CLASS 12 HINDI SAHITYA RBSE ABHINAV SIR

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कक्षा 12

विषय- हिंदी साहित्य

तैयारकर्ता- अभिनव सरोवा (व्याख्याता हिंदी, राउमावि- पीथूसर, झुंझुनूं)

 

वैश्विक महामारी कोविड-19 के
चलते मार्च 2020 से विद्यालय बंद रहे हैं। ऐसे में कक्षा-कक्ष शिक्षण न हो पाने के
कारण बच्चे लगातार पढ़ाई से वंचित रहे हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में माध्यमिक शिक्षा
बोर्ड राजस्थानए अजमेर द्वारा पाठ्यक्रम को संशोधित किया गया है। प्रश्न-पत्र का
पैटर्न भी बदला गया है। कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव इसमें किए गये हैं; जैसे उच्च
माध्यमिक परीक्षा में पहली बार बहुविकल्पात्मक ;अ, ब, स, द वाले प्रश्न शामिल किए
गए हैं।  इसके साथ ही आतंरिक विकल्प (अथवा
वाले) वाले प्रश्नों में भी पहली बार 2 की बजाय 3 विकल्प मिलेंगे। इस प्रश्न पत्र
को निम्न पाँच भागों में विभक्त किया गया है-

 

1.      खंड अ- इस
खंड में कुल 11 प्रश्न होंगे। पहले प्रश्न में बहुविकल्प वाले 20 प्रश्न किए
जाएँगे। प्रत्येक प्रश्न का अंकभार 1-1 होगा। इसमें भी 4 प्रश्न(i, ii, iii
और iv) हिंदी साहित्य के इतिहास के
आधुनिक काल से किए जाएँगे। उसके बाद 2 प्रश्न(v और vi)
काव्य-गुण से सम्बंधित होंगे। अगले 2 प्रश्न( vii और viii) छंद से और अंतिम 2 प्रश्न(ix और x) अलंकार से संबंधित होंगे।

इसी खंड में प्रश्न नम्बर 2 से
8 तक के प्रश्न अति लघूत्तरात्मक श्रेणी के होंगे। इसमें 3 प्रश्न क्रमशः
काव्य-गुण (2),  छंद (3) और
अलंकार(4) से संबंधित होंगे। उसके बाद के 2 प्रश्न(5 – 6) पाठ्यपुस्तक सरयू से
होंगे। जिनमें एक गद्य खंड से तो दूसरा पद्य खंड से होगा। आगे के 2 प्रश्न(7 – 8)
पूरक पाठ्यपुस्तक मन्दाकिनी से होंगे। इसी खंड में 3 और प्रश्न (9, 10
& 11) भी पूछे जाएँगे जिनमें रिक्त स्थान की पूर्ति करवाई
जाएगी।  इस 3 प्रश्नों में एक प्रश्न
काव्य(गुण) दूसरा छंद और तीसरा अलंकार से संबंधित होगा। इस प्रकार प्रश्न-पत्र के
11 प्रश्नों की प्रकृत्ति के बारे में हम जाने चुके हैं। अब आगे के प्रश्नों के
विषय में जानने का प्रयास करते हैं।

2.      खंड ब- इस खंड में लघूत्तरात्मक
श्रेणी के कुल 8 प्रश्न पूछे जाएँगे जो क्रम संख्या 12 से 19 तक रहेंगे। प्रत्येक
प्रश्न का अंकभार 2-2 रहेगा। इसमें से पहले 2 प्रश्न (12 व 13) पाठ्यपुस्तक सरयू
के गद्य खंड से होंगे और अगले 2 प्रश्न(14 व 15 नम्बर) सरयू के ही पद्य खंड से
पूछे जाएँगे। अगले चार प्रश्न(16 से 19 तक) पूरक पाठ्यपुस्तक मन्दाकिनी से किए
जाएँगे। इनका अंकभार भी 2-2 अंक ही रहेगा। ये समस्त प्रश्न बच्चे की समझ पर आधारित
होंगे।

3.      खंड स-  इस खंड में कुल चार प्रश्न किए जाएँगे। प्रत्येक
प्रश्न का अंकभार 4.4 रहेगा। पहले तीन प्रश्न(20, 21 और 22) हिंदी साहित्य के इतिहास
के आधुनिक काल से होंगे और चौथा प्रश्न (23 नम्बर) अलंकार से संबंधित होगा। इस
प्रश्न में अलंकार की परिभाषा और उदाहरण लिखना होगा। संभव है कि पूछे गए अलंकार के
लक्षण भी पूछ लिए जाएँ। इसलिए पाठ्यक्रम में शामिल अलंकारों (अन्योक्ति,
समासोक्ति, विभावना, प्रतीप और व्यतिरेक) की परिभाषाए लक्षण और एक-एक उदाहरण हर
हाल में तैयार रखें।

 

4.      खंड द- इस
खंड में कुल 2 प्रश्न होंगे।  प्रत्येक प्रश्न
का अंकभार 5-5 रहेगा। इसमें पाठ्यपुस्तक सरयू के गद्य और पद्य खंड से एक-एक गद्यांश
और पद्यांश की व्याख्या पूछी जाएगी। प्रश्न नम्बर 24 में गद्य खंड से एक व्याख्या पूछी
जाएगी। इसमें आतंरिक विकल्प (अथवा) उपलब्ध रहेगा। जिनमें से किसी एक अंश की
व्याख्या करनी है। इसी प्रकार प्रश्न नम्बर 25 में सरयू के पद्य खंड से एक
व्याख्या पूछी जाएगी। इसमें भी आतंरिक विकल्प (अथवा) मौजूद रहेगा।

 

5.      खंड ई-  इस खंड में कुल 3 प्रश्न पूछे जाएँगे। प्रत्येक
प्रश्न 6-6 अंक का होगा।  इनमें से एक
प्रश्न (26 नम्बर वाला) सरयू के गद्य खंड से होगा जिसमें कुल 3 विकल्प होंगे और इन
तीन विकल्पों में से किसी एक का जवाब लिखना है। इसी प्रकार 27 वाँ प्रश्न सरयू के
ही पद्य खंड से होगा। इसमें भी 3 विकल्प (अथवा) होंगे। जिनमें से कोई एक करना है।
प्रश्न-पत्र का अंतिम और 28 वाँ प्रश्न पूरक पाठ्यपुस्तक मन्दाकिनी से होगा।  इसमें भी वही 3 प्रश्न होंगे।  जिनमें से किसी एक का जवाब देना होगा।

    मुझे पूरा विश्वास है कि आप सभी कोरोनाकाल के
संकट को मद्देनजर रखते हुए एक तय रणनीति के तहत अपनी तैयारी रखेंगे। इस पोस्ट को
आप सेव करके रख सकते हैं,  लिख सकते हैं।
मुझे पूरा यकीन है कि ये आपके हर हाल में काम आएगी। अपने शिक्षक साथियों से आग्रह
करता हूँ पहले आप पढ़ें और यदि पसंद आए तो अपनी स्कूल के बच्चों संग साझा करें और
जहाँ कहीं जरूरत महसूसें; आवश्यक मार्गदर्शन जरूर देवें। आपकी सलाहें और
मार्गदर्शन कहीं न कहीं बच्चों के काम आएँगे। सभी बच्चों को शुभकामनाएँ और शिक्षक
साथियों का अभिनन्दन। बहुत जल्द परीक्षा के लिहाज से महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
आपकी सेवा में हाज़िर होंगे। हमें पूरा विश्वास है कि ये आप में एक समझ पैदा करेगी
और परीक्षा परिणाम में गुणात्मक और संख्यात्मक वृद्धि होगी। हमारे प्रयास की सफलता
विद्यार्थियों के अध्ययन, चिंतन और मनन पर आधारित होगी।                                                                                   

                                                                                                  शुभकामनाओं सहित

                                                                                  
अभिनव सरोवा  (हिंदी शिक्षक)

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काव्यांग परिचय

1 काव्य गुण किसे कहते हैं?

उत्तर. काव्य में ओज, प्रवाह,
चमत्कार और प्रभाव उत्पन्न करने वाले तत्त्व काव्य-गुण कहलाते हैं।

2 काव्य-गुण कितने होते हैं?
नाम लिखिए।

उत्तर. काव्य-गुण तीन होते हैं।
प्रसाद गुण, माधुर्य गुण और ओज गुण।

3 माधुर्य गुण की परिभाषा
लिखिए।

उत्तर. जिस काव्य रचना को पढ़ने/
सुनने से पाठक/ श्रोता का चित्त प्रसन्नता से प्रफुल्लित हो जाता है वहाँ माधुर्य
गुण माना जाता है।

अथवा

जिस काव्य रचना से चित्त आह्लाद
से द्रवित हो जाए,  उस काव्य-गुण को
माधुर्य गुण कहते हैं।

4 प्रसाद गुण की परिभाषा लिखिए।

उत्तर. जिस काव्य रचना को सुनते
ही अर्थ समझ में आ जाए,  वहाँ प्रसाद गुण
माना जाता है।

5 प्रसाद गुण किन-किन रसों में
प्रयुक्त होता है?

उत्तर. वैसे तो सभी रसों में
प्रयुक्त होता है किंतु करुण, हास्य, शांत और वात्सल्य रस में मुख्यतः प्रयुक्त
होता है।

6 माधुर्य गुण किन रसों में
प्रयुक्त होता है?

उत्तर. शृंगार, शांत और करुण रस
में प्रयुक्त होता है।

छंद शास्त्र

 

·       प्रवर्तक आचार्य- पिंगल

·       छंद शब्द संस्कृत भाषा की छद् धातु में असुन प्रत्यय जुड़ने से बना
है।

·       छंद शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है- बाँधना, फुसलाना, प्रसन्न करना
या मात्राओं का ध्यान रखना।

·       परिभाषा- साहित्य की ऐसी रचना जिसमें  यति, गति, 
पाद, चरण, दल इत्यादि के नियम लागू होते हैं, उसे छंद कहते हैं।

छंद शब्द का प्रथम उल्लेख
ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद के 10 वें सूक्त( पुरुष सूक्त)के 90 वें मंडल के 9
वें मंत्र में प्राप्त होता है। हमारे छंदशास्त्र में वेद के छह
अंग स्वीकार किए गए हैं। उनमे से छंदशास्त्र को एक अंग माना गया है। छंदशास्त्र को
वेदपुरुष के पैर अंग के रूप में स्वीकार किया गया है।

 

आँख- ज्योतिष

ü कान- निरुक्त

ü नाक- शिक्षा

ü मुख- व्याकरण

ü हाथ- कल्प

ü पैर- छंद।

लौकिक साहित्य के अंतर्गत
आचार्य पिंगल को छंदशास्त्र का प्रवर्तक आचार्य माना जाता है।  इनके द्वारा रचित छंदःसूत्र ग्रन्थ (सातवीं सदी
ई. पू.)को छंदशास्त्र का आदिग्रंथ माना जाता है।

छंदों का वर्गीकरण

(1) मात्रिक छंद- जिस छंद की
पहचान मात्राओं के आधार पर होती है उन्हें मात्रिक छन्द कहते हैं। जैसे दोहा,
सोरठा, चौपाई इत्यादि।

(2) वर्णिक छंद- जिन छंदों की
पहचान वर्णों की संख्या एवं गणों के आधार पर होती है उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं।

v सम छंद- जिस छंद के प्रत्येक चरण में समान लक्षण (मात्राएँ एवं
वर्ण) पाए जाते हैं उन्हें सम छंद कहते हैं; जैसे चौपाई और द्रुतविलंबित आदि।

v अर्द्धसम छंद- जिस छंद के आधे-आधे चरणों में समान लक्षण पाए जाते
हैं उन्हें अर्द्धसम छंद कहते हैं। अर्थात सम और विषम चरणों में समान लक्षण होना; जैसे
दोहा और सोरठा आदि।

मात्रा-  किसी भी स्वर के उच्चारण
में लगने वाले समय को ही मात्रा कहते हैं। छंद में दो प्रकार की मात्राएँ होती
हैं-

(1) लघु मात्रा- खड़ी पाई (I)  संख्या-
1

(2) दीर्घ मात्रा- वक्र रेखा (S)  संख्या-
2

मात्रा निर्धारण के नियम

1)     मात्रा सदैव स्वर वर्णों के साथ ही लगती है।

2)     ह्रस्व स्वरों (अ, इ, उ, ऋ) के साथ लघु तथा दीर्घ स्वरों(आ, ई, ऊ,
ए, ऐ, ओ, औ) के साथ गुरु मात्रा लगती है।

3)     यदि किसी ह्रस्व स्वर के तुरंत बाद कोई आधा अक्षर/ हलंत वर्ण/
विसर्ग/ संयुक्ताक्षर आ रहा हो तो ह्रस्व होने के बावजूद भी उस पर गुरु मात्रा का
प्रयोग किया जाएगा।

4)     यदि किसी स्वर पर अनुस्वार का प्रयोग हो रहा हो तो उस पर भी गुरु
मात्रा का ही प्रयोग किया जाएगा। जबकि लघु स्वर के साथ अनुनासिक (चन्द्रबिन्दु) का
प्रयोग हो रहा हो तो लघु मात्रा ही मानी जाएगी और दीर्घ स्वर पर चन्द्रबिन्दु का
प्रयोग हो रहा हो तो उसे गुरु माना जाएगा।

जैसे    हंस- S I (3 मात्राएँ)

                   हँस- I I (2 मात्राएँ)

गण- तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। छन्दशास्त्र में कुल 8 गण
माने जाते हैं। गण निर्धारण के लिए निम्न सूत्र काम में लिया जाता है| :-  यमाताराजभानसलगा

