस्थाएं न रहकर राजनीतिक समाज बन गया है।

2. राजनीतिक क्रियाओं के अध्ययन में सामाजिक व सांस्कृतिक तत्वों का समावेश करना।

3. राजनीतिक अध्ययन में विवेकता लाना।

4. राजनीतिक समाज द्वारा विभिन्न दिशाएं ग्रहण करने का कारण बताना।

5.  राजनीतिक समाजीकरण का अध्ययन सरल हो जाता है।

6 राजनीतिक मान्यताओं और मूल्यों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में निरंतर हस्तांतरित करना।

L – 7 : राजनीतिक सहभागिता

 

अर्थ :-

            राजनीति सहभागिता से तात्पर्य है कि जनसाधारण की राजनीतिक व्यवस्था के विभिन्न स्तरों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपूर्ण भागीदारी हो अर्थात शासन प्रणाली में लोगों की अधिक से अधिक भागीदारी ही राजनीतिक सहभागिता है।

 

 राजनीतिक सहभागिता के स्वरूप :-

                   सैद्धांतिक रूप में राजनीतिक सहभागिता के दो स्वरूप पाए जाते हैं :-

1. विकास परक राजनीतिक सहभागिता

2. लोकतांत्रिक राजनीतिक सहभागिता

 

 राजनीतिक सहभागिता एवं नागरिक चेतना :-

                   नागरिक चेतना से आशय हैं कि उनका शैक्षिक स्तर, विचारधारा, पृष्ठभूमि आदि किस प्रकार की है। व्यक्ति का शैक्षिक स्तर बढ़ने से उसमें नवीन चेतना का विकास होता है जिससे उसे देश और समाज के प्रति उसके कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का ज्ञान होता है। जिन देशों का साक्षरता स्तर उच्च  है, वहां के नागरिकों की राजनीतिक सहभागिता का स्तर भी उतना ही अधिक व्यापक है। इसी प्रकार छोटे देशों के नागरिकों का वहां के जनप्रतिनिधियों से प्रत्यक्ष संपर्क रहता है। यही कारण है कि एशिया और अफ्रीका के देशों की बजाय यूरोपीय देशों के नागरिकों में अधिक राजनीतिक सहभागिता पाई जाती हैं।

 

 राजनीति सहभागिता का अभिजात्य स्वरूप :-

                    अभिजात्य वर्ग से आशय हैं नौकरशाह, टेक्नोक्रेट, बड़े उद्योगपति, वकील, डॉक्टर, प्रोफेसर आदि वर्ग।

 राजनीतिक सहभागिता के अभिजात्य स्वरूप से तात्पर्य है कि शासन सत्ता की भागीदारी में अभिजात्य वर्ग का ही प्रभुत्व है, अन्यों की भागीदारी बहुत ही कम है। इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं :-

1.       सर्वप्रथम जनता की सहभागिता की बात करें तो जनता की राजनीति सहभागिता मात्र जनप्रतिनिधि चुनने तक ही सीमित है।

2.
अब जनप्रतिनिधियों की राजनीतिक सहभागिता की बात करें तो वे केवल अपने संख्या बल से केवल सरकार निर्माण तक ही सीमित है जबकि सत्ता की वास्तविक शक्ति  केवल पार्टियों के चंद सक्रिय और अग्रिम पंक्तियों के व्यवसायिक नेताओं (मंत्रियों के रूप में) के पास सीमित हो जाती है।

3.
अब मंत्रियों की सहभागिता की बात करें तो वे आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी आदि मामलों में विशेषज्ञ नहीं होने के कारण केवल सतही काम कर पाते हैं और वास्तविक सत्ता में भागीदारी ब्यूरोक्रेट और टेक्नोक्रेट की ही होती है जो कि अभिजात्य वर्ग है।

                इस प्रकार स्पष्ट है कि आधुनिक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जनसाधारण की राजनीतिक सहभागिता अत्यंत सीमित है जबकि अभिजात वर्ग का राजनीतिक सहभागिता में पूर्ण बोलबाला है।

राजनीतिक सहभागिता के स्वरूप :-

 

1. सामुदायिक गतिविधि :-

                  इसके अंतर्गत समुदाय के सदस्य किसी सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु मिलकर कार्य करते हैं। जैसे :- विरोध-प्रदर्शन, जुलूस, हड़ताल, धरने-प्रदर्शन आदि।

2. सरकार एवं नागरिकों के बीच परस्पर क्रिया :-

                  यह एक दोतरफा गतिविधि है जिसमें एक पक्ष क्रिया करता है तो दूसरा पक्ष प्रत्युत्तर देता है। अतः इस प्रकार की राजनीति सहभागिता में नागरिक भी पहल कर सकते हैं और सरकार भी पहल कर सकती हैं।

 

