RBSE / BSER CLASS X HUMAN SYSTEM

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बहुचयनात्मक प्रश्न 

1. विभिन्न स्तरों पर भोजन, भोजन पाचित रस तथा अवशिष्ट की गति को कौन नियंत्रित करता है?
(क) संवरणी पेशियां
(ख) म्यूकोसा
(ग) श्लेष्मी उपकला।
(घ) दोनों ख व ग

2. निम्न में से कौन से दंत मांसाहारी पशुओं में सर्वाधिक विकसित होते हैं ?
(क) कुंतक
(ख) रदनक
(ग) अग्र-चवर्णक
(घ) चवर्णक

3. एपिग्लोटिस (epiglotis) का प्रमुख कार्य है
(क) भोजन को ग्रसनी में भेजना।
(ख) भोजन को श्वासनली में प्रवेश से रोकना
(ग) भोजन को ग्रहनी तक पहुंचाना
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

4. एंजाइमों द्वारा सर्वाधिक भोजन पाचन की क्रिया यहाँ संपन्न की जाती है
(क) अग्रक्षुद्रांत्र
(ख) क्षुद्रांत्र
(ग) ग्रहणी
(घ) वृहदान्र

5. निम्न में से कौन लार ग्रन्थि नहीं है?
(क) कर्णपूर्व ग्रन्थि
(ख) अधोजंभ
(ग) अधोजिह्वा
(घ) पीयूष ग्रन्थि

6. निम्न में से कौन सा एंजाइम अग्न्याशय द्वारा स्रावित नहीं होता?
(क) एमिलेज।
(ख) ट्रिप्सिन
(ग) रेनिन ।
(घ) लाइपेज |

7. निम्न में से कौन सा अंग द्वितीयक श्वसन अंग है
(क) मुख
(ख) नासिका
(ग) नासाग्रसनी
(घ) स्वरयंत्र

8. बाएं फेफड़े में पाए जाने वाले खंडों की संख्या है
(क) 3
(ख) 4
(ग) 2
(घ) 1

9. एलवियोलाई में पाई जाती है
(क) शल्की उपकला
(ख) उपकला
(ग) उपास्थि छल्ले
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

10. रुधिर का द्रव्य भाग क्या कहलाता है?
(क) सीरम
(ख) लसीका
(ग) प्लाज्मा
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

11. साधारणतः लाल रुधिर कणिकाओं का विनाश कहाँ होता है?
(क) प्लीहा
(ख) लाल अस्थि मज्जा
(ग) लसीका पर्व
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

12. निम्न में से कौन सी कोशिका श्वेत रक्त कणिका नहीं है?
(क) बी-लिंफोसाइट।
(ख) बिंबाणु ।
(ग) बेसोफिल
(घ) मोनोसाइट ।

13. किस रक्त समह में लाल रक्त कणिकाओं पर A व B दोनों ही प्रतिजन उपस्थित होते हैं ?
(क) O
(ख) A
(ग) B
(घ) AB

14. परिसंचरण के दौरान रक्त हृदय से कितनी बार गुजरता है?
(क) एक
(ख) तीन
(ग) दो।
(घ) चार

15. मनुष्य मुख्य रूप से किसका उत्सर्जन करता है?
(क) अमोनियो ।
(ख) यूरिक अम्ल |
(ग) यूरिया ।
(घ) क व ग दोनों

16. ग्लोमेरुलस कहाँ पाया जाता है?
(क) बोमेन संपुट में
(ख) वृक्क नलिका में
(ग) हेनले-लूप में
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

17. प्रमुख मानव नर लिंग हॉर्मोन है
(क) एस्ट्रोजन
(ख) प्रोजेस्टेरॉन
(ग) टेस्टोस्टेरॉन
(घ) ख व ग दोनों

18. निम्न में से प्राथमिक लैंगिक अंग है–
(क) वृषण कोष ।
(ख) अण्डाशय |
(ग) वृषण
(घ) ख व ग दोनों

19. प्रेरक तंत्रिकाएँ उद्दीपनों को पहुँचाती हैं
(क) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से अंगों तक
(ख) अंगों से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक
(ग) क व ख दोनों सही हैं।
(घ) क व ख दोनों गलत हैं।

20. कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमीन पाया जाता है
(क) अग्र मस्तिष्क में
(ख) पश्च मस्तिष्क में
(ग) मध्य मस्तिष्क में
(घ) क व ख दोनों में

21. पीयूष ग्रन्थि कौन सा हॉर्मोन स्रावित नहीं करती ?
(क) वृद्धि हार्मोन
(ख) वैसोप्रेसिन
(ग) मेलेटोनिन ।
(घ) प्रोलैक्टिन

22. दैनिक लय के नियमन के लिए उत्तरदायी है
(क) थाइराइड ग्रन्थि
(ख) अग्न्याशय
(ग) अधिवृक्क ग्रन्थि
(घ) पिनियल ग्रन्थि

उत्तरमाला-
1. (क)
2. (ख)
3. (ख)
4. (ग)
5. (घ)
6. (ग)
7. (क)
8. (ग)
9. (क)
10. (ग)
11. (क)
12. (ख)
13. (घ)
14. (ग)
15. (ग)
16. (क)
17. (ग)
18. (घ)
19. (क)
20. (ग)
21. (ग)
22. (घ)

 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 23. शरीर की मूलभूत संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई का नाम लिखें।
उत्तर- शरीर की मूलभूत संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई को कोशिका (Cell) कहते हैं।

प्रश्न 24. पाचन तंत्र को परिभाषित करें।
उत्तर- भोजन के अन्तर्ग्रहण से लेकर मल त्याग तक एक तंत्र जिसमें अनेकों अंग, ग्रन्थियाँ सम्मिलित हैं, सामंजस्य के साथ कार्य करते हैं। यह तन्त्र पाचन तंत्र कहलाता है।

प्रश्न 25. संवरणी पेशियों का क्या काम है?
उत्तर- संवरणी पेशियाँ (Sphincters) भोजन, पाचित भोजन रस व अवशिष्ट की गति को नियंत्रित करती हैं।

प्रश्न 26. पाचन तंत्र में सम्मिलित ग्रन्थियों के नाम लिखें।
उत्तर-

  • लार ग्रन्थि
  • यकृत
  • अग्नाशय।

प्रश्न 27. कुंतक दंत क्या काम करते हैं ?
उत्तर- ये भोजन को कुतरने तथा काटने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 28. आमाशय के कितने भाग होते हैं ?
उत्तर- आमाशय के तीन भाग होते हैं

  • कार्डियक
  • जठर निर्गमी भाग
  • फंडिस।

प्रश्न 29. पाचित भोजन का सर्वाधिक अवशोषण कहाँ होता है?
उत्तर- पाचित भोजन का सर्वाधिक अवशोषण छोटी आँत (Small Intestine) में होता है।

प्रश्न 30. शरीर में पाए जाने वाली सबसे बड़ी ग्रन्थि का नाम लिखें।
उत्तर- शरीर में पाए जाने वाली सबसे बड़ी ग्रन्थि का नाम यकृत (Liver)

प्रश्न 31. टायलिन एंजाइम कौन सी ग्रन्थि स्रावित करती है?
उत्तर- लार ग्रन्थि द्वारा टायलिन एंजाइम का स्रावण किया जाता है।

प्रश्न 32.
स्वर यंत्र में कितनी उपास्थि पाई जाती हैं ?
उत्तर-
स्वर यंत्र में नौ उपास्थि पाई जाती हैं।

प्रश्न 33.
मनुष्यों की श्वासनली में श्लेष्मा का निर्माण कौन करता है?
उत्तर-
मनुष्य की श्वासनली में उपस्थित उपकला (Epithelium) श्लेष्मा का निर्माण करती है।

प्रश्न 34.
सामान्य व्यक्ति में कितना रक्त पाया जाता है?
उत्तर-
सामान्य व्यक्ति में लगभग 5 लीटर रक्त पाया जाता है।

 

प्रश्न 35.
बिंबाणु का जीवनकाल कितना होता है?
उत्तर-
बिंबाणु (Platelets) का जीवनकाल 10 दिवस का होता है।

प्रश्न 36.
अशुद्ध रुधिर को प्रवाहित करने वाली वाहिकाएँ क्या कहलाती हैं?
उत्तर-
अशुद्ध रुधिर को प्रवाहित करने वाली वाहिकाएँ शिरायें (Veins) कहलाती हैं।

प्रश्न 37.
हृदयावरण क्या है?
उत्तर-
हृदय पर पाया जाने वाला आवरण हृदयावरण (Pericardium) कहलाता है।

प्रश्न 38.
महाशिरा का क्या कार्य है?
उत्तर-
इसके द्वारा शरीर का अधिकांश अशुद्ध रुधिर दायें आलिन्द में डाला जाता है।

प्रश्न 39.
अमोनिया उत्सर्जन की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
उत्तर-
अमोनिया उत्सर्जन की प्रक्रिया अमोनियोत्सर्ग (Ammonotelism) कहलाती है।

प्रश्न 40.
मानव में मुख्य उत्सर्जक अंग कौन सा है?
उत्तर-
मानव में मुख्य उत्सर्जक अंग वक्के (Kidney), है।

प्रश्न 41.
अण्डाणु निर्माण करने वाले अंग का नाम लिखें।
उत्तर-
अण्डाणु निर्माण करने वाले अंग का नाम अण्डाशय (Ovary) है।

प्रश्न 42.
स्त्रियों के प्रमुख लिंग हॉर्मोन का नाम लिखें।
उत्तर-
स्त्रियों के प्रमुख लिंग हार्मोन का नाम एस्ट्रोजन (Estrogen) है।

 

प्रश्न 43.
माता में प्लेसैंटा का रोपण कहाँ होता है?
उत्तर-
माता में प्लेसैंटा का रोपण गर्भाशय के अन्तःस्तर में होता है।

प्रश्न 44.
विभिन्न अंगों के मध्य समन्वय स्थापित करने के लिए उत्तरदायी तंत्रों का नाम लिखें।
उत्तर-
तंत्रिका तंत्र तथा अन्तःस्रावी तंत्र।

प्रश्न 45.
धूसर द्रव्य कहाँ पाया जाता है?
उत्तर-
धूसर द्रव्य मस्तिष्क व मेरुरज्जु में पाया जाता है।

प्रश्न 46.
एक न्यूरोट्रांसमीटर का नाम लिखें।
उत्तर-
ग्लाईसीन (Glycine), एपीनेफ्रीन, डोपामीन, सिरोटोनिन।

प्रश्न 47.
थाइराइड ग्रन्थि द्वारा स्रावित हार्मोन का नाम लिखें।
उत्तर-
थाइराइड ग्रन्थि द्वारा स्रावित हार्मोन का नाम थाइरॉक्सिन है।

प्रश्न 48.
एड्रिनलीन हार्मोन का स्राव किस ग्रन्थि के द्वारा किया जाता है?
उत्तर-
एड्रिनलीन हार्मोन को स्राव अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland) द्वारा किया जाता है।

 

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 49.
पाचन कार्य में सम्मिलित अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर-
पाचन क्रिया में सम्मिलित अंगों के नाम निम्न हैं

  1. मुख (Mouth)-(i) तालु (ii) दाँत (iii) जीभ
  2. ग्रसनी (Pharynx)
  3. ग्रासनली (Oesophagus)
  4. आमाशय (Stomach)
  5. छोटी आँत (Small Intestine)-(i) ग्रहणी (ii) जेजुनम (iii) इलियम
  6. बड़ी आँत (Large Intestine)-(i) अंधनाल (Cecum) (ii) कोलन (Colon) (iii) मलाशय (Rectum)।
  7. पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands)-(i) लार ग्रन्थि (ii) यकृत (iii) अग्नाशय।

प्रश्न 50.
आमाशय की संरचना व कार्य समझाइए।
उत्तर-
आमाशय की संरचना-आमाशय उदर गुहा में बायीं ओर डायफ्राम के पीछे स्थित होता है। यह आहारनाल का सबसे चौड़ा थैलेनुमा पेशीय भाग है, जिसकी आकृति ‘J’ के समान होती है। ग्रसिका आमाशय के कार्डियक भाग में खुलती है। आमाशय एक से तीन लीटर तक भोजन धारित कर सकता है।
आमाशय को तीन भागों में बाँटा गया है

  • कार्डियक भाग-आमाशय का अग्र भाग कार्डियक भाग कहलाता है। ग्रसिका व आमाशय के बीच एक कंपाट पाया जाता है, जिसे कार्डियक कपाट कहते हैं । इस कपाट के कारण भोजन ग्रासनली से आमाशय में तो आ सकता है, परन्तु आमाशय से ग्रासनली/ग्रसिका में नहीं जा सकता है।
  • जठर निर्गमी भाग (Pyloric part)-आमाशय का पश्च या दाहिना भाग जठर निर्गमी भाग (Pyloric part) कहलाता है। यह भाग ग्रहणी (छोटी आँत) में खुलता है। इसके छिद्र पर एक पेशीय कपाट पाया जाता है, जो भोजन को आमाशय से ग्रहणी (आँत) में तो जाने देता है परन्तु ग्रहणी से आमाशय में नहीं जाने देता। इस कपाट को पाइलोरिक कपाट कहते हैं।
  • फंडिस भाग (Fundic part)-आमाशय का मध्य भाग फंडिस भाग कहलाता है। यह आमाशय के 80 प्रतिशत भाग का निर्माण करता है। इस भाग में ही वास्तव में पाचन क्रिया होती है।

आमाशय के कार्य-
(1) आमाशय में भोजन का क्रमाकुंचन तरंगों द्वारा पाचन किया जाता है, जिसके फलस्वरूप भोजन एक लेई के रूप में बदल जाता है, जिसे काइम (Chyme) कहते हैं।

(2) आमाशय में पाया जाने वाला HCl निम्न कार्य करता है

  • भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।
  • कठोर ऊतकों को घोलता है।
  • निष्क्रिय एन्जाइम पेप्सिनोजन को सक्रिय पेप्सिन में बदलना तथा निष्क्रिय प्रोरेरिन को सक्रिय रेनिन में बदलना।
  • टायलिन की क्रिया को बन्द करना।
  • मुखगुहा से आये भोजन के माध्यम को अम्लीय बनाना एवं जठर निर्गम कपाट को नियंत्रण करना।

प्रश्न 51.
लार ग्रन्थि कहाँ पाई जाती है? इसकी संरचना समझाइए।
उत्तर-
लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands)-मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। ये ग्रन्थियाँ बहिःस्रावी (Exocrine) होती हैं।

    • कर्णपूर्व ग्रन्थि (Parotid gland)-ये ग्रन्थियाँ सबसे बड़ी होती हैं। तथा कर्ण के नीचे अर्थात् गालों में पाई जाती हैं। इन ग्रन्थियों की नलिका कुंतक दाँतों के समीप खुलती है। यह सीरमी तरल का स्राव करती
    • अधोजंभ ग्रन्थियाँ (Submandibular glands) ये ग्रन्थियाँ ऊपरी जबड़े व निचले जबड़े के जोड़ पर पाई जाती हैं। इन ग्रन्थियों की नलिकाएँ मुख्य गुहिका के फर्श पर खुलती हैं। ये एक मिश्रित ग्रन्थि है जो तरल तथा श्लेष्मिक स्रावण करती है।
      RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 1
  • अधोजिह्वा ग्रन्थि (Sublingual glands)-ये ग्रन्थियाँ जिह्वा के नीचे पाई जाती हैं। ये सबसे छोटी लार ग्रन्थियाँ होती हैं। इन ग्रन्थियों की नलिकाएँ फ्रेनुलम (Frenulum) पर खुलती हैं। इनके द्वारा श्लेष्मिक स्रावण किया जाता है।

लार ग्रन्थियों के स्रावण को लार (Saliva) कहते हैं । लार एक क्षारीय तरल होता है। इसमें श्लेष्मा, जल, लाइसोजाइम व टायलिन नामक एन्जाइम उपस्थित होता है, जो भोजन के पाचन में सहायक होता है। इसका कार्य भोजन को चिकना व घुलनशील बनाना है, ताकि निगलने में आसानी हो।

 

प्रश्न 52.
नासिका के मुख्य कार्यों की विवेचना करें।
उत्तर-
नासिका के मुख्य कार्य निम्न हैं

  1. नासिका में स्थित नासा मार्ग लगातार श्लेष्मा स्रावण के कारण नम व लसदार बना होता है, जो फेफड़ों तक जाने वाली वायु को नम बना देते हैं।
  2. वायु के साथ आये हानिकारक धूल के कण, जीवाणु, परागकण, फफूद के कण आदि श्लेष्मा के साथ चिपक जाते हैं। इस प्रकार वायु का फिल्टरेशन होता है।
  3. नासागुहाओं के अग्रभागों की श्लेष्मा झिल्ली में तंत्रिका तंतुओं के अनेक स्वतंत्र सिरे उपस्थित होते हैं, जो गंध के बारे में ज्ञान प्राप्त करवाते हैं।
  4. नासा मार्ग से गुजरते समय वायु का ताप शरीर के ताप के समान हो जाता है।
  5. नाक में पाये जाने वाले बाल भी वायु को फिल्टर करने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 53.
ग्रसनी किस प्रकार श्वसन कार्य में सहायक होती है?
उत्तर-
ग्रसनी एक पेशीय चिमनीनुमा रचना होती है। ग्रसनी तीन भागों में विभक्त होती है

  1. नासाग्रसनी (Nasopharynx)
  2. मुखग्रसनी (Oropharynx)
  3. अधोग्रसनी या कंठ ग्रसनी (Laryngo Pharynx)

श्वसन क्रिया के दौरान वायु नासिका गुहा से गुजरने के बाद नासाग्रसनी से होती हुई मुखग्रसनी में आती है। मुख से ली गई श्वास सीधे मुखग्रसनी में तथा मुखग्रसनी से वायु कंठ-ग्रसनी से होते हुए घांटी ढक्कन (Epiglottis) के माध्यम से स्वरयंत्र (Larynx) में प्रवेश करती है। घांटी ढक्कन एक उपास्थि की बनी संरचना है, जो श्वासनली एवं आहारनली के मध्य एक स्विच का कार्य करता है। चूँकि ग्रसनी भोजन निगलने में भी सहायक है, ऐसे में एपिग्लॉटिस एक ढक्कन के तौर पर कार्य करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि वायु श्वास नली में ही जाये तथा भोजन आहार नली में।

प्रश्न 54.
श्वसन मांसपेशियों के महत्त्व को लिखें।
उत्तर-
श्वसन मांसपेशियों का महत्त्व

  1. गैसों के आदान-प्रदान हेतु मांसपेशियों का योगदान है।
  2. ये मांसपेशियाँ श्वांस को लेने व छोड़ने में सहायता करती हैं।
  3. मध्यपट (Diaphragm) कंकाल पेशी का बना होता है जो वक्ष स्थल की सतह पर पाया जाता है। यह श्वसन के लिए उत्तरदायी है।
  4. मध्यपट के संकुचन से वायु नासिका से होती हुई फेफड़ों के अन्दर प्रवेश होती है अर्थात् निःश्वसन (Inspiration) की क्रिया होती है।
  5. मध्यपट के शिथिलन से वायु फेफड़ों से बाहर निकलती है अर्थात् उच्छश्वसन (Expiration) की क्रिया होती है।
  6. इसी प्रकार पसलियों के बीच दो क्रॉस के रूप में अन्तरापर्युक पेशियाँ (Intercostal muscles) होती हैं जो मध्यपट के संकुचन व शिथिलन में मदद करती हैं।

प्रश्न 55.
रक्त को परिभाषित कीजिए तथा रक्त के कार्य लिखें।
उत्तर-
रक्त एक प्रकार का तरल संयोजी ऊतक है, जो आवश्यक पोषक तत्व व ऑक्सीजन को कोशिकाओं में तथा कोशिकाओं से चयापचयी अपशिष्ट उत्पादों तथा Co2, का परिवहन करता है। यह एक हल्का क्षारीय तरल है। इसका pH 7.4 होता है।

रक्त के कार्य|

  1. O2 व Co2, का वातावरण तथा ऊतकों के मध्य विनिमय करना।
  2. पोषक तत्वों का शरीर में विभिन्न स्थानों तक परिवहन।
  3. शरीर का पी.एच. (pH) नियंत्रित करना।
  4. शरीर का ताप नियंत्रण।
  5. प्रतिरक्षण के कार्यों को संपादित करना।
  6. हार्मोन आदि को आवश्यकता के अनुरूप परिवहन करना।
  7. उत्सर्जी उत्पादों को शरीर से बाहर करना।

प्रश्न 56.
रक्त परिसंचरण में रक्त वाहिनियों की भूमिका बताइए।
उत्तर-
रक्त परिसंचरण में रक्त वाहिनियों की भूमिका-शरीर में रक्त का परिसंचरण वाहिनियों द्वारा होता है। रक्त वाहिकाएँ एक जाल का निर्माण करती हैं। जिनमें प्रवाहित होकर रक्त कोशिकाओं तक पहुँचता है। ये दो प्रकार की होती हैं

  • धमनियाँ (Arteries)-ये वाहिनियाँ ऑक्सीजनित साफ रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं। इनमें रुधिर दाब के साथ बहता है। इसीलिए इनकी दीवार मोटी एवं लचीली होती है। सामान्यतः धमनियाँ शरीर की गहराई में स्थित होती हैं परन्तु गर्दन व कलाई में ये त्वचा के नीचे ही स्थित होती हैं।
  • शिराएँ (Veins)-इनके द्वारा विऑक्सीजनित अपशिष्ट युक्त रुधिर शरीर के विभिन्न भागों से हृदय की ओर प्रवाहित होता है। इनकी दीवार पतली व पिचकने वाली होती है। शिराओं की गुहा अपेक्षाकृत अधिक चौड़ी होती है। अतः इनमें रुधिर का दाब बहुत कम होता है। रुधिर दाब कम होने के कारण इन शिराओं में स्थानस्थान पर अर्धचन्द्राकार कपाट होते हैं जो रुधिर को उल्टी दिशा में बहने से रोकते हैं।
    रक्त वाहिनियाँ विभिन्न अंगों एवं ऊतकों में पहुँचकर केशिकाओं का विस्तृत समूह बनाती हैं।

प्रश्न 57.
वृक्क की संरचना समझाइए।
उत्तर-
वृक्क (Kidney)-मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क पाये जाते हैं। दोनों वृक्क उदर गुहा के पृष्ठ भाग में आमाशय के नीचे कशेरुक दण्ड के इधर-उधर स्थित होते हैं। वृक्क गहरे भूरे रंग एवं सेम के बीज की आकृति के होते हैं अर्थात् इनका बाहरी भाग उभरा हुआ तथा भीतरी भाग दबा हुआ होता है जिसके मध्य में एक छोटा-सा गड्ढा होता है। इस गड्ढे को हाइलम (Hilum) कहते हैं। हाइलम भाग से वृक्क धमनी प्रवेश करती है किन्तु वृक्क शिरा (Renal Vein) एवं मूत्र वाहिनी (Ureter) बाहर निकलती है। बायां वृक्क दाहिने वृक्क से थोड़ा ऊपर स्थित होता है एवं दाहिने वृक्क से आकार में कुछ बड़ा होता है।

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प्रत्येक वृक्क के दो भाग होते हैं-बाहरी भाग को वल्कुट (Cortex) तथा अन्दर वाले भाग को मध्यांश (medula) कहते हैं। प्रत्येक वृक्क में लाखों महीन कुण्डलित नलिकाएँ पाई जाती हैं। इन नलिकाओं को वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं । यह वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। प्रत्येक नेफ्रॉन के दो भाग होते हैं-(i) बोमेन सम्पुट (ii) वृक्क नलिका या नेफ्रॉन।।

 

प्रश्न 58.
वृक्क के अलावा उत्सर्जन के कार्य में आने वाले अन्य अंगों के बारे में लिखिए।
उत्तर-
यद्यपि वृक्क मनुष्य के प्रमुख उत्सर्जी अंग हैं किन्तु इनके अतिरिक्त निम्नलिखित अंग भी उत्सर्जन कार्य में सहायक होते हैं|

  1. त्वचा (Skin)-त्वचा में स्वेद ग्रन्थियाँ (Sweat Glands) पायी जाती हैं। इसमें स्वेद का स्रावण होता है। स्वेद से होकर जल की अतिरिक्त मात्रा, लवण, कुछ मात्रा में Co2 व कुछ मात्रा में यूरिया का त्याग भी होता है।
    सीबम के रूप में निकले तेल के रूप में यह हाइड्रोकार्बन व स्टेरोल आदि के उत्सर्जन का काम करता है।
  2. यकृत (Liver)-यकृत में अमोनिया को क्रेब्स हॅसिलिट चक्र द्वारा युरिया में बदला जाता है। यकृत द्वारा पित्त का निर्माण होता है। यकृत बिलिरुबिन (Bilirubin), बिलिवर्डिन (Biliverdin), विटामिन, स्टीरॉयड हार्मोन आदि का मल के साथ उत्सर्जन करने में मदद करती है।
  3. प्लीहा (Spleen)-प्लीहा को RBC का कब्रिस्तान कहा जाता है। यहाँ मृत RBC के विघटन से बिलिरुबिन व बिलिवर्डिन का निर्माण होता है, जो यकृत में जाकर पित्त का हिस्सा बन जाते हैं। इन वर्णकों का त्याग मल के साथ कर दिया जाता है। यूरोक्रोम भी RBC के विघटन के द्वारा निर्मित होता है व मूत्र द्वारा इसका त्याग कर दिया जाता है। इसके कारण मूत्र हल्का पीला होता है।
  4. आन्त्र (Intestine)-आन्त्र में पित्त रस के माध्यम से डाले गये अपशिष्ट पदार्थ शरीर से बाहर निकाल दिये जाते हैं । आन्त्र से मल के साथ मृत कोशिकाओं का भी त्याग होता है।
  5. फुफ्फुस (Lungs)-फुफ्फुस द्वारा उच्छ्श्व सन के दौरान Co2 का त्याग कर दिया जाता है व साथ ही जलवाष्प का भी त्याग होता है।