क्रम

संख्या  गण का नाम.                         सूत्र.                       मात्रा.                   अन्य नाम.    उदाहरण

1       यगण                               यमाता                       (ISS)              आदिलघु.      यशोदा/ सुनीता

2       मगण                               मातारा                       (SSS)             सर्व
गुरु       जामाता/आमादा

3       तगण                               ताराज                       (SSI)               अंत लघु       दामाद/
सामान/ नाराज

4       रगण                                राजभा                        (SIS)              मध्य
लघु      आरती/ भारती/ पार्वती

5      जगण                                जभान                        (ISI)               मध्य
गुरु      गुलाब/ जवान/ नवीन

6      भगण                                भानस                         (SII)              आदि
गुरु       भारत/ मानव/ राहुल

7      नगण                                 नसल                          (III)         सर्व
लघु       सुमन/ नमक/ नक़ल/ फसल

8     सगण                                 सलगा                         (IIS)             अंत गुरु        सरिता/ ममता/ सलमा

 

प्रश्न- हरिगीतिका छंद की
परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए अथवा हरिगीतिका छंद को उदाहरण सहित समझाइए

उत्तर- हरिगीतिका सममात्रिक छंद
होता है। इसके प्रत्येक चरण में  28-28
मात्राएँ होती हैं तथा यति हमेशा 16-12 मात्राओं पर होती है। तुक प्रत्येक चरण के
अंत में मिलती है। उदाहरण-

·       कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए।

·       हिम के कणों से मानो पूर्ण, हो गए पंकज नए।

·       श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मनहरण भव भय दारुणम्।

·       नवकंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम्।।

प्रश्न- छप्पय छंद की परिभाषा
उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर- यह विषम मात्रिक छंद
होता है। रोला और उल्लाला से बने इस मिश्रित छंद में 6 पंक्तियाँ होती हैं। इसकी
प्रथम 4 पंक्तियों में 24-24 तथा अंतिम 2 में 28-28 मात्राएँ होती हैं। प्रथम 4
पंक्तियों में 11-13 पर तथा अंतिम 2 में 15-13 पर यति होती है। सूत्र- छप-छप
रोऊँ(रोला और उल्लाला)

उदाहरण

नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है।

सूर्य चंद्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है।।

नदियाँ प्रेम प्रवाह फूल तारामंडल हैं।

बंदीजन खगवृंद शेषफन सिंहासन है।।

करते अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इस देश की।

हे मातृभूमि! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की।।

 

प्रश्न- कुंडलिया छंद की उदाहरण
सहित परिभाषा लिखिए।

उत्तर- यह विषम मात्रिक छंद
होता है। दोहा और रोला छंद से बने इस मिश्रित छंद में 6 पंक्तियाँ होती हैं। प्रथम
2 पंक्तियों में 13-11 पर तथा अंतिम 4 पंक्तियों में 11-13 पर यति होती है। जिस
शब्द से इसका आरंभ होता है वही इसका अंतिम शब्द भी होता है। दूसरी पंक्ति का दूसरा
चरण तीसरी पंक्ति का प्रथम चरण होता है। सूत्र- कुंडली मारनो दोरो(दोहा और रोला)
काम

उदाहरण-

Ø बिना विचारे जो करे, सो पाछै पछताए।

Ø काम बिगारै आपनो, जग में होत हँसाय।।

Ø जग में होत हँसाय, चित्त में चैन ना पावे।

Ø खान-पान सम्मान, राग रंग मनहिं न भावे।

Ø कह गिरधर कविराय, दु:ख कछु टारै न टरै।

Ø खटकत है जिय माहिं, किया जो बिना विचारे।।

Ø लाठी में गुन बहुत हैं सदा राखिए संग

Ø नदियाँ नाला जहाँ पड़ै तहाँ बचावत अंग।

Ø तहाँ बचावत अंग झपट कुत्ते को मारै।

Ø दुश्मन दामनगीर ताही का मस्तक फारै।

Ø कह गिरधर कविराय सुनो हे धुर के साठी।

Ø सब हथियारन छोड़ हाथ में राखिए लाठी।।

 

प्रश्न. सवैया छंद की परिभाषा
उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर- यह वर्णिक छंद होता है इसके
प्रत्येक चरण में 22 से 26 तक वर्ण होते हैं। वर्णों की संख्या के आधार पर सवैया
के 11 भेद होते हैं।

उदाहरण-

v या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारो।

v आठहुँ सिद्धि नवोंनिधि को सुख नंद की धेनु चराय बिसारौं।

v रसखान कबौं इन आँखिन सों ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।

v कोटिक हूँ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारो।।

 

प्रश्न- अन्योक्ति अलंकार की
परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर. जब कवि अप्रस्तुत(उपमान)
का वर्णन करके प्रस्तुत(उपमेय) का बोध कराता है तो वहाँ अन्योक्ति अलंकार माना
जाता है। इसे अप्रस्तुत प्रशंसा भी कहते हैं। इसे अन्योक्ति इसलिए कहा जाता है कि
इसमें जिसे कुछ कहना होता है सीधे उसे न कहकर दूसरे के माध्यम या सहारे से कहा
जाता है।

उदाहरण.

*  नहीं पराग नहीं मधुर मधु, नहीं विकास इहिं काल।

*

  अलि कली ही सौ बंध्यो, आगे कौन हवाल।

*  माली आवत देखकर, कलियन करी पुकारि।

*  फूले-फूले चुन लिए, काल्हि हमारी बारि।।

 

प्रश्न. विभावना अलंकार की
परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।

उत्तर. प्रत्येक कार्य के पीछे
कोई न कोई कारण(साधन) अवश्य होता है परंतु जब कहीं पर कारण के बिना ही किसी कार्य
की उत्पत्ति हो जाती है तो वहाँ विभावना अलंकार माना जाता है। इस विभावना को प्रकट
करने के लिए बिन, बिना, बिनु, रहित जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

जब किसी पद में कारण(साधन) के
अभाव में ही किसी कार्य का होना वर्णित किया जाता है तो वहाँ विभावना अलंकार माना
जाता है।

उदाहरण-

(1)   निन्दक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय।

(2)   बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।

नोट.  साबुन एवं पानी जैसे साधनों के बिना भी
कार्य(निर्मल) सिद्ध हो रहा है

 

प्रश्न. व्यतिरेक तथा प्रतीप
अलंकार में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर. व्यतिरेक अलंकार में
गुणों की अधिकता देखकर उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाता है इसमें उपमेय उपमान
के किसी गुण में तुलना का भाव नहीं रहता। इसके विपरीत प्रतीप अलंकार में दोनों में
किसी एक गुण के बारे में तुलना होती है तथा उपमेय को उपमान से श्रेष्ठ बताया जाता
है। उदाहरण.

§  व्यतिरेक-  संत हृदय नवनीत
समाना कहा कविन्ह परि कहि नहिं जाना।

§  निज प्रताप द्रवै नवनीता पर दुरूख द्रवहि सुसंत पुनीता।

§  प्रतीप-  राधे तेरो बदन
विराजत नीको।

§  जब तू इत उत विलोकति निसि निसि पति लागत फीको



पाठ्य पुस्तक सरयू से लघूरात्त्मक प्रश्न और उनके जवाब

पाठ. गुल्ली.डंडा

लेखक. प्रेमचंद (मूलनाम- धनपतराय)

20 गया का मित्र या कथानायक बड़ा
होकर किस पद पर पहुँचता है?

उत्तर. कथानायक बड़ा होकर जिला
इंजीनियर के पद पर नियुक्त होता है।

21 गया बड़ा होकर क्या बनता है?

उत्तर. गया बड़ा होकर डिप्टी
साहब का साइस बनता है।

22 गया के व्यक्तित्व की तीन
विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर. (अ) गया गरीब पारिवारिक
लंबाए पतला और काला-सा लड़का था।

(ब) गया गुल्ली-डंडे का कुशल
खिलाड़ी था।

(स) गया समझदार था। वह कथानायक
का आदर करता था। जबकि वो ये भी जानता था कि वह खेल में बेईमानी कर रहा है।

23 गुल्ली-डंडे को खेलों का
राजा क्यों कहा जाता है?

उत्तर. गुल्ली-डंडा नामक खेल के
सामान अन्य खेलों की भाँति महँगे नहीं होते हैं। किसी भी पेड़ की टहनी काटकर गुल्ली
और डंडा बनाया जा सकता है और इसके लिए किसी प्रकार के कोर्ट, लॉन, नेट या थापी की
जरूरत नहीं पड़ती। टीम के लिए ज्यादा खिलाड़ियों की जरूरत भी नहीं होती। दो लोग भी
इसे खेल सकते हैं। इन्हीं सब खूबियों के कारण गुल्ली-डंडा खेलों का राजा माना जाता
है।

24 कथानायक और गया के बीच
स्मृतियाँ सजीव होने में कौनसी बात बाधक बनती है और क्यों?

उत्तर. कथानायक का बड़े पद पर
नियुक्त होना और गया का एक साइस होना अर्थात पद और प्रतिष्ठा ही इन दोनों के बीच
की स्मृतियों के सजीव होने में बाधक बनती है। गया को जब पता चलता है कि उसका बचपन
का मित्र अब जिला इंजीनियर बन गया है तो वह समझ जाता है कि अब उनमें बचपन की सी
समानता नहीं रही। इसी कारण वह कथानायक का आदर करता है। बस यही बात उनकी स्मृतियों
को सजीव होने में बाधक बनती है।

25 “कुछ ऐसी मिठास थी
उसमें कि आज तक उससे मन मीठा होता रहता है” इस कथन में लेखक किस मिठास की बात
कर रहा है?

उत्तर. बचपन में लेखक गया के
साथ गुल्ली.डंडा खेल रहा था। लेखक बिना दाँव दिए ही घर जाना चाहता था जबकि गया उसे
बिना दाँव के घर जाने नहीं देना चाहता था। इसी बात पर दोनों में झगड़ा होता है और
गया ने कथानायक की पीठ पर डंडा मारा था। लेखक ने डंडे की उसी मार को मीठी याद
बताया है। लेखक कहता है कि उसमें जो मिठास थी वो उच्चपदए प्रतिष्ठा और धन में भी
नहीं है।

26 “वह बड़ा हो गया और मैं
छोटा” लेखक को ऐसा अनुभव कब और क्यों हुआ?

उत्तर. लेखक ने देखा कि भीमताल
में खेलते समय गया कुछ अनमना था। वह पूरी कुशलता के साथ नहीं खेल रहा था। वह
कथानायक की बेईमानियों का विरोध भी नहीं कर रहा था। वास्तव में वह खेल नहीं रहा था
बल्कि खेल का बहाना करके लेखक को खिला रहा था। लेखक का मानना था कि इसका कारण
दोनों के पदए प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति में अंतर होना था। गया लेखक को अपनी जोड़
का खिलाड़ी नहीं मान रहा था। जबकि दूसरे दिन उसने बहुत ही शानदार खेल दिखाया था। बस
यही कारण था कि लेखक के मुँह से अनायास ही निकल गया कि वह बड़ा हो गया और मैं छोटा।

27 ‘गुल्ली-डंडा’ कहानी  के आधार पर प्रेमचंद की भाषा.शैली पर संक्षिप्त
टिप्पणी लिखिए।

उत्तर. ‘गुल्ली-डंडा’ कहानी के
लिए प्रेमचंद ने सरल और विषयानुकूल भाषा का चयन किया है। उनकी भाषा में संस्कृत के
तत्सम शब्द हैं तो उर्दू के शब्द भी हैं और बोलचाल भी भाषा के शब्द भी शामिल हैं।
मुहावरों का भी सुंदर और प्रभावी प्रयोग किया गया है। इस कारण भाषा में एक प्रवाह
बन पड़ा है। शैली वर्णनात्मक तो है ही साथ ही प्रसंग के अनुसार विवेचनात्मकए
विचारात्मक और व्यंग्यात्मक भी है।

28 लेखक के अनुसार बच्च्चों में
ऐसी कौनसी शक्ति होती है जो बड़ों में नहीं होती?

उत्तर. लेखक के अनुसार बच्चों
में मिथ्या;झूठद्ध को सत्य मानने की शक्ति होती है जो बड़ों में नहीं होती है। बड़े
तो सत्य को भी मिथ्या बना देते हैं जबकि बच्चे मिथ्या को सत्य बना लेते हैं। इसी
कारण अपने पिता का तबादला होने पर वह अपने साथियों से कहता है कि अब वह शहर जा रहा
है। वहाँ आसमान छूते ऊँचे मकान हैं। स्कूल में मास्टर बच्चों को मारे तो उसे जेल
जाना पड़ता है। हालांकि वह झूठ बोल रहा था लेकिन उसके दोस्त उसकी बातों को सत्य मान
रहे थे।

पाठ. मिठाईवाला

लेखक. भगवती प्रसाद वाजपेयी

29 मिठाईवाला कहानी में किन-किन
रूपों में आया था?

उत्तर. मिठाईवाला निम्न तीन
रूपों में आया था- खिलौनेवाला मुरलीवाले और मिठाईवाले के रूप में।

30 मिठाई वाला कहानी की मूल
संवेदना क्या है?

