RBSE BSER CLASS X SCIENCE LESSON 4 IMMUNITY AND BLOOD GROUPS
(M.Sc. M.A. B.Ed.)
SCIENCE EDUCATOR,
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Board | RBSE |
Textbook | SIERT, Rajasthan |
Class | Class 10 |
Subject | Science |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | प्रतिरक्षा एवं रक्तसमूह . |
Number of Questions Solved | 74 |
Category | RBSE CLASS X |
आपकी पाठ्य पुस्तक के प्रश्न
बहुचयनात्मक प्रश्न
(क) अस्थिमज्जा
(ख) यकृत
(ग) आमाशय
(घ) लसीका पर्व
(क) बी लसीका कोशिका
(ख) टी लसीका कोशिका
(ग) न्यूट्रोफिल
(घ) क व ग दोनों
(क) प्रतिजन
(ख) IgG प्रतिरक्षी
(ग) IgM प्रतिरक्षी
(घ) प्लाविका कोशिका
(क) IgG
(ख) IgM
(ग) IgD
(घ) IgE
(क) IgG
(ख) IgM
(ग) IgD
(घ) IgA
(क) लाल रक्त कोशिकाएं
(ख) श्वेत रक्त कोशिकाएं
(ग) बी लसीका कोशिकाएं
(घ) उपकला कोशिकाएं
(क) लुइस पाश्चर
(ख) कार्ल लैण्डस्टीनर
(ग) रार्बट कोच
(घ) एडवर्ड जेनर
(क) A
(ख) AB
(ग) O
(घ) B
(क) शिशु में रक्ताधान
(ख) आर एच बेजोड़ता।
(ग) ए बी ओ बेजोड़ता
(घ) क व ग दोनों
(क) व्यक्ति के स्वयं के संग्रहित रक्त का
(ख) अन्य व्यक्ति के संग्रहित रक्त का
(ग) भेड़ के संग्रहित रक्त का
(घ) क व ख दोनों
(क) हेपेटाइटिस बी
(ख) मलेरिया
(ग) रुधिर लवणता
(घ) क्रुएटज्फेल्डट जैकब रोग
(क) A-रुधिर वर्ग
(ख) B-रुधिर वर्ग
(ग) O-रुधिर वर्ग
(घ) AB-रुधिर वर्ग
(क) हीमोफीलिया का इलाज
(ख) मलेरिया का इलाज
(ग) डेंगू का इलाज
(घ) ख व ग दोनों
(क) 13 सितम्बर
(ख) 13 अगस्त
(ग) 13 मई
(घ) 13 जून
(क) 0.1
(ख) 2.0
(ग) 0.8
(घ) 1.8
उत्तरमाला
2. (क)
3. (क)
4. (ख)
5. (घ)
6. (घ)
7. (ख)
8. (ग)
9. (ख)
10. (क)
11. (ख)
12. (ग)
13. (घ)
14. (ख)
15. (ग)
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
उत्तर- मनुष्य में दो प्रकार की प्रतिरक्षी विधियाँ पाई जाती हैं
- स्वाभाविक प्रतिरक्षा विधि
- उपार्जित प्रतिरक्षा विधि।
प्रश्न 17. प्रतिरक्षी कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर- प्रतिरक्षी पाँच प्रकार के होते हैं।
उत्तर- प्रतिजन का आण्विक भार 6000 डाल्टन अथवा उससे ज्यादा होना चाहिए।
उत्तर- प्रतिरक्षी गामा ग्लोबुलिन प्रकार की प्रोटीन है।
उत्तर- IgG प्रतिरक्षी आँवल को पार कर भ्रूण में पहुँच सकता है।
उत्तर- मास्ट कोशिका पर पाई जाने वाली प्रतिरक्षी का नाम IgE है।
उत्तर- रक्त में उपस्थित लाल रक्त कोशिका (RBC) गैसों के विनिमय में संलग्न होती है।
उत्तर- रक्त का वर्गीकरण वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टीनर के द्वारा किया गया।
उत्तर-‘O’ रक्त समूह वाले व्यक्ति सर्वदाता हैं।
उत्तर- AB रक्त समूह में ‘A’ व ‘B’ दोनों ही प्रतिजन उपस्थित होते हैं।
उत्तर- विश्व के लगभग 85% व्यक्तियों का रक्त आरएच धनात्मक होता है।
उत्तर- Rh.D कारक सबसे महत्त्वपूर्ण है।
उत्तर- प्रथम रक्ताधान डॉ. जीन बेप्टिस्ट डेनिस द्वारा सम्पादित किया गया।
उत्तर- ऐसा आधान जिसमें अन्य व्यक्तियों के संग्रहित रक्त का उपयोग किया जाता है, उसे समजात आधान कहते हैं।
उत्तर- IA, IB तथा IO या i
उत्तर- भारत में हर वर्ष 13 अगस्त को अंगदान दिवस मनाया जाता है।
उत्तर- (i) डॉ. विष्णु प्रभाकर
(ii) श्री ज्योति बसु
लघूत्तरात्मक