 राजनीतिक सहभागिता के विभिन्न रूप :-

                    राजनीतिक सहभागिता को दो भागों में बांटा जा सकता है :-

1. परंपरागत राजनीतिक सहभागिता

2. गैर-परंपरागत राजनीतिक सहभागिता

दोनों को दो भागों नागरिक सहभागिता और राज्य सहभागिता में बांटा जा सकता है।

परम्परागत राजनीतिक
सहभागिता

नागरिक सहभागिता

राज्य सहभागिता

1.
सरकार या जन-प्रतिनिधियों
से सम्पर्क करना।

1.
चुनावों का आयोजन
करना।

2.
पत्र, टेलीफोन, साक्षात्कार,
संपादक के नाम
पत्र, हस्ताक्षर अभियान।

2.
सार्वजनिक सुनवाई करना।

3.
दबाव समूहों की
गतिविधियाँ।

3.
सलाहकार परिषदों का
गठन करना।

4.
राजनीतिक प्रचार अभियान
में भाग लेना।

4.
परिपृच्छा।

5.
सार्वजनिक पद के
लिए चुनाव लड़ना।

6.
किसी प्रस्ताव को
आरम्भ करना।

7.
प्रत्याह्वान

गैरपरम्परागत
राजनीतिक सहभागिता

नागरिक सहभागिता

राज्य सहभागिता

1.
विरोध प्रदर्शन, हड़ताल,
जुलुस, बंद, धरना
आदि।

1.
राष्ट्रीय पर्वों एवं
उत्सवों का आयोजन।

2.
सविनय अवज्ञा।

2.
विभिन्न अभियान संचालन
जैसे – टीकाकरण, साक्षरता,
वृक्षारोपण आदि।

3.
राजनीतिक हिंसा

3.
सार्वजनिक दौड़ या
मानव श्रृंखला का
आयोजन।

4.
प्रतियोगियताएँ जैसे
– प्रश्नोत्तरी, निबन्ध,
वाद-विवाद, चित्रकला
आदि।

 

 राजनीतिक सहभागिता के अभिकरण :-

 

1. दबाव समूह :-

            ऐसे समूह जो अपने किसी समान हित की पूर्ति हेतु संगठित होकर अपने मत-समर्थन द्वारा सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं, दबाव समूह कहलाते हैं। विकसित देशों में ये बहुत प्रभावी होते हैं।

2. आरंभक :-

            आरंभक अर्थात प्रस्ताव तैयार करना। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब जनता स्वयं किसी कानून या संविधान संशोधन का प्रस्ताव तैयार कर विधानमंडल के पास विचार और मतदान हेतु प्रस्तुत करती हैं तो इस प्रक्रिया को आरंभक कहते हैं। यह प्रणाली विशेष रूप से प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देशों जैसे स्विट्जरलैंड आदि में पाई जाती हैं। भारत में भी जनता अपने जनप्रतिनिधियों के माध्यम से संसद में निजी विधेयक प्रस्तुत कर सकती हैं।

3. प्रत्याह्वान :-

             प्रत्याह्वान का शाब्दिक अर्थ है चुने हुए जनप्रतिनिधियों को जनता द्वारा वापस बुलाना।

            जब जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि मतदाताओं की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है तो जनता एक प्रस्ताव जिस पर निर्धारित संख्या में हस्ताक्षर जरुरी होते हैं, प्रस्तुत कर जनप्रतिनिधि को कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व हटा देती है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसे प्रत्याह्वान कहा जाता है। यह व्यवस्था भी स्विट्जरलैंड में प्रचलित है।

4. जनसुनवाई :-

               जब जनप्रतिनिधि या अफसर (सरकार) जनता की विभिन्न समस्याओं को अभियान चलाकर जनता के समक्ष जाकर सुनती हैं तो इसे जनसुनवाई कहते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मुख्यमंत्री, मंत्री, जन-प्रतिनिधि, अफसर आदि अभियान चलाकर या दरबार लगाकर जनसुनवाई का कार्य करते हैं। राजस्थान में प्रशासन गांवों के संग, प्रशासन शहरों के संग आदि जनसुनवाई के उदाहरण है।

5. सलाहकार परिषद :-

               सरकार अपने विभिन्न विभागों से जुड़े हुए कार्यों के विशेष पक्षों पर सलाह देने हेतु गणमान्य या विशेष योग्यता वाले नागरिकों का एक संगठन बना देती है जिसे सलाहकार परिषद कहते हैं।

6. परिपृच्छा :-

                परिपृच्छा का शाब्दिक अर्थ है किसी प्रश्न पर निर्णय हेतु जनता से उनकी इच्छा पूछना।

             प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार सार्वजानिक महत्व के किसी विशेष प्रश्न पर जनसाधारण से मतदान करा कर उनकी राय लेती हैं। उदाहरण :- हाल ही में यूरोपीय यूनियन की सदस्यता त्यागने के मुद्दे पर ब्रिटेन ने सीधे जनता से मतदान द्वारा राय ली और जनता के मतदान के अनुसार ही उसने यूरोपीय यूनियन का सदस्य बने रहने से इंकार कर दिया।