उत्तर. ये एक युवा की कहानी है
जिसके दो बच्चों का देहांत समय से पहले हो जाता है। इससे उसके मन में भारी पीड़ा
उत्पन्न होती है। इसी पीड़ा को कम करने के लिए वह बच्चों के बीच अपना समय व्यतीत
करता है। वह खिलौनोंए मुरली और मिठाई से उनको खुश करने का प्रयास करता है। इससे
उसे भी खुशी और संतोष की प्राप्ति होती है। कहानी की मूल संवेदना भी यही है कि हम
अपने व्यवहार और वाणी से किसी को खुशी देकर खुद भी खुश हो सकते हैं। प्रेम और खुशी
बाँटकर ही व्यक्ति खुश हो सकता है और अपने दुःख या अभाव को भूला सकता है।

31 ‘पेट जो न कराए सो थोड़ा’ इस
कथन से कौनसा मनोभाव प्रकट होता है?

उत्तर. रोहिणी अपने घर से मुरलीवाले
कि बात सुन रही थी। वह बड़े प्यार से और सस्ते भाव से बच्चों को चीजें बेच रहा था।
उसे वह भला आदमी लगा। फिर वह सोचती है कि समय का फेर है। बेचारे को अपना पेट भरने
के लिए ये सब करना पड़ रहा है। पेट जो न करवाएए सो थोड़ा। इस कथन से रोहिणी का
मुरलीवाले के प्रति दया और सहानुभूति के मनोभाव प्रकट होते हैं।

32 मिठाईवाले ने अपनी मिठाई की
क्या-क्या विशेषताएँ बताईं?

उत्तर.  मिठाईवाले ने बताया कि उसकी मिठाइयाँ नई तरह की
हैं। वे रंग-बिरंगी कुछ खट्टी, कुछ मीठी तथा जायकेदार हैं। वे मुँह में जल्दी नहीं
घूलती। उनमें से कुछ चपटी कुछ गोल और कुछ पहलदार हैं बच्चे इनको बड़े चाव से चूसते
हैं और इनसे खाँसी भी दूर होती है।

33 मुरलीवाला एकदम अप्रतिभ
क्यों हो गया?

उत्तर. जब विजय बाबू मुरलीवाले
से मुरली का मोलभाव करते हैं तो वह उसे कहते हैं कि तुम लोगों की झूठ बोलने की आदत
होती है। मुरली तो सभी को दो-दो पैसे में ही दे रहे हैं परंतु एहसान का बोझ मेरे
ऊपर लाद रहे हैं। विजय बाबू की इस प्रकार की कठोर और अविश्वास से भरी बात सुनकर
मुरलीवाला उदास और अप्रतिभ हो जाता है क्योंकि वह बच्चों की खुशी पाने के लिए
चीजें सस्ती बेच रहा था। धन कमाना उसका उद्देश्य नहीं था।

34 मिठाईवाला कहानी के आधार पर
समझाइए कि मनुष्य अपने जीवन के अभाव की पूर्ति स्वयं को विश्व से जोड़कर कर सकता है
तथा सुख संतोषपूर्ण जीवन जी सकता है।

उत्तर.  मिठाईवाला पंडित भगवतीप्रसाद वाजपेयी की एक
उद्देश्यपूर्ण कहानी है। मानव जीवन में अभाव तथा कष्टों का आना स्वाभाविक है। कुछ
लोग अपना अभावग्रस्त जीवन अन्य अभावों के बारे में सोचते.सोचते और दुःख सहते हुए
बिताते हैं। समझदार लोग दूसरों के अभावए 
पीड़ाए रोग आदि से मुक्त करके अपने अभाव को भूल जाते हैं। वे खुद को संसार
से जोड़ देते हैं तथा दूसरों के सुख.दुःख में सहभागी बनते हैं। इस प्रकार उनके अपने
अभाव महत्त्वहीन हो जाते हैं। उल्टे दूसरों को सुख और संतोष पहुंचाकर वे स्वयं भी
सुखी और संतुष्ट होते हैं। मिठाईवाला अपने बच्चों को सभी बच्चों में देखता है उनको
प्रसन्नता देकर उसे भी सुख मिलता है वह उनको खुशी से उछलता-कूदता देखकर, उनकी
तोतली बातें सुनकर सुखी और संतुष्ट होता है और खुद के बच्चों के बिछोह की पीड़ा को
भूल जाता है। कहानीकार को यह बताने में सफलता मिली है कि मनुष्य अपने जीवन के अभाव
और संकटों से मुक्ति पा सकता है यदि वह स्वयं को समाज से जोड़ दें और दूसरों के सुख
में ही अपना सुख खोजे।

पाठ.शिरीष के फूल

लेखक. हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न. ‘धरित्री निर्धूम
अग्निकुंड बनी हुई थी’ पंक्ति से क्या आशय हैघ्

उत्तर. आशय यह है कि धरती किसी
अग्निकुंड की तरह तप रही थी बस उसमें से धुँआ नहीं निकल रहा था।

प्रश्न. शिरीष का फूल संस्कृत
साहित्य में कैसा माना गया है?

उत्तर.  शिरीष का फूल संस्कृत साहित्य में अत्यंत कोमल
माना गया है।

प्रश्न.  लेखक ने शिरीष के फूल को कालजयी अवधूत की तरह
क्यों बताया है?

उत्तर. अवधूत अनासक्त होता है
वह संसार के सुख.दुःख में समरस होकर जीता है। इसी कारण वह काल को जीतने में समर्थ
होता है शिरीष का फूल भी ऐसा ही है। जब चारों ओर भीषण गर्मी पड़ती है लू के थपेड़े
लगते हैं। धरती निर्धूम अग्निकुंड बन जाती है तब भी शिरीष हरा-भरा और फूलों से लदा
रहता है। जब कोई फूल खिलने का साहस नहीं करता उस समय भी फूलों से लदा रहता
है।                                     

प्रश्न. काल के कोड़ों की मार से
कौन बच सकता है?

उत्तर.  काल देवता अर्थात मृत्यु निरंतर कोड़े चला रहा
है। कुछ लोग समझते हैं कि वे जहां है वही बने रहे तो काल देवता की आंख से बच
जाएंगे। ऐसे लोग भोले और अज्ञानी होते हैं। जो बचना चाहते हैं उनको निरंतर गतिशील
रहना चाहिए एक ही स्थान पर जमे नहीं कि गए नहीं। इससे तात्पर्य यह है कि निरंतर
कर्मरत और प्रगतिशील रहना ही काल की मार से बचने के लिए जरूरी है।

प्रश्न. शिरीष के फूल द्विवेदी
जी का एक संदेशपरक निबंध है। इसमें लेखक ने जो संदेश दिया है उसे अपने शब्दों में
लिखिए।

उत्तर. शिरीष के फूल
हजारीप्रसाद द्विवेदी की एक उद्देश्यपरक निबंधात्मक रचना है। इसमें लेखक ने बताया
है कि विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी शांत और एक सुखद जीवन जिया जा सकता है।
लेखक जब शिरीष को देखता है तो विस्मयपूर्ण आनंद से भर जाता है। भीषण गर्मी में भी
शिरीष हरे-हरे पत्तों और फूलों से लद जाता है। लेखक को लगता है कि वह कठिन
परिस्थितियों से अप्रभावित अवधूत है। मनुष्य के भी जीवन में कठिनाइयां आती है
किंतु उनसे अप्रभावित रहकर अपने कर्तव्य पथ पर दृढ़ता से चलना चाहिए।

लेखक ये संदेश देता है कि
मनुष्य जीवन के चरम सत्य को समझे। संसार परिवर्तनशील है। वृद्धावस्था तथा मृत्यु
अनिवारणीय है। जो किसी पद पर अधिकार प्राप्त जन है उनको पदए अधिकार और धन लिप्सा
से मुक्त रहना चाहिए। शिरीष समदर्शी तथा अनासक्त है। गांधीजी अनासक्त कर्मयोगी थे।
कालिदास योगी के समान विरक्त किंतु विदग्ध प्रेमी थे। कबीर मस्त मौला थे। मनुष्य
को इसी प्रकार का अनासक्त जीवन जीना चाहिए।

प्रश्न. शिरीष के पुराने फलों
को देखकर लेखक को किनकी और क्यों याद आती है?

उत्तर.  शिरीष के फूल बहुत मजबूत होते हैं। वे नए फूल आ
जाने पर भी अपना स्थान नहीं छोड़ते जब तक कि नए पत्ते और फल मिलकर उनको वहाँ से हटा
न दें। पुराने लड़खड़ाते फलों को देखकर लेखक को भारत के उन बूढ़े नेताओं की याद आती
है जो युवा पीढ़ी को काम करने तथा आगे बढ़ने का अवसर नहीं देते तथा अपनी मृत्यु तक
अपने पद पर बने रहना चाहते हैं। इन नेताओं और शिरीष के पुराने फलों का स्वभाव एक
जैसा है इसलिए लेखक को इनकी याद आ जाती है।

प्रश्न. हाय वह अवधूत आज कहाँ
है? लेखक ने अवधूत किसे कहा है? आज उसकी आवश्यकता लेखक को क्यों महसूस हो रही है?

उत्तर. हाय वह अवधूत आज कहाँ
है?  द्विवेदीजी महात्मा गांधी को अवधूत कह
रहे हैं तथा उनको स्मरण कर रहे हैं। गांधीजी शिरीष की तरह अनासक्त थे। उस समय
विश्व में सर्वत्र हिंसा तथा अन्यायए अत्याचार तथा शोषण फैला हुआ था। उस सबसे
अविचलित महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर दृढ़ता से चल रहे थे। आज भी भारत
और विश्व के अन्य देशों में उपद्रव, मारकाट, 
खूनखराबा व लूटपाट का वातावरण है। आतंकवाद विश्व के सभी देशो में फैल चुका
है। धर्म के नाम पर दूसरे धर्म को मानने वाले लोगों की हत्या हो रही हैं। प्रेम और
सद्भाव नष्ट किया जा रहा है। विश्व को इस वातावरण से मुक्ति दिलाने में महात्मा
गांधी ही समर्थ हो सकते हैं। अतः लेखक को गांधीजी की याद आ रही है। उसका मन उनकी
अनुपस्थिति को लेकर व्याकुल है उसमें एक पीर, एक टीस उठ रही है। हाय अहिंसा का वह
अग्रदूत आज नहीं रहा। काश आज गांधी होते तो लोगों से कहते। तुम मनुष्य होए उसी एक
परमपिता की संतान हो, क्यों एक-दूसरे की जान ले रहे हो? जिसे तुम धर्म समझ रहे हो
वह धर्म नहीं है। धर्म तो मनुष्य से प्रेम करना तथा उसकी पूजा करना है। गांधी आज
भी प्रासंगिक है वह लेखक को याद आ रहे हैं।

पाठ. पाजेब

लेखक- जैनेंद्र (मूलनाम-
आनंदीलाल)

प्रश्न. जैनेंद्र किस प्रकार के
कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं?

उत्तर.जैनेंद्र मनोवैज्ञानिक
कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न. आशुतोष निरपराध होते
हुए भी पाजेब चुराने की बात क्यों स्वीकार कर लेता है?

उत्तर. आशुतोष ने पायल नहीं
चुराई थी किंतु वह उसकी चोरी करना स्वीकार कर लेता है क्योंकि वह अबोध बच्चा था।
उसकी बुद्धि अविकसित थी वह तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात नहीं रख पाया। पिता के
प्रभावए स्नेह, भय तथा प्रलोभन आदि के कारण वह सही बात नहीं कर पाया। जो कुछ उसके
पिता कहलवाना चाहते थे वह वही कह देता था। वह दृढ़तापूर्वक अपनी बात नहीं रख पाया
कि उसने चोरी नहीं की थी।

प्रश्न. मैंने स्थिर किया कि
अपराध के प्रति करुणा ही होनी चाहिए रोष का अधिकार नहीं है लेखक के इस निश्चय का
क्या कारण थाघ् क्या आप इससे सहमत हैं अथवा नहीं?

उत्तर. लेखक को संदेह हुआ कि
आशुतोष ने पाजेब चुराई है अपराध स्वीकृति के लिए उस पर बल प्रयोग को उसने उचित
नहीं माना। उसका मत है कि क्रोध करने से बात बिगड़ जाती है। अपराधी में विशेष रूप
से यदि वह बच्चा हो तो जिद्द तथा विरोध की भावना पनप जाती है। इसके विपरीत
करुणापूर्ण व्यवहार करने से वह अपने अपराध को आसानी से स्वीकार कर लेता है। हम
इससे सहमत हैं यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है।

प्रश्न. पाजेब कहानी बाल
मनोविज्ञान पर आधारित कहानी है। कथन की समीक्षा कीजिए

उत्तर. बालकों के मन की विशेषता
बताने वाले ज्ञान को बाल मनोविज्ञान कहते हैं। बच्चे मन से भोले और सरल होते हैं।
उनकी बुद्धि अविकसित एवं कोमल होती है। वे टेढ़े.मेढ़े तर्कों को नहीं समझ पाते।
उनकी बुद्धि तर्कपूर्ण भी नहीं होती। घुमा.फिराकर पूछे गए टेढ़े-मेढ़े प्रश्नों से
वे भ्रमित हो जाते हैं तथा सत्य क्या है यह ठीक तरह से बता नहीं पाते। इस तरह से
निरपराध होने पर भी अपराधी बना दिए जाते हैंए जो उनके लिए एक भयानक त्रासदी होती
है।

पाजेब कहानी की कथावस्तु तथा
पात्रों का चरित्र बाल-मनोविज्ञान पर आधारित है। आरंभ मुन्नी तथा उसके भाई आशुतोष
के बालहठ से होता है। बाद में कथानक का विकास पाजेब के खोने तथा उसके बारे में
आशुतोष के साथ पूछताछ करने से हुआ है। कोमल मन का बालक अपने पिता के तर्कपूर्ण तथा
घुमा-फिराकर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाता है और चोरी करना स्वीकार कर
लेता है।

कहानी के पात्रों का
चरित्र.चित्रण भी मनोविज्ञान के अनुरूप ही हुआ है आशुतोष का चरित्र बाल-मनोविज्ञान
का सजीव चित्र है इसे प्रभावशाली बनाने में बाल-मनोविज्ञान का गहरा योगदान है।

प्रश्न. लेखक के अनुसार अपराध
प्रवृत्ति को किस प्रकार जीता जा सकता है?