प्रश्न 59.
स्त्रियों के प्राथमिक लैंगिक अंग के कार्य लिखें।
उत्तर-
स्त्रियों में प्राथमिक लैंगिक अंग के रूप में एक जोड़ी अण्डाशय (ovaries) पाये जाते हैं, जिसके निम्न कार्य हैं

  • अण्डाशय में अण्डे का उत्पादन होता है।
  • अण्डाशय एक अन्त:स्रावी ग्रन्थि है अतः इसके द्वारा दो प्रकार के हार्मोन का स्रावण होता है, जिन्हें क्रमशः एस्ट्रोजन (Estrogen) व प्रोजेस्टेरोन (Progesteron) हार्मोन कहते हैं।
  • एस्ट्रोजन हार्मोन द्वारा मादा में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास होता है।
  • एस्ट्रोजन हार्मोन नारीत्व हार्मोन (Feminizing Hormone) कहलाता है।
  • एस्ट्रोजन हार्मोन मादाओं में मैथुन इच्छा जागृत करता है।
  • प्रोजेस्टेरोन गर्भधारण व गर्भावस्था के लिए आवश्यक हार्मोन है, इसे गर्भावस्था हार्मोन (Pregnancy Hormone) कहते हैं। प्रोजेस्टेरोन की कमी से गर्भपात हो जाता है।

प्रश्न 60.
मानव जनन तंत्र में शुक्रवाहिनी का क्या कार्य है?
उत्तर-
शुक्रवाहिनी के कार्य

  • शुक्रवाहिनी की भित्ति पेशीय होती है व इसमें संकुचन व शिथिलन की क्षमतां पाई जाती है। संकुचन व शिथिलन द्वारा शुक्राणु शुक्राशय तक पहुँचा दिये जाते हैं।
  • शुक्रवाहिनियों में ग्रन्थिल कोशिकाएँ भी पाई जाती हैं जो चिकने पदार्थ का स्रावण करती हैं। यह द्रव शुक्राणुओं को गति करने में सहायता करता है।

प्रश्न 61.
मेरुरज्जु का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
मेरुरज्जु का महत्त्व

  • मेरुरज्जु मुख्यतः प्रतिवर्ती क्रियाओं के संचालन एवं नियमन करने का कार्य करता है।
  • साथ ही मस्तिष्क से प्राप्त तथा मस्तिष्क को जाने वाले आवेगों के लिए पथ प्रदान करता है।

प्रश्न 62.
अग्र मस्तिष्क के क्या कार्य हैं? इसकी संरचना समझाइए।
उत्तर-
अग्र मस्तिष्क के कार्य-अग्र मस्तिष्क प्रमस्तिष्क, थैलेमस तथा हाइपोथैलेमस से मिलकर बना होता है।

  • प्रमस्तिष्क के कार्य-यह बुद्धिमत्ता, याददास्त, चेतना, अनुभव, विश्लेषण, क्षमता, तर्कशक्ति तथा वाणी आदि उच्च मानसिक कार्यकलापों के केन्द्र का कार्य करता है।
  • थैलेमस के कार्य-संवेदी व प्रेरक संकेतों का केन्द्र है।
  • हाइपोथैलेमस के कार्य-यह भाग भूख, प्यास, निद्रा, ताप, थकान, मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति आदि का ज्ञान करवाता है।

अग्र मस्तिष्क की संरचना-प्रमस्तिष्क पूरे मस्तिष्क के 80-85 प्रतिशत भाग का निर्माण करता है। यह अनुलम्ब विदर की सहायता से दो भागों में विभाजित होता है, जिन्हें क्रमशः दायाँ व बायाँ प्रमस्तिष्क गोलार्ध कहते हैं। दोनों प्रमस्तिष्क गोलार्ध कार्पस कैलोसम पट्टी से आपस में जुड़े होते हैं। प्रत्येक गोलार्ध में बाहर की ओर धूसर द्रव्य पाया जाता है, जिसे बाहरी वल्कुट (Cortex) कहते हैं तथा अन्दर श्वेत द्रव्य (White matter) होता है, जिसे मध्यांश (Medulla) कहते हैं। जो मेरुरज्जु के विन्यास से विपरीत होता है।

प्रमस्तिष्क चारों ओर से थैलेमस से घिरा होता है। अग्र मस्तिष्क के डाइएनसीफेलॉन भाग पर हाइपोथैलेमस स्थित होती है।

 

प्रश्न 63.
अंतःस्रावी तंत्र में हाइपोथैलेमस की क्या भूमिका है?
उत्तर-
हाइपोथैलेमस द्वारा विशेष मोचक हार्मोनों का संश्लेषण किया जाता है। ये हार्मोन इस ग्रन्थि से निकलकर पीयूष ग्रन्थि को विभिन्न हार्मोन स्राावित करने हेतु उद्दीपित करते हैं। हाइपोथैलेमस द्वारा दो प्रकार के हार्मोन का संश्लेषण किया जाता है

  • मोचक हार्मोन-पीयूष ग्रन्थि को स्राव करने हेतु प्रेरित करते हैं।
  • निरोधी हार्मोन-ये पीयूष ग्रन्थि से हार्मोन स्राव को रोकते हैं अर्थात् पीयूष ग्रन्थि द्वारा हार्मोनों के उत्पादन तथा स्रावण का नियंत्रण करते हैं। इस कारण से हाइपोथैलेमस को अन्त:स्रावी नियमन का सर्वोच्च कमाण्डर कहा जाता है। पीयूष ग्रन्थि पर नियंत्रण द्वारा हाइपोथैलेमस शरीर की अधिकांश क्रियाओं का नियमन करता है। इन हार्मोन को न्यूरो हार्मोन भी कहते हैं। शरीर में समस्थैतिका कायम रखने में तंत्रिका तंत्र व अन्त:स्रावी तंत्र समन्वित रूप से कार्यरत रहते हैं।

प्रश्न 64.
अग्नाशय के बहिःस्रावी तथा अंतःस्रावी कार्य को समझाइए।
उत्तर-
अग्नाशये एक बहिःस्रावी तथा अन्तःस्रावी दोनों प्रकार की ग्रन्थि है। इसे मिश्रित ग्रन्थि (Mixed gland) भी कहते हैं। अग्नाशय पाचक ग्रन्थि होने के कारण इसे बहि:स्रावी ग्रन्थि कहते हैं क्योंकि इससे निर्मित पाचक एन्जाइम नलिका (अग्नाशय नलिका) के माध्यम से ग्रहणी में पहुँचता है अर्थात् यह एक नलिकायुक्त ग्रन्थि है इसलिए इसे बहिःस्रावी ग्रन्थि कहते हैं।

इसके साथ ही इसमें लैंगरहेन्स की द्वीपिका की उपस्थिति के कारण इसे अन्त:स्रावी ग्रन्थि कहते हैं। इससे स्रावित होने वाले दो हार्मोन जिन्हें क्रमश: इन्सुलिन व ग्लूकोगॉन कहते हैं। इन्सुलिन का प्रमुख कार्य ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में परिवर्तित कर रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करना है जबकि ग्लूकोगॉन इसके विपरीत ग्लाइकोजन को ग्लूकोज में परिवर्तन को नियंत्रित करता है ताकि रक्त में शर्करा का स्तर सही बना रहे। किसी कारण से यदि रक्त में इन्सुलिन की कमी हो जाए तो रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है तथा मधुमेह नामक रोग उत्पन्न हो जाता है। इनमें नलिकाओं का अभाव होता है अतः अन्त:स्रावी ग्रन्थि के रूप में कार्य करती है।

 

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 65.
मानव पाचन तंत्र पर एक विस्तृत लेख लिखें। पाचन तंत्र में प्रयुक्त होने वाले एंजाइमों के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर-
पाचन तन्त्र-भोजन के अन्तर्ग्रहण से लेकर मल त्याग तक एक तन्त्र जिसमें अनेकों अंग, ग्रन्थियाँ आदि सम्मिलित हैं, सामंजस्य के साथ कार्य करते हैं, यह पाचन तन्त्र कहलाता है।

पाचन में भोजन के जटिल पोषक पदार्थों व बड़े अणुओं को विभिन्न रासायनिक क्रियाओं तथा एन्जाइमों की सहायता से सरल, छोटे व घुलनशील पदार्थों में परिवर्तित किया जाता है।

पाचन तन्त्र निम्न दो रचनाओं से मिलकर बना होता है
I. आहार नाल (Alimentary Canal)
II. पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands)

I. आहार नाल (Alimentary Canal)-मनुष्य की आहार नाल लम्बी कुण्डलित एवं पेशीय संरचना है जो मुँह से लेकर गुदा तक फैली रहती है। मनुष्य में आहार नाल लगभग 8 से 10 मीटर लम्बी होती है। आहार नाल के प्रमुख अंग निम्न हैं
(1) मुख (Mouth)
(2) ग्रसनी (Pharynx)
(3) ग्रासनली (Oesophagus)
(4) आमाशय (Stomach)
(5) छोटी आँत (Small Intestine)
(6) बड़ी आँत (Large Intestine)

1. मुख (Mouth)-मुख दो गतिशील पेशीय होठों के द्वारा घिरा होता है, जिन्हें क्रमशः ऊपरी होठ व निचला होठ कहते हैं। मुख मुखगुहा में खुलता है जो एक कटोरेनुमा होती है। मुखगुहा की छत को तालू कहते हैं। मुखगुहा की तल पर मांसल जीभ पाई जाती है। जीभ भोजन को चबाने का कार्य करती है। ऊपरी व निचले जबड़ा में 16-16 दाँत पाये जाते हैं, जो भोजन चबाने में सहायता करते हैं। दाँत चार प्रकार के होते हैं, कुंतक, रदनक, अग्र चवर्णक एवं चवर्णक।।

2. ग्रेसनी (Pharynx)-मुखगुहा पीछे की ओर एक कीपनुमा नलिका में • खुलती है, जिसे ग्रसनी कहते हैं। ग्रसनी तीन भागों में विभक्त होती है, जिन्हें क्रमशः नासाग्रसनी, मुखग्रसनी व कंठग्रसनी कहते हैं। ग्रसनी में कोई किसी प्रकार पाचन नहीं होता है। यह भोजन ग्रसीका में भेजने का कार्य करती है।

3. ग्रासनली (Oesophagus)-यह सीधी नलिकाकार होती है जो ग्रसनी को आमाशय से जोड़ने का कार्य करती है। यह ग्रीवा तथा वक्ष भाग से होती हुई तनुपट (Diaphragm) को भेदकर उदरगुहा में प्रवेश करती है और अन्त में आमाशय में खुलती है।

4. आमाशय (Stomach)-यह आहारनाल का सबसे चौडा थैलेनुमा पेशीय भाग है जिसकी आकृति ‘J’ के समान होती है। आमाशय में तीन भाग पाये जाते हैं-

  • जठरागम भाग
  • जठरनिर्गमी भाग
  • फंडिस भाग। आमाशय भोजन को पचाने का कार्य करता है।

5. छोटी आँत (Small Intestine)-आमाशय पाइलोरिक कपाट द्वारा छोटी आँत में खुलता है। मानव में इसकी लम्बाई सात मीटर होती हैं। इस भाग में भोजन का सर्वाधिक पाचन तथा अवशोषण होता है। छोटी आँत में निम्न तीन भाग पाये जाते हैं.

  • ग्रहणी (Duodenum)-यह छोटी आँत का प्रारम्भिक भाग है। इसका आकार U के समान होता है जो भोजन के रासायनिक पाचन (एंजाइमों द्वारा) में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • अग्रक्षुद्रदांत्र (Jejunum)-यह लम्बा संकरा एवं नलिकाकार भाग है। मुख्यतया अवशोषण का कार्य करता है।
  • इलियम (Illeum)-यह आंत्र का शेष भाग है। यह पित्त लवण व विटामिन्स का अवशोषण करता है।

6. बेड़ी आँत (Large Intestine)-इलियम पीछे की ओर बड़ी आँत में खुलती है। बड़ी आँत तीन भागों में विभक्त होती है-

  • अंधनाल
  • वृहदान्त्र
  • मलाशय। इसका मुख्य कार्य जल, खनिज लवणों का अवशोषण तथा अपचित भोजन को मल द्वार से उत्सर्जित करना है।

II. पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands)-निम्न पाचक ग्रन्थियाँ हैं

1. लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands)-तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ लार स्रावित करती हैं जिनमें स्टार्च को माल्टोज शर्करा में बदलने वाला टायलिन एंजाइम उपस्थित होता है।

2. यकृत (Liver)-पित्त का निर्माण करता है। पित्त, पित्ताशय में संग्रहित रहता है। यह वसा के इमल्सीकरण का कार्य करता है अतः वसा के पाचन में सहायक है।

3. अग्नाशय (Pancreas)-प्रोटीन, वसा व कार्बोहाइड्रेट पाचक एंजाइमों का स्राव करती है। अग्नाशयी रस, पित्त रस के साथ ग्रहणी में पहुँचता है।
एंजाइमों का महत्त्व-मनुष्य में लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands), यकृत (Liver) एवं अग्नाशय (Pancreases) ग्रन्थियाँ हैं। लार ग्रन्थियाँ भोजन को निगलने हेतु चिकनाई प्रदान करती हैं, साथ ही स्टार्च के पाचन हेतु एपाइलेज नामक पाचक एन्जाइम का स्रावण किया जाता है। यकृत द्वारा प्रमुख रूप से पित्त रस का स्रावण किया जाता है। यह वसा का पायसीकरण करने में सहायता करता है। यकृत शरीर की सबसे बड़ी पाचन ग्रन्थि है। यह कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन के उपापचय (metabolism) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अग्नाशय विभिन्न प्रकार के एन्जाइम का स्रावण करता है, एमाइलेज, ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन आदि जो कि भोजन के पाचन में सहायक है।

आमाशय के जठर रस में पेप्पसीन व रेनिन एन्जाइम होते हैं जो प्रोटीन व दुध की प्रोटीन को पचाने में सहायता करता है। इसी प्रकार आंत्रीय रस में पाये जाने वाले एन्जाइम माल्टोज, लैक्टेज सुक्रेज, लाइपेज सुक्रेज, लाइपेज न्यूक्लिएज, डाइपेप्टाइडेज, फोस्फोटेज आदि के द्वारा पोषक पदार्थों का पाचन किया जाता है।

प्रश्न 66.
मानव श्वसन तंत्र में श्वासनली, ब्रोन्किओल, फेफड़े तथा श्वसन मांसपेशियों का क्या महत्त्व है? समझाइए।
उत्तर-
श्वसन तन्त्र में श्वासनली, ब्रोन्किओल, फेफड़े तथा श्वसन मांसपेशियों का अग्रलिखित महत्त्व है

श्वासनली (Trachea)-श्वासनली कूटस्तरीय पक्ष्माभी स्तम्भाकार उपकला द्वारा रेखित C-आकार के उपास्थि छल्ले से बनी होती है। ये छल्ले श्वास नली को आपस में चिपकने से रोकते हैं तथा इसे हमेशा खुला रखते हैं। यह करीब 5 इंच लम्बी होती है। यह कंठ से प्रारम्भ होकर गर्दन से होती हुई डायफ्राम को भेदकर वक्ष गुहा तक फैली रहती है। श्वासनली की भीतरी श्लेष्मा कला श्लेष्म स्रावित करती रहती है। यह दीवार के भीतरी स्तर को नम व लसदार बनाये रखती है जो धूल, कण व रोगाणुओं को रोकती है।

ब्रोन्किओल (Bronchiole)-श्वासनली वक्षगुहा में दो भागों में बँट जाती है। प्रत्येक शाखा को क्रमशः दायीं-बायीं श्वसनी (Bronchus) कहते हैं। प्रत्येक श्वसनी दोनों ओर के फेफड़े में प्रवेश करती है। फेफड़ों में श्वसनी के प्रवेश के पश्चात् यह पतली-पतली शाखाओं में बँट जाती है। इन शाखाओं को श्वसनिकाएँ या ब्रोन्किओल्स कहते हैं। श्वसनी तथा ब्रोन्किओल्स मिलकर एक वृक्षनुमा संरचना बनाते हैं, जो बहुत-सी शाखाओं में विभक्त होती है। इन शाखाओं के अन्तिम छोर पर कूपिकाएँ (alveoli) पाये जाते हैं। गैसों का विनिमय इन कूपिकाओं के माध्यम से होता है।

फेफड़े (Lungs)-फेफड़े लचीले, कोमल, हल्के गुलाबी रंग के होते हैं। ये एक जोड़ी होते हैं–बायां फेफड़ा व दायां फेफड़ा। बायां फेफड़ा दो पाली में तथा दायां फेफड़ा तीन पालियों से निर्मित होता है। प्रत्येक फेफड़ा स्पंजी ऊतकों से बना होता है, जिसमें कई केशिकाएँ पाई जाती हैं। कूपिका एक कपनुमा संरचना होती है, जो सीमान्त ब्रोन्किओल के आखिरी सिरे पर पाई जाती हैं। ये असंख्य केशिकाओं से घिरा होता है । कृपिका में शल्की उपकला की पंक्तियाँ पाई जाती हैं जो कोशिका में प्रवाहित रुधिर से गैसों के विनिमय में मदद करती हैं।

श्वसन मांसपेशियाँ-फेफड़ों में गैसों के विनिमय हेतु मांसपेशियों की आवश्यकता होती है। ये पेशियाँ श्वास को लेने व छोड़ने में सहायता करती हैं। मुख्य रूप से श्वसन के लिए मध्य पट/डायफ्राम उत्तरदायी है। डायफ्राम कंकाल पेशी से बनी हुई एक पतली चादरनुमा संरचना है जो वक्षस्थल की सतह पर पाई जाती है। डायफ्राम के संकुचन से वायु नासिका से होती हुई फेफड़ों में प्रवेश करती है तथा शिथिलन से वायु फेफड़ों के बाहर निकलती है। इसके अलावा पसलियों में विशेष प्रकार की मांसपेशी पाई जाती है, जिसे इन्टरकोस्टल पेशियाँ (Intercostal muscles) कहते हैं, जो डायफ्राम के संकुचन व शिथिलन में सहायता करती हैं।

प्रश्न 67.
रक्त क्या होता है? रक्त के विभिन्न घटकों की विवेचना करें तथा रक्त के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर-
रक्त एक तरल संयोजी ऊतक होता है। यह एक श्यान तरल है। जिसके दो भाग होते हैं-प्लाज्मा (Plasma) एवं रुधिर कोशिकाएँ। मनुष्य के अन्दर रुधिर का आयतन लगभग 5 लीटर होता है।

रक्त के घटक–रक्त के मुख्यत: दो भाग होते हैं-(1) प्लाज्मा (2) रुधिर कोशिकाएँ।

(1) प्लाज्मा (Plasma)-
रुधिर के तरल भाग को प्लाज्मा कहते हैं। यह हल्के पीले रंग का क्षारीय तरल होता है। रुधिर आयतन का 55% भाग प्लाज्मा होता है। इसमें 92% जल एवं 8% विभिन्न कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ घुलित या निलम्बित या कोलाइड रूप में पाये जाते हैं।

(2) रुधिर कोशिकाएँ-
ये निम्न तीन प्रकार की होती हैं
(अ) लाल रुधिर कोशिकाएँ (RBC)-इन्हें इरिथ्रोसाइट्स (Erythrocytes) भी कहते हैं। इनकी संख्या बहुत अधिक होती है। ये कुल रक्त कोशिकाओं का 99 प्रतिशत होती हैं। ये आकार में वृत्ताकार, डिस्कीरूपी, उभयावतल (Biconcave) एवं केन्द्रक रहित होती हैं। हीमोग्लोबिन के कारण रक्त का रंग लाल होता है। इनकी औसत आयु 120 दिन होती है।
(ब) श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC)- इनका निर्माण लाल अस्थि मज्जा (Red bone marrow) से होता है। इन्हें ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes) भी कहते हैं। इनमें हीमोग्लोबिन के अभाव के कारण तथा रंगहीन होने से इन्हें श्वेत रक्त कोशिकाएँ कहते हैं। इनमें केन्द्रक पाया जाता है इसलिए इसे वास्तविक कोशिकाएँ (True cells) कहते हैं। ये लाल रुधिर कोशिकाओं की अपेक्षा बड़ी, अनियमित एवं परिवर्तनशील आकार की परन्तु संख्या में बहुत कम होती हैं। ये कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं
(i) कणिकामय (Granulocytes)
(ii) कणिकाविहीन (Agranulocytes)

(i) कणिकामय श्वेत रक्ताण-ये तीन प्रकार की होती हैं

  • न्यूट्रोफिल
  • इओसिनोफिल
  • बेसोफिल।

न्यूट्रोफिल कणिकामय श्वेत रुधिर रक्ताणुओं में इनकी संख्या सबसे अधिक होती है। ये सबसे अधिक सक्रिय एवं इनमें अमीबीय गति पाई जाती है।

(ii) कणिकाविहीन (Agranulocytes)-ये दो प्रकार की होती हैं
(a) मोनोसाइट
(b) लिम्फोसाइट।

(a) मोनोसाइट (Monocytes)-ये न्यूट्रोफिल्स की तरह शरीर में प्रवेश कर सूक्ष्म जीवों का अन्त:ग्रहण (Ingestion) कर भक्षण करती हैं।
(b) लिम्फोसाइट (Lymphocytes)-ये कोशिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं

  • बी-लिम्फोसाइट
  • ‘टी’ लिम्फोसाइट
  • प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ।
    लिम्फोसाइट प्रतिरक्षा उत्पन्न करने वाली प्राथमिक कोशिकाएँ हैं।

मोनोसाइट महाभक्षक (Macrophage) कोशिका में बदल जाती है। मोनोसाइट, महाभक्षक तथा न्यूट्रोफिल मानव शरीर की प्रमुख भक्षक कोशिकाएँ हैं जो बाह्य प्रतिजनों का भक्षण करती हैं।

(स) बिम्बाणु (Platelets)-ये बहुत छोटे होते हैं। इनका निर्माण भी अस्थि मज्जा में होता है। रक्त में इनकी संख्या करीब 3 लाख प्रति घन मिमी. होती है। इनकी आकृति अनियमित होती है तथा केन्द्रक का अभाव होता है। इनका जीवनकाल 10 दिन का होता है। बिम्बाणु रुधिर के थक्का जमाने में सहायता करती है। इनको थ्रोम्बोसाइट भी कहते हैं।

रक्त का महत्त्व-रक्त प्राणियों के शरीर में निम्न कार्यों हेतु महत्त्वपूर्ण है

  1. RBC हीमोग्लोबिन द्वारा 0, व CO, का परिवहन करती है।
  2. रुधिर के द्वारा पचे हुए पोषक पदार्थों को शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाया जाता है।
  3. रक्त समस्त शरीर का एकसमान ताप बनाये रखने में सहायता करता है।
  4. रक्त शरीर पर हुए चोटों व घावों को भरने में सहायता करता है।
  5. प्रतिरक्षण के कार्यों को संपादित करना।
  6. हार्मोन आदि को आवश्यकता के अनुरूप परिवहन करना।
  7. उत्सर्जी उत्पादों को शरीर से बाहर करना।

 

प्रश्न 68.
मानव में मूत्र निर्माण की प्रक्रिया की विवेचना करें। वृक्के की संरचना को समझाइये।
उत्तर-
मानव में मूत्र निर्माण (Urine formation)-नेफ्रॉन (Nephron) का मुख्य कार्य मूत्र निर्माण करना है। मूत्र का निर्माण तीन चरणों में सम्पादित होता है
(i) छानना/परानियंदन (Ultrafiltration)
(ii) चयनात्मक पुनः अवशोषण (Selective reabsorption)
(iii) स्रवण (Secretion)

(i) छानना/परानियंदन-ग्लोमेरुलसे में प्रवेश करने वाली अभिवाही धमनिका, उससे बाहर निकलने वाली अपवाही धमनिका से अधिक चौड़ी होती है। इसलिए जितना रुधिर ग्लोमेरुलस में प्रवेश करता है, निश्चित समय में उतना रुधिर बाहर नहीं निकल पाता। इसलिए केशिका गुच्छ में रुधिर का दबाव बढ़ जाता है। इस दाब के कारण प्रोटीन के अलावा रुधिर प्लाज्मा में घुले सभी पदार्थ छनकर बोमेन संपुट में पहुँच जाते हैं। बोमेन संपुट में पहुँचने वाला यह द्रव नेफ्रिक फिल्ट्रेट या वृक्क निस्वंद कहलाता है। रुधिर में घुले सभी लाभदायक एवं हानिकारक पदार्थ इस द्रव में होते हैं, इसलिए इसे प्रोटीन रहित छना हुआ प्लाज्मा भी कहते हैं।

(ii) चयनात्मक पुनः अवशोषण-नेफ्रिक फिल्ट्रेट द्रव बोमेन सम्पुट में से होकर वृक्क नलिका के अग्र भाग में पहुँचता है। इस भाग में ग्लूकोस, विटामिन, हार्मोन तथा अमोनिया आदि को रुधिर में पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। ये अवशोषित पदार्थ नलिका के चारों ओर फैली कोशिकाओं के रुधिर में पहुँचते हैं। इनके अवशोषण से नेफ्रिक फिल्ट्रेट में पानी की सान्द्रता अधिक हो जाती है। अब जल भी परासरण विधि द्वारा रुधिर में पहुँच जाता है।

