रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव

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Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव

Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव : श्री शाह आलम द्वारा कक्षा अनुभव पर लिखित एक शानदार आलेख हैं जिसमे उन्होंने कक्षा कक्ष में रीडिंग कॉर्नर को विकसित करने और इसके महत्व और रोचकता पर कक्षानुभव आधार पर शानदार विचार विमर्श दिए हैं। हमे विश्वास है कि आपको यह आलेख रोचक लगेगा और आप इस आलेख से जरूर प्रेरित होंगे और अपने विद्यालय में रोचकता बढाने के लिए रीडिंग कोर्नर अवश्य विकसित करेंगे और अपने अनुभव और इस आलेख की महता से सोशल मिडिया और अपने मित्रो को अवश्य अवगत करवाएंगे।

मुझे यह Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव लेख लिखने का विचार इसलिए आया कि, मैं अपने एसोसिएट जर्नी के दौरान मैंने इसे अपने चयनित स्कूलों में रीडिंग कॉर्नर के महत्व को समझने का प्रयास किया था। जब मै नये रोल में आया तो मुझे लगभग 50 से अधिक स्कूलों में जाने का मौका मिला और इस दौरान यह बार-बार समझाने का प्रयास कर रहा था कि पुस्तकालय है तो, परंतु प्रयोग में नहीं है ।

और कुछ स्कूलों ने तो पुस्तकालय के साथ-साथ रीडिंग कॉर्नर भी बनाई थी, किंतु उसका प्रयोग पांच स्कूलों को छोड़ सभी में शून्य था| एसोसिएट जर्नी के दौरान किये गये प्रयोगों को मैंने 6 स्कलों के शिक्षक साथियों के साथ मिलकर रीडिंग कॉर्नर बनाने का प्रयास किया और इसका प्रभाव समझने का प्रयास किया जो रोमांचित करने वाला अनुभव रहा।

रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव
Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव

कुछ सवाल जो अकसर स्कूल के शिक्षक साथियों के द्वारा पूछे जाते है- “क्या स्कूल के हर कक्षा के लिए रीडिंग कॉर्नर होना आवश्यक है? जब स्कूल में पुस्तकालय होती है, तो रीडिंग कॉर्नर की जरूरत क्यों?इस पर आप क्या सोचते है! कई बार मैंने पाया कि शिक्षक साथी रीडिंग कॉर्नर बनाने को लेकर दुबिधा की स्थिति में भी रहते हैं, जैसे पुस्तकालय है तो रीडिंग कॉर्नर की क्या जरूरत है? बच्चे वहीं से पुस्तक लेकर पढ़ लेंगे, इस प्रकार के जवाब शिक्षकों के द्वारा आता है, तो ऐसी दुविधा हमारे बीच उत्पन्न ना हो इससे पहले हम समझ लें कि, रीडिंग कॉर्नर क्या है? क्या पुस्तकालय और रीडिंग कॉर्नर में कोई अंतर है भी या नहीं।

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Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव
Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव

रीडिंग कॉर्नर या पढ़ने का कोना, कक्षा में बच्चों के लिए एक ऐसी आनंद दायक जगह होती है, जहां बच्चे स्वयं या समूह में बैठकर स्वतंत्र रूप से पढ़ते हैं।  रीडिंग कॉर्नर कक्षा के किसी कोने में रस्सी पर कुछ किताबें टाँगते हैं, या कक्षा में उपस्थित मेज या अलमिरा पर भी किताबों रखते है जो बच्चों के स्तर के अनुकूल होती है, वही पुस्तकालय एक ऐसी जगह होती है जहां सभी कक्षाओं के लिए विभिन्न प्रकार की पुस्तक रखी होती हैं जहां सभी एक साथ बैठकर पढ़ रहे होते हैं| पुस्तकालय एक बड़े ऑडियंस के लिए होता है इसलिए वहां बच्चों के स्तर अनुरूप चीजों को रख पाना और ये सुनिश्चित करना कि बच्चे अपनी

अवश्यकता अनुसार कुछ पठन कर सके, ये तुलनात्मक रूप से कम हो पाता है| रीडिंग कॉर्नर पर व्यवस्थित और योजना के तहत काम करने पर शिक्षक को बच्चों के पठन कौशल को निखारने में मदद मिलती है। उनके स्तर अनुसार सामग्री उपलब्ध कराने में सहूलियत होती है, क्योंकि रीडिंग कॉर्नर बच्चों की कक्षा में ही होता है, तो उन्हें कभी भी देखने, पढ़ने की छूट होती है, बच्चे की पहुँच ज्यादा होती है। तो अब हम एक स्तर की समझ बना चुके हैं की रीडिंग कॉर्नर और पुस्तकालय में एक बारीक सा अंतर होता है, जो हमारे लिये ये जरूरी हो जाता है की हमलोग रीडिंग कॉर्नर के महत्व और इसकी जरूरत पर एक समझ बना ले।  