उत्तर. लेखक का मानना है कि
अपराध की प्रवृत्ति को दंड से नहीं बदला जा सकता। अपराध के प्रति करुणा होनी चाहिए
रोष नहीं। अपराध की प्रवृत्ति अपराधी के साथ प्रेम का व्यवहार करने से ही दूर हो
सकती है उसको आतंक से दबाना ठीक बात नहीं है। बालक का स्वभाव कोमल होता है अतः
उसके साथ स्नेह का व्यवहार होना चाहिए।

 

पाठ. अलोपी

लेखिका. महादेवी वर्मा

प्रश्न. अलोपी पाठ किस
गद्य-विधा की रचना है?

उत्तर. अलोपी संस्मरण गद्य.विधा
की रचना है।

प्रश्न. अलोपी के चक्षु के अभाव
की पूर्ति किसने की?

उत्तर. अलोपी के चक्षु के अभाव
की पूर्ति उसकी रसना अर्थात जीभ ने की।

प्रश्न. ‘आज के पुरुष का
पुरुषार्थ विलाप है’ लेखिका ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर. लेखिका ने महसूस किया कि
आज का पुरुष कर्तव्यनिष्ठ तथा परिश्रमी नहीं है वह श्रमपूर्वक कठोर जीवन न बिताकर
अपनी निराशा और अभावों की शिकायतें करता रहता है। वह हर समय अपने दुर्भाग्य का
रोना रोता रहता है। आधुनिक पुरुष की ऐसी अवस्था देखकर महादेवी ने रोने-पीटने को ही
उसका पुरुषार्थ बताया है।

प्रश्न. ‘गिरा अनयन नयन बिनु
बानी’ लेखिका इन शब्दों को किस संदर्भ में ठीक मानती है?

उत्तर. महादेवी ने नेत्रहीन
अलोपी को छात्रावास में ताजा सब्जी लाने का काम सौंपा था। अलोपी नेत्रहीन था किंतु
उसको वाणी का वैभव प्राप्त था। वह बालक रघु के मार्गदर्शन में नित्य छात्रावास आता
था। ये दोनों छात्रावास में विनोद के केंद्र बन गए थे। धीरे-धीरे अलोपी उन सबका
प्रिय बन गया था। इसलिए छात्रावास के माहौल को देखकर ऐसा कहा जा सकता है कि गिरा
अनयन नयन बिनु बानी। गिरा बताने का काम करती है परन्तु उसके आँख नहीं होती। इसलिए
उसने कुछ देखा नहीं और नयन बिनु बानी अर्थात आँखे देख तो लेती हैं लेकिन वह बता
नहीं पाती क्योंकि उनके वाणी नहीं है।

प्रश्न. यह सत्य होने पर भी
कल्पना जैसा जान पड़ता है इस कथन में कौनसे सत्य का उल्लेख है जो कल्पना जैसा जान
पड़ता है?

उत्तर. अलोपी साहसी, पराक्रमी व
कठोर परिश्रमी था। वह सब्जियों से भरी भारी डलिया सिर पर उठाकर संतुलन बनाकर चल
लेता था। जब उसकी पत्नी उसको धोखा देकर चली गई तो अलोपी को गहरा आघात लगा। उसका सब
साहस, संपूर्ण विश्वास तथा समस्त आत्मविश्वास को संसार का एक विश्वासघात निगल गया
था यह बात सत्य है किंतु कल्पना के समान लगती है।

प्रश्न. ऐसे आश्चर्य से मेरा
कभी साक्षात नहीं हुआ था महादेवी को अलोपी के बारे में क्या अपूर्वए आश्चर्यजनक
लगा था? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर. अलोपी नेत्रहीन युवक था
उसने महादेवी को विश्वास दिलाया कि वह रघु की सहायता से उनके यहाँ ताजा तरकारियाँ
पहुँचाने का काम सफलता के साथ कर सकेगा। उसकी दृढ़ताए आत्मविश्वास तथा श्रम के
प्रति लगन देखकर महादेवी को विस्मय होता है। आजकल अनेक किशोर सुख की चीजें पाने के
लिए अपनी बूढ़ी माताओं से झगड़ते हैं जो बुढ़ापे में काम करती है। ऐसे-ऐसे युवक हैं
जो अपने निर्धन पिता का सब कुछ छीन लें तथा भीख माँगने में भी संकोच नहीं करते।
छोटे बच्चों का लालन-पालन छोड़कर दिनभर मजदूरी करके धन कमाने वाली अपनी पत्नी से
पैसे छीनकर शाम को शराब पीने या सिनेमा देखने वाले पुरुषों की भी कमी नहीं है आज
के पुरुष अपनी निराशा और असमर्थता का रोना रोते हैं। उनका पुरुषार्थ तथा पराक्रम
उनके रोने में ही प्रकट होता है ऐसे युवकों और पुरुषों के संसार में एक अलोपी भी
है जो अंधा होते हुए भी काम करता है और अपनी माँ को आराम देना चाहता है। अलोपी का
यह दृढ़ निश्चय महादेवी को आश्चर्य में डालने वाला था।

प्रश्न. अलोपी संस्मरण के नायक
अलोपी का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर.अलोपी संस्मरण के नायक
अलोपी के चरित्र में प्रमुख गुण निम्न थे-

नेत्रहीन किंतु पराक्रमी- अलोपी
नेत्रहीन जरुर था किंतु पुरुषार्थहीन नहीं। वह साहस एवं आत्मविश्वास के साथ
सब्जियों से भरी डलिया उठाकर महादेवी वर्मा के यहाँ प्रतिदिन पहुँचाता है।

आत्मविश्वासी- अलोपी में गजब का
आत्मविश्वास था वह विश्वास दिलाता है कि वह रघु की सहायता और सहयोग से सब्जी लाने
का कठिन काम भी सफलतापूर्वक कर लेगा।

सभी के प्रति आदर एवं सद्भाव
रखने वाला- अलोपी बड़ों का आदर तथा महादेवी का सम्मान करता है महादेवी द्वारा
डाँटने पर भी वह कहता है जब आपकी आज्ञा नहीं है तब वह घर के बाहर पैर नहीं रखेगा।
उसके मन में भक्तिन से सद्भाव, उसे अपनी वृद्धमाता के प्रति चिंतित हैए वह अपनी
धोखेबाज पत्नी की शिकायत भी पुलिस से नहीं करता है।

परिश्रमी-  अलोपी कठोर परिश्रम करता है। काम करने से बचने
के लिए वह अपनी नेत्रहीनता का बहाना नहीं बनाता।

विश्वासघात से आहत- पत्नी का
विश्वासघात अलोपी को तोड़ देता है और वह एक दिन इस संसार को छोड़कर चला जाता है।


पाठ- संस्कारों और
शास्त्रों की लड़ाई (व्यंग्यात्मक निबंध)

लेखक- हरिशंकर परसाई

प्रश्न- लेखक मदर इन लॉ को
क्रांति की दुश्मन क्यों मानता है?

उत्तर- मदर इन लॉ क्रांतिकारी
दामाद के विचारों को बदल देती है। मदर इन लॉ क्रांति की दुश्मन होती है। वह
क्रांतिकारी के विचारों को बदल देती है। परिवार के संस्कारों के अनुसार आचरण करने
को विवश कर देती है। यदि वह न माने तो मदर इन लॉ बच्चों का ध्यान दिलाकर
क्रांतिकारी को परिवार की मान्यता और संस्कारों को मानने के लिए विवश कर देती है
इस प्रकार मदर इन लॉ क्रांतिकारी की क्रांति की भावना की दुश्मन बन जाती है।

प्रश्न. ष्बड़ा विकट संघर्ष
हैष्लेखक के मित्र में उसको किस विकट संघर्ष के बारे में बताया?

उत्तर. लेखक ने देखा कि परंपरा
तथा आडंबर के धुर विरोधी मित्र ने अपने सिर का मुंडन करवा लिया है तो उसने इसका
कारण जानना चाहा। मित्र ने बताया कि उसके पिता की मृत्यु हो गई है। वह उनका
पिंडदान करने प्रयाग जा रहा है। उसके सिद्धांतों का क्या हुआए यह जानने पर मित्र
ने बताया कि पारिवारिक संस्कारों तथा सिद्धांतों में जबरदस्त संघर्ष है। संस्कारों
के कारण उसे अपने सिद्धांत त्यागने पड़े।

प्रश्न. वह पाँव दरवाजे की तरफ
बढ़ाती है तो हाथ साँकल की तरफ चले जाते हैं। इस कथन में लेखक ने किस प्रथा पर
व्यंग्य किया है?

उत्तर.  इस कथन में लेखक ने पर्दा प्रथा पर व्यंग्य
किया है। स्त्रियों को घर में ही रहना होता था। वह पर्दे में रहती थी। वे घर से
बाहर नहीं जा सकती थीं। किसी को यहाँ तक कि अपने पति को बुलाने के लिए भी पुकारने
के स्थान पर उनको कुंडी बजानी होती थी पाँव दरवाजे की तरफ बढ़ाने और हाथ साँकल की
ओर चले जाने में इसी प्रथा की ओर संकेत किया गया है। यहाँ पाँव दरवाजे की तरफ
बढ़ाना रूढ़ियों से मुक्ति पाने के लिए प्रयोग किया गया है तथा हाथ साँकल पर चले
जाना पुरानी रूढ़ियों के लिए प्रयोग किया गया है।

प्रश्न. नारी मुक्ति में महंगाई
का क्या योगदान है? लेखक के मत से अपनी सहमति अथवा असहमति का उल्लेख तर्क सहित
कीजिए।

उत्तर. पहले स्त्रियों को घर के
अंदर रहना होता था तथा पर्दा भी करना होता था। वह बाहर नहीं जा सकती थी। घर में
पुरुषों से बातें नहीं कर सकती थी। समय बदला महँगाई बढ़ी और अकेले पति की कमाई से
घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया तब पत्नी भी नौकरी करने लगी। इस प्रकार उसे बंधनों
से मुक्ति मिली और वह खुले वातावरण में साँस लेने लगी। नारी मुक्ति के लिए खूब
आंदोलन हुए हैं उसको इन आंदोलन के कारण मुक्ति नहीं मिली। उसे इस कारण भी मुक्ति
नहीं मिली कि समाज ने उसके व्यक्तित्व को मान्यता प्रदान कर दी है या पुरुषवादी
मानसिकता कमजोर हो गई है। उसको मुक्ति मिलने का कारण समाज में आधुनिक दृष्टिकोण की
वृद्धि होना भी नहीं है। लेखक के मत में इसका कारण बढ़ती हुई महंगाई है इसी के कारण
उसे घर से बाहर जाकर नौकरी करने का अवसर मिला है। जिससे वह दूसरों यहाँ तक कि
पुरुषों के साथ भी बात कर सकती है तथा साथ काम करती है। लेखक के मत से हम सहमत
हैं। आर्थिक दबाव अनेक स्थापित अवगुणों को ध्वस्त कर देता है। पर्दाप्रथा को नष्ट
करने में भी यह एक महत्त्वपूर्ण कारक बनकर सामने आया है।

प्रश्न. संस्कारों और शास्त्रों
की लड़ाई पाठ के लेखक ने किसे और क्यों द्वंद्वात्मक भौतिकवाद में फंसा माना है?

उत्तर. लेखक ने अपने एक
मार्क्सवादी मित्र को लेकर यह व्यंग्य किया है। यह मित्र एक तरफ तो बाहरी आडंबर और
अंधविश्वासों पर विश्वास नहीं करने का दावा करता है दूसरी ओर पिता की मृत्यु पर
सारे संस्कारों का पालन करते हैं इसीलिए लेखक ने उन्हें द्वंद्वात्मक भौतिकवादी
अर्थात दोहरी मान्यताओं के द्वंद्व में फँसा हुआ बताया है।

प्रश्न. लड़की की माता की किस
तरह की सोच से पता लगा कि अर्थशास्त्र ने संस्कारों को पटकनी दे दी?

उत्तर. माँ ने सोचा यह जो
15,000 दहेज के लिए रखे थे यह साफ बच गए। 15,000 में इतना अच्छा लड़का नहीं मिलता
उन्होंने कार्ड बाँटकर दावत दे दी। इस प्रकार अर्थशास्त्र ने संस्कारों को पटकनी
दे दी। पहले वह सरकारी शादी को बुरा समझती थी किंतु 15000 की बचत ने सारे
संस्कारों को समाप्त कर दिया।

 

सरयू का पद्य खंड

कबीर

प्रश्न. कबीर ने इस संसार को
किसके समान बताया है?

उत्तर. कबीर ने इस संसार को
सेमल के फूल के समान बताया है।

प्रश्न. कबीर के अनुसार गुरु और
गोविंद में क्या अंतर है?

उत्तर. कबीर के अनुसार गुरु और
गोविंद में कोई अंतर नहीं है। उनमें सिर्फ आकार (शरीर) का ही अंतर है।

प्रश्न. कबीर के दोहों को साखी
क्यों कहा जाता है?