(iii) स्रवण-जब रुधिर वृक्क नलिका पर फैले कोशिका जाल से गुजरता है, तब उसके प्लाज्मा में बचे हुए उत्सर्जी पदार्थ पुनः नेफ्रिक फिल्ट्रेट में डाल दिए जाते हैं। इस अवशेष द्रव में केवल अपशिष्ट पदार्थ बचते हैं, जो मूत्र (Urine) कहलाता है। यह मूत्र मूत्राशय में संग्रहित होता है और आवश्यकता पड़ने पर मूत्राशय की पेशियों के संकुचन से मूत्र मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है।

वृक्क संरचना-मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क पाये जाते हैं। दोनों वृक्क उदरगुहा के पृष्ठ भाग में डायफ्राम के नीचे कशेरुक दण्ड के इधर-उधर स्थित होते हैं। वृक्क गहरे भूरे रंग एवं सेम के बीज की आकृति के होते हैं। अर्थात् इनका बाहरी भाग उभरा हुआ तथा भीतरी भाग दबा हुआ होता है, जिसके मध्य में एक छोटा-सा गड्ढा होता है। इस गड्ढे को हाइलम (Hilum) कहते हैं। हाइलम भाग से वृक्क धमनी प्रवेश करती है किन्तु वृक्क शिरा (Renal vein) एवं मूत्रवाहिनी । (Ureter) बाहर निकलती है। बायां वृक्क दाहिने वृक्क से थोड़ा ऊपर स्थित होता है। एवं दाहिने वृक्क से आकार में बड़ा होता है।

प्रत्येक वृक्क के दो भाग होते हैं-बाहरी भाग को वल्कुट (Cortex) तथा अन्दर वाले भाग को मध्यांश (Medula) कहते हैं। प्रत्येक वृक्क में लाखों महीन कुण्डलित नलिकाएँ पाई जाती हैं। इन नलिकाओं को वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं । यह वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। प्रत्येक नेफ्रॉन के दो भाग होते हैं-

  • बोमन सम्पुट
  • वृक्क नलिका।

प्रश्न 69.
नर जनन तंत्र का चित्र बनाइए। मानव में प्राथमिक जनन अंगों की क्रियाविधि बताइए।
उत्तर-
नर जनन तंत्र का चित्र
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 3


प्राथमिक जनन अंग (Primary reproductive organs)-(1) मानव में नर प्राथमिक जनन अंग वृषण (Testis) कहलाते हैं।

वृषण (Testis)-मानव में वृषण दो होते हैं। इनका रंग गुलाबी तथा आकृति में अण्डाकार होते हैं। दोनों वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैली में स्थित होते हैं जिसे वृषण कोष (Scrotum) कहते हैं। वृषण में पाई जाने वाली नलिकाओं को शुक्रजनन नलिका (Seminiferous Tubules) कहते हैं। जो वृषण की इकाई है। वृषण में शुक्राणुओं का निर्माण होता है। इसके अतिरिक्त नर हार्मोन (टेस्टोस्टेरॉन) भी वृषण में बनता है जो लड़कों में यौवनावस्था के लक्षणों का नियंत्रण करता है।

(2) मादाओं में प्राथमिक लैंगिक अंग के तौर पर एक जोड़ी अण्डाशय (ovaries) पाए जाते हैं। अण्डाशय के दो प्रमुख कार्य होते हैं-प्रथम, यह मादा जनन कोशिकाओं (अंडाणु) का निर्माण करता है। द्वितीय, यह एक अंत:स्रावी ग्रन्थि के तौर पर दो हार्मोन का निर्माण करता है-एस्ट्रोजन (estrogen) तथा प्रोजेस्टेरोन (progesterone)। दोनों अण्डाशय उदरगुहा में वक्कों के नीचे श्रोणि भाग (pelvic region) में गर्भाशय के दोनों ओर उपस्थित होते हैं। प्रत्येक अंडाशय में असंख्य विशिष्ट संरचनाएँ जिन्हें अण्डाशयी पुटिकाएं (ovarian follicles) कहा जाता है, पाई जाती हैं। ये पुटिकाएं अण्डाणु निर्माण करती हैं। अण्डाणु परिपक्व होने के पश्चात् अंडाशय से निकलकर अंडवाहिनी (fallopian tubes) से होकर गर्भाशय तक पहुँचता है। अंडाशय से स्रावित हार्मोन स्त्रियों में होने वाले लैंगिक परिवर्तन, अंडाणु के निर्माण आदि कार्यों में मदद करते हैं।

 

प्रश्न 70.
तंत्रिका की संरचना को चित्र के माध्यम से समझाइए। हाइपोथैलेमस तथा पीयूष ग्रन्थि के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर-
तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण कोशिकाओं अथवा न्यूरोन्स (Neurons) द्वारा होता है। यह तन्त्रिका तन्त्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।

तन्त्रिका कोशिका की संरचना (Structure of Nerve Cell)-यह तीन भागों से मिलकर बनी होती है|
(1) सोमा (Soma) अथवा कोशिकाकाय-यह कोशिका का प्रमुख भाग होता है, जिसमें एक केन्द्रक तथा कोशिका द्रव्य पाया जाता है। केन्द्रक में एक स्पष्ट केन्द्रिका (Nucleolus) होती है, जबकि कोशिका द्रव्य में निसेल कणिकाएँ (Nissl’s Granules) तथा न्यूरोफाइब्रिल्स (Neurofibrils) नामक सूक्ष्म तन्तु पाये जाते हैं।
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 4

(2) द्रुमाक्ष्य (Dendrone)-ये छोटे शाखित प्रवर्ध होते हैं, जो कोशिकाकाय की शाखाओं के तौर पर पाये जाते हैं। ये तन्तु उद्दीपनों को कोशिकाकाय की ओर भेजते हैं।

(3) तंत्रिकाक्ष (Axon)-यह एक लम्बा प्रवर्ध होता है जो सोमा से निकलता है। तंत्रिकाक्ष में संदेश सोमा से दूर चलते हैं। अपने दूरस्थ सिरे तन्त्रिकाक्ष शाखित हो जाता है। प्रत्येक शाखा के अन्तिम सिरे पर अवग्रथनी घुण्डी या सिनैप्टिक नोब (Synaptic knob) अथवा अन्तस्थ बटन (Terminal button) नामक सूक्ष्म विवर्धन पाया जाता है, जिसमें न्यूरोट्रांसमीटर नामक पदार्थ पाये जाते हैं, जो तन्त्रिका आवेगों के सम्प्रेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तंत्रिकाक्ष के माध्यम से आवेग न्यूरोन बाहर निकलते हैं।

एक न्यूरोन के द्रुमाक्ष्य के दूसरे न्यूरोन के तंत्रिकाक्ष से मिलने के स्थान को संधि स्थल या सिनैप्स कहते हैं। अर्थात् दो न्यूरोन्स के बीच वाले संधि स्थानों को युग्मानुबंधन या सिनैप्स कहते हैं।

हाइपोथैलेमस तथा पीयूष ग्रन्थि का महत्त्व-अन्त:स्रावी तन्त्र के द्वारा जो नियंत्रण स्थापित किया जाता है, उसमें हाइपोथैलेमस सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाइपोथैलेमस मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों से सूचना एकत्रित कर इन सूचनाओं को विभिन्न स्रावों तथा तंत्रिकाओं द्वारा पीयूष ग्रन्थि तक पहुँचाती है।

पीयूष ग्रन्थि इन सूचनाओं के आधार पर अपने विभिन्न स्रावणों की सहायता से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अन्य अन्त:स्रावी ग्रन्थियों की क्रियाओं को नियंत्रित करती है। ये ग्रन्थियाँ पीयूष ग्रन्थि के निर्देशानुसार भिन्न-भिन्न हार्मोन का स्रावण करती हैं। ये स्रावित हार्मोन मानव शरीर में अनेकों कार्य जैसे-वृद्धि, उपापचयी क्रियाएँ आदि सम्पादित तथा नियंत्रित करते हैं। हार्मोन लक्ष्य ऊतकों पर उपस्थित विशिष्ट प्रोटीन से जुड़कर अपना प्रभाव डालती है।

 

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. समान कार्य करने वाली कोशिकाएँ मिलकर बनाती हैं
(अ) कोशिका
(ब) अंग
(स) ऊतक
(द) तंत्र

2. यकृत की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है
(अ) यकृत पालिकाएँ
(ब) वृक्क नलिका
(स) तंत्रिका कोशिका
(द) शुक्रजनन नलिका

3. आमाशय में पाये जाने वाले एन्जाइम हैं
(अ) पेप्पसिन
(ब) रेनिन
(स) अ व ब
(द) ऐमिलेज

4. मुख श्वसन तंत्र में किस अंग के तौर पर कार्य करता है
(अ) प्राथमिक
(ब) द्वितीयक
(स) तृतीयक
(द) चतुर्थक

5. ग्रसनी की आकृति होती है
(अ) चिमनीनुमा
(ब) लालटेननुमा
(स) मोमबत्तीनुमा
(द) अण्डाकारनुमा

 

6. श्वसन के लिए निम्न में से मुख्य रूप से उत्तरदायी है
(अ) नासिका
(ब) पसलियाँ
(स) फेफड़े
(द) डायफ्राम

7. भ्रूणावस्था तथा नवजात शिशुओं में रक्त का निर्माण होता है
(अ) यकृत में
(ब) प्लीहा में
(स) अस्थिमज्जा में
(द) अग्न्याशय में

8. निम्न में किस कोशिका/कणिका की संख्या रक्त में पाई जाने वाली WBC में सबसे अधिक होती है
(अ) इओसिनोफिल
(ब) न्यूट्रोफिल
(स) बेसोफिल
(द) उपरोक्त में कोई नहीं

9. प्रतिजन A व B की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर रक्त कितने समूहों में विभक्त किया गया है
(अ) एक समूह
(ब) दो समूह
(स) तीन समूह
(द) चार समूह

10. हृदय की गतिविधियों की गति निर्धारित करता है
(अ) पेसमेकर
(ब) महाशिरा
(स) माइट्रल कपाट
(द) फुफ्फुस धमनी

11. निम्न में अमोनियोत्सर्ग का उदाहरण है
(अ) उभयचर।
(ब) मछलियाँ
(स) जलीय कीट
(द) उपरोक्त सभी

12. हेनले का लूप पाया जाता है
(अ) वृक्क में
(ब) आमाशय में
(स) अग्न्याशय में
(द) वृषण में

13. त्वचा निम्न में पसीने के रूप में उत्सर्जित करती है
(अ) नमक
(ब) यूरिया
(स) लैक्टिक अम्ल
(द) उपरोक्त सभी

14. योनि में पाये जाने वाला जीवाणु है
(अ) लैक्टोबैसिलस
(ब) राइजोबियम
(स) अ व ब दोनों
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं

 

15. मानव मस्तिष्क का वजन है
(अ) 1 किलो
(ब) 12 किलो
(स) 2 किलो
(द) 24 किलो

16. कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमीना पिण्ड पाया जाता है
(अ) अग्र मस्तिष्क में
(ब) मध्य मस्तिष्क में
(स) पश्च मस्तिष्क में
(द) मेरुरज्जु में

17. निसेल कणिकाएँ (Nissl’s granules) न्यूरोन के किस भाग में पाई जाती हैं?
(अ) कोशिकाकाय में
(ब) द्रुमाक्ष्य में
(स) तंत्रिकाक्ष में
(द) पेशियों में

18. निम्न में से मास्टर ग्रन्थि है
(अ) अधिवृक्क ग्रन्थि
(ब) थाइमस ग्रन्थि
(स) थायराइड ग्रन्थि
(द) पीयूष ग्रन्थि

19. किस हार्मोन की कमी से टिटेनी रोग होता है?
(अ) पैराथार्मोन
(ब) थाइरोक्सिन
(स) मेलेटोनिन
(द) पीयूष हार्मोन

20. आपातकालीन हार्मोन किस ग्रन्थि से स्रावित किया जाता है ?
(अ) थायराइड ग्रन्थि
(ब) थाइमस ग्रन्थि
(स) अधिवृक्क ग्रन्थि
(द) पीयूष ग्रन्थि।

उत्तरमाला-
1. (स)
2. (अ)
3. (स)
4. (ब)
5. (अ)
6. (द)
7. (ब)
8. (ब)
9. (द)
10. (अ)
11. (द)
12. (अ)
13. (द)
14. (अ)
15. (ब)
16. (ब)
17. (अ)
18. (द)
19. (अ)
20. (स)

 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

 

प्रश्न 1.
लार ग्रन्थि द्वारा स्रावित एन्जाइम का नाम लिखिए। (माध्य. शिक्षा बोर्ड, 2018)
उत्तर-
लार ग्रन्थि द्वारा स्रावित एन्जाइम का नाम टायलिन है।

प्रश्न 2.
स्त्रियों के दो लिंग हार्मोनों के नाम लिखिए। (माध्य. शिक्षा बोर्ड, मॉडल पेपर, 2017-18)
उत्तर-
(1) एस्ट्रोजन (2) प्रोजेस्टेरॉन।

प्रश्न 3.
जीभ मुखगुहा के पृष्ठ भाग में आधार तल से किस रचना से जुड़ी होती है?
उत्तर-
जीभ मुखगुहा के पृष्ठ भाग में आधार तल से फ्रेनुलम लिंगुअल के द्वारा जुड़ी होती है।

प्रश्न 4.
दूध के दाँत बच्चे में कितनी उम्र में निकलते हैं ?
उत्तर-
दूध के दाँत बच्चे में 6 माह की उम्र में निकलते हैं।

प्रश्न 5.
आमाशय कितना लीटर आहार धारित कर सकता है?
उत्तर-
आमाशय एक से तीन लीटर आहार धारित कर सकता है।

प्रश्न 6.
अग्न्याशय की आकृति किस प्रकार की होती है?
उत्तर-
अग्न्याशय की आकृति ‘U’ की आकति की होती है।

 

प्रश्न 7.
पित्ताशय कहाँ स्थित होता है एवं यह किसका भण्डारण करता है?
उत्तर-
पित्ताशय यकृत के अवतल भाग में स्थित होता है। पित्ताशय पित्त का भण्डारण करता है।

प्रश्न 8.
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल किन कोशिकाओं द्वारा स्रावित किया जाता है ?
उत्तर-
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल आक्सिन्टिक कोशिकाओं द्वारा स्रावित किया। जाता है।

प्रश्न 9.
श्वास नली (Trachea) किस प्रकार की आकृति के उपास्थि छल्लों से निर्मित होती है?
उत्तर-
श्वास नली C-आकार के उपास्थि छल्लों से निर्मित होती है।

प्रश्न 10.
एक फेफड़े में कितनी कूपिकाएँ पाई जाती हैं ?
उत्तर-
एक फेफड़े में करीब 30 मिलियन कूपिकाएँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 11.
उस रक्त समूह का नाम बताइए जिसमें कोई किसी प्रकार की प्रतिजन उपस्थित नहीं होती है।
उत्तर-
‘O’ रक्त समूह वाले व्यक्ति में कोई किसी प्रकार की प्रतिजन उपस्थित नहीं होती है।

प्रश्न 12.
विश्व में कितने प्रतिशत व्यक्तियों का रक्त आरएच धनात्मक है?
उत्तर-
विश्व में 80 प्रतिशत व्यक्तियों का रक्त आरएच धनात्मक है।

प्रश्न 13.
मनुष्य में किस प्रकार का परिसंचरण तन्त्र पाया जाता है ?
उत्तर-
मनुष्य में बंद परिसंचरण तंत्र (Closed Circulatory System) पाया जाता है।

प्रश्न 14.
बायें आलिन्द व बायें निलय के बीच पाये जाने वाले कपाट (Valve) को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
बायें आलिन्द व बायें निलय के बीच पाये जाने वाले कपाट को माइट्रल (Mitral) कपाट कहते हैं।

प्रश्न 15.
पक्षी व कीट उत्सर्जन के आधार पर किस प्रकार के प्राणी हैं ?
उत्तर-
पक्षी व कीट उत्सर्जन के आधार पर यूरिक अम्ल उत्सर्जी या यूरिकोटेलिक प्राणी हैं।

प्रश्न 16.
यकृत द्वारा ऐसे दो पदार्थों के नाम लिखिए जिनका उत्सर्जन मल के द्वारा किया जाता है।
उत्तर-

  • बिलीरुबिन
  • बिलीविरडिन
  • विटामिन।

प्रश्न 17.
प्रोस्टेट ग्रन्थि किस प्रकार की ग्रन्थि है एवं इसका आकार किस प्रकार का होता है ?
उत्तर-
यह बाह्यस्रावी ग्रन्थि है एवं इसका आकार अखरोट के समान होता है।

प्रश्न 18.
माता व भ्रूण के मध्य स्थापित कड़ी अथवा संरचना को क्या कहते हैं?
उत्तर-
माता व भ्रूण के मध्य स्थापित कडी अथवा संरचना को प्लेसेंटा (Placenta) कहते हैं।

प्रश्न 19.
योनि में पाये जाने वाले लैक्टोबैसिलस जीवाणु का कार्य लिखिए।
उत्तर-
यह जीवाणु योनि के वातावरण को अम्लीय बनाये रखता है।

 

प्रश्न 20.
कोरक का गर्भाशय के अन्त:स्तर पर जुड़ना क्या कहलाता है?
उत्तर-
कोरक का गर्भाशय के अन्त:स्तर पर जुड़ना रोपण (Implantation) कहलाता है।

प्रश्न 21.
शिशु जन्म की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर-
शिशु जन्म की प्रक्रिया को प्रसव कहते हैं।

प्रश्न 22.
तन्त्रिका तन्त्र कौनसे दो भागों में विभाजित किया गया है?
उत्तर-

  • केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र
  • परिधीय तन्त्रिका तत्र।

प्रश्न 23.
प्रमस्तिष्क के दोनों गोलार्द्ध किस पट्टी से जुड़े होते हैं ?
उत्तर-
प्रमस्तिष्क के दोनों गोलार्द्ध कार्पस कैलोसम पट्टी से जुड़े होते हैं।

प्रश्न 24.
आमाशय का आकार किस तरह का होता है?
उत्तर-
आमाशय का आकार ‘J’ तरह का होता है।

 

लघूत्तरात्मक प्रश्न

 

प्रश्न 1.
भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर-
भोजन के पाचन में लार की भूमिका निम्न है

  • ग्रन्थियों से स्रावित लार मुख गुहा को नम बनाये रखती है।
  • भोजन नम बनाने एवं निगलने में सहायता करती है।
  • भोजन में उपस्थित मण्ड का आंशिक रूप से पाचन करती है तथा टायलिन द्वारा स्टार्च को माल्टोज में बदलती है।
  • मुँह व दाँतों को साफ रखती है।
  • लार में उपस्थित लाइसोजाइम्स जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायता प्रदान करती है।

प्रश्न 2.
हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर-
हमारे शरीर में वसा का पाचन आहार नाल में लाइपेज नामक एंजाइम द्वारा होता है। पित्त रस में उपस्थित पित्त लवण वसा का इमल्सीकरण करते हैं अर्थात् वसा को छोटी गोलिकाओं में खंडित कर देते हैं। इससे एंजाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। जेठर रस, अग्न्याशयी रस तथा आंत्र रस में उपस्थित लाइपेज एंजाइम इस इमल्सीकृत वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदल देता है। इस प्रकार वसा का पाचन हो जाता है।

 

प्रश्न 3.
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर-
हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन का मुख्य कार्य फेफड़ों से ऑक्सीजन ग्रहण करके शरीर के विभिन्न ऊतकों तक पहुँचाना है। अतः इसे श्वसन वर्णक भी कहते हैं। शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के कारण फेफड़ों से शरीर की कोशिकाओं के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी हो जाएगी। परिणामस्वरूप भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण में बाधा उत्पन्न होगी। ऐसा होने से शरीर की विभिन्न क्रियाओं के संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा में कमी हो जाएगी। इसके कारण स्वास्थ्य खराब हो सकता है तथा शरीर में थकान महसूस हो सकती है।

हीमोग्लोबिन की कमी से होने वाला रोग रक्ताल्पता (एनीमिया) कहलाता है। इसकी अत्यधिक कमी से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

प्रश्न 4.
गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उत्तर-
फेफड़ों की सबसे छोटी इकाई कूपिकाएँ हैं व इनमें श्वसनीय सतह पाई जाती है, जहाँ गैस विनिमय होता है। मनुष्य के प्रत्येक फुफ्फुस में करीब 30 मिलियन कूपिकाएँ पाई जाती हैं। कूपिकाओं में अत्यधिक बारीक शल्की उपकला का अस्तर पाया जाता है। यह एपिथिलियम रक्त कोशिकाओं की भित्ति के साथ मिली रहती है। यह दोनों मिलकर श्वसनीय सतह का निर्माण करती हैं।

मनुष्य के यदि दोनों फेफड़ों की कूपिकाओं की सतह को फैला दिया जाये तो यह लगभग 80 वर्गमीटर क्षेत्र ढक लेगी। अतः कृपिकाएँ विनिमय के लिए विस्तृत सतह उपलब्ध करवाती हैं जिससे गैस-विनिमय अधिक दक्षतापूर्वक होता है।

प्रश्न 5.
रुधिर क्या है और इसका कौनसा घटक गैसीयन परिवहन में सहायक है?
उत्तर-
रुधिर एक तरल संयोजी ऊतक होता है। इसमें एक तरल माध्यम होता है, जिसे प्लाज्मा (Plasma) कहते हैं, इसमें कोशिकाएँ निलंबित होती हैं। रुधिर के द्वारा शरीर के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पदार्थों का परिवहन होता है।

शरीर में श्वसन गैसों (O2 एवं CO2) का परिवहन रुधिर की लाल रुधिर कोशिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन द्वारा किया जाता है। शेष पदार्थों का परिवहन रुधिर प्लाज्मा द्वारा होता है।

प्रश्न 6.
शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रन्थि की क्या भूमिका है?
उत्तर-
शुक्राशय एवं प्रोस्टेट ग्रन्थि की भूमिका निम्न प्रकार है
(1) शुक्राशय (Seminal Vesicles)-यह एक तरल बनाता है जो शुक्राणुओं को ले जाने के लिए एक माध्यम के रूप में कार्य करता है। यह तरल शुक्राणुओं का पोषण करता है, इनकी सुरक्षा करता है तथा इन्हें सक्रिय बनाये रखता है। यह तरल स्त्री की योनि के अम्लीय प्रभाव को कम करके शुक्राणुओं की रक्षा करता है।
(2) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate gland)-यह मूत्र मार्ग में एक क्षारीय स्राव छोड़ती है जो शुक्राणुओं को गति प्रदान करता है और मूत्र की अम्लता को उदासीन कर देता है। यह स्राव वीर्य का भाग बनाता है। ।

प्रश्न 7.
यौवनारम्भ के समय लड़कियों में कौनसे परिवर्तन दिखाई देते हैं?
उत्तर-
यौवनारम्भ के समय लड़कियों में निम्न परिवर्तन दिखाई देते हैं|

  • स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है तथा स्तनाग्र की त्वचा का रंग भी गहरा होने लगता है।
  • लड़कियों में रजोधर्म होने लगता है।
  • आवाज महीन एवं मधुर हो जाती है।
  • काँख एवं जाँघों के मध्य जननांगी क्षेत्र में बाल निकल आते हैं तथा उनका रंग भी गहरा हो जाता है।
  • त्वचा तैलीय होने लगती है।

प्रश्न 8.
वयस्क में शुक्रवाहिनी को हटाकर उसके स्थान पर रबर की नलिका लगा दी जावे तो क्या प्रभाव पड़ेगा? समझाइए।
उत्तर-
वयस्क में शुक्रवाहिनी को हटाकर उसके स्थान पर रबर की नलिका लगा दी जाये तो शुक्राणुओं का गमन नहीं हो पायेगा क्योंकि शुक्रवाहिनी की कोशिकायें विशेष तरल पदार्थ का स्राव करती हैं जो शुक्रवाहिनी के मार्ग को शुक्राणुओं के गमन हेतु चिकना बनाती हैं। इसके साथ ही शुक्रवाहिनी की दीवार में पेशियों में तरंग गति उत्पन्न होती है जिससे शुक्राणु आगे बढ़ते हैं। अतः रबर की नलिका में शुक्राणुओं का गमन नहीं होगा।

 

प्रश्न 9.
यौवनारम्भ (Puberty) किसे कहते हैं? समझाइए।
उत्तर-
यौवनारम्भ (Puberty)-मानव (नर एवं मादा) में अपरिपक्व जनन अंगों का परिपक्वन होकर जनन क्षमता का विकास होना यौवनारम्भ (Puberty) कहलाता है।
नर की अपेक्षा मादा में यौवनारम्भ पहले प्रारम्भ होता है। मानव नर में यौवनारम्भ 13-15 वर्ष की आयु में वृषणों की सक्रियता तथा शुक्राणु उत्पादन के साथ शुरू होता है जबकि मादा में 12-14 वर्ष की आयु में स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि एवं रजोदर्शन के साथ प्रारम्भ होती है।

प्रश्न 10.
स्त्रियों में फेलोपियन ट्यूब को धागे से बाँध दिया जावे तो कौनसी क्रिया पर प्रभाव पड़ेगा तथा क्यों ? समझाइए।
उत्तर-
स्त्रियों में फेलोपियन ट्यूब को धागे से बाँधने पर अण्ड गर्भाशय तक नहीं पहुँच सकेगा। परिणामस्वरूप उसका शुक्राणु से मिलन नहीं होगा अर्थात् निषेचन की क्रिया नहीं होगी। फेलोपियन ट्यूब को धागे से बाँधना अथवा शल्य क्रिया द्वारा काटना ट्यूबक्टोमी कहलाता है।

प्रश्न 11.
मानव मस्तिष्क का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 5

प्रश्न 12.
फुफ्फुस के कूपिकाओं एवं वृक्क के नेफ्रॉन में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर-
कूपिका एवं नेफ्रॉन में अन्तर
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 6