7.
सविनय अवज्ञा :-

                 जब किसी अन्यायपूर्ण कानून का आम जनता द्वारा जानबूझकर और खुले तौर पर उल्लंघन किया जाता है तो इसे सविनय अवज्ञा कहते हैं।

8. राजनीतिक प्रतिहिंसा :-

                  प्राय: जनता विरोध-प्रदर्शन कर उग्र प्रदर्शन करती हैं और तोड़-फोड़ आदि के माध्यम से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाती हैं तो इसे राजनीतिक प्रतिहिंसा कहा जाता है।

 राजनीतिक सहभागिता का महत्व :-

                 निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से नागरिकों की राजनीतिक सहभागिता का महत्व या उपयोगिता समझी जा सकती है :-

1.
नागरिकों की सहभागिता से सार्वजनिक समस्याओं पर विस्तृत चर्चा होगी और समस्याओं के समाधान हेतु अधिक सुझाव प्राप्त होंगे।

2.
नागरिक सहभागिता से राजनीतिज्ञों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा सकेगी जिससे वे जनता के हितों से संबंधित पक्षों पर अधिक ध्यान देंगे।

3.
नेताओं और नौकरशाहों द्वारा किए जाने वाले सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिलेगी।

4.
शासक और शासितों के मध्य निकट संबंध स्थापित होगा जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी।

5.
लोगों की राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि होगी।

6.
शासन व प्रशासन में विकेंद्रीकरण को बढ़ावा मिलेगा।

7.
प्रत्यक्ष लोकतंत्र की स्थापना की तरफ मजबूत कदम बढ़ेंगे।

 

राजनीति सहभागिता का मूल्यांकन :-

 

राजनीति सहभागिता के पक्ष में तर्क :-

1.
 राजनीतिक सहभागिता सहभागी व्यक्ति के हितों की रक्षा करती हैं।

2.
राजनीतिक सहभागिता सामान्य हित के उद्देश्य की पूर्ति हेतु लोगों में एकता की भावना पैदा करती है।

3.
राजनीति सहभागिता नागरिकों की सामान्य नैतिक, सामाजिक व राजनीतिक सजगता को बढ़ाती है।

4.
यह शासक व शासितों के मध्य निकट संबंध स्थापित करती है।

5.
इससे विकेंद्रीकरण को बढ़ावा मिलता है।

6.      इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलती है।

 राजनीतिक सहभागिता के विपक्ष में तर्क :-

                      राजनीतिक सहभागिता में अत्यधिक वृद्धि होने पर लोकतंत्र का स्वरूप विकृत होकर भीड़तंत्र में बदल जाता है जिससे कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।

1.
सार्वजनिक नीतियों, निर्णयों व कार्यक्रमों के प्रभावी परिणाम आने में समय लगता है जिसका आम नागरिक धैर्य पूर्वक इंतजार नहीं कर सकते हैं।

2.
राजनीतिक समस्याएं भले ही दिखने में सामान्य लगे परंतु अपनी प्रकृति से अत्यधिक जटिल होती हैं। अतः आम नागरिकों द्वारा इन समस्याओं का सही आकलन नहीं होता है।

3.
अत्यधिक राजनीतिक सहभागिता से नागरिकों के सुझावों, शिकायतों और विवादों का अंबार लग जाएगा और इन सभी का विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन किया जाना असंभव हो जायेगा।

4.
जब आम जनता की समस्याओं, सुझावों, शिकायतों आदि पर उचित ध्यान नहीं दिया जाएगा तो यह जनता भीड़ के रूप में एकत्रित होकर अनियंत्रित हो जाएगी और जोश में नारेबाजी, रैली हड़ताल, प्रदर्शन, तोड़फोड़ आदि द्वारा सार्वजनिक हितों को नुकसान पहुंचा देती है।

                   इस प्रकार स्पष्ट है कि राजनीतिक सहभागिता एक निश्चित सीमा तक ही बढ़नी चाहिए अन्यथा यह शासन-प्रशासन के सहयोग की बजाय असहयोग करने लगेगी।

 

आग्रह :-आप जानकारी को पढ़ते हुए यहाँ अंत तक पहुंचे हैं तो इसका अभिप्राय हैं कि आपको हमारे दी गयी जानकरी अच्छी लगी हैं अत: आपसे आग्रह हैं कि आप हमारे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म से अवश्य जुड़े 🙏🏻



इस पोस्ट को आप अपने मित्रो, शिक्षको और प्रतियोगियों व विद्यार्थियों (के लिए उपयोगी होने पर)  को जरूर शेयर कीजिए और अपने सोशल मिडिया पर अवश्य शेयर करके आप हमारा सकारात्मक सहयोग करेंगे

❤️🙏आपका हृदय से आभार 🙏❤️

 




नवीनतम अपडेट

EXCEL SOFTWARE



प्रपत्र FORMATS AND UCs

PORATL WISE UPDATES



LATEST RESULTS

Pin It on Pinterest

Shares
Share This

Share This

Share this post with your friends!