उत्तर. कबीर ने जो कहा वो उनके
जीवन के अनुभव पर आधारित है। उन्होंने सुनी.सुनाई बातों पर नहीं लिखा है। उन्होंने
अपनी आँखों से जो देखा है वही अपने दोहों में व्यक्त किया है। आँखों देखी होने के
कारण उसे साक्ष्य अर्थात साखी कहा गया है।

प्रश्न. पीछें लागा जाई था, लोक
वेद के साथि। इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर. इस पंक्ति में कबीर ने
गुरु की महान उपकार के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की है। जब तक गुरु का मार्गदर्शन
प्राप्त नहीं हुआ था तब तक कबीर भी बिना सोचे-समझे लोकाचार और मान्यताओं के
पिछलग्गू बने हुए थे। जब गोविंद की कृपा से उन्हें गुरु की प्राप्ति होती है या
गुरु का सान्निध्य प्राप्त होता है और गुरु ने उनके हाथ में ज्ञान रूपी दीपक थमाया
तब उन्हें दिखाई दिया कि वह तो अंधविश्वास के मार्ग पर चले जा रहे थे। गुरु ने
उनके उद्धार का मार्ग प्रशस्त किया है।

प्रश्न. ‘संतो भाई आई ज्ञान की
आँधी रे’ पद में कवि क्या संदेश देना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए

उत्तर. कबीर भले ही घोषणा करते
हैं कि उन्होंने मसि कागद छुयो नहीं कलम गही ना हाथ परंतु उन्होंने अपनी बात सटीक
प्रतीकों और रूपकों के द्वारा कहने में पूर्ण निपुणता दिखाई है। उपर्युक्त पद में
कबीर ने ज्ञान के महत्त्व को आलंकारिक शैली में प्रस्तुत किया है। उनकी मान्यता है
कि स्वभाव के सारे दुर्गुणों से मुक्ति पाने के लिए ज्ञान से बढ़कर और कोई दवा नहीं
है। जब हृदय में ज्ञान रूपी आँधी आती है तो सारे दुर्गुण एक-एक कर धराशायी होते
चले जाते हैं और अंत में साधक का हृदय प्रेम की रिमझिम वर्षा से भीग उठता है।
ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता है और अज्ञान का अंधकार विलीन हो जाता है। ज्ञान
प्राप्ति की साधना का यही संदेश इस पद द्वारा कबीर ने दिया है।

प्रश्न. ‘जल में उत्पत्ति जल
में वास, जल में नलिनी तोर निवास’ पंक्ति का मूलभाव लिखिए।

उत्तर. उपर्युक्त पंक्ति कबीर
के पद काहे री नलिनी तू कुम्हलानी से लिया गया है। इस पद में कबीर ने नलिनी
(कमलीनी) को जीवात्मा का और सरोवर के जल को परमात्मा का प्रतीक माना है। वह कमलीनी
रूपी अपनी आत्मा से प्रश्न करते हैं कि अरे नलिनी तू क्यों मुरझाई हुई है? तेरे
चारों ओर तथा तेरे नाल में सरोवर का जल (परमात्मा) है। तेरी उत्पत्ति और निवास भी
इसी सरोवर में है निरंतर इसी सरोवर रूपी परमात्मा में तू स्थित है। भाव यह है कि
कमलिनी को यदि जल न मिले तो वह कुम्हला जाएगी परंतु जब भीतर-बाहर दोनों ओर जल ही
हो तो कमलीनी के मुरझाने का क्या कारण हो सकता है। इसका एकमात्र कारण यही हो सकता
है कि कमलिनी का किसी अन्य से प्रेम हो गया हो और उसी के वियोग में वह दुःखी और
मुरझाई है। पंक्ति का मूलभाव यही है कि जीवात्मा और परमात्मा अभिन्न हैं। जीवात्मा
की उत्पत्ति और स्थिति उसी सर्वव्यापक परब्रह्मा में है वह उसे कदापि अलग नहीं है।

पाठ. मंदोदरी की रावण को
सीख

रचनाकार.  गोस्वामी तुलसीदास।

रामचरितमानस से संकलित।

प्रश्न. मंदोदरी ने सीता को
किसके समान माना?

उत्तर.  मंदोदरी ने सीता को रावण के वंश रूपी कमल समूह
को नष्ट कर देने वाली शीत ऋतु की रात्रि के समान माना है।

प्रश्न. रावण को राम के
विश्वरुप से परिचित कराने में मंदोदरी का क्या उद्देश्य था?

उत्तर. रावण राम को साधारण
मनुष्य मान रहा था वह राम से बैर ठाने हुए था। मंदोदरी राम के स्वरुप और प्रभाव से
परिचित थी। वह जानती थी कि राम का विरोध रावण और राक्षसों के विनाश का कारण बनेगा।
वह असमय विधवा नहीं होना चाहती थी। अतः रावण को प्रभावित करने और राम की शरण जाने
को प्रेरित करने के लिए उसने राम के विश्व रूप से रावण को परिचित करवाया था।

प्रश्न. दुःखी और खिसियाये हुए
राजसभा से लौटे रावण को मंदोदरी ने क्या समझाया?

उत्तर. मंदोदरी ने रावण से कहा
कि राम से बैर और उन पर विजय पाने के कुविचार को मन से त्याग दो। जब तुम लक्ष्मण
द्वारा खींची गई रेखा को नहीं लांघ सके तो उन भाइयों पर विजय कैसे पाओगे?  उनके दूत हनुमान ने सहज ही समुद्र लांघकर आराम
से लंका में प्रवेश किया। उसने अशोक वाटिका उजाड़ डालीए रखवालों को मार डाला।
तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारे पुत्र अक्षय कुमार को मार डाला। तुम्हारे प्यारे
नगर लंका को जला डाला। अब तो अपने बल की डींग हाँकना छोड़ दो।

रहीम के दोहे

प्रश्न. रहीम सच्चा मित्र किसे
मानते हैं?

उत्तर. रहीम ने माना है कि
सच्चा मित्र वही है जो सुख.दुःख में समान रूप से काम आए। रहीम उसी को सच्चा मित्र
मानते हैं जो संकट आने पर भी अपने मित्र को छोड़ता नहीं और बुरे दिनों में उसका साथ
निभाता है।

प्रश्न. रहीम दुष्ट लोगों से
मित्रता व शत्रुता क्यों नहीं रखना चाहते?

उत्तर. दुष्ट और ओछे लोग
विश्वसनीय नहीं होते हैं। उनसे शत्रुता या मित्रता दोनों ही हानिकारक हो सकती हैं
यदि हम ऐसे लोगों से शत्रुता रखेंगे तो वह हमें हानि पहुँचाने के लिए घटिया से
घटिया तरीके काम में ले सकते हैं इसी प्रकार दुष्टों की मित्रता परभी विश्वास करना
बुद्धिमानी नहीं कहा जा सकता वह अपनेस्वार्थ के लिए कभी भी हमारे साथ विश्वासघात कर
सकते हैं। जैसे यदि कुत्ता किसी कारण कुछ हो जाए तो तुरंत काट देता है और यदि
प्रसन्न होकर वह आपके हाथ.पैर चाटता है तो भी अच्छा नहीं लगता। उस स्थान को धोना
पड़ता है इस प्रकार से कवि ने संदेश दिया है कि दुष्ट व्यक्तियों के प्रति तटस्थ
भाव रखना चाहिए।

प्रश्न. रहीम के अनुसार
कौन-कौनसी बातें दबाने पर भी नहीं दबती, प्रकट हो जाती हैं? स्पष्ट करते हुए
लिखिए।

उत्तर. कवि रहीम के अनुसार सात
बातें ऐसी हैं जो मनुष्य कितना भी छुपाना चाहे लेकिन छुप नहीं सकती। ख़ैर अर्थात
कुशल-मंगल, मनुष्य के हाव-भाव, व्यवहार से जान लेते हैं कि वह सुख से रह रहा है।
इसी प्रकार खून अर्थात किसी की हत्या कभी नहीं छुपती। खाँसी भी नहीं छिपाई जा
सकती। ख़ुशी का भी सभी को पता चल जाता है। ऐसे ही बैरभाव और प्रेमभाव भी व्यवहार से
समझ में आ जाते हैं। मदिरा पिए हुए व्यक्ति की पहचान गंध या पीने वाले के व्यवहार
से हो जाती है।

 

कवि. मैथिलीशरण गुप्त
(राष्ट्रकवि)

रचना. यशोधरा और भारत की
श्रेष्ठता।

प्रश्न. भारत की श्रेष्ठता
कविता में मैथिलीशरण गुप्त ने क्या संदेश दिया है?

उत्तर. भारत की श्रेष्ठता कविता
में मैथिलीशरण गुप्त ने भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन किया है। उन्होंने बताया
है कि भारत ही विश्व का वह देश है जहाँ सर्वप्रथम सृष्टि आरंभ हुई थी। यहीं से
विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैला। समस्त संसार को ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल,
सभ्यता-संस्कृति सिखाने वाला देश भारत ही है। गुप्तजी का संदेश है कि भारतीयों को
अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण करना चाहिए तथा निराशा और उत्साहहीनता को त्यागकर देश
के उत्थान के कार्य में जुट जाना चाहिए। हमें अपने देश से प्रेम करना चाहिए तथा
अपने कठोर परिश्रम द्वारा उसको पुनः उन्नति के शिखर पर पहुँचाना चाहिए।

प्रश्न. कवि ने भारतवर्ष को
भू-लोक का गौरव क्यों बताया है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर.  भारत का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है। यहाँ
पर्वतराज हिमालय तथा देवनदी गंगा है। संसार के सभी देशों की अपेक्षा यह देश महान
और उन्नत है। भारतवर्ष ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है। कवि ने इसी कारण भारत को
भू-लोक का गौरव बताया है।

प्रश्न. संतान उनकी आज यद्यपि
हम अधोगति में पड़े, पर चिह्न उनकी उच्चता के आज भी कुछ हैं खड़े उपर्युक्त पंक्ति
के आधार पर बताइए कि भारतीय किनकी संतान हैं और आज उनकी क्या दशा हो रही है?

उत्तर. गुप्तजी की रचना
भारत-भारती के अनुसार भारत के निवासी आर्य थे। आर्य शब्द का अर्थ है श्रेष्ठ
मनुष्य। भारत उन्हीं आर्यों की संतान है आर्यों का शारीरिक सौष्ठव और मानसिक
प्रखरता अत्यंत उच्चकोटि की थी। उस समय भारत अंग्रेजों के अधीन था गुलामी के कारण
उनको पढ़ने-लिखने तथा अपना और अपने देश का विकास करने और उन्नति करने का अवसर नहीं
मिल पाया। भारतीय शिक्षित एवं निर्धन रह गए। विश्व में उनका कोई सम्मान नहीं रहा।
वे तन-मन से अशक्त बन गए। गुलामी, गरीबी और अशिक्षा उनको खटकती नहीं थी। खटकती भी
थी तो उसको दूर करने का कोई उपाय वे नहीं जानते थे। आज भी भारतीयों की दशा में
बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है।

यशोधरा खंडकाव्य से

प्रश्न. ‘दु:खी न हो इस जन के
दुःख से’ पंक्ति  में यशोधरा ने जन शब्द का
प्रयोग किसके लिए किया है?

उत्तर.  दुःखी न हो इस जन के दुःख से पंक्ति में जन
शब्द का प्रयोग यशोधरा ने स्वयं अपने लिए किया है। यद्यपि उसे इस बात की पीड़ा है
कि उसके पति ने उसकी उपेक्षा की है। वह उसको बिना बताए घर से चले गए हैं परंतु वह
उनके सुख एवं सिद्धि पाने में बाधक नहीं बनना चाहती। वह चाहती है कि उसके पति सुखी
रहें और अपने लक्ष्य सिद्धि को प्राप्त करें। यहाँ जन शब्द का प्रयोग यशोधरा स्वयं
के लिए हुआ है।

प्रश्न. फिर भी क्या पूरा
पहचानाघ् यशोधरा ने यह क्यों कहा कि गौतम बुद्ध उसको पूरी तरह पहचान नहीं पाए हैं?

उत्तर. बुद्ध के चोरी-चोरी
यशोधरा से बिना कहे घर से जाने के कारण यशोधरा को इस बात की शंका होती है कि
सिद्धार्थ अपनी पत्नी को अच्छी या पूरी तरह से पहचान नहीं पाए थे यशोधरा की नजर
में सिद्धार्थ को इस बात की आशंका हुई होगी कि यदि वह यशोधरा को बताकर जाएँगे तो
वह उन्हें जाने नहीं देगी। यशोधरा ऐसी नहीं है उनको कभी नहीं रोकती। अपितु गौतम का
इस तरह जाना सिद्ध करता है वह अपनी पत्नी की भावना को पहचान नहीं पाए थे।

प्रश्न. ‘हुआ न वह भी भाग्य
अभागा’ पंक्ति में यशोधरा ने स्वयं को अभागा क्यों कहा है?

उत्तर. यशोधरा बता रही है कि
पत्नी का कर्तव्य है कि वह अपने पति के कर्तव्यपालन में सहयोग करें। युद्धभूमि के
लिए भी अपने पति को विदा करना क्षत्राणी का धर्म रहा है। यशोधरा के पति चुपचाप चले
गए। वह सोती ही रह गई। उसे इस बात का दुःख था कि वह सिद्धि हेतु जाने वाले अपने
पति को अपने हाथ से तैयार कर नहीं भेज सकी उसको यह बात मन ही मन साल रही है कि
अपने पति को विदा करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाया।


कवि. सूर्यकांत त्रिपाठी
‘निराला’

राम की शक्तिपूजा।

प्रश्न. रावण अशुद्ध होकर भी
यदि कर सकता है त्रस्त, तो निश्चय तुम हो सिद्धए  उसे करोगे ध्वस्त।

इन पंक्तियों में राम व रावण की
कौनसी असमानता व्यंजित हुई है?