प्रश्न 13.
रक्त व लसिका में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
रक्त व लसिका में अन्तर
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 7

 

प्रश्न 14.
यकृत के कार्य लिखिए।
उत्तर-
यकृत के कार्य निम्न हैं

  • यह पित्त रस का संश्लेषण करता है।
  • यकृत कोशिकाएँ यूरिया का संश्लेषण करती हैं।
  • यकृत कोशिकाएँ हिपेरिन नामक प्रोटीन का स्रावण करती हैं जो रुधिर वाहिनियों में रक्त को जमने से रोकता है।
  • वसा का पायसीकरण करता है।
  • यकृत की कोशिकाएँ आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज की मात्रा को ग्लाइकोजन में बदलकर संग्रह कर लेती हैं। इस क्रिया को ग्लाइकोजिनेसिस कहते हैं।
  • शरीर में उत्पन्न विषैले पदार्थों का निराविषकरण भी यकृत द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 15.
आहार नाल के प्रमुख कार्य क्या हैं एवं यकृत तथा अग्न्याशय का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
आहारनाल के तीन प्रमुख कार्य होते हैं

  • आहार को सरलीकृत कर पचाना
  • पचित आहार का अवशोषण
  • आहार को मुख से मल द्वार तक पहुँचाना।
    यकृत तथा अग्न्याशय का चित्र

RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 8
चित्र मानव यकृत तथा अग्न्याशय

प्रश्न 16.
मानव हृदय का केवल नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
मानव हृदय का चित्र
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 9

प्रश्न 17.
श्वसन का क्रिया विज्ञान समझाइए।
उत्तर-
फुफ्फुसीय वायु संचालन फेफड़ों (lungs) में वायु का प्रवेश व निकास की एक ऐसी प्रक्रिया है जो गैसीय विनिमय को आसान बनाती है। इस वायु संचालन के लिए श्वसन तंत्र (Respiratory System) वायुमण्डल तथा कूपिका के मध्य ऋणात्मक दबाव प्रवणता (Negative pressure gradient) एवं डायफ्राम के संकुचन का उपयोग होता है। इस कारण वायुमण्डल से अधिक दबाव वाली वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है।
श्वसन क्रिया दो चरणों में होती है|

  • बाह्य श्वसन (External Respiration)-इसमें गैसों का विनिमय हवा से भारी कूपिकाओं तथा केशिकाओं में प्रवाहित रक्त के मध्य गैसों के आंशिक दबाव के अन्तर के कारण होता है।
  • आन्तरिक श्वसन (Internal Respiration)-इसमें गैसों का विनिमय केशिकाओं में प्रवाहित रक्त तथा ऊतकों को मध्य विसरण के माध्यम से होता है।

प्रश्न 18.
नाइट्रोजनी अपशिष्ट कितने प्रकार के होते हैं? समझाइए।
उत्तर-
नाइट्रोजनी अपशिष्ट तीन प्रकार के होते हैं
(अ) अमोनिया (ब) यूरिया (स) यूरिक अम्ल ।।

(अ) अमोनिया (Ammonia)-ऐसे जन्तु जो अमोनिया का उत्सर्जन करते हैं, उन्हें अमोनोटेलिक जन्तु कहते हैं। अधिकतर जल में रहने वाले जन्तु समूह इस प्रकार के होते हैं, क्योंकि जलीय वातावरण में घुलनशील अमोनिया परिवर्तन के देह से सामान्य विसरण द्वारा जलीय वातावरण में चली जाती है। उत्सर्जन की इस विधि को अमोनिया उत्सर्जीकरण कहते हैं। उदाहरण-अमीबा, पैरामिशियम, अस्थिल मछलियाँ, मेंढक का टेडपोल, लारवा तथा जलीय कीट आदि।

(ब) यूरिया (Urea)-ऐसे जन्तु जो नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का त्याग मुख्यतया यूरिया (Urea) के रूप में करते हैं, उन्हें यूरियोटेलिक जन्तु कहते हैं। जन्तुओं में प्रोटीन उपापचय के दौरान अमोनिया बनती है। यह अमोनिया C0, के साथ आर्थिन चक्र द्वारा यूरिया का निर्माण करती है। यह कार्य यकृत में पूर्ण होता है, जिसे वृक्कों द्वारा नियंदन कर उत्सर्जित किया जाता है। उत्सर्जन की इस विधि को यूरिया उत्सर्जीकरण कहते हैं। उदाहरण-वयस्क उभयचर, स्तनधारी और समुद्री मछलियाँ आदि।

(स) यूरिक अम्ले (Uric acid)-ऐसे जन्तु जो मुख्यतया नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का याग यूरिक अम्ल के रूप में कहते हैं एवं इस विधि को यूरिको उत्सर्जीकरण कहते हैं। इन जन्तुओं में यूरिक अम्ल का एक सफेद गाठी लेई अर्थात् पेस्ट (Paste) के रूप में निष्कासन होता है, जो जल संरक्षण में सहायक है। उदाहरण-सरीसृप, पक्षी, कीट आदि।

 

प्रश्न 19.
तंत्रिका तंत्र को चार्ट द्वारा दर्शाइये।
उत्तर-
तंत्रिका तंत्र का चार्ट
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 10

प्रश्न 20.
तंत्रिका तंत्र की क्रियाविधि को समझाइए।
उत्तर-कई तंत्रिकाएँ मिलकर कड़ीनुमा संरचना का निर्माण करती हैं जो शरीर के विभिन्न भागों को मस्तिष्क (Brain) एवं मेरुरज्जु (Spinalcord) के साथ जोड़ती हैं । संवेदी तंत्रिकाएँ बहुत से उद्दीपनों को जैसे आवाज, रोशनी, स्पर्श आदि पर प्रतिक्रिया करते हुए इन्हें केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र पहुँचाती है। यह कार्य वैद्युत रासायनिक आवेग के जरिये सम्पादित किया जाता है। इसे तंत्रिका आवेग Nerve Impulse) भी कहते हैं।

ये आवेग ही उद्दीपनों को संवेदी अंगों (Sensory organ) (त्वचा, जीभ, नाक, आँखें तथा कान) से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Centeral Nervous System) तक प्रसारित करते हैं। तंत्रिका आवेग द्रमाक्ष्य से तंत्रिकाक्ष (Axon) तक पहुँचतेपहुँचते कमजोर पड़ जाते हैं। ऐसे शिथिल आवेगों को सन्धि स्थल पर अधिक शक्तिशाली बनाकर आगे भेजने का कार्य न्यूरोट्रांसमीटर (Neurotransmiter) द्वारा सम्पादित होता है। केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से संचारित संकेत जो चालक तंत्रिकाओं (Motor Nerves) द्वारा प्रसारित होते हैं व मांसपेशियों तथा ग्रन्थियों को सक्रिय करते हैं।

प्रश्न 21.
रक्त को कितने समूहों में बाँटा गया है? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मनुष्य के लाल रक्त कणिकाओं (RBC) की सतह पर पाये जाने वाले विशेष प्रकार के प्रतिजन (Antigen) A व B की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर मनुष्य के रक्त को चार समूहों में विभक्त किया गया है

  1. रक्त समूह-A
  2. रक्त समूह-B
  3. रक्त समूह-AB
  4. रक्त समूह-O

रक्त समूह A वाले व्यक्ति की RBC पर प्रतिजन Antigen A, रक्त समूह B वाले व्यक्ति में B तथा रक्त समूह AB वाले व्यक्ति की RBC पर प्रतिजन A व B पाया जाता है। रक्त समूह ‘0’ वाले व्यक्ति की RBC पर कोई किसी प्रकार का प्रतिजन (Antigen) नहीं पाया जाता है। रक्त के इन समूहों को ABO रक्त समूह (ABO Grouping) कहते हैं।

AB समूह द्वारा सभी समूहों का रुधिर ले सकता है, इस कारण से इस समूह को सर्वाग्राही (Universal Recipient) कहते हैं। ‘O’ रुधिर समूह द्वारा सभी रुधिर समूहों (A, B, AB, O) को रुधिर दे सकता है, इस कारण इस रक्त समूह को सर्वदाता (Universal donor) कहते हैं।

AB प्रतिजन (Antigen) के अतिरिक्त RBC पर एक और प्रतिजन पाया जाता है, जिसे आरएच (Rh) प्रतिजन कहते हैं। जिन मनुष्य में Rh कारक पाया जाता है, उनका रक्त आरएच धनात्मक (Rh’) तथा जिनमें Rh कारक नहीं पाया जाता है, उनका रक्त आरएच ऋणात्मक (Rh ) कहलाता है।
संसार में करीब अस्सी प्रतिशत व्यक्तियों का रक्त आरएच धनात्मक (Rh’) है।

 

प्रश्न 22.
मनुष्य में दाँत कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मनुष्य में दाँत चार प्रकार के होते हैं
(1) कुंतक (Incisors)
(2) रदनक (Canines)
(3) अग्र-चवर्णक (Premolars)
(4) चवर्णक (Molars)

1. कुंतक (Incisors)-ये सबसे आगे के दाँत होते हैं, जो कुतरने तथा काटने का कार्य करते हैं। ये 6 माह की उम्र में निकलते हैं।
2. रदनक (Canines)-इनका कार्य भोजन को चीरने व फाड़ने का होता है। ये दाँत 16-20 महीने की उम्र में निकलते हैं। ये प्रत्येक जबड़े में 2-2 होते हैं।
3. अग्र-चवर्णक (Premolars)-ये भोजन को चबाने में सहायक होते हैं। तथा प्रत्येक जबड़े में 4-4 पाए जाते हैं। ये दाँत 10-11 वर्ष की उम्र में पूर्ण रूप से विकसित होते हैं।
4. चवर्णक (Molars)-ये दाँत भी भोजन चबाने में सहायक होते हैं। तथा प्रत्येक जबड़े में 6-6 पाये जाते हैं। प्रथमतः ये 12 से 15 माह की उम्र में निकलते हैं।

प्रश्न 23.
मानव के स्वर यंत्र (Larynx) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मानव के स्वर यंत्र कंठ ग्रसनी व श्वास नली को जोड़ने वाली संरचना है। यह 9 प्रकार की उपास्थि से मिलकर बना होता है। भोजन के निगलने के दौरान एपिग्लॉटिस (Epiglottis) स्वर यंत्र के आवरण के तौर पर कार्य करती है। तथा भोजन को स्वर यंत्र में जाने से रोकती है। स्वर यंत्र में स्वर रज्जु (Vocal Cords) पाये जाते हैं। ये वायु के बहाव से कंपकंपी उत्पन्न कर अलग-अलग तरह की ध्वनियाँ उत्पन्न करती है।

प्रश्न 24.
शिरा व धमनी में क्या अन्तर है?
उत्तर-
शिरा व धमनी में अन्तरक्र.सं. | शिरा (Vein)
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 11

प्रश्न 25.
दोहरा परिसंचरण तंत्र किसे कहते हैं? यह किनमें पाया जाता है?
उत्तर-
दोहरा परिसंचरण-रक्त का एक चक्र में दो बार हृदय से गुजरनापहली बार शरीर का समस्त अशुद्ध रुधिर हृदय के दाहिने आलिन्द में एकत्रित होकर दाहिने निलय में होते हुए फेफड़ों में जाता तथा दूसरी बार हृदय के बायें आलिन्द में फेफड़ों से फुफ्फुस शिराओं द्वारा एकत्रित होकर शुद्ध रुधिर महाधमनी द्वारा समस्त शरीर में पम्प किया जाता है। इस प्रकार के रक्त परिभ्रमण को दोहरा परिसंचरण (Double Circulation) कहते हैं।
इस प्रकार परिसंचरण मनुष्य में पाया जाता है।

 

प्रश्न 26.
पीयूष ग्रन्थि कहाँ पाई जाती है? यह कितने भागों में विभक्त होती है? इनसे निकलने वाले हार्मोन के नाम लिखिए।
उत्तर-
पीयूष ग्रन्थि मस्तिष्क में नीचे की तरफ हाइपोथैलेमस के पास पाई जाती है। यह ग्रन्थि दो भागों में विभक्त होती है

  • एडिनोहाइपोफाइसिस (Adenohypophysis)
  • न्यूरोहाइपोफाइसिस (Neurohypophysis)

एडिनोहाइपोफाइसिस को अग्र पीयुष तथा न्युरोहाइपोफाइसिस को पश्च पीयूष कहते हैं। इसे शरीर की मास्टर ग्रन्थि (Master gland) भी कहते हैं। यह ग्रन्थि कई हार्मोन का निर्माण व स्रावण करती है, जो निम्न हैं—

  1. वृद्धि हार्मोन (सोमेटोट्रोपिन)
  2. प्रौलैक्टिन
  3. थाइराइड प्रेरक हार्मोन
  4. ऑक्सीटोसिन
  5. वेसोप्रेसिन
  6. गोनेडोट्रोपिन।

प्रश्न 27.
अधिवृक्क ग्रन्थि कहाँ पाई जाती है? इससे निकलने वाले हार्मोन्स के कार्य लिखिए।
उत्तर-
वृक्क के ऊपरी भाग में एक जोड़ी अधिवृक्क ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। ये दो प्रकार के हार्मोन स्रावित करती हैं

  • एड्रिनेलीन या एपिनेफ्रीन
  • नारएड्रिनेलिन या नारएपिनेफ्रीन।

ये हार्मोन शरीर में आपातकालीन स्थिति में अधिक तेजी से स्रावित होते हैं तथा अनेक कार्य जैसे हृदय की धड़कन, हृदय संकुचन, श्वसन दर, पुतलियों का फैलाव आदि को नियंत्रित करते हैं। इन हार्मोन को आपातकालीन हार्मोन भी कहते हैं।

प्रश्न 28.
पिनियल ग्रन्थि एवं पैराथाइराइड ग्रन्थि का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पिनियल ग्रन्थि अग्र मस्तिष्क के ऊपरी भाग पर पाई जाती है। इसके द्वारा मेलोटोनिन हार्मोन का स्रावण किया जाता है। यह हार्मोन मुख्य रूप से शरीर की दैनिक लय के नियमन के लिए उत्तरदायी है।

पैराथाइराइड ग्रन्थि-यह थाइराइड ग्रन्थि के पीछे पाई जाती है। इसके द्वारा पैराथार्मोन स्रावित किया जाता है जो रुधिर में कैल्सियम तथा फास्फेट के स्तर को नियंत्रित करता है। इस हार्मोन की कमी से टिटेनी रोग हो जाता है।

प्रश्न 29.
वृषण व अण्डाशय से स्रावित हार्मोन का नाम एवं इसके कार्य लिखिए।
उत्तर-
वृषण से स्रावित हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन है। इसे नर हार्मोन भी कहते हैं। यह हार्मोन नर में लैंगिक अंगों का विकास तथा शुक्राणुओं के निर्माण की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अण्डाशय-ये स्रावित हार्मोन एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन है। इसे मादा हार्मोन भी कहते हैं। यह हार्मोन मादा लैंगिक अंगों का विकास, मादा लक्षणों का नियंत्रण, मासिक चक्र का नियंत्रण, गर्भ अनुरक्षण में सहायक है।

 

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. (अ) श्वसन किसे कहते हैं?
(ब) मानव श्वसन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइए।
( स ) श्वसन की क्रियाविधि समझाइए। (माध्य. शिक्षा बोर्ड, 2018)
उत्तर-
(अ) कार्बन डाइऑक्साइड व ऑक्सीजन का विनिमय जो पर्यावरण, रक्त और कोशिकाओं के मध्य होता है, को श्वसन कहते हैं।
(ब)
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 12
(स) श्वसन की क्रियाविधि (Mechanism of respiration)फुफ्फुसीय वायु संचालन फेफड़ों (lungs) में वायु का प्रवेश व निकास की एक ऐसी प्रक्रिया है जो गैसीय विनिमय को आसान बनाती है। इस वायु संचालन के लिए श्वसन तंत्र (Respiratory system) वायुमण्डल तथा कूपिका के मध्य ऋणात्मक दबाव प्रवणता (Negative pressure gradient) एवं डायफ्राम के संकुचन का उपयोग होता है। इस कारण वायुमण्डल से अधिक दबाव वाली वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है।

श्वसन क्रिया दो चरणों में होती है
(i) बाह्य श्वसन (External Respiration)-इसमें गैसों का विनिमय हवा से भारी कूपिकाओं तथा केशिकाओं में प्रवाहित रक्त के मध्य गैसों के आंशिक दबाव के अन्तर के कारण होता है।
(ii) आन्तरिक श्वसन (Internal Respiration)-इसमें गैसों का विनिमय केशिकाओं में प्रवाहित रक्त तथा ऊतकों को मध्य विसरण के माध्यम से होता है।

 

प्रश्न 2.
(अ) मादाओं में प्राथमिक लैंगिक अंग का नाम लिखिए।
(ब) मादा जनन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइए।
(स) मानव प्रजनन की दो अवस्थाओं को समझाइए। (माध्य, शिक्षा बोर्ड, 2018)
उत्तर-
(अ) मादाओं में प्राथमिक लैंगिक अंग का नाम अण्डाशय (Ovary) है।
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(स) मानव में प्रजनन की दो अवस्थाएँ निम्न हैं
उत्तर-
मनुष्य में प्रजनन की निम्न अवस्थाएँ पाई जाती हैं|

  1. युग्मक जनन (Gametogenesis)-युग्मकों के निर्माण को युग्मकजन कहते हैं। युग्मक दो प्रकार के होते हैं-शुक्राणु व अण्डाणु। नर के वृषण में शुक्राणु के निर्माण को शुक्रजनन कहते हैं। इसी प्रकार अण्डाशय में अण्डाणु के निर्माण को अण्डजनन (Oogenesis) कहते हैं। शुक्राणु व अण्डाणु अर्थात् दोनों युग्मक अगुणित (Haploid) होते हैं।
  2. निषेचन (Fertilization)-दो विपरीत युग्मक का आपस में मिलना निषेचन कहलाता है। अर्थात् नर के द्वारा मैथुन क्रिया की सहायता से मादा के शरीर में छोड़ने के फलस्वरूप अण्डवाहिनी में उपस्थित अण्डाणु से मिलना (Fuse) होना निषेचन कहलाता है। ऐसा निषेचन आन्तरिक निषेचन (Internal Fertilization) कहलाता है। निषेचन फलस्वरूप युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है जो द्विगुणित होता है।

प्रश्न 3.
(i) पाचन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइये।
(ii) जठररस में उपस्थित एंजाइम के नाम एवं उनके कार्य लिखिए ।
(iii) भोजन का सर्वाधिक पाचन एवं अवशोषण, पाचनतंत्र के जिस भाग में होता है, उसका नाम लिखिए। (माध्य. शिक्षा बोर्ड, मॉडल पेपर, 2017-18 )
अथवा
(i) उत्सर्जन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइये।
(ii) मानव में मूत्र निर्माण की प्रक्रिया समझाइये।
(iii) त्वचा द्वारा उत्सर्जित होने वाले दो उत्सर्जी पदार्थों के नाम लिखिए। (माध्य. शिक्षा बोर्ड, मॉडल पेपर, 2017-18 )
उत्तर-
(i) मानव का पाचन तन्त्र का चित्र
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 14
(ii) जठर रस में उपस्थित एन्जाइम के नाम एवं उनके कार्य

  • पेप्सिन-कार्य-प्रोटीन को पेप्टाइड में बदलना।
  • रेनिन-कार्य-कैसीन को पैराकैसीन में बदलना।

(iii) भोजन का सर्वाधिक पाचन एवं अवशोषण, पाचनतंत्र के जिस भाग में होता है, वह छोटी आँत है।

अथवा का उत्तर

(i) उत्सर्जन तंत्र का चित्रअधिवृक्क ग्रंथि
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 15
(ii) मत्र निर्माण (Urine formation)–नेफ्रॉन का मुख्य कार्य मुत्र निर्माण करना है। मूत्र का निर्माण तीन चरणों में सम्पादित होता है

  • छानना/परानियंदन (Ultrafiltration)
  • चयनात्मक पुनः अवशोषण (Selective reabsorption)
  • स्रवण (Secretion)

(a) छानना/परानियंदन- ग्लोमेरुलस में प्रवेश करने वाली अभिवाही धमनिका, उससे बाहर निकलने वाली अभिवाही धमनिका से अधिक चौड़ी होती है। इसलिए जितना रुधिर ग्लोमेरुलस में प्रवेश करता है, निश्चित समय में उतना रुधिर बाहर नहीं निकल पाता। इसलिए केशिका गुच्छ में रुधिर का दबाव बढ़ जाता है। इस दाब के कारण प्रोटीन के अलावा रुधिर प्लाज्मा में घुले सभी पदार्थ छनकर बोमेन संपुट में पहुँच जाते हैं। बोमेन संपुट में पहुँचने वाला यह द्रव नेफ्रिक फिल्ट्रेट या वृक्क निस्वंद कहलाता है। रुधिर में घुले सभी लाभदायक एवं हानिकारक पदार्थ इस द्रव में होते हैं, इसलिए इसे प्रोटीन रहित छना हुआ प्लाज्मा भी कहते हैं।

(b) चयनात्मक पुनः अवशोषण- नेफ्रिक फिल्ट्रेट द्रव बोमेन सम्पुट में से होकर वृक्क नलिका के अग्र भाग में पहुँचता है। इस भाग में ग्लूकोस, विटामिन,

हार्मोन तथा अमोनिया आदि को रुधिर में पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। ये अवशोषित पदार्थ नलिका के चारों ओर फैली कोशिकाओं के रुधिर में पहुँचते हैं। इनके अवशोषण से नेफ्रिक फिल्ट्रेट में पानी की सान्द्रता अधिक हो जाती है। अब जल भी परासरण विधि द्वारा रुधिर में पहुँच जाता है।

(c) स्रवण- जब रुधिर वृक्क नलिका पर फैले कोशिका जाल से गुजरता है, तब उसके प्लाज्मा में बचे हुए उत्सर्जी पदार्थ पुनः नेफ्रिक फिल्ट्रेट में डाल दिए जाते हैं। इस अवशेष द्रव में केवल अपशिष्ट पदार्थ बचते हैं, जो मूत्र कहलाता है। यह मूत्र मूत्राशय में संग्रहित होता है और आवश्यकता पड़ने पर मूत्राशय की पेशियों के संकुचन से मूत्र मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है।

(iii) त्वचा द्वारा उत्सर्जित होने वाले दो उत्सर्जी पदार्थ

  • नमक
  • यूरिया।

प्रश्न 4.
उत्सर्जन तंत्र किसे कहते हैं? मानव के उत्सर्जन तन्त्र का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर-
उत्सर्जन तंत्र-उपापचयी प्रक्रियाओं के फलस्वरूप निर्मित नाइट्रोजन-युक्त अपशिष्ट उत्पादों एवं अतिरिक्त लवणों को बाहर त्यागना उत्सर्जन कहलाता है। उत्सर्जन से सम्बन्धित अंगों को उत्सर्जन अंग कहते हैं। उत्सर्जन अंगों को सामूहिक रूप से उत्सर्जन तंत्र (Excretory System) कहते हैं।
मनुष्य में निम्न उत्सर्जन अंग पाये जाते हैं

  1. वृक्क (Kidney)
  2. मूत्र वाहिनियाँ (Ureters)
  3. मूत्राशय (Urinary Bladder)
  4. मूत्र मार्ग (Urethera)

(1) वृक्क (Kidney)- मनुष्य में एक जोडी वक्क पाये जाते हैं। यह दोनों वृक्क उदर में कशेरुक दायां वृक्क दण्ड के दोनों ओर स्थित होते हैं। वृक्क गहरे भूरे एवं सेम के बीज की आकृति के होते हैं अर्थात् इनका बाहरी भाग उभरा हुआ तथा भीतरी भाग दबा हुआ होता है जिसके मध्य में एक छोटा-सा गड्डा होता है। गड्डे को हाइलम (Hilum) कहते हैं। हाइलम भाग से वृक्क धमनी प्रवेश करती है। और वृक्क शिरा (Renal vein) एवं मूत्र वाहिनी (Ureter) बाहर निकलती हैं।
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(2) मूत्र वाहिनियाँ (Ureters)-ये वृक्क से निकलकर मूत्राशय तक जाती हैं। इनकी भित्ति मोटी होती है तथा गुहा संकरी होती है। इनकी भित्ति में क्रमानुकुंचन (peristalsis) पाया जाता है, जिसके फलस्वरूप मूत्र आगे की ओर बढ़ता है।

(3) मूत्राशय (Urinary Bladder)-यह उदर के पिछले भाग में स्थित होता है। मूत्राशय में मूत्रवाहिनियाँ आकर खुलती हैं व इसमें मूत्र को संग्रहित किया जाता है। इसलिए इसे मूत्र संचय आशय (Urine reservoir) कहते हैं।

(4) मूत्र मार्ग (Urethera)-मूत्राशय का पश्चं छोर संकरा होकर एक पतली नलिका में परिवर्तित हो जाता है जिसे मूत्र मार्ग (Urethera) कहते हैं। मूत्र के निष्कासन की क्रिया को मूत्रण (micturition) कहते हैं।

 

प्रश्न 5.
मानव पाचन तंत्र का नामांकित चित्र बनाकर आमाशय में होने वाली पाचन क्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
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आमाशय में पाचन क्रिया-भोजन के आमाशय में प्रवेश करने पर जठर ग्रन्थियाँ उत्तेजित होकर जठर रस का स्रावण करती हैं। जठर रस में 97.99% जल, श्लेष्म, HCl तथा पेप्सिन, जठर लाइपेज एवं रेनिन एन्जाइम होते हैं। वयस्क मनुष्य में रेनिन का अभाव होता है। HCl की उपस्थिति के कारण जठर रस अम्लीय होता है।