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रीडिंग कॉर्नर का महत्व या जरूरत जब हम प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों की स्थिति को देखते हैं, तो विद्यालयों में मुस्कान पुस्तकालय स्थापित तो है किंतु बच्चों की पहुँच से दूर है| मैंने कई स्कूलों में यह भी पाया कि उनके पास पुस्तकालय स्थापित करने के लिए भवन नहीं है, तो इस स्थिति में कक्षावार रीडिंग कॉर्नर का महत्व बढ़ जाता है। मैं अपने अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि जितना महत्व पुस्तकालय का है उतना ही महत्व कक्षा में रीडिंग कॉर्नर का है और बच्चों के पढ़ने लिखने में मददगार होता है जैसे-

  • विद्यार्थियों में पढ़ने लिखने की आदत का विकसित करने में सहायक।  
  • विद्यार्थियों को रचनात्मक को बाहर लाने में मदद करता है।
  • बच्चों में बाल साहित्य के प्रति रुचि बढ़ती है, जिससे वह आसानी से भाषा सीखते हैं।  
  • रोचकता से भरा रीडिंग कॉर्नर बच्चों को पढ़ने लिखने में रुचि पैदा करता है बच्चों को आकर्षित कर सकता है।

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कक्षा में रीडिंग-कॉर्नर वर्तमान में अधिकतर कक्षाओं में व्याप्त एकरसता और बोरियत को दूर करने का भी एक महत्वपूर्ण तरीका है| यह प्रक्रिया इस स्थापना को भी बल प्रदान करती है कि पढ़ना पढ़ने से ही आता है लिखना लिखने से ही आता है| इस कारण रीडिंग कॉर्नर का हमारी कक्षाओं में होना जरूरी बन जाता है|        

Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव

अब तक हम सब रीडिंग कॉर्नर क्या है? इसका महत्त्व क्या है? इस पर एक स्तर की समझ बना चुकें है। अब समझने की कोशिश करते है इसके कक्षावार बनाने की प्रक्रिया क्या होगी, जिससे कक्षा में एक बेहतर रीडिंग कॉर्नर का निर्माण हो सके, जो रोचकता से भरा हो-

अपनी नई जिम्मेदारियों में मैने  सबसे पहले अकलतरा विकासखंड के कापन संकुल के प्राथमिक स्कूल महुआडीह में शकुंतला मैम के साथ मिलकर कक्षावार रीडिंग कॉर्नर बनाने की योजना बनाई| जिसमें हम दोनो लोग मिलकर ये तय किये की किताबों की संख्या कितनी होगी, बच्चो के स्तर अनुरूप किताबो का चयन कैसे

  • सबसे पहले हमलोग एक मजबूत रस्सी और काजू क्लिप को बाजार से लाये और उसे स्कूल के प्रत्येक कक्षा में लगाया गया।
  • स्कूल में आई हुई 100 दिन 100 कहानियों वाली किताबो को प्रत्येक कक्षा के स्तर अनुरूप 20- 20 किताबो का चयन किया गया साथ कुछ पुस्तक प्रथम फाउंडेशन और NCBT की कुछ पुस्तकों को रखा गया।
  • अब इन किताबो में से बच्चो ने अपने अपने पसंद की किताबो को चयन करेंगे और खुद ही रस्सी पर टाँगेगे ताकि उनमें अपनत्व की भावना विकसित हो।
  • एक रंग-बिरंगी चार्ट पेपर पर “पढ़ने का कोना” लिखकर लगाया जायेगा।
  • फिर एक रजिस्टर को रखा जायेगा जिसमें जो बच्चे एक महीने में जितने किताब पढ़ेंगे या ले जाएंगे उसको दर्ज की जायेगी ताकि ये देखा जा सके की कितने बच्चे, महीने में कितने किताब पढ़ रहे है? ठीक सत्र के अंत में देखा जायेगा की प्रत्येक बच्चों ने कितनी किताबे को पढ़ पाये।

Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव

  • किताबो को कोई नहीं फाड़ेंगे।  
    • किताबो को जिसको घर ले जाना होगा तो सबसे  पहले रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करेगा और सुरक्षित उसे वापस करेगा।
    • किताबों को पढ़ने के बाद उसे स्वयं ही रीडिंग कॉर्नर में लटकाएंगे।  
    • हर दिन 30 मिनट प्रत्येक बच्चो को रीडिंग कॉर्नर से किसी भी किताब को पढ़ेंगे।
  • हर एक महीने में टांगी हुई किताबो को हटाकर फिर से कुछ नई किताबो को टांगा जायेगा।
  • किताबे किटने और फटने पर सभी बच्चों के साथ मिलकर उसकी मरम्मत की जायेगी।
  • बच्चे जब किताबे पढ़ रहे होंगे तो जो बच्चे नहीं पढ़ पा रहे होंगे तो उनकी मदद करना।
  • बच्चे किताब पढ़ने के बाद कुछ बच्चे अक्सर पुस्तक पढ़ने के बाद उल्टा-पुलट लटका देते है, उसे सीधा और सही तरीके से लटकना और बच्चों को निर्देशित करना की हर दिन पुस्तक पढ़ने के बाद सही तरीके से ही लटकाएंगे।
  • शिक्षक स्वयं भी पठन करेंगे और बच्चों के साथ बैठकर कुछ पढ़ कर सुनायेगे|

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इन्ही प्रक्रियाओ और नियमों के साथ मैने कुछ और माध्यमिक और प्राथमिक स्कूलों में रीडिंग कॉर्नर को बनाया जैसे प्राथमिक स्कूल खपरीडीह, प्राथमिक स्कूल घनवा, प्राथमिक स्कूल महुवाडीह, माध्यमिक स्कूल महुवाडीह  इत्यादि, में रीडिंग कॉर्नर को बनाया, जैसे-जैसे एक दो हफ्ते के बाद भी अलग अलग प्रकार की  समस्या शिक्षक साथी गिनाने लगे जो कुछ इस प्रकार था-

  • बच्चे किताबो को फाड़ रहे है।
    • वो अपने द्वारा बनाये नियम को भूल चुके है।
    • कई बच्चे किताबो को लेकर घर चले जा रहे है रजिस्टर में नाम दर्ज नहीं कराते।   
    • दो से तीन दिन बच्चे रोज-रोज किताबो को पढ़ रहे थे, लेकिन अब उतनी रुचि के साथ नहीं पढ़ते है।

इस प्रकार की समस्याये आने लगी, ये समस्या आना लाज़िम था क्योंकि बच्चो को कभी इस प्रकार से किताबे पढ़ने की आदत ही नहीं है और खासकर प्राथमिक स्कूल के बच्चो में तो ये न के बराबर दिखता है और बड़ी कक्षाओं में भी यही स्थिति है क्योंकि टेक्स्टबुक के आलावा बहुत कम बच्चे अन्य पुस्तक पढ़ते है। तो इन चुनौतियों के समाधान के लिये सभी शिक्षकों से मिलना हुआ और हम इस समस्या के समाधान के लिये क्या-क्या कर सकते है ।

इस पर चर्चा की गयी, तो सभी की एक राय बनी की शुरुवाती दिनों में तय की गयी जिम्मेदारियों को अच्छे से लागू करने की कोसिस करेंगे जो बच्चो को किताब पढ़ने के लिये रोज एक 30 मिनट की एक पीरियड होगी जिसमें बच्चे सिर्फ किताब ही पढ़ेंगे और शिक्षक जो बच्चे नही पढ़ पा रहे होंगे उनकी मदद करेंगे और बच्चो के सामने शिक्षक भी बैठकर पढ़ेंगे और उन्हे सुनायेगे।

दूसरी चीज हम लोग कोशिश करेंगे कि बच्चो को नैतिकता से संबंधित कुछ उदाहरण देकर बच्चो को किताब न फाड़ने को लेकर भावना को विकस कर सके जैसे कुछ शिक्षक साथियों ने बेहतरीन तरीका अपनाया जैसे रश्मि मैम, जब भी कोई बच्चा किताब को फाड़ता तो एक उदाहरण देती “बच्चो अगर हमारी शर्ट को कोई फाड़े तो कैसा लगेगा तो बच्चे बोले मैम बुरा लगेगा, तो जरा सोचो अपलोग किताब को फाड़ोगे तो किताब को कैसा लगेगा, तो कुछ बच्चे बोलते किताब को बुरा लगेगा तो कुछ बोले किताब रोने लगता होगा तो बताओ क्या हमें किताब फाड़ना चाहिए? तो सभी बच्चे एक स्वर में बोले नहीं “