उत्तर- शरीर में एन्टीजन के प्रवेश होने पर इसे एन्टीजन के विरुद्ध शरीर की B लिम्फोसाइट कोशिकाओं द्वारा स्रावित ग्लाइकोप्रोटीन पदार्थ प्रतिरक्षी अथवा एन्टीबॉडी कहलाते हैं।प्रतिरक्षी को इम्यूनोग्लोबिन (संक्षिप्त में Ig) कहते हैं। ये प्लाज्मा कोशिकाओं द्वारा निर्मित गामा ग्लोबुलिन (γ-globulin) प्रोटीन है जो प्राणियों के रक्त तथा अन्य तरल पदार्थों में पाए जाते हैं।
उत्तर- प्रतिजन सम्पूर्ण अणु के रूप में प्रतिरक्षी से प्रतिक्रिया नहीं करता वरन् इसके कुछ विशिष्ट अंश ही प्रतिरक्षी से जुड़ते हैं। इन अंशों को एण्टीजनी निर्धारक (Antigenic determinant or epitope) कहा जाता है।प्रोटीन में करीब 6-8 ऐमीनो अम्लों की एक श्रृंखला एन्टीजनी निर्धारक के रूप में कार्य करती है। एक प्रोटीन में कई एन्टीजनी निर्धारक हो सकते हैं। इनकी संख्या को एन्टीजन की संयोजकता कहा जाता है। अधिकतर जीवाणुओं में एन्टीजनी संयोजकता सौ या अधिक होती है।
उत्तर- अधिकांश प्रतिरक्षियों के Y स्वरूप में दोनों भुजाओं के उद्गम स्थल लचीले होते हैं जिन्हें कब्जे अथवा हिन्ज कहते हैं। लचीले होने के कारण हिन्ज प्रतिरक्षी के अस्थिर भाग को प्रतिजन के छोटे-बड़े अणु समाहित कर अभिक्रिया करने में सहायता करता है।
उत्तर- रक्त एक परिसंचारी (circulating) तरल ऊतक है जो रक्तवाहिनियों एवं हृदय में होकर पूर्ण शरीर में निरन्तर परिक्रमा करके पदार्थों का स्थानान्तरण करता रहता है। रक्त क्षारीय माध्यम का होता है तथा इसका pH 7.4 होता है। मनुष्य में लगभग 5 लीटर रक्त पाया जाता है।रक्त प्लाज्मा व रक्त कणिकाओं से मिलकर बना होता है। रक्त के द्रव भाग को प्लाज्मा कहते हैं जो निर्जीव होता है। प्लाज्मा आँतों से शोषित पोषक तत्त्वों को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाने तथा विभिन्न अंगों से हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगों तक लाने का कार्य करता है। प्लाज्मा में तीन प्रकार की कणिकाएँ पाई जाती हैं(अ) लाल रक्त कणिकाएँ (Red Blood Corpuscles)- ये कणिकाएँ गैसों के परिवहन एवं गैस विनिमय का कार्य करती हैं।
(ब) श्वेत रक्त कणिकाएँ (White Blood Corpuscles)- श्वेत रक्त कणिकाएँ शरीर की रोगाणुओं से रक्षा करती हैं।
(स) बिम्बाणु (Platelets)- ये कणिकाएँ रक्त वाहिनियों की सुरक्षा एवं रक्तस्राव रोकने में मदद करती हैं।
उत्तर- RBC की सतह पर मुख्य रूप से दो प्रकार के प्रतिजन (Antigen) पाये जाते हैं, जिन्हें प्रतिजन ‘A’ व प्रतिजन ‘B’ कहते हैं। इन प्रतिजनों (Antigens) की उपस्थिति के आधार पर रक्त समूह चार प्रकार के होते हैं, जिन्हें क्रमशः A, B, AB तथा O समूह कहते हैं। इस वर्गीकरण को A B O समूहीकरण कहते हैं।
A रुधिर समूह की लाल रुधिर कणिकाओं पर A प्रतिजन तथा B रुधिर समूह की लाल रुधिर कणिकाओं पर B प्रतिजन पाया जाता है। AB प्रकार के रुधिर समूह की लाल रुधिर कणिकाओं पर A व B दोनों प्रकार के प्रतिजन पाये जाते हैं। जबकि O रुधिर समूह की RBC पर कोई किसी प्रकार का प्रतिजन नहीं पाया जाता है अर्थात् A तथा B प्रतिजनों का अभाव होता है। देखिए ऊपर तालिका में।