HCl निष्क्रिय पेप्सिनोजन को सक्रिय पेप्सिन में बदलता है तथा भोजन के साथ आये जीवाणु एवं सूक्ष्म जीवों को मारता है। यह भोजन को सड़ने से रोकता है। तथा भोजन के कठोर भागों को घोलता है।

पेप्सिन एन्जाइम प्रोटीन को प्रोटिओजेज तथा पेप्टोन्स में बदल देता है।
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जठर लाइपेज वसाओं का आंशिक पाचन करता है।
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रेनिन एन्जाइम प्रोरेनिन के रूप में स्रावित होता है। यह HCl के प्रभाव से सक्रिय रेनिन में बदल जाता है। रेनिन दूध की कैसीन प्रोटीन को अघुलनशील कैल्सियम पैरा-कैसीनेट में बदलता है।

 

प्रश्न 6.
मानव के नेफ्रॉन का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर-
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नेफ्रॉन की संरचना (Structure of Nephron)-प्रत्येक वृक्क में लगभग दस लाख अति सूक्ष्म नलिकाएँ होती हैं जिन्हें वृक्क नलिकाएँ अथवा नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं। प्रत्येक नेफ्रॉन एक उत्सर्जन की इकाई होती है। नेफ्रॉन का प्रारम्भिक भाग एक प्याले के समान होता है जिसे बोमन सम्पुट (Bowman capsule) कहते हैं।

बोमन सम्पुट के प्यालेनुमा खाँचे में रक्त की नलियों का गुच्छा होता है जिसे ग्लोमेरुलस (Glomerulus) कहते हैं। ग्लोमेरुलस एवं बोमन सम्पुट को मिलाकर मैलपीगी कोश (Malpiphian capsule) कहते है।

नेफ्रॉन का शेष भाग नलिका के रूप में होता है। यह नलिका तीन भागों में विभेदित होती है, जिन्हें क्रमशः समीपस्थ कुण्डलित भाग (Proximal convoluted part), हेनले का लूप (Henley’s loop) एवं दूरस्थ कुण्डलित भाग (Distal convoluted part) कहते हैं। दूरस्थ कुण्डलित भाग अन्त में संग्रह नलिका या वाहिनी में खुलती है। एक ओर की संग्राहक/संग्रह वाहिनियाँ मूत्र वाहिनी (ureter) में खुलती हैं। वस्तुतः संग्रह वाहिनियाँ नेफ्रॉन का भाग नहीं होती हैं।

प्रश्न 7.
मानव का मादा जनन तंत्र का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव के मादा जनन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा इसके विभिन्न अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मादा जनन तंत्र (Female Reproductive System)-स्त्रियों में जनन तंत्र को प्राथमिक व द्वितीयक लैंगिक अंगों में बाँटा गया है

(1) प्राथमिक जनन अंग (Primary Reproductive Organs)
(a) अण्डाशय (Ovary)-मादा (स्त्रियों) में अण्डाशय की संख्या दो होती है, जिनकी आकृति बादाम के समान होती है। ये उदरगुहा में वृक्क के नीचे पृष्ठ भाग में स्थित होते हैं। अण्डाशयों में अण्डजनन प्रक्रिया के द्वारा अण्डे बनते हैं। अण्डाशय द्वारा मादा हार्मोन एस्ट्रोजन का स्रावण किया जाता है जो मादा में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का नियमन करता है।

(2) द्वितीयक लैंगिक अंग (Secondary Reproductive Organs)
(a) अण्डवाहिनी (Oviduct)-प्रत्येक अण्डाशय के समीप एक पतली नली अण्डवाहिनी होती है। प्रत्येक अण्डवाहिनी के सामने वाला सिरा कीपाकार होता है। यह अण्डाशय से निकले अण्डों को अपने में ले लेता है। अण्डवाहिनी की भित्ति कुंचनशील व रोमयुक्त होती है, जिसकी सहायता से अण्डा गर्भाशय की ओर गमन करता है। निषेचन की क्रिया अण्डवाहिनी (फैलोपियन नलिका) में ही होती है। दोनों फैलोपियन नलिकाएँ गर्भाशय (Uterus) में खुलती हैं।
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(b) गर्भाशय (Uterus)-गर्भाशय एक नाशपाती के आकार की पेशीय, मोटी दीवार वाली एवं थैलेनुमा रचना होती है, जो उदरगुहा के निचले भाग में स्थित होती है। भ्रूण का विकास गर्भाशय में ही होता है। गर्भाशय का निचला सिरा, संकीर्ण भाग, गर्भाशय ग्रीवा कहलाता है। यह बाह्य द्वार द्वारा योनि में खुलता है।
(c) योनि (Vagina)-गर्भाशय ग्रीवा (Cervix uteri) आगे बढ़कर एक पेशीय लचीली नलिका रूपी रचना का निर्माण करती है, जिसे योनि कहते हैं।

स्त्रियों में मूत्र मार्ग तथा जनन छिद्र अलग-अलग होते हैं। मादा जननांग में बार्थोलिन नामक ग्रन्थि (Bartholian gland) पाई जाती है, जो क्षारीय द्रव स्रावित करती है। मादा जननांगों द्वारा मादा हार्मोन प्रोजेस्ट्रोन एवं एस्ट्रोजन उत्पन्न किए जाते हैं, जो गौण लक्षणों को प्रकट करते हैं तथा जनन क्रिया को नियमित तथा नियंत्रित करते हैं।

प्रश्न 8.
मानव में विभिन्न पाचन अंगों द्वारा स्रावित एंजाइम तथा उनके कार्यों को तालिका बनाकर दर्शाइये।
उत्तर-
विभिन्न पाचन अंगों द्वारा स्रावित पाचन रस तथा उनके कार्य
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प्रश्न 9.
श्वसन से क्या आशय है? मानव के ऊपरी श्वसन तंत्र का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
श्वसन (Respiration)-वह प्रक्रम जिसमें O2, व Co2, का विनिमय होता है, रक्त द्वारा इन गैसों का परिवहन होता है तथा ऊर्जायुक्त पदार्थों का ऑक्सीकरण में कोशिकाओं द्वारा O2 का उपयोग एवं CO2 का निर्माण किया जाता है।

ऊपरी श्वसन तंत्र (Upper respiratory system)-ऊपरी श्वसन तंत्र में मुख्य रूप से नासिका (Nose), मुख (Mouth), ग्रसनी (Pharynx), स्वरयंत्र (Larynx) आदि सम्मिलित हैं।

(1) नासिका (Nose)- नासिका में एक जोड़ी नासाद्वार उपस्थित होते हैं। ये छिद्र नासा गुहाओं में खुलते हैं। नासाद्वार एवं आन्तरिक नासा छिद्रों के बीच लम्बी नासा गुहिकाएँ विकसित हो जाती हैं। प्रत्येक नासागुहा का अग्रभाग नासा कोष्ठ तथा पश्च लम्बा भाग नासामार्ग (Nasal passage) कहलाता है। दोनों नासागुहाओं के बीच एक उदग्र पट पाया जाता है, जिसे नासा पट (Nasal septum) कहते हैं। ये गुहाएँ तालु द्वारा मुखगुहा से अलग रहती हैं। यह गुहाएँ श्लेष्मल झिल्ली द्वारा आस्तरित होती हैं जो कि पक्ष्माभिकायमय उपकला एवं श्लेष्मा कोशिका युक्त होती हैं। नासा गुहाओं के अग्र भागों की श्लेष्मल झिल्ली में तंत्रिका तंतुओं के अनेक स्वतंत्र सिरे उपस्थित होते हैं जो गंध के बारे में ज्ञान प्राप्त करवाते हैं।

(2) मुख (Mouth)- मुख श्वासतंत्र में द्वितीयक अंग (Secondary organ) के तौर पर कार्य करता है। श्वास लेने में मुख्य भूमिका नासिका की होती है परन्तु आवश्यकता होने पर मुख भी श्वास लेने के काम आता है। मुख से ली गई श्वास वायु नासिका से ली गई श्वास की भाँति शुद्ध नहीं होती।

(3) ग्रसनी (Pharynx)- नासा गुहिका (Nasal Cavity) आन्तरिक नासाद्वार ग्रसनी में खुलती है। ग्रसनी के अधर क्षेत्र में उपस्थित ग्लोटिस के माध्यम से फेरिंक्स लेरिकंस (Larynx) में खुलती है। भोजन को निगलते समय ग्लोटिस (Glottis) एपिग्लॉटिस (Epiglottis) द्वारा ढक दिया जाता है।
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(4) कंठ (Larynx)- इसे स्वरयंत्र भी कहते हैं। यह नौ उपास्थियों द्वारा निर्मित होता है। इसमें स्वर रज्जु (Vocal Cords) भी उपस्थित होते हैं जो ध्वनि उत्पन्न करते हैं। कंठ (Larynx) की गुहा को कण्ठकोष (Laryngeal Chamber) कहते हैं। कंठ के छिद्र को घांटी (Glottis) कहते हैं। घांटी को ढकने वाली रचना को एपीग्लोटिस (Epiglottis) कहते हैं।

प्रश्न 10.
मनुष्य में परिसंचरण तंत्र का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
परिसंचरण तंत्र (Circulatory System)-मनुष्य में O2 व Co2, पोषक पदार्थों, उत्सर्जी पदार्थों तथा स्रावी पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में पहुँचाने तथा लाने वाले तंत्र को ही रुधिर परिसंचरण तंत्र कहते हैं।

मानव में रुधिर परिसंचरण तंत्र में रुधिर बंद नलिकाओं में बहता है इसलिए | इसे बंद परिसंचरण तंत्र (Closed circulatory system) कहते हैं। परिसंचरण तंत्र के घटक निम्न हैं

  • रुधिर (Blood)
  • हृदय (Heart)
  • रुधिर वाहिनियाँ (Blood vessels)

रुधिर के अतिरिक्त अन्य द्रव्य होता है जिसे लसिका (Lumph) कहते हैं। लसिका रक्त का छना हुआ भाग होता है, जिसमें RBC का अभाव होता है। लसिका, लसिका वाहिनियाँ तथा लसीका पर्व मिलकर लसिका तन्त्र का निर्माण करते हैं । लसिका का परिसंचरण लसिका तंत्र द्वारा होता है। यह एक खुला तंत्र है।

परिसंचरण तंत्र में रुधिर एक तरल माध्यम के तौर पर कार्य करता है, जो परिवहन योग्य पदार्थों के अभिगमन में मुख्य भूमिका निभाता है। हृदय इस तंत्र का केन्द्र है जो रुधिर को निरन्तर रुधिर वाहिकाओं में पम्प करता है।
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प्रश्न 11.
मनुष्य के हृदय का नामांकित चित्र बनाकर इसकी संरचना का वर्णन कीजिए। यह रुधिर को शरीर में किस तरह पम्प करता है?
उत्तर-
हृदय की संरचना-मानव का हृदय पेशी ऊतकों से बना मांसल, खोखला व लाल रंग का होता है। हृदय औसतन एक बंद मुट्ठी के समान होता है। इसका वजन 300 ग्राम के लगभग होता है। यह वक्ष गुहा में कुछ बायीं ओर दोनों फेफड़ों के मध्य फुफ्फुस मध्यावकाश में स्थित होता है। हृदय के ऊपर पाये जाने वाले आवरण को हृदयावरण (Pericardium) कहते हैं। पेरिकार्डियम की भीतरी परत को विसरल स्तर (Visceral Laver) कहलाती है तथा बाहरी परत को पैराइटल परत (Parietal Layer) कहते हैं। इन दोनों परतों के बीच एक लसदार द्रव्य भरा होता है, जिसे हृदयावरणी द्रव (Pericardial fluid) कहते हैं।

हृदय में चार कक्ष होते हैं जिसमें दो कक्ष अपेक्षाकृत छोटे तथा ऊपर को पाये जाते हैं, जिन्हें आलिन्द (Auricle) कहते हैं तथा दो अपेक्षाकृत बड़े होते हैं, जिन्हें निलय (Ventricle) कहते हैं। आलिन्दों की भित्ति अपेक्षाकृत पतली होती है तथा आलिन्द दाहिने एवं बायें भागों में एक मध्य पट्टी के द्वारा पूर्ण रूप से बंटे होते हैं। इस पट्टी को अन्तरा आलिन्द पट कहते हैं । इस पट के कारण बायाँ आलिन्द दायाँ आलिन्द एवं बायाँ निलय दायाँ निलय में बँट जाते हैं। बायीं ओर के आलिन्द व निलय आपस में एक द्विदल कपाट (Bicuspid valve) द्वारा जुड़े होते हैं, इसे माइट्रल कपाट (Mitral valve) कहते हैं। इसी प्रकार दाहिनी ओर के निलय व आलिन्द के मध्य
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त्रिदल कपाट (Tricuspid value) पाया जाता है। ये कपाट रुधिर को विपरीत दिशा में जाने से रोकते हैं। कपाट के खुलने व बंद होने से लब-डब की आवाज आती है।

आलिन्द व निलय लयबद्ध रूप से संकुचन व शिथिलन की क्रिया में संलग्न रहते हैं। इस क्रिया से हृदय के शरीर के विभिन्न भागों में रक्त का पम्प करता है।

प्रश्न 12.
जनन तंत्र से क्या आशय है? नर जनन तंत्र के द्वितीयक लैंगिक अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जनन तंत्र (Reproductive system)-जनन सभी जीवधारियों में पाये जाने वाला एक अतिमहत्त्वपूर्ण तंत्र है, जिसमें एक जीव अपने जैसी संतान उत्पन्न करता है। मानव में लैंगिक जनन पाया जाता है। यह द्विलिंगी प्रजनन प्रक्रिया है जिसमें नर युग्मक के तौर पर शुक्राणुओं का निर्माण करते हैं तथा मादा अण्डों का निर्माण करती है। शुक्राणु व अण्डाणु के निषेचन से युग्मनज का निर्माण होता है जो आगे चलकर नये जीव का निर्माण करता है।
नर जनन तंत्र के द्वितीयक लैंगिक अंग निम्न हैं

(1) वृषणकोष (Scrotum)- मनुष्य में दो वृषण पाये जाते हैं, ये दोनों वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैले में स्थित होते हैं, जिसे वृषणकोष (Scrotal sac) कहते हैं। वृषणकोष एक ताप नियंत्रक की भाँति कार्य करता है। वृषणों का तापमान शरीर के तापमान से 2-2.5°C नीचे बनाये रखता है। यह तापमान शुक्राणुओं के विकास के लिए उपयुक्त है।

(2) शुक्रवाहिनी (Vas difference)- ऐसी वाहिनी जो शुक्राणु का वहन करती है, उसे शुक्रवाहिनी कहते हैं। यह शुक्राणुओं को शुक्राशय (Seminal Vesicle) तक ले जाने का कार्य करती है। शुक्रवाहिनी मूत्रनलिका के साथ एक संयुक्त नली बनाती है। अतः शुक्राणु तथा मूत्र दोनों समान मार्ग से प्रवाहित होते हैं। यह वाहिका शुक्राशय से मिलकर स्खलन वाहिनी (Ejaculatory duct) बनाती है।

(3) शुक्राशय (Seminal vesicles)- शुक्रवाहिनी शुक्राणु संग्रहण के लिए एक थैली जैसी संरचना जिसे शुक्राशय कहते हैं, में खुलती है। शुक्राशय एक तरल पदार्थ का निर्माण करता है, जो वीर्य के निर्माण में मदद करता है। इसके साथ ही यह तरल पदार्थ शुक्राणुओं को ऊर्जा तथा गति प्रदान करता है।

(4) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate gland)- यह अखरोट के आकार की ग्रन्थि है। इस ग्रन्थि का स्राव शुक्राणुओं को गति प्रदान करता है तथा वीर्य का अधिकांश भाग बनाता है। यह वीर्य के स्कन्दन को भी रोकता है। यह एक बहिःस्रावी ग्रन्थि (Exocrine gland) है।

(5) मूत्र मार्ग (Urethera)- मूत्राशय से मूत्रवाहिनी निकलकर स्खलनीय वाहिनी से मिलकर मूत्रजनन नलिका या मूत्र मार्ग (Urinogenital duct or Urethera) बनाती है जो शिश्न (Penis) के शिखर भाग पर मूत्रजनन छिद्र (Urinogenital aperture) द्वारा बाहर खुलती है। मूत्र मार्ग एवं वीर्य दोनों के लिए एक उभयनिष्ठ मार्ग (Common passage) का कार्य करता है।

(6) शिशन (Penis)- पुरुष का मैथुनी अंग है जो लम्बा, संकरा, बेलनाकार उत्थानशील (erectile) होता है। यह वृषणों के बीच लटका रहता है। इसके आगे का सिरा फूला हुआ तथा अत्यधिक संवेदी होता है इसे शिशन मुण्ड कहते हैं। सामान्य अवस्था में शिथिल व छोटा होता है तथा मूत्र विसर्जन का कार्य करता है। मैथुन के समय यह उन्नत अवस्था में आकर वीर्य को मादा जननांग में पहुँचाने का कार्य करता है।

 

प्रश्न 13.
मानव मस्तिष्क का नामांकित चित्र बनाइये तथा इसके विभिन्न भागों के कार्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मानव मस्तिष्क का चित्र
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मस्तिष्क के विभिन्न भागों के कार्य-
(i) प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध (Cerebral hemispheres)-स्तनधारियों में यह भाग सबसे अधिक विकसित होता है। सचेतन संवेदनाओं (Conscious sensations) इच्छाशक्ति एवं ऐच्छिक गतियों, ज्ञान, स्मृति, वाणी तथा चिन्तन के केन्द्र होते हैं। विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त प्रेरणाओं का इसमें विश्लेषण एवं समन्वय (Coordination) होकर ऐच्छिक पेशियों से अनुकूल प्रतिक्रियाओं की प्रेरणाएँ प्रसारित की जाती हैं। इनमें निकलने वाले कुछ चालक तन्तु केन्द्रीय तन्त्रिका तंत्र के कुछ अन्य भागों की क्रिया के नियंत्रण की प्रेरणाओं को ले जाते हैं।

(ii) डाएनसिफैलॉन (Diencephelon)-अग्रमस्तिष्क के इस भाग में स्थित दृष्टि थैलेमाई उन समस्त कायिक (Somatic) संवेदी प्रेरणाओं के मार्गवाहक होते हैं जो अग्र, मध्य, पश्च मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु (Spinal cord) में ऐच्छिक गतियों से सम्बन्धित होती है। इस भाग में अत्यधिक ताप, शीत, पीड़ा आदि अभिज्ञान के केन्द्र स्थित रहते हैं। इनका अधरतलीय भाग, हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र का संगठन केन्द्र माना गया है अर्थात् भूख, प्यास, नींद, थकावट, ताप नियंत्रण, सम्भोग, प्यार, घृणा, तृप्ति, क्रोध आदि मनोभावनाओं का भी बोध केन्द्र होता है। इसके अतिरिक्त यह इसी भाग से बनी पृष्ठ तल पर स्थित पीनियल काय (Pineal body) तथा पिट्यूटरी ग्रन्थि अनेक महत्त्वपूर्ण हारमोन्स का स्रावण करती है। इसी भाग में स्थित दृष्टि किएज्मा नेत्रों से प्राप्त दृष्टि संवेदनाओं को प्रमस्तिष्क गोलार्थों में पहुँचाती है। अतः इस पिण्ड के निकालने या क्षतिग्रस्त होने पर प्राणी अंधा हो जाता है।

(iii) मध्य मस्तिष्क (Mid Brain)- के कार्य-यह चार पिण्डों से बना होता है। ऊपर के दो पिण्ड दृष्टि से सम्बन्धित हैं तथा निचले दो पिण्ड सुनने के लिए उत्तरदायी हैं।

(iv) सैरिबैलम (Cerebellum)-पश्च मस्तिष्क के इस भाग द्वारा विभिन्न ऐच्छिक पेशियों, सन्धियों इत्यादि में स्थित ज्ञानेन्द्रियों से संवेदना प्राप्त की जाती है। तथा उनकी गतियों का नियमन एवं आवश्यकता अनुसार समन्वय करना इस भाग का कार्य है। सन्तुलन कार्य भी करता है।

(v) मैड्यूला ऑब्लोंगेटा (Medulla oblongata)-यह मस्तिष्क का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग माना गया है क्योंकि शरीर की समस्त अनैच्छिक क्रियाओं (Involuntary activities) का नियंत्रण इस भाग द्वारा किया जाता है अर्थात् हृदय, स्पंदन, श्वसन दर, उपापचय, श्रवण, सन्तुलन, आहार नाल की क्रमाकुंचन गति, रक्त वाहिनियों के फैलने व सिकुड़ने की क्रिया, विभिन्न कोशिकाओं की स्रावण क्रिया तथा भोजन निगलने की गति इत्यादि समस्त क्रियाएँ इस भाग के नियंत्रण में रहती हैं। नेत्रों व पश्च पादों की पेशियों का नियंत्रण भी इसी भाग के द्वारा किया गया है। इसके अतिरिक्त यह भाग मस्तिष्क के शेष भाग एवं मेरुरज्जु के मध्य सभी प्रेरणाओं के संवहन मार्ग का कार्य करता है।

 

प्रश्न 14.
मनुष्य में प्रजनन की कितनी अवस्थाएँ पाई जाती हैं ? विस्तार से समझाइए।
उत्तर-
मनुष्य में प्रजनन की निम्न अवस्थाएँ पाई जाती हैं|

1. युग्मक जनन (Gametogenesis)-युग्मकों के निर्माण को युग्मकजन कहते हैं । युग्मक दो प्रकार के होते हैं-शुक्राणु व अण्डाणु । नर के वृषण में शुक्राणु के निर्माण को शुक्रजनन कहते हैं। इसी प्रकार अण्डाशय में अण्डाणु के निर्माण को अण्डजनन (Oogenesis) कहते हैं। शुक्राणु व अण्डाणु अर्थात् दोनों युग्मक अगुणित (Haploid) होते हैं।

2. निषेचन (Fertilization)-दो विपरीत युग्मक का आपस में मिलना निषेचन कहलाता है। अर्थात् नर के द्वारा मैथुन क्रिया की सहायता से मादा के शरीर में छोड़ने के फलस्वरूप अण्डवाहिनी में उपस्थित अण्डाणु से मिलना (Fuse) होना निषेचन कहलाता है। ऐसा निषेचन आन्तरिक निषेचन (Internal Fertilization) कहलाता है। निषेचन फलस्वरूप युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है जो द्विगुणित होता है।

3. विदलन तथा भ्रूण का रोपण (Cleavage and Embryo implantation)-निषेचन के द्वारा निर्मित युग्मनज (Zygote) में एक के बाद एक समसूत्रीय विभाजन द्वारा एक संरचना बनती है जिसे कोरक (Blastula)) कहते हैं। इसके बाद कोरक गर्भाशय की अन्त:भित्ति (Endometrium) से जुड़ जाता है। इस क्रिया को भ्रूण का रोपण कहते हैं।

4. प्रसव (Accouchement)-नवजात शिशु का मादा के शरीर से बाहर आना प्रसव कहलाता है। भ्रूण के रोपण पश्चात भ्रणीय विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। गर्भस्थ शिशु का पूर्ण विकास होने पर शिशु जन्म लेता है। शिशु जन्म की प्रक्रिया को प्रसव कहते हैं।

प्रश्न 15.
अन्तःस्रावी ग्रन्थि किसे कहते हैं? किन्हीं दो अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अन्त:स्रावी ग्रन्थि (Endocrine gland)-ऐसी ग्रन्थियाँ जो नलिका विहीन (Ductless) होती हैं व अपना स्राव सीधा रक्त में स्रावित करती हैं, अन्त:स्रावी ग्रन्थि कहते हैं।

1. थाइरॉइड ग्रन्थि-यह हमारी गर्दन में कंठ के दोनों ओर स्थित होती है। इस ग्रन्थि के दो पिण्ड होते हैं जो ‘H’ की आकृति बनाते हैं । इस ग्रन्थि से थाइरॉक्सिन (Thyroxin) नामक हॉर्मोन स्रावित होता है, जिसमें आयोडीन की मात्रा अधिक होती है। थाइरॉक्सिन हॉर्मोन की रुधिर में अधिक मात्रा होने पर भोजन के ऑक्सीकरण की दर बढ़ जाती है। हृदय की धडकनों की दर तेज हो जाती है जिससे बराबर बेचैनी बनी रहती है। इस हॉर्मोन की कमी से रुधिर में आयोडीन की मात्रा कम हो जाती है और गलगण्ड (goitre) रोग हो जाता है। यदि बचपन से ही इस हॉर्मोन की कमी हो जाये तो शारीरिक और मानसिक विकास पूर्ण नहीं होता है जिससे बच्चे पागल हो जाते हैं। थाइरॉक्सिन हॉर्मोन में आयोडीन की अधिकता होती है।

थाइरॉक्सिन हॉर्मोन के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं|

  • यह आधारी उपापचयी दर (Basal metabolic rate, B.M.R.) नियंत्रित करता है।
  • कोशिकीय श्वसन दर को तीव्र करता है।
  • यह हॉर्मोन देह ताप को नियंत्रित करता है।
  • शारीरिक वृद्धि को अन्य हॉर्मोनों के साथ मिलकर नियंत्रित करता है।
  • उभयचरों के कायान्तरण में आवश्यक है।