उत्तर. ष्राम की
शक्तिपूजाष्कविता में निराला ने जीवन संग्राम में संघर्षरत सत् और असत्शक्तियों के
प्रतीक के रूप में राम और रावण को प्रस्तुत किया है। राम नीतिए धर्म और न्याय के
प्रतीक हैं जबकि रावण अपने बुरे कार्यों को सही सिद्ध करने के लिए युद्ध कर रहा
था। एक सदाचारी था तो दूसरा दुराचारी। यही राम और रावण के बीच की असमानता है।

प्रश्न. राम का यह संघर्ष
विषमता और हताशा से त्रस्त मानवता को दानवता की शक्तिसंपन्नता के विरुद्ध निरंतर
संघर्ष करने की प्रेरणा देता है। टिप्पणी कीजिए।

अथवा

राम की शक्तिपूजा में
अंतर्निहित संदेश क्या है?

उत्तर. राम की शक्तिपूजा में
पुरुष रूपी सिंह राम की विजय का संदेश है। सत्, 
न्याय तथा धर्म का पक्ष रखने वाले राम एक ओर हैं तो दूसरी ओर असत, अन्याय
अनाचार और अधर्म का साथ देने वाला रावण है। इसमें पहला पक्ष मानवता का तो दूसरा
दानवता का है। राम महामानव है तथा रावण दानव।

राम में मानवीय कमजोरियाँ हैं।
उनके मन में आशा-निराशा, विश्वास-अविश्वास आदि के बीच द्वंद्व है। किंतु अंत में
उनका आत्मविश्वास ही विजयी होता है। राम की शक्तिपूजा के आरंभ में हम देखते हैं कि
राम का मन सशंक हो जाता है। शक्ति के रावण के पक्ष में होने के कारण वे हताश हो
जाते हैं। मानवता के प्रतीक राम उसके अभाव में दुर्बलता का अनुभव कर रहे हैं। दानव
रावण महाशक्ति का साथ पाकर और अधिक प्रबल हो जाता है। राम डर रहे हैं कि मानवता की
विजय कैसी होगी। मित्रों के परामर्श पर वे शक्ति की पूजा करते हैं और देवी का
आशीर्वाद प्राप्त कर रावण पर विजय प्राप्त करते हैं। हमें भी अपनी कमजोरियों से न
घबराकर आत्मविश्वास के साथ शक्तिशाली के विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए यही राम की
शक्तिपूजा का संदेश या शिक्षा है।

प्रश्न. भौतिकता की वर्तमान
चकाचौंध में राम की शक्तिपूजा साधारण मनुष्य की पीड़ा को अभिव्यक्त करती है। स्पष्ट
कीजिए

उत्तर. राम की शक्तिपूजा
आध्यात्मिकता से प्रेरित है। इस कविता में प्रतीकात्मक रूप से वह आज के मानव की
पीड़ा को भी व्यक्त करती है। आज भ्रष्टाचार का सर्वत्र बोलबाला है। भौतिक सुख का
आकर्षण मनुष्य को सत्य से अलग कर देता है। रावण ने परनारी सीता का अपहरण किया है।
आज हर दिन हम महिलाओं के अपहरण एवं उनसे दुराचार के समाचार पढ़ते व सुनते हैं। इन
घटनाओं का विरोध करने वाले लोग ही हमें दिखाई देते हैं। सीता के अपहरण से सीता व
राम की पीड़ा आज भी अनेक स्त्री-पुरुषों की भी पीड़ा है। राम सत्य की लड़ाई लड़ रहे थे
किंतु उन्हें पग-पग पर विरोध का सामना करना पड़ता है। सत्य के मार्ग पर चलना भी
नीरापद नहीं है। समाज में व्याप्त अनाचार और अन्याय आज भी सशक्त रूप में दिखाई
देते हैं। अनेक लोग उससे पीड़ित होते हैं तथा उनके कारण दंड भी सहन करना पड़ता है।
राम को यह देखकर दुःख होता है कि सत् और शक्ति अधर्म के साथ खड़ी है। आज के
भौतिकवादी समाज में सत् के मार्ग के अनेक पथिक लोभ-लालच में पड़कर अधर्म का साथ
देते हैं। साधारण आदमी के मन की पीड़ा राम की पीड़ा बनकर उभरी है।

प्रश्न. राम की शक्तिपूजा कविता
के नायक राम के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर. राम की शक्तिपूजा
महाप्राण निराला की एक प्रबंधक रचना है। उसके नायक राम हैं। राम के चरित्र की
विशेषताएँ निम्न हैं-

धीर, गंभीर और विचारशील- राम
धैर्यवान, गंभीर और विचारशील हैं। राम सीता के अपहरण को धैर्यपूर्वक सहते हैं तथा
वह रावण से उसकी मुक्ति के लिए उपाय सोचते हैं।

§  आशावादी-  राम आशावादी हैं।
वे रावण पर विजय पाकर सीता को मुक्त कराने की आशा मन में पाले हुए हैं।

§  निराश और हताश- राम को एक साधारण मनुष्य के रूप में दिखाया गया है।
महाशक्ति को रावण के पक्ष में देखकर राम हताश हो जाते हैं उन्हें अपनी विजय पर
संदेह होने लगता है।

§  दृढ़ निश्चयी- राम दृढ़ निश्चयी थे। वे शक्ति की उपासना के समय एक
नीलकमल गायब होने पर उसके स्थान पर वह अपना एक नेत्र दुर्गा को अर्पित करने के लिए
तैयार हो जाते हैं।

 

रचना-  कुरुक्षेत्र

रचयिता- रामधारी सिंह दिनकर

प्रश्न. क्षमा किस पुरुष को
शोभा देती है?

उत्तर. क्षमा वीर तथा पराक्रमी
पुरुष को शोभा देती है। जो निर्बल हैं, 
जिसमें अत्याचारी का विरोध करने की न इच्छा है, न ही सामर्थ्य। उसको किसी
को क्षमा करने का अधिकार भी नहीं होता। यह माना जाता है कि अत्याचारी को दंड देने
की सामर्थ्य न होने के कारण वह क्षमा करने की बात करता है और अपनी दुर्बलता को
छिपा लेता है

प्रश्न. ‘अहंकार के साथ घृणा का
जहाँ द्वंद्व हो जारी’ पंक्ति में कवि ने किनके बीच होने वाले संघर्ष की ओर संकेत
किया है? अहंकार एवं घृणा किसके प्रतीक हैं?

उत्तर. इस पंक्ति में कवि ने
शोषक और शोषितों के बीच चलने वाले संघर्ष की ओर संकेत किया है। शोषकों को अपनी
शक्ति का अहंकार होता है। शोषित उनके दमनकारी व्यवहार के कारण उनसे घृणा करते हैं।
दोनों के हित एक दूसरे के विरोधी होते हैं शोषक शोषण की सुविधा के लिए शांति
व्यवस्था को बनाए रखना चाहता है। अहंकार शोषकों तथा घृणा शोषितों का प्रतीक हैं।

प्रश्न. “कौन  दोषी होगा इस रण का” पंक्ति के अनुसार
स्पष्ट कीजिए कि युद्ध किस कारण आरंभ होता है?

उत्तर. नए-नए बहाने बनाकर लोगों
का शोषण करनाए उनकी उपेक्षा करना तथा चुभने वाले कटुवचन कहना, उन्हें अपमानित करना
यह सब शोषित और पीड़ितों को उत्तेजित कर देते हैं। उनकी सहनशक्ति नष्ट हो जाती है
वे शोषकों का विरोध करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार युद्ध के दोषी असल
में आक्रमणकारी शोषित नहीं होते। वे तो मजबूरन आक्रमण करते हैं वास्तविक दोष उनका
होता है जो युद्ध के लिए उनको विवश कर देते हैं।

प्रश्न. निर्बल मनुष्य में दया,
क्षमा और सहनशीलता आदि गुण होने पर भी उसका आदर क्यों नहीं होता?

उत्तर. निर्बल मनुष्य में दया,
क्षमा और सहनशीलता आदि गुण हो तब भी लोग उसका आदर नहीं करते इसका कारण है उसका
निर्बल होना। जब मनुष्य शक्तिशाली होता है तभी संसार उसकी पूजा करता है। दुनिया
ताकत की ही पूजा करती है दया, क्षमा और सहनशीलता को लोग निर्बल व्यक्ति की कमजोरी
समझते हैं।

प्रश्न. शांति कितने प्रकार की
होती है? उनमें क्या अंतर होता है?

उत्तर. शांति दो प्रकार की होती
है। पहली शासकों तथा बलवान लोगों द्वारा शक्ति के बल पर स्थापित की गई शांति तथा
दूसरी जनता के बीच स्वीकृत स्वाभाविक रुप से स्वीकृत शांति। बल से स्थापित शांति
बनावटी होती है तथा उसके विरुद्ध विद्रोह होने का भय भी निरंतर बना रहता है शांति
तब होती है जब समाज में किसी का शोषण नहीं होता तथा सबको न्यायोचित अधिकार सुलभ
रहते हैं।

प्रश्न. युद्ध निंदनीय तथा
शांति प्रशंसनीय कब होती हैघ् कुरुक्षेत्र कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर. प्रत्येक दशा में युद्ध
निंदनीय तथा शांति प्रशंसनीय नहीं होती। शांति अच्छी और प्रशंसनीय तब होती है जब
वह सच्ची शांति हो। कृत्रिम शांति प्रशंसनीय नहीं होती जब मनुष्य स्वेच्छा सेए
अपने मन से शांति व्यवस्था का समर्थन करते हैं तो शांति प्रशंसनीय होती है इस
प्रकार की शांति की स्थापना के लिए बल प्रयोग करने की जरूरत नहीं होती। सच्ची
शांति व्यवस्था में लोगों को सुखपूर्वक जीने का अवसर मिलता है कोई किसी का शोषण और
दमन नहीं करता।

युद्ध निंदनीय होता है किंतु
सदैव नहीं। जब कोई आततायी किसी की संपत्ति और राज्य हड़पने के लिए आक्रमण करता है
तो युद्ध निंदनीय होता है। दूसरे के सुख.साधन छीनने और धन.दौलत लूटने के इरादे से
होने वाला युद्ध निंदा योग्य है। यदि युद्ध अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए
किया जाता है तो वह निंदनीय नहीं होता इस प्रकार युद्ध और शांति दोनों ही स्थिति
परिस्थिति के अनुसार निंदनीय अथवा प्रशंसनीय हो सकते हैंण्

प्रश्न. श्सच पूछो तो शर में
बसती है दीप्ति विजय कीष्ष् पंक्ति के आधार पर कुरुक्षेत्र काव्यांश का ध्येय
लिखिए।

उत्तर. इस काव्यांश में कवि ने
जीवन में शक्ति.सामर्थ्य को ही सारे मानवीय गुणों का आधार सिद्ध करना चाहा है।
भीष्म द्वारा यही संदेश दिलवाया गया है। विनम्रता की चमक.दमक बाण अर्थात
अस्त्र.शस्त्र से ही प्रकट होती है। शस्त्रहीनए शक्तिहीन पुरुष की विनम्रता
निरर्थक होती है। जिस वीर पुरुष में शत्रु को परास्त करने की शक्ति होती है उसी की
मेल.जोल की नीति तथा संधि समझौते की बातें स्वीकार ये होती हैं। संधि की शर्तें तय
करने का अधिकारी शक्तिशाली मनुष्य ही होता है। जब मनुष्य की वीरता और पराक्रम
लोगों को स्पष्ट दिखाई देते हैं तभी संसार उनका आदर करता है।

 

रचना-  भारतमाता, धरती कितना देती है

रचनाकार-  सुमित्रानंदन पंत

प्रश्न. धरती कितना देती है
कविता का केंद्रीय भाव लिखिए।

उत्तर. धरती कितना देती है
कविता में कवि ने मनुष्य की जीवन में सत्कर्म के महत्त्व का प्रतिपादन किया है।
अच्छे काम करने से ही मानव जीवन तथा समाज का हित होना संभव है। कवि भाग्यवाद से
प्रेरित है अथवा यह भी कह सकते हैं कि कवि गीता के कर्मवाद का संदेश दे रहा है।
कवि के शब्दों में कहा जाए तो कहा जा सकता है कि हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पाएँगे

प्रश्न. भारत माता कविता की दो
विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर. कवि ने भारत माता के
माध्यम से भारत के दीन और शोषित जनों का चित्रण किया है। भारत गाँवों में बसता है।
अतः कवि भारत माता को ग्रामवासिनी कहता है। भारत माता की दरिद्रता का वर्णन करके
ही कवि निराश नहीं हैं। उसमें आशा की भावना प्रखर है। वह गाँधीवादी अहिंसा में
भारत की मुक्ति के दर्शन करता है। (यह 
कविता वस्तुतः तब लिखी गई थी जब भारत स्वतंत्र नहीं था)


पुस्तक-
मंदाकिनी

इस पाठ्यपुस्तक में से 1
निबंधात्मक प्रश्न (आंतरिक विकल्प सहित) अंकभार 4 तथा 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न
(प्रत्येक का अंकभार 3-3 अंक) आएँगे।

पाठ. हिंदी गद्य का विकास

प्रश्न. क्या गद्य आज हमारी
सांस्कृतिक गतिविधियों का आधार बन गया है?