इसका काफी सकारात्मक असर दिखा और प्राथमिक शाला खपरीडीह में अभी एक भी पुस्तक बच्चे नहीं फाड़ते है ठीक कुछ शिक्षक साथी थोडे कठोर कदम उठाये जैसे की जो किताब को फाड़ेगा उसे ही उसकी मरमत करना होगा।

पठन में रोचकता लाने के लिए भी शिक्षको ने कुछ रचनात्मक कदम उठाये जैसे कि जो पढ़ेगा उसको चॉकलेट मिलेगा कुछ शिक्षको ने बच्चो को स्माइली देने की प्रक्रिया अपनाई, धीरे-धीरे  बच्चो में जब किताब पढ़ने की आदत बनने लगी तो ये समस्याऐ थोड़ी कम हो गई और जब शिक्षक साथी विकासखंड के व्हाट्सएप समूह में साझा करने लगे तो अन्य शिक्षक साथी भी इससे प्रेरित हुए और अपने स्कूलों में भी बनाने का प्रयास किये और कुछ स्कूलों में मुझे स्वयं ही बनाना पड़ा।

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ऐसे ही मुझे प्राथमिक शाला घनवा में नेहा मैम के साथ मिलकर रीडिंग कॉर्नर बनाने हेतु गया तो शिक्षक साथियों ने कहा सर हमलोग कक्षा 3,4 और 5 में बनाएंगे फिर मैने कहा मैम 1 और 2 में क्यों नहीं?, तो शिक्षक साथियों का मानना था की पहली और दूसरी कक्षा में बच्चे तो सिर्फ किताब देखते है वो कहा पढ़ पाते है|

ऐसा ही कुछ सवाल आप सभी के मन में आता होगा की पहली और दूसरी कक्षा में रीडिंग कॉर्नर की क्या जरूरत है? तो इस पर मेरा अनुभव कहता है कि जितना जरूरी अन्य कक्षाओं में है उतना ही जरूरी कक्षा पहली और दूसरी में है बशर्ते उसमें किताबो का चयन बच्चो के अनुकूल हो, तो चलिए कुछ स्कूलों में पहली और दूसरी कक्षा में बनाये गये रीडिंग कॉर्नर के महत्व और उसके उपयोग और महत्व को समझते है।

कक्षा पहली और दूसरी में रीडिंग कॉर्नर:-

मैं यहां प्राथमिक शाला खपरीडीह की शिक्षिका रश्मि मैम और प्राथमिक शाला महुआडीह की शिक्षिका शकुंतला कुर्रे के कक्षा 1 और 2 में किये जा रहे प्रयोगों का जिक्र जरूर करना चाहूंगा।

Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव

इन दोनो शिक्षिका के साथ भी उपर बताई की नियम के साथ रीडिंग कॉर्नर बनाई गई थी और इन्हे भी वही समस्याऐ/ चुनौतियों का सामना करना पड़ा था और ये तो पहली और दूसरी के बच्चे के थे तो आप समझ सकते है इन बच्चो को संभालना कितना मुश्किल होता होगा। दोनो शिक्षिकाओ ने रीडिंग कॉर्नर के माध्यम से बच्चो को इंगेज करने में खूब इस्तेमाल किया| जिसका नतीजा ये रहा की जब मैम कक्षा में नही होती है,  तो भी बच्चो स्वत: से पुस्तको को लेकर देखते रहते है।

अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा सिर्फ देखते ही तो होंगे वो पढ़ कहाँ रहे है तो बात बिलकुल भी सही है की कक्षा 1 और 2 के बच्चो से अपेक्षा करना की वो धाराप्रवाह पढ़ लेंगे तो ये कपोल कल्पना होगी, फिर भी बच्चो का किताब के साथ जुड़ाव और पुस्तक की चित्रों को देखकर उस बातचीत करना उनके मौखिक भाषा विकास में काफी सहायक होता है तो समझते है की इन दोनों शिक्षिका ने कैसा किताबो का चयन किया।

  • कक्षा पहली के लिए सिर्फ और सिर्फ चित्रात्मक पुस्तको को रखा गया।
  • वही कक्षा दो के लिए 5 पुस्तक चित्रात्मक और 5 पुस्तक चित्रात्मक और उन चित्रों के साथ छोटे छोटे एक लाइन का वाक्य लिखा हो।
Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव

बस, इन्ही दो प्रकार के किताबो का चयन कर शिक्षिका ने अपनी कक्षा में लागतार प्रयोग करना शुरू की, शुरुवात के दिनो में एक-एक बच्चो के साथ बैठकर चित्र पठन करती और बच्चो से बातचीत करती, जो बच्चे पहले बिलकुल भी नहीं बोलते थे, वो धीरे धीरे बोलना शुरू किये चित्रों को पहचाना शुरू किये, ये छोटी से सफलता दिखाता है कक्षा पहली और दूसरी में रीडिंग कॉर्नर का होना कितना जरूरी है|

अगर शिक्षक साथी कक्षा पहली से बच्चो को किताबो के प्रति रुचि जागृत करेंगे तो मेरा ऐसा मानना है की कक्षा 5 तक जाते जाते बच्चे की पठन और लेखन दोनो बेहद शानदार हो सकती है। अब आपके मन में आयेगा रीडिंग कॉर्नर को लेखन से कैसे जोड़ सकते है, जी हां आप उसका इस्तेमाल रचनात्मक लेखन के रूप में कर सकते।

हम सभी जानते है कि अगर बच्चो के हाथ में पुस्तक होती है, तो वे न सिर्फ पढ़ते है, बल्कि किताब में शामिल कहानियों, कविताओ की नकल भी लिखते रहते है, जिससे सिर्फ उनके हैंडराइटिंग बेहतर होते है जबकि रचनात्मकता पीछे छूटती चली जाती है तो मैंने सोचा क्यों ना बच्चो को रचनात्मकता की ओर ले जाया जाय, तो इसका प्रयोग प्राथमिक स्कूल घनावा में कक्षा 5 के बच्चो के साथ किया जिनका लेखन भी उतना अच्छा नहीं था लेकिन सोचा अगर ये बच्चे अपनी पढ़ी किसी एक किताबों  के बारे में 4- 5 लाइन अपने अनुभवों को लिख दे तो ये सबसे बड़ी सफलता होगी|


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रीडिंग कॉर्नर का बच्चों और स्कूल पर पड़ा प्रभाव:-

  •  बच्चों में किताबों के प्रति जिमेदारी की भावना विकसित हुई।
  • बच्चों में पढ़ने लिखने की आदत का विकास विकास हुआ, जो बच्चे किताबों से दूर भागते थे, उनमें किताबों के प्रति रुचि जागृत हुई।
  • बच्चों में किताबो के प्रति स्वामित्व की भावना का विकास हुआ, जिसकी वजह से किताबों को बिना पूछे ले जाना की आदत दूर हुई, वही किताबों को फाड़ने भी बंद हुआ।  
  • जब बच्चे किताबों को अपने घर ले जाना शुरू किये तो उनमें पाया की अभिभावक भी उनके पढ़ने में  मदद करते है।
Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव

अगर हम सभी शिक्षक साथी अपनी-अपनी कक्षाओं में रीडिंग कॉर्नर को बनाये और उसका इस्तेमाल करना शुरू करे तो बच्चो में किताबो के प्रति रुचि और रोचकता दोनो विकसित करने में सहायक होगी| साथ ही बच्चो की पढ़ने लिखने के स्तर में भी वृद्धि होगी। “एक कोना बच्चो के नाम” मुहिम के तहत आप सभी अपने स्कूल की कक्षाओं में एक रीडिंग कार्नर बनाने का प्रयास करेंगे। मुझे उम्मीद है आप सब इस मुहिम का हिस्सा बनना पसंद करेंगे।

पुस्तकालय हमारे स्कूल का अभिन्न हिस्सा है जिसके बिना स्कूल की संकल्पना करना मुश्किल है| पुस्तकालय बच्चों में स्वतंत्र पठन की आदतों को विकसित करने में मदद करता है, पुस्तकालय का ही एक छोटा प्रारूप कक्षाओं में पढ़ने के कोना के रूप में हमारे स्कूलों में स्थापित की जाती है जो बच्चों को पढ़ने लिखने और सीखने-सीखाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस लेख के माध्यम से रीडिंग कॉर्नर क्या है? कैसे रोचक बना सकते हैं? इसका महत्व क्या है? यह भाषा शिक्षण सीखने और स्कूल में पढ़ने लिखने की समृद्ध वातावरण को विकसित करने में कैसे मदद करता है? इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास करता है।

Exciting experience of reading corner / रीडिंग कॉर्नर का रोमांचक अनुभव आलेख पाठशाला पुस्तक के कक्षनुभाव के पृष्ट 49 से 54 तक साभार प्राप्त हुआ हैं |

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