2. अग्न्याशय ग्रन्थि-अग्न्याशय में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाएँ भी होती हैं जो लेंगरहेन्स द्वीप (Islets of Langerhans) कहलाती हैं। लेगरहेन्स द्वीप की कोशिकाओं से स्रावित हॉर्मोन सीधे ही रक्त द्वारा अन्य हॉर्मोनों की तरह स्थानान्तरित होते हैं। सेंगरहेन्स द्वीप में 0 एवं 3 कोशिकाएँ होती हैं। 2 (ऐल्फा) कोशिकाओं में ग्लूकेगोन (glucagon) एवं B (बीटा) कोशिकाओं में इन्सुलिन
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 29
(insulin) हॉर्मोन स्रावित होते हैं। इन्सुलिन रुधिर में उपस्थित शक्कर (शर्करा) को ग्लाइकोजन (glycogen) में बदलता है। ग्लाइकोजन पानी में अविलेय है एवं यकृत में संचित रहती है। ग्लूकेगोन हॉर्मोन ग्लाइकोजन को पुनः आवश्यकतानुसार ग्लूकोज में बदलता है। जब रुधिर में इन्सुलिन की मात्रा कम हो जाती है तो ग्लूकोज ग्लाइकोजन में नहीं बदलता है जिसके फलस्वरूप भोजन के पाचन से बना ग्लूकोज रक्त में रहता है एवं मूत्र के साथ नेफ्रोन में छन जाता है। नेफ्रोन इस अधिक मात्रा का पुनः अवशोषण नहीं कर सकता है एवं व्यक्ति मधुमेह (diabetes mellitus) का रोगी हो जाता है।

 

प्रश्न 16.
मनुष्य के मस्तिष्क का नामांकित चित्र बनाइए एवं इसके अग्र मस्तिष्क व मध्य मस्तिष्क की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अग्र मस्तिष्क (Fore Brain)-अग्र मस्तिष्क प्रमस्तिष्क, थैलेमस तथा हाइपोथैलेमस से बना होता है। प्रमस्तिष्क पूरे मस्तिष्क के 80 से 85 प्रतिशत भाग का निर्माण करता है। प्रमस्तिष्क इच्छाशक्ति, ज्ञान, स्मृति, वाणी तथा चिन्तन का केन्द्र है। यह अनुलम्ब विदर की सहायता से दो भागों में विभाजित होता है, जिन्हें क्रमशः दायाँ व बायाँ प्रमस्तिष्क गोलार्ध (Cerebral hemisphere) कहते हैं । दोनों प्रमस्तिष्क गोलार्ध कार्पस केलोसम द्वारा जुड़े होते हैं।
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 2 मानव तंत्र image - 30
प्रत्येक प्रमस्तिष्क गोलार्ध में धूसर द्रव्य पाया जाता है, जिसे कार्टेक्स (Cartex) कहते हैं। अन्दर की ओर पाया जाने वाले श्वेत द्रव्य को मध्यांश (Medulla) कहते हैं। धूसर द्रव्य में कई तन्त्रिकाएँ पाई जाती हैं। इनकी अधिकता के कारण ही इस द्रव्य का रंग धूसर दिखाई देता है।

प्रमस्तिष्क चारों ओर से थैलेमस से घिरा होता है। थैलेमस संवेदी व प्रेरक संकेतों का केन्द्र है। अग्रमस्तिष्क के डाइएनसीफेलॉन (Diencphanol) भाग पर हाइपोथैलेमस स्थित होता है। यह भाग भूख, प्यास, निद्रा, ताप, थकान, मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति आदि का ज्ञान कराता है।

मध्य मस्तिष्क (Mid Brain)-यह छोटा और मस्तिष्क का संकुचित भाग है। यह चार पिण्डों से बना होता है, जो हाइपोथैलेमस तथा पश्च मस्तिष्क के मध्य पाया जाता है। इन चारों पिण्डों को संयुक्त रूप से कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमीना कहते हैं। ऊपरी दो पिण्ड दृष्टि के लिए तथा निचले दो पिण्ड श्रवण से अर्थात् सुनने से सम्बन्धित हैं।

 

प्रश्न 17.
निम्न पर टिप्पणी लिखिए
(1) मेरुरज्जु
(2) पश्च मस्तिष्क
(3) मानव श्वसन तंत्र में श्वास नली का विभाजन का केवल चित्र।।
उत्तर-
(1) मेरुरज्जु (Spinal Cord)-मेरुरज्जु केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का भाग है। यह कशेरुकदण्ड में सुरक्षित रहता है। इसकी लम्बाई लगभग 45 सेमी. होती है। यह बेलनाकार खोखली सी रचना होती है। इसमें पृष्ठ खांच, अधर खांच पाई जाती है। मेरुरज्जु के मध्य एक संकरी केन्द्रीय नाल (न्यूरोसील) पाई जाती है। देखिए आगे चित्र में ।

इसमें भीतर की ओर धूसर द्रव्य (gray matter) व बाहर की ओर श्वेत द्रव्य (white matter) पाया जाता है। इसी द्रव्य से अधर श्रृंग व पृष्ठ श्रृंग का निर्माण होता है। पृष्ठ मूल में संवेदी तंत्रिका व अधर मूल में चालक तंत्रिका पाई जाती है।

मेरुरज्जु के कार्य-

  • मेरुरज्जु प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियमन व संचालन करता है।
  • शरीर के विभिन्न भागों एवं मस्तिष्क में तंत्रिकाओं द्वारा सम्बन्ध रखने का कार्य करता है।

(2) पश्च मस्तिष्क (Hind Brain)-पश्च मस्तिष्क निम्न तीन भागों से मिलकर बना होता है, जिन्हें क्रमशः अनुमस्तिष्क (Cerebellum), पोंस (Pons) तथा मेड्यूला ऑब्लोंगेटा (Medulla oblongata) कहते हैं।

अनुमस्तिष्क मस्तिष्क का दूसरा बड़ा भाग है। यह शरीर की विभिन्न ऐच्छिक पेशियों, सन्धियों इत्यादि में स्थित ज्ञानेन्द्रियों से संवेदना प्राप्त की जाती है। तथा उनकी गतियों का नियमन एवं आवश्यकतानुसार समन्वय करना इस भाग का कार्य है। इसके अतिरिक्त शरीर का संतुलन बनाये रखने का कार्य भी करता है।

पोंस (Pons)-पोंस ब्रेन स्टेम का मध्य भाग बनाता है। इसका प्रमुख भाग न्यूमेटैक्टिक केन्द्र है जो श्वसन का नियमन करता है। पोंस अनुमस्तिष्क की दोनों पालियों को जोड़ता है।

मेड्यूला आब्लोंगेटा (Medulla oblongata)-यह मस्तिष्क का पश्च भाग होता है जो नलिकाकार व बेलनाकार होता है। मेड्यूला का निचला छोर मेरुरज्जु में समाप्त होता है।

यह शरीर की समस्त अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण करता है जैसे हृदय की धड़कन, रक्तदाब, श्वसन दर, उपापचय, आहारनाल का क्रमाकुंचन, पाचक रसों का स्राव, भोजन निगलने की गति आदि क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
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UNIT : 4 भारतीय राजनीति के उभरते आयाम

 

 कक्षा 12  UNIT : 4 भारतीय राजनीति के उभरते आयाम


L : 1 :: नियोजन
एवं विकास

अभिप्राय :-

       नियोजन क्या है – सोच समझ कर सही दिशा में सही तरीके
से किया गया कार्य नियोजन है।

 नियोजन के
लिए आवश्यक है :- (1) उद्देश्य स्पष्ट हो, (2)  उद्देश्य प्राप्ति के साधन एवं प्रयास व्यवस्थित हो और (3) समयावधि निश्चित हो।

योजना आयोग के अनुसार नियोजन की परिभाषा :-

            ” नियोजन संसाधनों के संगठन की
एक ऐसी विधि है जिसके माध्यम से संसाधनों का अधिकतम लाभप्रद उपयोग
निश्चित सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किया जाता है।”

 नियोजन का इतिहास
:-

       
 वैश्विक दृष्टि
से सर्वप्रथम सोवियत रूस ने अर्थव्यवस्था के विकास एवं वृद्धि हेतु नियोजन को स्वीकार किया जिसकी सफलता से प्रेरित होकर भारत में भी नियोजन की
आवश्यकता महसूस की गई की जाने लगी। भारत में नियोजन की दिशा में सर्वप्रथम
प्रयास 1934 ई. में एम. विश्वेश्वरैया की पुस्तक ” प्लान्ड इकोनामी फॉर इंडिया ” द्वारा किया गया। सर्वप्रथम आर्थिक योजना सुभाष चंद्र बोस द्वारा 1938 ई. में शुरू की गई। इसी क्रम में कालांतर में 1944
ई. में बम्बई योजना,
श्रीमन्नारायण की गांधीवादी योजना, एम.एन. रॉय की जन योजना और 1950 ई. में जयप्रकाश नारायण की सर्वोदय योजना सार्थक प्रयास रहे है। स्वतंत्रता उपरांत 1950 ई. में सरकार द्वारा गैर संवैधानिक निकाय के रूप में योजना आयोग का गठन
किया गया। योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।

 

 नियोजन की आवश्यकता
:-

            तत्कालीन भारत में नियोजन की आवश्यकता के निम्न कारण रहे है :-

1.  भारत की कमजोर आर्थिक स्थिति।

2. बेरोजगारी की समस्या।

3. आर्थिक एवं सामाजिक असमानताएं।

4. विभाजन से उत्पन्न समस्याएं।

5. औद्योगीकरण की आवश्यकता।

6. पिछड़ापन एवं धीमा विकास।

7. बढ़ती जनसंख्या।

 नियोजन के उद्देश्य
:-

             नियोजन के निम्नलिखित उद्देश्य है :-

1. संसाधनों का समुचित उपयोग।

2. रोजगार के अधिकाधिक अवसर पैदा
करना।

3. देश के नागरिकों की सोई हुई
प्रतिभा को जागृत  कर परंपरागत कौशलों को नवीनीकृत रूप में विकसित करना।

4. आर्थिक एवं सामाजिक असमानताओं को दूर करना।

5. सभी प्रांतों एवं क्षेत्रों
का संतुलित विकास करना।

6. व्यक्ति की आय एवं राष्ट्रीय
आय में वृद्धि करना।

7. सामाजिक उन्नति करना।

8. राष्ट्रीय आत्म-निर्भरता प्राप्त करना।

9. गरीबी मिटाना।

19. आर्थिक स्थिरता प्राप्त करना।

11. जन कल्याण के लिए योजनाएं निर्माण।

 आर्थिक नियोजन
के लक्षण
:-

 अच्छे आर्थिक
नियोजन के निम्नलिखित लक्षण है :-

1. उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम प्रयोग।

2. औद्योगिकरण में क्रमबद्ध वृद्धि।

3. कृषि एवं उत्पादन का समानान्तर विकास।

4. इलेक्ट्रॉनिक्स एवं संप्रेषण
क्षेत्र में तीव्र गति से आगे बढ़ना।

5. शासकीय
कार्य अर्थात नौकरशाही में पारदर्शिता लाना।

6. भौगोलिक दृष्टि से वंचित क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता देकर क्षेत्रीय असंतुलन
को दूर करना।

7. शिक्षा के क्षेत्र का आधुनिकीकरण एवं प्रसार।

8. बौद्धिक संपदा का समुचित उपयोग।

9. कौशल विकास पर ध्यान देना।

 नियोजन का
आर्थिक विकास से संबंध :-

    
       आर्थिक क्षेत्र में नियोजन का लक्ष्य राष्ट्र विकास है। सहभागी और उत्तरदायी प्रबंधन विकास की प्रथम सीढ़ी है
और नियोजन संसाधनों और प्रशासन को सहभागी और उत्तरदायी बनाता है। पई पणधीकर एवं क्षीर सागर ने विकास के लिए नीति निर्माणकर्ताओं के दृष्टिकोण की अभिवृत्ति -परिवर्तन परिणाम प्रदाता, सहभागिता एवं कार्य के प्रति समर्पणवादी होना आवश्यक माना है। महात्मा गांधी के अनुसार नियोजन का लक्ष्य अंतिम व्यक्ति का विकास कर संसाधनों के विकेंद्रीकरण
को प्राथमिकता देना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबका साथ सबका विकास का नारा इसी अवधारणा
को सुदृढ़ करता है।
विकास के मायने लोगों के जीवन स्तर में उन्नति
करने से हैं। आज हम दुनिया के अग्रणी देशों के साथ खड़े नजर आते हैं तो कहीं ना कहीं नियोजित विकास की हमारी
रणनीति सफल नजर आ रही है। विकास के नियोजित प्रयासों में 1950 से 2015 तक योजना आयोग
ने अपनी केंद्रीय
भूमिका निभाई। 2015 में योजना आयोग के स्थान पर  नीति आयोग
विकास के नियोजित प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है।

नीति आयोग

NITI   :- National Institution for Transforming
India अर्थात राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान।

 13 अगस्त
2014 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने योजना आयोग को भंग कर नीति आयोग के
गठन को मंजूरी दी। नीति आयोग ने एक जनवरी 2015 से योजना आयोग का स्थान लिया। नीति आयोग सरकार के थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है और यह सरकार
को निर्देशात्मक और नीतिगत गतिशीलता प्रदान करता है।

नीति आयोग के गठन के कारण :-

1.विकास में राज्यों की भूमिका को सक्रिय बनाना।

2. देश की बौद्धिक संपदा का पलायन रोक कर सुशासन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना।

3. विकास के लक्ष्यों को प्राप्त
करने हेतु केंद्र व राज्य के मध्य साझा मंच तैयार करना।

 नीति आयोग
के गठन के उद्देश्य :-

1. प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्रियों
को राष्ट्रीय एजेंडे
का प्रारूप तैयार कर सौंपना।

2. केंद्र व राज्यों के मध्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना।

3. ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना निर्माण हेतु ढांचागत विकास की पहल करना।

4. राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को प्रोत्साहन देना।

5. आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि
से पिछड़े वर्गों पर अधिक ध्यान देना।

6.दीर्घकालीन विकास की योजनाओं का निर्माण।

7. बुद्धिजीवियों की राष्ट्रीय विकास में भागीदारी को बढ़ाना।

8. तीव्र विकास हेतु साझा मंच तैयार करना।

9. सुशासन को बढ़ावा देना।

10. प्रौद्योगिकी उन्नयन एवं क्षमता निर्माण पर जोर देना।

 

 नीति आयोग
का संगठन :-

Ø अध्यक्ष – प्रधानमंत्री

Ø  गवर्निंग
परिषद के सदस्य :- समस्त राज्यों के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल।

Ø  क्षेत्रीय
परिषद :-  संबंधित क्षेत्रों के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल सदस्य होंगे।

             उद्देश्य :- एक से अधिक राज्यों को प्रभावित करने वाले क्षेत्रीय मसलों पर विचार एवं निर्णय लेना।

Ø  प्रधानमंत्री
द्वारा मनोनीत विशेष आमंत्रित सदस्य।

1. उपाध्यक्ष – प्रधान मंत्री द्वारा नियुक्त।

2. पूर्णकालिक सदस्य।

3. अंशकालिक सदस्य (दो)

4. पदेन सदस्य : केंद्रीय मंत्री परिषद के 4 सदस्य जो प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त होंगे।

5. मुख्य कार्यकारी अधिकारी – सचिव स्तर का अधिकारी।

6.सचिवालय।

L : 13  ::  पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधन

पर्यावरण :-

         
पृथ्वी के चारों ओर के वातावरण को
पर्यावरण कहते हैं।

 पर्यावरण
संरक्षण में भारतीय संस्कृति की भूमिका
:-

                              ” माता भूमि: पुत्रोsहम पृथिव्या

             पर्यावरण संरक्षण में भारतीय संस्कृति की भूमिका हम निम्नलिखित बिंदुओं से समझ सकते हैं :-

1. वैदिक साहित्य की भूमिका :-

        
    वैदिक साहित्य में वेदों, उपनिषदों, आरण्यकों आदि में पर्यावरण को विशेष महत्व दिया गया है। ऋग्वेद में जल, वायु, व
पृथ्वी को देव स्वरूप मानकर उनकी स्तुति
की गई है, वहीं यजुर्वेद में इंद्र, सूर्य, नदी, पर्वत, आकाश, जल आदि देवताओं का आदर करने
की बात कही गई है।

2. धार्मिक आस्थाओं की भूमिका :-

             प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों ने पौधों को धार्मिक आस्था
से जोड़कर इनके संरक्षण का प्रयास किया गया। जैसे पीपल को अटल सुहाग का प्रतीक मानकर, तुलसी को रोग निवारक और भगवान
विष्णु की प्रिय मानकर, बील के वृक्ष को भगवान शिव से जोड़कर, दूब व कुश को नवग्रह पूजा से जोड़कर आदि।

3. प्राचीन दार्शनिकों की भूमिका :-

               प्राचीन युग में विभिन्न दार्शनिकों और शासकों ने पर्यावरण संरक्षण
के प्रति जागरूकता दिखाई है। वैदिक ऋषि पृथ्वी, जल व औषधि शांतिप्रद रहने की प्रार्थना करते हैं। नदी सूक्त में नदियों को देव स्वरूप माना गया है। आचार्य चाणक्य ने साम्राज्य की स्थिरता स्वच्छ पर्यावरण पर निर्भर
बताई है।

4. धर्म और संप्रदाय की भूमिका :-

               जैन धर्म अहिंसा को परम धर्म मानते हुए जीव संरक्षण पर बल देता है। विश्नोई संप्रदाय के 29 नियम प्रकृति संरक्षण पर
बल देते हैं।

 “सिर साठे रूख रहे तो भी सस्ता जाण” कहावत को चरितार्थ करते हुए 21 सितंबर 1730 को जोधपुर
के खेजड़ली गांव के विश्नोई संप्रदाय के 363 लोगों ने अमृता
देवी विश्नोई के नेतृत्व में अपना बलिदान दे दिया अर्थात बिश्नोई समाज के लोगों ने
वृक्ष की रक्षा हेतु अपने सिर कटाने की जो मिसाल पेश की, वह आज भी पर्यावरण हेतु सबसे
बड़ा आंदोलन माना जाता है

               उपरोक्त समस्त बिंदुओं के अध्ययन से स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण रोम
रोम में बसा था।

 पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता :-

              पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता के संबंध में निम्नलिखित
तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं :-

1. वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक विकास के कारण पर्यावरण
दूषित हो रहा है।

2. वनों की कटाई व वन्य जीवो में निरंतर कमी।

3. औद्योगिकरण और शहरीकरण में
वृद्धि।

4. जनसंख्या विस्फोट।

5. परमाणु भट्टियों की रेडियोधर्मी राख।

6. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का कचरा।

7. ग्लोबल वार्मिंग।

8.  प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन।

9. घटता प्राकृतिक परिवेश।

 

 ग्रीन हाउस
प्रभाव या ग्लोबल वार्मिंग :-

       
        कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सीएफसी आदि गैसों के अत्यधिक
उत्सर्जन से पृथ्वी के वायुमंडल के चारों ओर इन गैसों का घना आवरण बन जाता है। यह आवरण सूर्य से आने वाली किरणों
को पृथ्वी तक आने देता है परंतु पृथ्वी से परावर्तित अवरक्त किरणों को बाह्य वायुमंडल में जाने से रोक देता है जिससे पृथ्वी के वातावरण का तापमान
बढ़ने लगता है। इसे ग्लोबल वार्मिंग कहते है। क्योंकि पृथ्वी की स्थिति ग्रीन हाउस की तरह हो जाती हैं इसलिए इसे
ग्रीन हाउस प्रभाव भी कहते है।

Note :- ग्रीन हाउस प्रभाव :-

             वर्तमान समय में अधिक सब्जियों के उत्पादन के लिए ऐसे कांच के घरों
का निर्माण किया जाता है जिसमें दीवारी ऊष्मा रोधी पदार्थों की और छत ऐसे कांच की बनाई जाती हैं जिससे सूर्य के प्रकाश को अंदर प्रवेश मिल
जाता है परंतु अंदर की
ऊष्मा बाहर नहीं निकल पाती है। इससे उस कांच के घर का तापमान लगातार बढ़ता
रहता है। ऐसे घरों को ग्रीनहाउस कहते है।

 ग्लोबल वार्मिंग के कारण :-

1. ग्रीन हाउस गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, मीथेन, सीएफसी आदि का उत्सर्जन।

2. वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली घरों, उद्योगों आदि से निकलता हुआ
धुआं।

3. जंगलों का विनाश।

 ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
:-

1. वातावरण का तापमान बढ़ना :-

             पिछले 10 वर्षों से
पृथ्वी का तापमान औसतन प्रति वर्ष 0.03 से 0.06℃ बढ़ रहा है।

2. समुद्री सतह में वृद्धि :-

   समुद्र की सतह में वृद्धि होने से अब तक 18 द्वीप
जलमग्न हो चुके हैं और सैकड़ों द्वीपों व समुद्र तटीय महानगरों पर खतरा मंडरा
रहा है।

3. मानव स्वास्थ्य पर असर :-

      
 ग्लोबल वार्मिंग
के कारण गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू, येलो फीवर आदि जैसे
अनेक संक्रामक रोग बढ़ने
लगे है

4. पशु-पक्षियों और वनस्पतियों
पर प्रभाव :-

ग्लोबल वार्मिंग
के कारण पशु-पक्षी गर्म स्थानों से ठंडे स्थानों की ओर पलायन करने लगते हैं और वनस्पतियों लुप्त होने लगती है।

5. शहरों पर असर :-

       
 गर्मियों में अत्यधिक
गर्मी और सर्दियों में अत्यधिक सर्दी के कारण शहरों में एयर कंडीशनर का प्रयोग बढ़
रहा है जिससे उत्सर्जित
होने वाली सीएफसी गैस से ओजोन परत पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

 ग्रीन हाउस
गैसों के उत्सर्जन के मुख्य कारक :-

 

क्र. सं.

ग्रीन
हाउस गैस उत्सर्जन कारक

प्रतिशत
मात्रा

1

बिजली
घर

21.3

2

उद्योग

16.8

3

यातायात
के साधन

14.4

4

कृषि
उत्पाद

12.5

5

जीवाश्म
ईंधन का प्रयोग

11.3

6

रहवासी
क्षेत्र

10.3

7

बायोमास
का जलना

10.0

8

कचरा
जलाना

3.4

 

ग्लोबल वार्मिंग रोकने के उपाय :-

1. आसपास पर्यावरण हरा-भरा रखे।

2.वनों की कटाई पर रोक लगाए।

3. कार्बनिक ईंधन के प्रयोग में कमी लाए।

4. ऊर्जा के नवीनीकृत साधनों जैसे
सौर ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, वायु ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा आदि का प्रयोग
करे।

जलवायु परिवर्तन पर
वैश्विक चिंतन
:-

1. स्टॉकहोम सम्मेलन 1972 :-

                 जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक चिंतन हेतु सर्वप्रथम 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में प्रथम बार
मानवीय पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन हुआ जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया।

2. नैरोबी सम्मेलन 1982 :-

                     स्टॉकहोम सम्मेलन के 10 वर्ष होने पर केन्या की राजधानी नैरोबी में 1982 में राष्ट्रों का सम्मेलन हुआ जिसमें पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के संबंध
में कार्य योजनाओं का घोषणा पत्र स्वीकृत किया गया।

3. रियो पृथ्वी सम्मेलन 1992 :-

                    स्टॉकहोम सम्मेलन की 20वीं वर्षगांठ
पर ब्राजील की राजधानी रियो में प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन 1992 में आयोजित किया गया जिसमें पर्यावरण की सुरक्षा हेतु सामान्य अधिकारों
और कर्तव्यों को परिभाषित किया गया।

4. जलवायु परिवर्तन पर प्रथम COP सम्मेलन :-

         
 जलवायु परिवर्तन
पर यूएनएफसीसीसी संधि के तहत जर्मनी की राजधानी बर्लिन में प्रथम COP सम्मेलन 1995 में आयोजित
किया गया।

5. COP – 20 सम्मलेन 2014 :-

                  जलवायु परिवर्तन पर COP-20 सम्मेलन
पेरू की राजधानी लीमा में 1 से 14 दिसंबर
2014 को आयोजित किया गया जिसके महत्वपूर्ण बिंदु निम्न है :-

(i) विश्व के 194 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

(ii) वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में
कटौती के संकल्प पर राष्ट्रों में आम सहमति बनी।

(iii) विकासशील देशों की चिंताओं
का समाधान किया गया।

(iv) अमीर देशों पर कठोर वित्तीय
मदद की प्रतिबद्धताएं लागू की गई।

(v) 2020 तक हरित जलवायु कोष को $100 अरब डॉलर प्रतिवर्ष करने का अधिकार दिया गया।

(vi) सभी देश अपने कार्बन उत्सर्जन
में कटौती के लक्ष्य को पेरिस सम्मेलन 2015 में प्रस्तुत करेंगे।

6. COP-21 सम्मेलन
2015
:-

                   जलवायु परिवर्तन पर COP-21 सम्मेलन
का आयोजन फ्रांस की राजधानी पेरिस में 30 नवंबर से
12 दिसंबर 2015 तक आयोजित हुआ जिसके महत्वपूर्ण
बिंदु निम्न है :-

(i) 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस पर 175 देशों ने पेरिस जलवायु
परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किए।

(ii) पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर
उपरांत सदस्य देश अपनी संसद से इसका अनुमोदन करवाएंगे।

(iii) यह समझौता विश्व में कम से
कम 55% कार्बन उत्सर्जन के जिम्मेदार 55 देशों के अनुमोदन के 30 दिनों के भीतर में अस्तित्व
में आएगा।

(iv) 21वीं सदी में दुनिया के तापमान में वृद्धि 2 डिग्री
सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य रखा गया।

(v) 2022 तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया।

(vi) यह समझौता विकासशील देशों के
विकास की अनिवार्यता को सुनिश्चित करता है।

(vii) भारत ने 2 अक्टूबर 2016 से इस समझौते
की क्रियान्विति की प्रक्रिया आरंभ कर दी।


 भारतीय संविधान और पर्यावरण संरक्षण
:-

                    भारतीय संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्व और मूल कर्तव्यों के
रूप में पर्यावरण संरक्षण को महत्व दिया गया है जो इस प्रकार हैं :-