उत्तर. आज का युग गद्य युग कहा
जाता है। दो व्यक्तियों के बीच साधारण बातचीत से लेकर गंभीर विषयों पर गोष्ठियों
के आयोजन आदि सभी गतिविधियों में गद्य का ही प्रयोग होता है। ज्ञान-विज्ञान, कला,
शिल्प, तकनीक आदि ऐसे विषय है जहाँ ग्रंथ रचना से लेकर उन पर व्याख्यान आदि सभी
गद्य के माध्यम से ही संभव है।

प्रश्न.  रिपोर्ताज का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर. रिपोर्ताज फ्रांसीसी
भाषा का शब्द है। यह रिपोर्ट का ही साहित्य के रूप होता है। किसी घटना के तथ्यों
तथा उपस्थित व्यक्तियों के विचारों को रोचक शैली में प्रस्तुत करना ही रिपोर्ताज
कहलाता है। दूसरे विश्वयुद्धए आजाद हिंद सेना का निर्माणए बंगाल के अकाल आदि ने
रिपोर्ताज को हिंदी गद्य साहित्य का अंग बना दिया।

प्रश्न. फीचर विधा क्या
है?  संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर. यह विधा अभी
पत्र.पत्रिकाओं के स्तंभों में अधिक दिखाई दे रही है फ़ीचर द्वारा लेखक किसी स्थान
का सजीव वर्णन प्रस्तुत करता है इसे रूपक भी कहा जाता है। फीचर में प्रस्तुत कथा
के साथ एक अंतर्कथा भी चलती है। फीचर लेखक का उद्देश्य स्थान विशेष का सर्वांगीण
परिचय कराना होता है फीचर विधा हिंदी गद्य साहित्य में धीरे.धीरे अपना स्थान बना
रही है।

प्रश्न. संस्कृत विद्वानों ने
गद्य की परिभाषा के विषय में क्या कहा है?

उत्तर. आचार्य भामह ने गद्य को
स्वाभाविक, व्यवस्थित, शब्दार्थ युक्त पदावली कहा है। वामन ने कोई परिभाषा तो नहीं
दी किंतु कहा है कि ‘गद्य कवियों की कसौटी है’ ऐसा  कहकर गद्य के महत्त्व का परिचय करवाया है।
आचार्य दंडी ने गद्य को चरणों में अविभाजित है तथा गण और मात्राओं से रहित रचना
माना है। विश्वनाथ ने भी गद्य की कोई परिभाषा नहीं दी है केवल उसको काव्य मानते
हुए  4 
भेदों की चर्चा की है।

पाठ. राष्ट्र का स्वरूप

लेखक. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल

प्रश्न. मेघ हमारे अध्ययन की
परिधि में क्यों आने चाहिए?

उत्तर. मेघ अर्थात बादल, बादलों
के बरसने से ही पृथ्वी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। प्रकृति अपने सौंदर्य को प्राप्त
करती है। पेड़-पौधे और विभिन्न प्रकार की वनस्पति विकसित होती है। वर्षा का यह जल
विभिन्न रुप से सहायक सिद्ध होता है। अतः उसके निर्माण और विकास की प्रक्रिया को
जानना हमारे लिए आवश्यक है। जब हम मेघों का अध्ययन करेंगे तभी हमें उसकी
निर्माण-प्रक्रिया और पृथ्वी के लिए उसकी उपयोगिता का ज्ञान होगा।

प्रश्न. लेखक ने संस्कृति को
राष्ट्र के  विटप का पुष्प क्यों कहा है?

उत्तर. लेखक डॉ. वासुदेवशरण
अग्रवाल ने राष्ट्र को विटप अर्थात पेड़ तथा उसकी संस्कृति को पुष्प कहा है। जब
किसी वृक्ष का पूर्ण विकास हो जाता है तब ही वह पुष्पित होता है। पुष्पों से लदे
वृक्ष की शोभा दर्शनीय होती है। पुष्प उसकी शोभा, सौंदर्य और आकर्षण को बढ़ाते हैं।
इसी प्रकार किसी राष्ट्र के उन्नत होने पर उसकी संस्कृति विकसित होगी। संस्कृति उस
राष्ट्र को महत्त्वपूर्ण बनाती है। समस्त विश्व उस राष्ट्र का मूल्यांकन उसकी
संस्कृति को देखकर ही करता है।

रचना. निर्वासित कहानी

लेखिका- सूर्यबाला

प्रश्न- वर्तमान युग में वृद्ध
दंपतियों को एकाकीपन का दंश झेलना पड़ रहा है। इस कथन की पुष्टि निर्वासित कहानी के
आधार पर कीजिए।

उत्तर. नगरों के बढ़ते आकार,
सिकुड़ते घर और संकीर्ण होती मानसिकता ने बुजुर्गों को अकेले और निर्वासित जीवन
जीने को विवश कर दिया है। वृद्ध दंपती या तो अकेले जीवनयापन करते हैं या उनकी
संतान उन्हें विभाजित करके एकाकी जीवन जीने को बाध्य कर देती है। आज की युवा पीढ़ी
भौतिक सुखों तथा अपने सपनों को साकार करने में इतनी स्वार्थी हो गई है कि
बुजुर्गों को घर की शान, मान एवं अनमोल धरोहर समझने के स्थान पर उन्हें भारस्वरूप
समझने लगी है। ऐसे माहौल में वृद्ध दंपतियों को एकाकी जीवन जीना पड़ता है।

प्रश्न. ऐसी क्या बात हुई जिसने
राजेन की माँ और बाबूजी को अंदर तक झकझोर दिया?

उत्तर. जब बाबूजी ने माँ को
बताया कि उन्हें अपने छोटे बेटे रणधीर के साथ उसके घर जाना होगा और उसे (राजेन की
माँ) बड़े बेटे राजेन के साथ यहीं रहना होगा। इस अप्रत्याशित बात ने उन दोनों को
अंदर तक झकझोर दिया। एक-दूसरे के बिना रहने की कल्पना ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया।
दोनों के लिए यह एक असहनीय पीड़ा थी।

प्रश्न. बड़े बेटे राजेन के पास
जाने की बात पर पड़ोसियों ने क्या कहा?

उत्तर. रिटायर होने के बाद डेढ़
साल तक तो राजेन उन्हें पैसे भेजता रहा। एक दिन उसने पत्र भेजकर दोनों को अपने पास
आने के लिए कहा। यह बात जानकर पड़ोसियों ने उन दोनों को राजेन के पास जाकर रहने के
लाभ बताते हुए कहा और समझाया। अनेक तर्क उनके समक्ष रखे गए। एक अन्य पड़ोसन ने
उन्हें न जाने की सलाह देते हुए कहा कि ये सब कचौड़ी.पकौड़ी एक तरफ और अपना सुराज एक
तरफ। इस प्रकार पड़ोसियों ने उन्हें बेटे के पास जाने और न जाने के बारे में
समझाया।

प्रश्न. बुजुर्गों के प्रति
युवा पीढ़ी का क्या नजरिया होता है युववर्ग और बुजुर्गों की सोच और व्यवहार में
अंतर को स्पष्ट करें। इस अंतर को किस प्रकार दूर किया जा सकता हैघ्

उत्तर. प्रत्येक संतान की
सफलता.असफलता एवं चरित्र निर्माण में माता.पिता के योगदान को नकारा नहीं जा सकता
यदि संतान की सफलता मेंमाता.पिता का योगदान होता है तो उसके चारित्रिक पतन या उसके
व्यक्तित्व का विकास न होने के लिए भी माता.पिता ही उत्तरदायी होते हैं। अतः
युवकों के लिए बुजुर्गों का बहुत महत्त्व है किंतु आज का युवा कुछ भिन्न प्रकार की
सोच रखता है वह सफलता का श्रेय सिर्फ अपनी मेहनत और लगन को देता है और असफलता के
लिए बुजुर्गों को दोषी ठहराता है आज के युवा के लिए बुजुर्ग व्यक्ति घर में रखी
ऐसी मूर्ति के समान होता है जिसे दो वक्त की रोटीए कपड़ा और दवा की आवश्यकता होती
है। उसके नजरिए के अनुसार बुजुर्ग लोग अपना जीवन जी चुके होते हैं उनकी आवश्यकताएँ
और भावनाएँ महत्त्वपूर्ण नहीं होती। अब उन्हें सिर्फ मृत्यु का इंतजार होता है।

आज का युवा अपने बुजुर्गों के
कठोर अनुशासन पसंद व्यक्तित्व के आगे नहीं झुकता सिर्फ बुजुर्ग होने के कारण उनकी
तर्कहीन बातों को स्वीकार कर लेना उसके लिए असहनीय होता है। उन्हें भी आज की पीढ़ी
का व्यवहार उद्दंडतापूर्ण प्रतीत होता है। समाज में आ रहे बदलाव उन्हें विचलित
करते हैं।

इन सब मतभेदों को दूर करने के
लिए आवश्यक है कि बुजुर्ग पीढ़ी अपनी संतान के मन को समझें। बुजुर्गों को चाहिए कि
वह संतान के दुःख में भागीदार बनें। दूसरी ओर युवा पीढ़ी को भी वृद्धजनों के साथ
प्रेम और आदर के साथ पेश आना चाहिए तथा उनके अनुभवों और सुझावों का सम्मान करते
हुए उनसे लाभ लेना चाहिए।

पाठ. सुभाषचंद्र बोस
(जीवनी)

प्रश्न. मेरा घर तो गंदा था ही
मेरा मन उससे ज्यादा गंदा था। आपकी सेवाओं ने मेरी दोनों गंदगियों को निकल दिया
हैए किसका कथन है तथा ऐसा कहने का क्या कारण था?

अथवा

हैदर गुंडे का हृदय परिवर्तन
किस कारण हुआ?

उत्तर-  यह कथन हैदर का है। हैदर नगर का कुख्यात गुंडा
था। वह आए दिन सुभाष और उनकी मित्र मंडली के सेवा कार्य में बाधा डालता था। एक दिन
हैजे ने उसके परिवार को भी चपेट में ले लिया। इससे मुक्ति के लिए वह नगर के
प्रत्येक डॉक्टर के पास गया किंतु कोई भी उसके साथ नहीं आया। जब वह निराश होकर
लौटा तो यह देखकर चकित रह गया सेवादार बच्चे उसके घर की सफाई कर रहे थे। घर वालों
को दवा खिला रहे थे। उसका मन बहला रहे थे। यह वही बच्चे थे जिनके काम में वह
अड़चनें खड़ी करता था। उनके इस सेवा कार्य को देखकर उसका हृदय परिवर्तित हो गया उसने
सुभाष के चरण पकड़कर यह शब्द कहे थे।

प्रश्न. सुभाष बाबू ने मांडले
जेल के वातावरण का वर्णन किस प्रकार किया है?

उत्तर.  सुभाष बाबू ने मांडले जेल के वातावरण का वर्णन
करते हुए कहा है कि वहाँ चारों ओर धूल ही धूल थी। मांडले जेल की वायु भी धूलयुक्त
थी,  जिसके कारण साँस के साथ धूल अंदर जाती
थी। इतना ही नहीं भोजन की धूल धूसरित हो जाता था और उन्हें वही भोजन खाना पड़ता था।
सब तरफ बस धूल ही धूल थी। जब यहाँ धूल भरी आँधियाँ चलती थी तो दूर-दूर तक के पेड़
और पहाड़ियाँ सब ढक जाती थी। उस समय धूल के पूर्ण सौंदर्य के दर्शन होते थे। सुभाष
बाबू ने इसी धूल को दूसरा परमेश्वर कहा है।

पाठ. भारत के महान वैज्ञानिक सर जगदीशचंद्र बोस

लेखक. परमहंस योगानंद।

यह पाठ परमहंस योगानंद की
आत्मकथा ‘योगी कथामृत’ से लिया गया है। इसमें परमहंस योगानंद द्वारा सर जगदीशचंद्र
बोस के साक्षात्कार के अंश शामिल किए गए हैं।

प्रश्न. बोस के क्रेस्कोग्राफ
की क्या विशेषता थी? लिखिए

उत्तर. सर बोस द्वारा आविष्कृत
क्रेस्कोग्राफ से पौधों में होने वाली सूक्ष्म से सूक्ष्म जैविक क्रिया स्पष्ट
दिखाई देती थी। इसकी परिवर्धन शक्ति एक करोड़ गुणा है। इस आविष्कार के माध्यम से
बड़े से बड़े पेड़ को आसानी से स्थानांतरित किया जा सकता है। इसी के माध्यम से यह भी
सिद्ध हुआ कि पौधों में संवेदनशील स्नायुतंत्र होता है।

प्रश्न. अपने आविष्कार के
माध्यम से बोस ने क्या सिद्ध किया?

उत्तर. अपने आविष्कार
क्रेस्कोग्राफ के माध्यम से वह सर बोस ने यह सिद्ध किया कि पेड़-पौधों में भी
संवेदनशील स्नायुतंत्र होता है। उनका जीवन भी विभिन्न भावनाओं से परिपूर्ण होता
है। वे भी प्रेम, घृणा, आनंद, भय, सुख-दुःख, चोट, दर्द, मूर्छा जैसी अन्य
उत्तेजनाओं के प्रति संवेदनशील होते हैं। अन्य प्राणियों की समान ही प्रतिक्रिया
भावानुभूति पेड़-पौधों में भी होती है।

प्रश्न. सर बोस के किन शब्दों
को सुनकर योगानंद जी की आँखें भर आई?