1. अनुच्छेद 48 :-

                   राज्य पर्यावरण सुधार एवं संरक्षण की व्यवस्था
करेगा और वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करेगा।

2. अनुच्छेद 51 :-

                  प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण (वन,
झील, नदी, वन्य जीव) की रक्षा करें एवं उनका संवर्धन करें और प्राणी मात्र के प्रति
दया का भाव रखें।

3. अनुच्छेद 21 :-

                 प्रत्येक
व्यक्ति को उन गतिविधियों से बचाया जाए जो उनके जीवन, स्वास्थ्य और शरीर को हानि
पहुंचाती हो।

4. अनुच्छेद 252 और 253 के अनुसार राज्य कानून का निर्माण
पर्यावरण को ध्यान में रखकर करेगा।

 

संसदीय अधिनियमों द्वारा पर्यावरण संरक्षण :-

A. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 संशोधन 2003 :-

               भारतीय संसद द्वारा 1972 में वन्यजीवों के अवैध शिकार और उनके हाड़-मांस व खाल के व्यापार पर रोक लगाने के लिए वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 पारित किया
गया जिसमें 2003 में संशोधन करते हुए इसे और अधिक कठोर बनाया
गया और इसका नाम भारतीय वन्यजीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा गया। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार हैं :-

1.वन्य जीव संरक्षण का विषय राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में रखा गया।

2. वन्य जीवों का संरक्षण एवं प्रबंधन सुनिश्चित करना।

3. वन्यजीवों के चमड़े और चमड़े
से बनी वस्तुओं पर रोक।

4. अवैध आखेट पर रोक।

5. अधिनियम का उल्लंघन करने पर 3 से 5 वर्ष की सजा और
₹5000 का जुर्माना।

6. राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय
पक्षी मोर के शिकार पर 10 वर्ष
का कारावास।

B. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम – 1986 :-

                   इस अधिनियम को 23 मई 1986 को राष्ट्रपति
की स्वीकृति मिली। इसके प्रमुख प्रावधान निम्न है
:-

1. प्रथम बार उल्लंघन करने पर 5 वर्ष की कैद एवं ₹100000 का का जुर्माना।

2. मानदंडों का निरंतर उल्लंघन करने पर ₹5000
प्रतिदिन जुर्माना और 7 वर्ष की कैद।

3. नियमों का उल्लंघन करने पर
कोई भी व्यक्ति दो माह का नोटिस देकर जनहित में मुकदमा दर्ज कर सकता है।

4. इस अधिनियम की धारा 5 के तहत केंद्र सरकार अपनी शक्तियों के निष्पादन हेतु स्थापित प्राधिकारी को लिखित में निर्देश दे सकती हैं।

5. केंद्र सरकार का यह अधिकार
है कि इस अधिनियम की पालना न करने वाले उद्योग बंद कर दे और उनकी विद्युत व पेयजल कनेक्शन की सेवाएं रोकने का
निर्देश दे।

 

C. वायु प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981 :-

                      इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान है :-

1. राज्य सरकार अपने विवेक से
किसी भी क्षेत्र को वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र घोषित कर सकती है।

2. समस्त औद्योगिक इकाइयों को
राज्य बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होगा।

3. अधिनियम के प्रावधानों की अनुपालना
नहीं करने पर उद्योग बंद कराए जा सकेंगे और उनके विद्युत व जल कनेक्शन काटे जा सकेंगे।

 

D. जल प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 संशोधन 1988 :-

        
इस अधिनियम
की मुख्य विशेषता जल को प्रदूषण मुक्त रखने के उपाय से संबंधित है। उद्योगों की स्थापना से पहले प्रदूषणकर्त्ताओं के
लिए कड़े दंड का प्रावधान है।

 

 पर्यावरण संरक्षण हेतु न्यायपालिका
के महत्वपूर्ण निर्णय :-

        
 पर्यावरण संरक्षण
हेतु भारतीय न्यायपालिका ने सदैव तत्परता दिखाते हुए समय-समय पर निम्न निर्देश जारी किए हैं :-

1. सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध का निर्देश।

2. दिल्ली में 2001 से टैक्सी, ऑटो-रिक्शा और बसों में सीएनजी गैस के प्रयोग का निर्देश।

3. 2000 में चारों महानगरों में सीसा रहित पेट्रोल के उपयोग का निर्देश।

4. वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने हेतु विभिन्न निर्देश।

5. ताजमहल को बचाने हेतु 292 कोयला आधारित उद्योगों को बंद करने या अन्यत्र स्थानांतरित करने का निर्देश।

6. दिल्ली नगर में प्रतिदिन सफाई
करने, सघन
वानिकी अभियान चलाने और आरक्षित वन कानून
लागू करने का आदेश।

7. विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों
में अध्ययन हेतु पर्यावरण को अनिवार्य विषय बनाने का निर्देश।

8. दूरदर्शन एवं रेडियो पर प्रतिदिन लघु अवधि और सप्ताह में एक बार लंबी अवधि के पर्यावरण
संबंधी कार्यक्रम प्रसारित करने के निर्देश।

9. सिनेमाघरों को वर्ष में दो बार पर्यावरण संबंधी फिल्म नि:शुल्क दिखाने का निर्देश।

पर्यावरण जागरूकता संबंधी महत्वपूर्ण दिवस :-

     
1. विश्व जल
दिवस          :    
22 मार्च

     
2.  पृथ्वी दिवस               :     22 अप्रैल

     
3. विश्व पर्यावरण
दिवस   :     
5 जून

     
4. वन महोत्सव
दिवस     :      
28 जुलाई

     
5. विश्व ओजोन
दिवस।   :      
16 सितंबर

 उपभोक्तावादी संस्कृति :-

                  उपभोक्तावाद एक प्रवृत्ति है जो इस विश्वास पर आधारित है कि अधिक उपभोग और अधिक
वस्तुओं का स्वामी होने से अधिक सुख एवं खुशी मिलती है।

                   यह संस्कृति क्षणिक, कृत्रिम और दिखावटी है जिसमें व्यक्ति समाज में अपना स्टेटस दिखाने
के लिए बाजार से ऐसी अनेक वस्तुएं खरीद बैठता है जिसको अगर वह नहीं खरीदता है तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। परंतु उत्पादक भ्रमित और आकर्षित विज्ञापनों से ग्राहकों को यह विश्वास दिला देता है कि अमुक वस्तु उसके उपयोग योग्य हैं और
व्यक्ति उसे खरीद कर अनावश्यक रूप से अपनी जेब पर अतिरिक्त भार बढ़ा देता है।

उदाहरण के लिए अगर किसी महिला को नेल पॉलिश खरीदनी है तो बाजार में
वह नेल पॉलिश ₹5 से लेकर हजारों की कीमत
में उपलब्ध है। जब वह नेल पॉलिश खरीदती है तो उसके साथ-साथ उसे नेल पॉलिश रिमूवर भी खरीदना होता है, नेल कटर भी खरीदना होता है
और अन्य सह-उत्पाद भी खरीदने के लिए वह बाध्य हो जाती हैं। अब वह एक रंग की नेल पॉलिश नहीं
खरीदेगी बल्कि अपनी विभिन्न रंगों की ड्रेसों, चूड़ियां आदि से मिलती-जुलती
नेल पॉलिश भी खरीदेगी। यही उपभोक्तावादी संस्कृति है।

 

 उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण :-

1. उद्योगपतियों की अत्यधिक लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति।

2. विज्ञापनों द्वारा उपभोक्ताओं
का भ्रमित होना।

3. ग्राहकों को आकर्षित करने के
लिए उनमें कृत्रिम इच्छा जाग्रत करना।

4. अपव्ययपूर्ण उपभोग की प्रवृत्ति।

उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव :-

1. विकसित देशों द्वारा पूंजी
एवं संसाधनों का अपव्यय।

2. विलासिता की सामग्रियों से
ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा।

3. आर्थिक दिवालियापन की स्थिति उत्पन्न होना।

4. उत्पादों का जीवनकाल कम होना।

5. नई आवश्यकताओं की पूर्ति की इच्छा रखने के कारण मानसिक तनाव को बढ़ावा।

6. अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण
की समस्या।

7. प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक
दोहन।

8. प्राकृतिक संसाधन खत्म होने
के कगार पर।

L : 14  ::  भारत और वैश्वीकरण

 

वैश्वीकरण का अर्थ समझने से पूर्व हमें निजीकरण और उदारीकरण
का अर्थ समझना चाहिए।

निजीकरण :-

                       निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सार्वजनिक स्वामित्व एवं नियोजन
युक्त किसी क्षेत्र या उद्योगों को निजी हाथों में स्थानांतरित किया जाता है।

उदारीकरण :-

                     उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यवसायों एवं उद्योगों पर लगे प्रतिबंधों एवं बाधाओं को दूर कर ऐसा वातावरण स्थापित
किया जाता है जिससे देश में व्यवसाय एवं उद्योग स्वतंत्र रूप से विकसित हो सके अर्थात
व्यवसायों और उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण और स्वामित्व को हटाना ही उदारीकरण
है।

 वैश्वीकरण का अर्थ :-

                 वस्तु, सेवा एवं वित्त के मुक्त प्रवाह की प्रक्रिया को भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण कहते है।

वैश्वीकरण की विशेषताएं :-

1. अन्तर्राष्ट्रीय एकीकरण।

2. विश्व व्यापार का खुलना।

3. वित्तीय बाजारों का अन्तर्राष्ट्रीयकरण।

4. जनसंख्या का देशांतर गमन।

5. व्यक्ति, वस्तु, पूंजी, आंकड़ों एवं विचारों का आदान-प्रदान।

6. विश्व के सभी स्थानों की परस्पर
भौतिक दूरी कम होना।

7. संस्कृतियों का आदान-प्रदान।

8.  राष्ट्र राज्यों की नीतियों पर नियंत्रण।

 वैश्वीकरण के कारण :-

                  वैश्वीकरण की प्रक्रिया निम्नलिखित कारणों के आधार पर की गई है :-

1. नवीन स्थानों व देशों की खोज।

2. मुनाफा कमाने की इच्छा।

3. प्रभुत्व की इच्छा।

4. संचार क्रांति एवं टेक्नोलॉजी
का प्रसार।

5. विचार, वस्तु, पूंजी व लोगों की आवाजाही।

6. उदारीकरण।

7. निजीकरण।

वैश्वीकरण
के प्रभाव
:-

 

( A ) वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव :-

                 वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव को दो भागों में बांटा जा सकता है :-

 ( a ) नकारात्मक प्रभाव :-

1. राष्ट्र राज्यों की संप्रभुता का क्षरण।

2. बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना से सरकारों की स्वायत्तता प्रभावित।

3. राष्ट्रीय राज्यों की अवधारणा
में परिवर्तन। अब लोक कल्याणकारी राज्य की जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की स्थापना।

4. नव
पूंजीवाद व नव साम्राज्यवाद का पोषण।

( b ) सकारात्मक प्रभाव :-

1. शीत युद्ध एवं संघर्ष के स्थान पर शांति, रक्षा, विकास एवं पर्यावरण सुरक्षा
पर बल।

2. मानवाधिकारों की रक्षा पर बल।

3. वैश्विक समस्याओं के निवारण
हेतु विशाल अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन।

4. संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व बैंक आदि अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं राष्ट्रीय राज्यों
की हिस्सेदारी और भागीदारी पर आधारित।

5. तकनीकी क्षेत्रों में अग्रणी
राज्यों के नागरिकों के जीवन स्तर में व्यापक सुधार।

6. राज्य लोक कल्याण के साथ-साथ आर्थिक व सामाजिक प्राथमिकताओं का निर्धारक बना।

7. स्वतंत्रता, समानता और अधिकारों को बल मिला।

 

( B ) 
वैश्वीकरण के
आर्थिक प्रभाव
:-

                              मूल रूप से देखा जाए तो वैश्वीकरण का सीधा संबंध अर्थव्यवस्था से ही
है जिसके कारण विश्व अर्थव्यवस्था पर इसका सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है :-

 

( a ) अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव :-

1. अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों की स्थापना।

2. मुक्त व्यापार एवं बाजारों
पर बल।

3. विदेशी निवेश को प्रोत्साहन।

4. लाइसेंस राज की समाप्ति।

5. उदारीकरण व निजीकरण को बढ़ावा।

6. निजी निवेश को प्रोत्साहन।

7. आर्थिक विकास दर बढ़ना।

8. उत्पादन में प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ना।

9. विश्व व्यापार में वृद्धि।

10. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को
बढ़ावा।

11. विकसित देशों को अत्यधिक फायदा।

12. बैंकिंग, ऑनलाइन शॉपिंग एवं व्यापारिक
लेन-देन में सरलता।

13. आईएमएफ एवं डब्ल्यूटीओ की सक्रिय
भूमिका।

14. आयातों पर प्रतिबंध शिथिल हुए।

15. रोजगार के अवसर बढ़े।

 

( b ) नकारात्मक प्रभाव :-

1. बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना से कुटीर उद्योगों की समाप्ति।

2. कुटीर उद्योगों की समाप्ति
से स्थानीय रोजगार के अवसर समाप्त।

3. नव उपनिवेशवाद के नाम पर पिछड़े
देशों का शोषण।

4. पूंजीवादी देशों को अत्यधिक
लाभ।

5. विकसित देशों द्वारा वीजा नियमों
को कठोर बनाना जिससे उन देशों में अन्य देशों के नागरिकों का रोजगार हेतु पलायन रुक जाए।

6. व्यापार के बहाने अवैध हथियारों एवं अवैध लोगों की आवाजाही बढ़ने से आतंकवादी घटनाओं
में इजाफा।

7. निजीकरण एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों
की स्थापना से सरकारी संरक्षण समाप्त।

8. पैकेट
सामग्री को बढ़ावा मिलने से पर्यावरण को क्षति।

                   उपर्युक्त सभी तथ्यों से स्पष्ट है कि वैश्वीकरण से वैश्विक अर्थव्यवस्था को लाभ एवं नुकसान दोनों ही संभव है। फिर भी यह स्पष्ट है कि वैश्वीकरण से  वैश्विक विकास और समृद्धि दोनों
में वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान के शब्दों में, “वैश्वीकरण का विरोध करना गुरुत्वाकर्षण के  नियमों का विरोध करने के समान
है।”

वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव :-

                    वैश्वीकरण ने न केवल राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र
को प्रभावित किया है अपितु इस प्रभाव से सांस्कृतिक क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा है। इसके सांस्कृतिक प्रभावों को हम इस प्रकार समझ सकते हैं :-

( a ) सकारात्मक प्रभाव :-

1. विदेशी संस्कृतियों के मेल
से खान-पान, रहन-सहन, पहनावा, भाषा आदि पसंदो का क्षेत्र
बढ़ गया है।

2. विभिन्न संस्कृतियों का संयोजन
हुआ है।

3. सांस्कृतिक बाधाएं दूर हुई
है।

4. एक
नवीन संस्कृति का उदय।

 

( b ) नकारात्मक प्रभाव :-

1. उपभोक्तावाद एवं खर्च की प्रवृत्ति बढ़ी है।

2. देशज ( स्थानीय ) संस्कृतियों पर प्रतिकूल प्रभाव
पड़ा है।

3. संस्कृतियों की मौलिकताएं समाप्त हो रही
है।

4. पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण हो रहा है।

5. तंग पहनावों में बढ़ोतरी हो रही है।

6. फास्ट फूड संस्कृति को बढ़ावा।

सांस्कृतिक प्रभाव
बढ़ाने वाले माध्यम
:-

वैश्वीकरण द्वारा विश्व के एक देश की संस्कृति का दूसरे देश में प्रवाह निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा संभव हुआ है :-

( a ) सूचनात्मक
सेवाओं द्वारा :-

1. इंटरनेट एवं ईमेल के द्वारा।

2. इलेक्ट्रॉनिक क्रांति एवं दूरसंचार
सेवाओं द्वारा।

3. विचारों और धारणाओं के आदान-प्रदान द्वारा।

4. डिजिटल क्रांति द्वारा।

( b ) समाचार सेवाओं
द्वारा :-

                  विभिन्न विश्वव्यापी समाचार चैनलों द्वारा भी सांस्कृतिक प्रवाह संभव हुआ है जिनमें निम्नलिखित प्रमुख है :-

1. CNN

2. BBC

3. अल जजीरा

भारत एवं वैश्वीकरण :-

                    भारत में जुलाई 1991 में
तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव एवं वित्त मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने नवीन
आर्थिक नीतियों की घोषणा कर उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की शुरुआत
की।

उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण हेतु
उठाए गए कदम
:-

Ø 1991 में नवीन आर्थिक नीतियों की घोषणा।

Ø 1992-93 में रुपए को पूर्ण परिवर्तनीय बनाना।

Ø आयात-निर्यात पर प्रतिबंध हटाए गए।

Ø लाइसेंस राज व्यवस्था समाप्त की गई।

Ø वैश्विक समझौतों के तहत नियमों एवं औपचारिकताओं को समाप्त किया गया।

Ø 1 जनवरी 1995 को भारत डब्ल्यूटीओ
का सदस्य बना।

Ø प्रशासनिक व्यवस्थाओं में सुधार किए गए।

Ø सरकारी तंत्र की जटिलताओं को हल्का किया गया।

 भारत के समक्ष वैश्वीकरण की चुनौतियां
:-

                           वैश्वीकरण के दौर में भारत को निम्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा
है :-

1. आर्थिक विकास पर विषम प्रभाव :-

                         वैश्वीकरण की प्रक्रिया का सर्वाधिक लाभ विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों
को हो रहा है। अर्ध विकसित एवं पिछड़े देशों को वैश्वीकरण का अपेक्षाकृत कम लाभ हो रहा है। भारत एक
विकासशील देश है जिसके कारण भारत को विकसित देशों की तरह विकास का संपूर्ण लाभ
नहीं मिल पा रहा है।

 

2. 
वैश्वीकरण
की वैधता का संकट
:-

                      वैश्वीकरण की प्रवृत्ति से राष्ट्रीय राज्यों की आर्थिक संप्रभुता में
कमी आने के साथ-साथ आंतरिक संप्रभुता पर भी असर पड़ रहा है। अतः घरेलू संप्रभुता के क्षेत्र को बढ़ाने के लिए स्थानीय शासन यानी
पंचायत राज संस्थाओं की रचना करनी पड़ी है ताकि राज्य की वैधता को आगे बढ़ाया
जा सके।

3. 
नागरिक
समाज संगठनों में तीव्र वृद्धि
:-

                    वैश्वीकरण के दौर में दूरसंचार व इंटरनेट की पहुंच से विचारों और धारणाओं में तीव्र गति
आई है जिसके कारण नागरिकों में जागरूकता आने के कारण अनेक नागरिक संगठनों
का निर्माण हुआ है जिन्होंने राष्ट्रीय एवं प्रांतीय सरकारों को अप्रत्यक्ष रूप से
चुनौती दी है। साथ ही कई संगठनों की संरचना लोकतांत्रिक शासन के समानांतर हो जाने के कारण लोकतंत्र
के संचालन पर कुप्रभाव पड़ा है।

 

 भारत में वैश्वीकरण अपनाने के कारण :-

1.      पूंजी की आवश्यकता हेतु।

2.      नवीन तकनीकों की आवश्यकता हेतु।

3.      नवीन रोजगार के अवसरों का सृजन हेतु।

4.      विश्व व्यापार में भागीदारी बढ़ाने हेतु।

5.      स्वयं को आर्थिक शक्ति बनाने हेतु।

भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव :-

( a ) सकारात्मक प्रभाव :-

1.      विदेशी निवेश से पूंजी का आवागमन हुआ जिससे सेवा क्षेत्र ( रेल, सड़क, विमान, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि ) का विस्तार एवं विकास हुआ है।

2.      बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन के साथ नवीन उच्च तकनीकों का प्रयोग
होने से औद्योगिक उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है।

3.      नए-नए उद्योगों की स्थापना से रोजगार के अवसर बढ़े है।

4.      शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यापक सुधार हुए है।

 

( b ) नकारात्मक प्रभाव :-

1.      बहुराष्ट्रीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा में स्थानीय भारतीय उद्योग समाप्त हो रहे हैं।

2.      बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपना लाभ अपने मूल देश को भेजने
से धन का प्रवाह विकसित देशों की ओर हो रहा है।

3.      बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपने कर्मचारियों को अधिक वेतन व सुविधाएं देने से अन्य कर्मचारियों के मध्य
आर्थिक असमानता उत्पन्न हो रही है।

4.      गरीब और
अधिक गरीब एवं अमीर और अधिक अमीर बनता जा रहा है।

5.      उपभोक्तावाद एवं व्यर्थ व्यय की संस्कृति को
बढ़ावा मिल रहा है।

6.      राज्य का कल्याणकारी स्वरूप बदल कर न्यूनतम
हस्तक्षेपकारी होता जा रहा है जिससे सरकार द्वारा आम आदमी को संरक्षण कम होता जा
रहा है।

7.      फूहड़ संस्कृति का उदय हो रहा है।

8.      परंपरागत संगीत की जगह पाश्चात्य संगीत अपना प्रभुत्व जमा रहा है।

9.      परंपरागत त्योहारों की जगह पाश्चात्य त्योहारों को अधिक महत्व दिया
जा रहे हैं। जैसे वेलेंटाइन डे, क्रिसमस डे, नववर्ष आदि।

10.  सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का पतन हो रहा है।

भारतीय लोक संस्कृति
एवं सामाजिक मूल्यों पर वैश्वीकरण का प्रभाव
:-

 

( a ) लोक संस्कृति पर प्रभाव :-

1.      देश के विशिष्ट लोक संगीत एवं कला को नुकसान पहुंचा है।

2.     
प्रादेशिक सांस्कृतिक
गतिविधियों का उन्मूलन हो रहा है।

3.      शास्त्रीय संगीत की जगह पाश्चात्य एवं फूहड़ विदेशी संगीत स्थान ले रहा है।

4.      लोक वाद्य यंत्रों की जगह इलेक्ट्रॉनिक वाद्य यंत्रों के उपयोग से संगीत
की सुरमयता और विशिष्टता समाप्त होती जा रही हैं।

5.      फास्ट फूड, रेस्त्रां एवं पैकिंग खाने का प्रचलन बढ़ रहा है जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

6.      कम कपड़ों के प्रचलन से जिस्म की नुमाइशे ज्यादा हो रही है।

( b ) सामाजिक मूल्यों पर प्रभाव :-

                      वैश्वीकरण का सामाजिक मूल्यों पर सर्वथा प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जो कि इस प्रकार है :-

1.      संयुक्त परिवार व्यवस्था का विघटन हो रहा है।

2.      एकल परिवार व्यवस्था को बढ़ावा मिल रहा है।

3.      पति-पत्नी के संबंधों में दरार पड़ती जा रही हैं।

4.      वृद्धों को बोझ समझा जा रहा है।

5.      नारी का वस्तुकरण किया जा रहा है।

6.      टेलीविजन परिवार का एक नया सदस्य बन गया है।

7.      युवाओं ने मान-मर्यादा, रीति-रिवाजों एवं संस्कारों
का त्याग कर दिया है।

8.      व्यक्ति के नैतिक चरित्र का पतन हुआ है।

9.      आदर्शों और मूल्यों का पतन हो रहा है।

10.  सामाजिकता का स्थान स्वार्थपरकता ने ले
लिया है।

वैश्वीकरण के परिणाम :-

वैश्वीकरण के परिणामों को हम निम्न दो प्रकार से समझ सकते हैं – आलोचनात्मक रूप से और उपलब्धियों के रूप में ।

( a ) आलोचना :-

                    वैश्वीकरण की आलोचना निम्नलिखित तत्वों के आधार पर की जाती है :-

1.      राष्ट्रीय राज्यों की स्वायत्तता, संप्रभुता एवं आत्म-निर्भरता प्रभावित हो रही है।

2.      अमेरिकी वर्चस्व को प्रोत्साहन मिल रहा है जिससे भारत जैसे देशों के
अमेरिका के ग्राहक देश बनने की आशंका की जा रही है।

3.      वैश्वीकरण ने उदारीकरण और निजीकरण को बढ़ावा दिया
है जिससे शासन का लोककल्याणकारी स्वरूप घटता जा रहा है।

4.      नव उपनिवेशवादी मानसिकता को बढ़ावा मिल रहा है जिसमें
विकसित देश कम विकसित
देशों के सस्ते कच्चे माल एवं सस्ते श्रम का
उपयोग कर अपना औद्योगिक उत्पादन बढ़ा रहे हैं तथा इसी उत्पादन की बिक्री हेतु कम विकसित देशों को बाजार के रूप में प्रयोग कर रहे है।

5.      वैश्वीकरण ने विश्व में शरणार्थी समस्या को बढ़ावा दिया है। कम विकसित देशों के लोग रोजगार हेतु पलायन कर अन्य देशों में आ जाते हैं
और वहां स्थाई रूप से जमा हो जाते हैं जिससे शरणार्थियों की समस्या उत्पन्न हो रही
है। जैसे यूरोप में शरणार्थियों की समस्या, भारत में रोहिंग्या मुसलमानों
की समस्या, श्रीलंका में तमिलों की समस्या
आदि।

6.      वैश्वीकरण का प्राकृतिक पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। विकसित देशों में औद्योगिक कचरे, प्लास्टिक एवं इलेक्ट्रॉनिक
उत्पादों के कचरे के निस्तारण की भयंकर समस्या उत्पन्न हो रही है। विकसित देश इस कचरे को गरीब देशों में स्थानांतरित कर वहां के पर्यावरण को प्रदूषित
कर रहे हैं।

7.      वैश्वीकरण विकसित देशों के साम्राज्यवाद का पोषक बन
रहा है। वैश्वीकरण के माध्यम से विकसित देश गरीब एवं अर्द्ध विकसित देशों को ऋण आधारित अर्थव्यवस्था थोप कर अपने
अधीनस्थ करने का प्रयास कर रहे है। इस ऋण आधारित अर्थव्यवस्था से ऋणों में बेहताशा वृद्धि हो रही है और ऋण भुगतान का संकट उत्पन्न हो रहा है।

8.      वैश्वीकरण द्वारा सभी वर्गों के हितों की जो अपेक्षाएं की गई, वो पूर्ण नहीं हो पा रही है।

 

( b )  वैश्वीकरण की उपलब्धियां :-

1.      विकासशील देशों की जीवन प्रत्याशा लगभग दुगनी हो गई है।

2.      शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में कमी आई है।

3.      व्यस्क मताधिकार का व्यापक प्रसार हुआ है।

4.      लोगों के भोजन में पौष्टिकता बढ़ी है।

5.      बालश्रम घटा है।

6.      प्रति व्यक्ति सुविधाओं में वृद्धि हुई है।

7.      सेवा क्षेत्र में अभूतपूर्व सुधार हुआ है।

8.      स्वच्छ जल की उपलब्धता बढ़ी हैं।

9.      लोगों के जीवन में खुशहाली आई है।

निष्कर्ष :-

               वैश्वीकरण की विशेषता और उसके विभिन्न क्षेत्रों पर पड़े प्रभावों का
अध्ययन करने के उपरांत यह स्पष्ट है कि इसका सर्वाधिक लाभ विकसित देशों को हुआ है और
इसका सर्वाधिक नुकसान
अविकसित देशों को उठाना पड़ा है। विकास की अंधी दौड़ में सभ्यता और संस्कृति को अपूरणीय क्षति उठानी
पड़ रही है। ऐसा नहीं है कि वैश्वीकरण एक नवीन प्रवृत्ति हैं बल्कि
हजारों वर्षों के इतिहास के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि एक देश के गुणवत्ता युक्त माल
एवं कारीगरी का निर्यात पूर्व में भी बड़े पैमाने पर किया जाता था। पहले संचार और इंटरनेट जैसे साधनों की कमी के कारण इसका इतना प्रचार
नहीं था जबकि  वर्तमान में इसका प्रचार ज्यादा है।

            साथ ही लोक-लुभावने प्रचार एवं सस्ते माल के कारण विभिन्न देशों के स्थानीय माल की उपेक्षा हो रही है। जैसे चीन उत्पादित माल अत्यधिक
लोक-लुभावना, आकर्षक एवं सस्ता होने के कारण विश्व के अन्य देशों
के बाजारों में बहुत ज्यादा बिक रहा है परंतु उस माल में गुणवत्ता एवं टिकाऊपन न के बराबर है। अतः हमें यह समझना होगा कि हमें सदैव
अच्छा और टिकाऊ सामान खरीदना चाहिए ताकि उपभोक्तावादी संस्कृति एवं व्यर्थ खर्च से बचा जा सके।

L :
15  :: 
वीन सामाजिक आंदोलन

                              

     नव सामाजिक
आंदोलन ऐसे सामाजिक आंदोलन है जो मानव जीवन में फैले हुए अन्याय के प्रति नवीन चेतना से प्रेरित होकर समकालीन विश्व के कुछ हिस्सों में उभरकर सामने
आए हैं। इसमें नारी अधिकार आंदोलन, पर्यावरणवादी आंदोलन, उपभोक्ता आंदोलन, नागरिक अधिकारों की मांग, दलित आंदोलन, छात्र आंदोलन, शांति आंदोलन एवं अन्ना आंदोलन
विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

            नव सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत 1960 के दशक से हुई है। नव सामाजिक आंदोलन
मुख्यत: युवा, शिक्षित एवं मध्यवर्गीय नागरिकों
के आंदोलन है जो नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं मानव मात्र के हित को ध्यान
में रखते हुए पर्यावरण के संरक्षण एवं शांति वातावरण को बढ़ावा देना चाहते हैं। इन आंदोलनों में गैर सरकारी संगठनों और नागरिक समाजों की महती भूमिका रही है।

      
    नवीन सामाजिक आंदोलनों ने समकालीन राज्य के नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) की अवधारणा को मजबूत किया है। साथ ही वामपंथी झुकाव वाले कुछ तथाकथित
नागरिक समाजों ने कई बार राज्य की वैधता और शासन के अधिकारों को चुनौती दी है। जैसे अन्ना आंदोलन, नक्सलवाद समर्थक मानवाधिकार
आंदोलन आदि।

           कुछ सामाजिक आंदोलनों ने राजनीतिक सत्ता और विचारधारा से संलग्न होकर भी
अपने मत रखे। जैसे नर्मदा बचाओ आंदोलन के आंदोलनकारियों द्वारा बीजेपी की विचारधारा के विरुद्ध मत व्यक्त करना। इसके अलावा कुछ सामाजिक आंदोलनों ने राज्य की भूमिका को पुष्ट करने
एवं सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन के भी प्रयास किए हैं। जैसे वनवासी कल्याण परिषद, सेवा भारती, शिक्षा बचाओ आंदोलन आदि।

सामाजिक आंदोलनों का विभाजन या प्रकार :-

डेविड आवर्ली ने 1966 में सामाजिक आंदोलनों को चार भागों में बांटा है :-

1. परिवर्तनकारी या क्रांतिकारी सामाजिक आंदोलन :-

              इस प्रकार के सामाजिक आंदोलनों में आंदोलनकारी वर्तमान में प्रचलित
व्यवस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहते हैं। इसके लिए ये आंदोलनकारी क्रांति का सहारा लेना चाहते हैं। जैसे नक्सलवादी, वामपंथी आंदोलन आदि।

2. सुधारवादी सामाजिक आंदोलन :-

              सुधारवादी आंदोलनकारी समाज में प्रचलित असमानताओं और सामाजिक समस्याओं में क्रमिक सुधार के पक्षधर होते हैं। इनका मानना है कि क्रमिक सुधार ही स्थाई रहता है। इसके लिए यह लोग संविधान का सहारा लेते हुए परिवर्तन करना चाहते हैं। जैसे सभी गैर सरकारी संगठन, कर्नाटक में लिंगायत आंदोलन, उत्तर पूर्व में श्री वैष्णव आंदोलन आदि।

3. उपचारवादी या मुक्तिप्रद सामाजिक आंदोलन :-

                       यह आंदोलन किसी व्यक्ति विशेष या समस्या विशेष पर केंद्रित होते हैं
और उस विशेष समस्या से मुक्ति उपरांत समाप्त हो जाते हैं। जैसे विद्यार्थियों, दलितों, पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यक वर्गों, निम्न जातियों एवं अन्य विशिष्ट श्रेणियों के लोगों के आंदोलन।

4. 
वैकल्पिक
सामाजिक आंदोलन
:-

                          इस प्रकार के आंदोलनों में आंदोलनकारी संपूर्ण सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था में बदलाव लाकर उसके स्थान
पर अन्य विकल्प की स्थापना करना चाहते हैं। जैसे नारीवादी आंदोलन, दक्षिण भारत में SNDP आंदोलन, पंजाब में अकाली आंदोलन।

 

नवीन सामाजिक आंदोलनों के उदाहरण :-

1. कृषक अधिकार आंदोलन :-

                        वैश्वीकरण और निजीकरण के दौर में मुक्त बाजार व्यवस्था
में लघु कृषकों के हितों की रक्षा हेतु अनेक किसान संगठन कार्यरत है जिनमें भारतीय किसान संघ, शेतकरी संगठन (महाराष्ट्र में) आदि प्रमुख
हैं।

2. श्रमिक आंदोलन :-

                      श्रमिकों के हितों की रक्षा हेतु अनेक श्रमिक संगठन कार्यरत है। जैसे भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, कम्युनिस्ट इंडिया ट्रेड यूनियन आदि।

3. महिला सशक्तिकरण आंदोलन :-

                     भारतीय महिला सशक्तिकरण आंदोलन आमूलचूल बदलाव
पर आधारित है। यह जाति, वर्ग, संस्कृति, विचारधारा आदि आधिपत्य के विभिन्न रूपों को चुनौती देता है। महिला सशक्तिकरण आंदोलन के चलते ही देश में दहेज विरोधी अधिनियम, प्रसूति सहायता अधिनियम, समान कार्य के बदले समान वेतन, सती प्रथा विरोधी अधिनियम आदि
अनेक कार्य हुए है। वर्तमान में हमारे देश में महिला सशक्तिकरण हेतु अनेक योजनाएं जैसे
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,
उज्ज्वला योजना आदि चल रही है।  महिला मुक्ति मोर्चा, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक एसोसिएशन, नागा मदर्स एसोसिएशन, शेतकरी महिला अघाड़ी, भारतीय महिला आयोग, निर्भया आंदोलन 2012  आदि महिला आंदोलन के उदाहरण है।

4. विकास के दुष्परिणामों के विरुद्ध आंदोलन :-

                  पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण विकास हेतु योजनाओं के चलने से अनेक दुष्परिणाम
भी सामने आए हैं जिनमें बांध परियोजनाओं के निर्माण से विस्थापन की समस्या (नर्मदा बचाओ आंदोलन, टिहरी बांध परियोजना विवाद आदि ), नदी जल विवाद ( विभिन्न
राज्यों के मध्य ),  पर्यावरण को नुकसान (चिपको आंदोलन) आदि से जुड़े कई आंदोलन समसामयिक
परिस्थितियों में उभरकर सामने आए है। इसके अलावा और अन्य आंदोलन इस प्रकार
हैं :-

साइलेंट वैली बचाओ आंदोलन केरल में, चिपको आंदोलन उत्तराखंड में, जंगल बचाओ आंदोलन 1980 में बिहार में, नर्मदा बचाओ आंदोलन 1985 में, जनलोकपाल बिल आंदोलन 2011, पश्चिम बंगाल में सिंदूर और
नंदीग्राम आंदोलन, नवी मुंबई में सेज विरोधी आंदोलन आदि।

L : 16  ::  सामाजिक
और आर्थिक न्याय एवं महिला आरक्षण

 

 भारत के संविधान
के भाग – 4 यानी नीति निर्देशक तत्वों में अनुच्छेद – 38 में सामाजिक और आर्थिक न्याय की बात कही गई है।

 

सामाजिक न्याय का अर्थ :-

                    सामाजिक न्याय दो शब्दों सामाजिक और न्याय से बना है जिसमें सामाजिक से तात्पर्य है समाज से संबंधित तथा
न्याय से तात्पर्य है जोड़ना। इस प्रकार सामाजिक न्याय का शाब्दिक
अर्थ है समाज से संबंधित सभी पक्षों को जोड़ना।

     
परंतु आधुनिक परिप्रेक्ष्य में सामाजिक
न्याय का अर्थ बहुत ही व्यापक स्तर पर लिए हुए है।

सामाजिक न्याय से तात्पर्य है कि

1.      समाज के सभी सदस्यों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो

2.      सभी की स्वतंत्रता, समानता और अधिकारों
की रक्षा हो

3.      किसी भी व्यक्ति का शोषण नहीं हो

4.      प्रत्येक व्यक्ति प्रतिष्ठा और गरिमा के साथ जीवन जिये।

         
 इस प्रकार स्पष्ट
है कि सामाजिक न्याय से तात्पर्य है उस समतावादी समाज की स्थापना से है जो समानता, एकता व भाईचारे के सिद्धांत
पर आधारित हो, मानवाधिकारों के मूल्यों को समझता हो और प्रत्येक मनुष्य की प्रतिष्ठा
को पहचानने में सक्षम हो।

   सामाजिक न्याय की संकल्पना मूलत: समानता और मानव अधिकारों की अवधारणाओं पर आधारित है

 

 सामाजिक न्याय की आवश्यकता क्यों :-

              भारतीय समाज में सामाजिक न्याय की स्थापना के उद्देश्य की पूर्ति हेतु
संविधान निर्माताओं ने संविधान में अनेक प्रावधान किए है। परंतु उन्हें उस भारत में सामाजिक न्याय प्राप्ति की आवश्यकता क्यों
पड़ी जिसके कण-कण में ईश्वर के व्याप्त होने का गौरव प्राप्त है। इस संबंध में निम्नलिखित कारणों से यह दृष्टिगोचर होता है कि भारत में सामाजिक न्याय की प्राप्ति की आवश्यकता है 
:-

1. वर्ण व्यवस्था का जाति व्यवस्था
में परिवर्तन।

2. जाति व्यवस्था में रूढ़िवादिता
होना

3. अलगाववाद, क्षेत्रवाद, असमानता एवं  सांप्रदायिकता की भावना पैदा होना।

 

 

 सामाजिक न्याय की प्राप्ति के प्रयास :-

           प्राचीन भारतीय समाज में चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र थे परंतु कालांतर में वर्ण व्यवस्था दूषित होकर जाति
व्यवस्था में परिवर्तित
हो गई। जो वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी अब अपने नए रूप यानी जाति व्यवस्था
में जन्म पर आधारित हो गई। इस प्रकार धीरे-धीरे जाति व्यवस्था
में रूढ़िवादिता और कठोरता के समावेश ने भारतीय समाज में असमानता की स्थिति पैदा कर दी जो आज भी विद्यमान है।

        
 प्राचीन काल में
महात्मा बुद्ध व महावीर स्वामी से लेकर मध्यकाल में कबीर, लोक देवता बाबा रामदेव व अनेक संतों ने और आधुनिक काल में राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर आदि
ने अनेक समाज सुधारक कार्य करके समाज को नवीन दिशा दिखाने
का महत्वपूर्ण कार्य किया है।

 

भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय :-

 200 वर्षो
की गुलामी उपरांत संविधान निर्माताओं ने लोककल्याणकारी प्रजातंत्र की स्थापना के लिए सामाजिक न्याय की स्थापना को अत्यंत महत्वपूर्ण माना। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक न्याय को संविधान का उद्देश्य
और लक्ष्य बताया गया है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मौलिक
अधिकारों को संविधान में शामिल किया गया है। साथ ही संविधान के भाग – 4 में नीति
निदेशक तत्वों में राज्य को सामाजिक न्याय की स्थापना के प्रयास करने के निर्देश
दिए गए है।

 

 A. सामाजिक न्याय की प्राप्ति हेतु मूल अधिकारों में प्रावधान :-

1. अनुच्छेद – 14 : विधि के समक्ष समता

2. अनुच्छेद – 15 : धर्म, मूलवंश, जाति, व जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं।

3. अनुच्छेद – 16 : लोक नियोजन में अवसरों की समानता।

4. अनुच्छेद – 15(4) एवं 16(4) : अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान।

5. अनुच्छेद – 17 : अस्पृश्यता का अंत।

6. अनुच्छेद – 21( क) :
6 से 14 वर्ष के बच्चों को
नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।

7. अनुच्छेद – 23 : मानव क्रय
और बेगार पर रोक।

8. अनुच्छेद – 24 : कारखानों में बाल श्रम निषेध।

9. अनुच्छेद – 29 एवं 30 : शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार।

 

B. सामाजिक न्याय की प्राप्ति हेतु नीति निर्देशक
तत्वों में प्रावधान :-

           संविधान के भाग – 4 में भी सामाजिक न्याय के
अनेक प्रावधान किए गए हैं जिसमें राज्य को निर्देशित किया गया है कि :-

1. अनुच्छेद – 38 : राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था
की स्थापना करेगा जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय
सुनिश्चित हो सके।

2. अनुच्छेद – 41 : बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी एवं असमर्थता में सार्वजनिक सहायता प्राप्त करने का प्रावधान।

3. अनुच्छेद – 42 : काम की अनुकूल एवं मानवोचित अवस्था उपलब्ध करवाना और प्रसूति सहायता उपलब्ध करवाना।

4. अनुच्छेद – 43 : श्रमिकों के लिए निर्वाह मजदूरी एवं उद्योगों के प्रबंधन
की भागीदारी सुनिश्चित करना।

5. अनुच्छेद – 44 :
एकसमान नागरिक संहिता का निर्माण करना।

6. अनुच्छेद – 46 : अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं दुर्बलों की शिक्षा और उनके हितों की उन्नति करना।

7. अनुच्छेद – 47 : मादक पदार्थों पर प्रतिबंध
लगाना और पोषण का स्तर ऊँचा रखना।

 

सामाजिक न्याय की व्यवहारिक स्थिति :-

              भारतीय संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान में किए गए सामाजिक न्याय
के उपबंधों से दो पहलू उभर कर सामने आ रहे है। एक पहलू जिसमें जमीदारी उन्मूलन अधिनियम, भूमि सुधार अधिनियम, हिंदू बिल कोड, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, दास प्रथा, देवदासी प्रथा, बंधुआ मजदूरी व अस्पृश्यता का उन्मूलन आदि ने समाज में आमूलचूल परिवर्तन किए है।

   
 वही दूसरे पहलू
को देखें तो आज भी भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग असमानता, भुखमरी, कुपोषण और शोषण का शिकार है। देश के इन करोड़ों लोगों के लिए सामाजिक और आर्थिक न्याय की बात तो दूर आज भी दो वक्त की रोटी का प्रबंध
नहीं हो पा रहा है।
कहने को तो भले ही यह कहा जाता है कि आज देश
में 50% आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़े
वर्ग को मिल रहा है परंतु इस आरक्षण का लाभ आज भी इन वर्गों के वास्तविक लाभार्थियों को नहीं मिल पा रहा है क्योंकि
इन पिछड़ी जातियों में आरक्षण प्राप्त कर एक ऐसे नवीन वर्ग का जन्म हुआ है जो आर्थिक
और राजनीतिक आधार पर बार-बार आरक्षण का लाभ उठा रहा है जिससे गांव का गरीब व आदिवासी अभी भी अपने वास्तविक लाभ की पहुंच से कोसों दूर है। वर्तमान में वोट बैंक की राजनीति और चुनावीकरण ने आरक्षण व्यवस्था को इस कदर जटिल बना दिया है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी
इसमें किंचित भी परिवर्तन करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है।

 

-: आर्थिक न्याय
:-

                  यह सत्य है कि समाज में पूर्ण रूप से आर्थिक समानता स्थापित नहीं की जा सकती है। आर्थिक न्याय का मूल लक्ष्य आर्थिक असमानताओं को कम करना है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक युग और प्रत्येक क्षेत्र
में आर्थिक आधार पर दो वर्ग रहे हैं एक शोषक वर्ग जो अमीरों का प्रतिनिधित्व करता है और दूसरा
शोषित वर्ग जो गरीबों का प्रतिनिधित्व करता है। इन आर्थिक विषमताओं के कारण ही हमारे देश में नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, राजनीति का अपराधीकरण, तस्करी और आतंकवादी जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ विकसित हुई है जो कि हमारी एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ी चुनौती
है।

 

आर्थिक न्याय का अर्थ :-

             आर्थिक न्याय से तात्पर्य हैं कि

1.      धन एवं संपत्ति के आधार पर व्यक्तिव्यक्ति में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना

2.      प्रत्येक समाज एवं राज्य में आर्थिक संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण

3.      समाज के सभी लोगों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हो ताकि वे अपना
अस्तित्व और गरिमा बनाए रख सके

    
    आर्थिक न्याय के अर्थ को निम्नलिखित कथनों से बहुत अच्छी तरह से समझा
जा सकता है :-

 पंडित जवाहरलाल
नेहरू के अनुसार
, भूख से मर रहे व्यक्ति के लिए लोकतंत्र का कोई अर्थ एवं महत्व नहीं
है

 डॉक्टर राधाकृष्णन
के अनुसार
, जो लोग गरीबी की ठोकरें खाकर इधर-उधर भटक रहे है, जिन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती हैं और जो भूख से मर रहे है, वे संविधान या उसकी विधि पर गर्व
नहीं कर सकते

अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट के अनुसार,आर्थिक सुरक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता के बिना कोई भी व्यक्ति सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकता

            इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक और राजनीतिक न्याय के लिए आर्थिक न्याय
अनिवार्य शर्त है।

 

 भारतीय संविधान और आर्थिक न्याय :-

                 संविधान निर्माताओं ने भारत में आर्थिक न्याय की संकल्पना को साकार करने के
लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए है :-

A. मूल अधिकारों के रूप में प्रावधान :-

1. अनुच्छेद – 16 : लोक नियोजन में अवसरों की समानता।

2. अनुच्छेद – 19(1)(छ) : वृति एवं व्यापार की स्वतंत्रता।

B. नीति निदेशक तत्वों के रूप में प्रावधान :-

                   भारतीय संविधान के भाग – 4 में नीति
निदेशक तत्वों में आर्थिक न्याय की प्राप्ति के निम्न प्रावधान किए गए है :-

1. अनुच्छेद – 39 : राज्य अपनी नीति इस प्रकार निर्धारित करेगा कि

(i) सभी नागरिकों को जीविका प्राप्ति के पर्याप्त साधन प्राप्त हो।

(ii) समुदाय की संपत्ति का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार हो कि सामूहिक
हित का सर्वोत्तम साधन हो।

(iii) उत्पादन के संसाधनों का केंद्रीकरण न हो।

(iv) स्त्री-पुरुष को समान कार्य के लिए समान वेतन।

(v) श्रमिक पुरुष व महिलाओं के स्वास्थ्य एवं शक्ति
और बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो।

2. अनुच्छेद – 40 : गरीबों को नि:शुल्क विधिक सहायता।

 

भारत में आर्थिक न्याय की स्थापना हेतु सुझाव :-

(1) आर्थिक विषमताओं को दूर करना।

(2)  असीमित संपत्ति के अधिकार पर प्रतिबंध लगाना।

(3) प्रत्येक नागरिक को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना।

(4) सार्वजनिक धन का उचित वितरण।

(5) गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं
का निर्माण करना एवं
क्रियान्वयन करना।

(6) प्रभावशाली कर प्रणाली की स्थापना करना और कर प्रणाली में सुधार करना।

(7) आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था
करना।

 

आर्थिक न्याय की वस्तुस्थिति :-

         
वित्त वर्ष 2015-16 में भारत की विकास दर 7.6 प्रतिशत थी जो विश्व में सर्वाधिक रही। नवंबर 2016 में विमुद्रीकरण
के उपरांत आर्थिक विकास दर में थोड़ी गिरावट जरूर आई हैं परंतु फिर भी संतोषजनक है। परंतु विश्व में अग्रणी आर्थिक विकास दर वाला देश होने के
उपरांत भी आर्थिक विकास का समुचित लाभ सभी वर्गों को समान रूप से नहीं मिल पा रहा है। आज भी गांवों में सुविधाओं का अभाव है एवं इंटरनेट
व प्रौद्योगिकी का अपेक्षित विस्तार गांवों में नहीं हो पाया है। विकास का वास्तविक लाभ केवल शहरों तक ही सीमित है।

 

-: महिला आरक्षण :-

            

  भारत में पुरुष प्रधान समाज होने, विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक
कारणों के चलते महिलाओं की क्षमताओं का पूर्ण रूप से विकास नहीं हो
पाया है। स्वतंत्रता उपरांत महिला शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति अवश्य हुई है
परंतु आज भी रोजगार, व्यवसाय, उद्योग एवं राजनीतिक क्षेत्रों
में महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है।

            अतः देश की वास्तविक प्रगति तब तक संभव
नहीं है जब तक की महिलाओं की स्थिति पुरुषों के समतुल्य न हो जाए। महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने
के उद्देश्य से सरकार ने लोक नियोजन में महिलाओं के लिए पद आरक्षित रखने का प्रावधान
किया है। विभिन्न सरकारी क्षेत्रों के अलावा सैन्य क्षेत्रों में भी महिलाओं को आंशिक कमीशन के द्वारा नियोजित किया जा रहा है। सीआरपीएफ और सीआईएसएफ में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण आरक्षित किए गए है जबकि  एसएसबी और आइटीबीपी में 15% स्थान आरक्षित किए गए है।

         
पंचायतीराज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33% स्थान आरक्षित किए गए है।

 

 लोकसभा, राज्यसभा एवं विधानसभाओं में महिला आरक्षण की मांग :-

A. आवश्यकता के कारण :-

1. राजनीति में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व नहीं होना।

2. महिलाओं का सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा होना।

3. पुरुष प्रधान समाज से मुक्ति
दिलाने हेतु।

4. महिलाओं से संबंधित विभिन्न
कुरीतियों एवं कुप्रथाओं से बचाने हेतु।

5. लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया को सुदृढ़ करने हेतु।

B. महिला आरक्षण विधेयक का इतिहास :-

1. 1996 में एच. डी. देवगौड़ा सरकार द्वारा 81वां संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया गया परंतु पारित नहीं हो सका।

2. 1998 में एनडीए सरकार द्वारा 86वां संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया गया।

3. 1999 में एनडीए सरकार द्वारा विधेयक पुनः प्रस्तुत।

4. 2008 में यूपीए सरकार द्वारा 108वें संविधान संशोधन
विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश।

5. 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित परंतु लोकसभा से पारित नही।

6. 2016 में पुनः महिला आरक्षण की मांग उठी परंतु
कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया।

7. 2018 में एनडीए सरकार द्वारा महिला आरक्षण की मंशा जाहिर करना परंतु अब तक कोई
कार्यवाही नहीं।

महिला आरक्षण विधेयक पारित नहीं होने के कारण :-

1. सभी राजनीतिक दलों द्वारा इसमें
रुचि नहीं लेना।

2. राजनीतिक संस्थाओं में पुरुषों का वर्चस्व कम होने का भय।

3. कई राजनीतिक दलों द्वारा सामान्य
महिलाओं की बजाय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के
अत्यधिक पिछड़ेपन के कारण उनके लिए विशेष व्यवस्था की मांग करना।

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