उत्तर. सर बोस ने अपने भाषण के
अंत में कहा कि विज्ञान न तो पूर्व का है न पश्चिम का। बल्कि अपनी सार्वभौमिकता
एवं सार्वलौकिकता के कारण वह सभी देशों का है। परंतु फिर भी भारत इसके विकास में
महान योगदान देने के लिए विशेष रूप से योग्य है। भारतीयों की ज्वलंत कल्पनाशक्ति
तो ऊपर-ऊपर परस्पर विरोधी लगने वाले तथ्यों की गुत्थी से भी नया सूत्र निकाल सकती
है। परंतु एकाग्रता की आदत ने इसे रोक रखा है। संयम मन को अनंत धीरज के साथ सत्य
की खोज में लगाए रखने की शक्ति प्रदान करता है उसकी इन शब्दों को सुनकर योगानंद जी
की आँखें भर आई।


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लेखक. जगदीश चंद्र माथुर

प्रश्न. शेखर को राजकवि क्यों
बनाया गया?

उत्तर. एक उत्सव के अवसर पर
छाया के मुख से मधुर गीत सुनकर सम्राट स्कंदगुप्त मंत्रमुग्ध हो गए। उनके द्वारा
गीत के रचनाकार का नाम पूछे जाने पर छाया ने शेखर का नाम बताया और उसे राजकवि
बनाने की बात कही। छाया की बात मानकर और उसके द्वारा रचित गीत से प्रसन्न होकर सम्राट
द्वारा शेखर को राजकवि बनाया गया।

प्रश्न. भोर का तारा एकांकी का
नायक कौन है? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर. भोर का तारा एकांकी का
नायक शेखर है। वह सच्चा प्रेमी, कर्तव्य के प्रति त्याग को तत्पर रहने वाला युवक
है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्न हैं-

 (अ) 
सहृदय कवि- शेखर एक सहृदय कवि है। वह प्रकृति के हर तत्त्व में कविता को
देखता है। उसे राजपथ पर भीख माँगने वाली स्त्री में भी कला दिखाई देती है। उसके
रचित गीत पर मुग्ध होकर सम्राट उसे अपना राजकवि बना लेता है।

(ब) भावुक व्यक्ति-  शेखर एक भावुक व्यक्ति है। वह अपने भावों को
अपनी कविता के माध्यम से प्रकट करता है

(स) सच्चा प्रेमी- शेखर एक
सच्चा प्रेमी है। वह छाया और अपने बीच के अंतर को जानता है वह सदैव अपनी सीमा में
रहकर छाया को चाहता है। 

(द) राजभक्त-  राजकवि नियुक्त होने पर अपने कवि कर्म के
द्वारा राजा को प्रसन्न करता है किंतु उन्हें ज्ञात होने पर कि राष्ट्र पर संकट आ
गया है वह व्यक्तिगत प्रेम संबंधी अपनी रचना को आग के हवाले कर देता है।

(य)  कर्तव्य के प्रति सजग एवं त्याग को तत्पर-  शेखर अपने कर्तव्य के प्रति सजग है वह कवि-कर्म
द्वारा देश के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन हेतु देशवासियों को सजग करता है।

प्रश्न. भोर का तारा एक निजी
प्रेम-प्रधान एकांकी है या देश प्रेम प्रधान एकांकी? कारण सहित उत्तर दीजिए

उत्तर. भोर का तारा एकांकी आरंभ
से मध्य तक निजी प्रेम से परिपूर्ण एकांकी प्रतीत होता है। जिसका नायक शेखर अपनी
प्रेयसी के प्रेम से प्रेरणा लेकर काव्य रचना करता है। वह जीवन के प्रत्येक अंग
में प्रेम देखता है किंतु जैसे-जैसे मध्य से आगे बढ़ता है वह निजी प्रेम से देश
प्रेम में बदलता जाता है। माधव के द्वारा यह सूचना पाकर कि भारत में हूणों का
प्रवेश हो चुका है और वे अपने अत्याचार और अन्याय से लोगों को प्रताड़ित कर रहे
हैं, स्वदेश प्रेम में परिणत हो जाता है। माधव से अपनी ओजपूर्ण वाणी में देश के
युवाओं में देश के प्रति प्रेम और चेतना जगाने को कहता है। शेखर देशवासियों को
जाग्रत करता है। वह अपनी प्रेम की निशानी भोर का तारा को आग के हवाले कर देता है
इस प्रकार निजी प्रेम के ऊपर राष्ट्रप्रेम विजयी होता है।

पाठ. गेहूँ बनाम गुलाब

लेखक. रामवृक्ष बेनीपुरी।

इस पाठ में लेखक ने गेहूँ को
मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं का प्रतीक माना है वहीं गुलाब को मानव की सांस्कृतिक
प्रगति का प्रतीक माना है।

गुलाब मनुष्य के मानसिक विकास
को सूचित करता है।

प्रश्न. गेहूँ पर गुलाब की
प्रभुता से क्या तात्पर्य है?

उत्तर. मनुष्य को भौतिक वस्तुओं
के जंजाल से मुक्त होकर सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक सौंदर्य के आनंद को प्राप्त करना
होगा। भौतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक आवश्यकताओं के स्थान पर सांस्कृतिक एवं मानसिक
आवश्यकताओं को महत्त्व देना होगा। मनुष्य को मानसिक आवश्यकताओं का स्तर शारीरिक
आवश्यकता के स्तर से ऊँचा उठाना होगा। तभी यह गेहूँ पर गुलाब की प्रभुता संभव हो
पाएगी।

प्रश्न. ‘शौक-ए-दीदार अगर है तो
नज़र पैदा कर’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर. लेखक कहते हैं कि जल्द
ही इस संसार से भौतिक युग समाप्त हो जाएगा और लोग धन तथा अपने स्वार्थों को
महत्त्व देने के स्थान पर श्रेष्ठ और महान विचारों तथा प्रेम और सौहार्द्र पर
आधारित भावनाओं को महत्त्व देना शुरू कर देंगे। शारीरिक भूख और तृप्ति के स्थान पर
मानसिक संतोष और भावनाओं की संतुष्टि पर अधिक बल दिया जाएगा। संपूर्ण संसार सुखमय
हो जाएगा यदि कोई आने वाले ऐसे सुनहरे युग को देखना और महसूस करना चाहता है तो उसे
स्वयं के प्रत्यक्षीकरण की प्रबल जिज्ञासा पैदा करनी होगी।

हिंदी साहित्य का आधुनिक
काल

 

प्रश्न. भारतेंदु युग को
पुनर्जागरण काल क्यों कहा जाता है?  इस काल
के गद्य साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर. भारतेंदु पुरानी और नई
के संधि स्थल पर हैं। इस युग में रीतिकाल की शृंगार प्रवृत्ति,  व्यक्ति महिमा के स्थान पर कवि गण समाज और
राष्ट्र को उद्बोधन देने वाली लोक मंगलकारी दृष्टि अपनाने लगे थे। इसी कारण
भारतेंदु युग को पुनर्जागरणकाल कहा जाता है। भारतेंदु युग के गद्य साहित्य में
गद्य की लगभग सभी विधाओं में यथा नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध, आलोचना इत्यादि का
विकास एवं लेखन हुआ। इसमें सांस्कृतिक जागरण का संदेश निहित था। भारतेंदुयुगीन
गद्य साहित्य में धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन एवं
सुधार की आवाज मुखर थी। इस काल के गद्य साहित्य में मातृभूमि प्रेम, स्वदेशी की
भावना, कुरीतियों का विरोध,  शिक्षा का
महत्त्व, मद्य का निषेध,  बाल-विवाह
इत्यादि विषयों पर लेखकों ने अपने विचार प्रकाशित किए। ब्रह्मसमाज, आर्यसमाज,
स्वामी विवेकानंद व थियोसोफिकल सोसायटी के सिद्धांतों ने भी गद्यकारों को प्रभावित
किया।

प्रश्न.  भारतेंदु युग को पुनर्जागरणकाल क्यों कहा जाता
है?  इस काल के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाओं
का उल्लेख कीजिए।

उत्तर. भारतेंदु युग में जन
चेतना पुनर्जागरण की भावना से भरी हुई थी इस कारण उस समय की साहित्य चेतना
मध्यकालीन रचना प्रवृत्तियों तक सीमित न रहकर नई दिशाओं की ओर बढ़ने लगी इस कारण इस
युग को पुनर्जागरणकाल कहा जाता है। इस काल के प्रमुख कवि भारतेंदु हरिश्चंद्रए
प्रेमघन; बद्रीनारायण चौधरीद्धए प्रतापनारायण मिश्रए ठाकुर जगन्मोहनसिंहए
अंबिकादत्त व्यासए राधाकृष्ण दास थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ भारतेंदु कृत-
विद्यासुंदर, मुद्राराक्षस, भारतदुर्दशा, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, अंधेर नगरी,
प्रेमजोगिनी। प्रेमघन कृत- मयंक महिमा, लालित्य लहरी, जीर्ण जनपद। प्रतापनारायण
मिश्र कृत-प्रेम पुष्पावली,  शृंगार विलास।
अंबिकादत्त व्यास कृत- हो हो होरी, पारस पतासा, 
सुकवि सतसई। बालकृष्ण भट्ट कृत- सौ अजान एक सुजान, नूतन ब्रह्मचारी, रहस्य
कथा। राधाचरण गोस्वामी कृत- नवभक्तमाल, 
श्रीदामा चरित, तन मन धन गोसाई जी अर्पण, 
बूढ़े मुँह मुँहासे लोग देखे तमाशे इनके अतिरिक्त अन्य कवियों ने भी
भारतेंदु काल को अपने काव्य से समृद्ध किया।

प्रश्न. द्विवेदी युग को जागरण
सुधार काल क्यों कहा जाता है?

उत्तर. द्विवेदी युग का नामकरण
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर हुआ है। आचार्य द्विवेदी ने सन् 1903 से
सरस्वती पत्रिका का संपादन शुरू किया था। इस पत्रिका में इन्होंने खड़ी बोली को
अपनाया। द्विवेदी जी भाषा की शुद्धता एवं वर्तनी की एकरूपता के प्रबल समर्थक थे।
अतः आपने काव्यभाषा का व्याकरण की दृष्टि से परिमार्जन किया। द्विवेदी जी ने
समस्या पूर्ति को छोड़ने एवं स्वतंत्रता विषय पर कविता लिखने का परामर्श दिया इस
कारण यह युग जागरण सुधारकाल के नाम से अभिहित किया जाता है।

प्रश्न. छायावादयुगीन कहानी
विधा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए

उत्तर. आधुनिक हिंदी कहानी का
विकास सच्चे अर्थों में इसी काल में हुआ था। कहानी परंपरा में प्रेमचंद का
आदर्शवादी एवं यथार्थवादी दृष्टिकोण साथ-साथ दिखाई देता है। आपने तकरीबन 300
कहानियाँ लिखीं। जो मानसरोवर के आठ खंडों में प्रकाशित हुई थी। बूढ़ी काकी,
कजाकी,  सवा सेर गेहूँ, ठाकुर का कुआँ,
ईदगाह, सद्गति इनकी मुख्य कहानियाँ हैं। इस काल के दूसरे प्रमुख कहानीकार जयशंकर
प्रसाद हैं। इनकी कहानियों में जीवन के यथार्थ की जगह स्वर्णिम अतीत के गौरव को
अधिक स्थान दिया गया है। प्रतिध्वनि, इंद्रजाल, आकाशदीप और आँधी इनके मुख्य कहानी
संग्रह हैं। इस युग के अन्य कहानीकारों में विशंभरनाथ कौशिक, सुदर्शन प्रेमचंद की
धारा के अनुयायी हैं। पांडे बेचन शर्मा ‘उग्र’ ने एक नई कहानी धारा का विकास किया।
उनकी कहानियों में सामाजिक विद्रोह के खिलाफ उग्र आक्रोश की अभिव्यक्ति हुई है।
जैनेंद्र ने कहानी को ‘घटना’ के स्तर से मानव चरित्र और मनोवैज्ञानिक स्तर पर ला
खड़ा किया। अज्ञेय ने भारतीय समाज की रूढ़िवादिता, शोषण, तत्कालीन विश्व में व्याप्त
संघर्ष को अपनी कहानियों में स्थान दिया। राहुल सांकृत्यायन और सुभद्रा कुमारी
चौहान ने सामाजिक व पारिवारिक व्यवहार पर केंद्रित कहानियों की रचना की।

प्रश्न. नई कविता क्या है? नई
कविता की प्रमुख विशेषता एवं कवियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

उत्तर. प्रयोगवाद का विकास ही
कालांतर में नई कविता के रूप में हुआ। प्रयोगवाद और नई कविता के मध्य कोई निश्चित
सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती। बहुत से प्रयोगवादी कवियों ने नई कविता भी लिखी। नई
कविता की पहली विशेषता जीवन के प्रति आस्था है। इन कविताओं में आज की क्षणवादिता
और लघु.मानवतावादी दृष्टि जीवन मूल्यों के प्रति नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक
है। नई कविता में जीवन को पूर्ण रूप से स्वीकार कर उसे भोगने की लालसा दिखाई देती
है। अनुभूति की सच्चाई भी नई कविता में दिखाई देती है नई कविता जीवन के एक-एक क्षण
को सत्य मानती है। नई कविता में जीवन मूल्यों की नई दृष्टिकोण से व्याख्या की गई
है। लोक से जुड़ाव ही नई कविता की मुख्य विशेषता है। नई कविता में नवीनताए
बौद्धिकता, अतिशय वैयक्तिकता, क्षणवादिता, भोग एवं वासना, यथार्थवादिता, आधुनिक
बोध, प्रणयानुभूति, लोक संस्कृति, नया शिल्प विधान आदि विशेषताएँ मिलती हैं।
गिरिजा कुमार माथुर, मुक्तिबोध, जगदीश गुप्त, शमशेर बहादुर सिंह, त्रिलोचन इत्यादि
इसके मुख्य हस्ताक्षर हैं।


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