उत्तर- आर एच कारक-लैण्डस्टीनर तथा वीनर ने मकाका रीसस (Macaca rhesus) बंदर की RBC में एक अन्य प्रकार के कारक का पता लगाया था। इसे Rh कारक का नाम दिया गया। (Rh) संकेत का प्रयोग रेसिस शब्द को दर्शाने के लिए किया गया है। जिन व्यक्तियों में यह कारक पाया जाता है, उन्हें Rh धनात्मक (Rh+) और जिनमें नहीं पाया जाता है उन्हें Rh ऋणात्मक (Rh-) कहते हैं। विश्व में 85 प्रतिशत जनसमुदाय Rh+ जबकि शेष 15 प्रतिशत Rh- हैं।आर एच कारक का महत्त्व- Rh- व्यक्ति में Rh एन्टीजन का अभाव होता है, लेकिन इसके रुधिर में Rh एन्टीजन प्रवेश करवा दिये जाने पर इससे कारक के प्रतिरोध में एण्टीबॉडी बनना प्रारम्भ हो जाती है जो रुधिर समूहन (agglutination) क्रिया का कारण बनते हैं। Rh कारक के कारण कई बार जन्म के समय बच्चे की मृत्यु भी हो जाती है। रुधिर समूहने के कारण भ्रूण की RBCs में हीमोलाइसिस द्वारा क्षति होती है। इसके फलस्वरूप एरिथ्रॉब्लास्टोसिस फीटेलिस नामक रोग हो जाता है। इसके कारण शिशु की मृत्यु हो जाती है।
उत्तर- रक्ताधान वह विधि है जिसमें एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के परिसंचरण तंत्र में रक्त या रक्त आधारित उत्पादों जैसे प्लेटलेट्स, प्लाज्मा आदि को स्थानान्तरित किया जाता है। सबसे पहले फ्रांस के वैज्ञानिक डॉ. जीन बेप्टिस्ट डेनिस द्वारा 15 जून, 1667 में रक्ताधान सम्पादित किया। उन्होंने 15 वर्षीय एक बालक में भेड़ के रक्त से रक्ताधान करवाया था।लेकिन इसके दस वर्ष बाद पशुओं से मानव में रक्ताधान पर रोक लगा दी गई। निम्न परिस्थितियों में रक्ताधान किया जा सकता है
- दुर्घटना के तहत लगी चोट तथा अत्यधिक रक्तस्राव होने पर।
- शरीर में गम्भीर रक्तहीनता होने पर।
- रक्त में बिम्बाणु (Platelets) अल्पता की स्थिति में।
- हीमोफीलिया के रोगियों को।
- शल्यक्रिया के दौरान ।
- दात्र कोशिका अरक्तता (Sickle Cell anemia) के रोगियों को।
रक्तदान से व्यक्तियों/रोगियों को नया जीवनदान दिया जाता है। अतः रक्तदान हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 40. रक्तदान के दौरान बरती जाने वाली सावधानियाँ लिखें।
उत्तर- रक्तदान के दौरान बरती जाने वाली सावधानियाँ निम्नलिखित हैं
- रोगी व रक्त देने वाले व्यक्ति अर्थात् दाता के रक्त में ABO प्रतिजन का मिलान करना चाहिए।
- दाता के रक्त में कोई किसी भी प्रकार की गड़बड़ तो नहीं है, इसके लिए जाँच की जानी चाहिए।
- दोनों के रक्त में Rh कारक का मिलान करना चाहिए विशेष रूप से RhD का।।
- संग्रहित रक्त की वांछित प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद प्रशीतित भण्डारण करना।
- किसी भी स्थिति में संग्रहित रक्त को संदूषण से बचाये रखना।
- संग्रहण व आधान आवश्यक रूप से चिकित्सक की उपस्थिति में ही हो।
प्रश्न 41. अंगदाने की आवश्यकता समझाइए।
उत्तर- अंगदान-किसी जीवित या मृत व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्ति को कोई ऊतक या अंगदान करना अंगदान (Organ donation) कहलाता है। दाता द्वारा दिया गया अंग ग्राही के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। अंगदान द्वारा दूसरे व्यक्ति की जिंदगी को न केवल बचाया जा सकता है बल्कि उसके जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है। एक मृत देह से करीब 50 जरूरतमंद लोगों की मदद की जा सकती है।भारत में हर वर्ष करीब दो लाख गुर्दे दान करने की आवश्यकता है जबकि मौजूदा समय में प्रतिवर्ष 7000 से 8000 गुर्दे ही मिल पाते हैं। इसी प्रकार करीब 50,000 लोग हर वर्ष हृदय प्रत्यारोपण की आस में रहते हैं परन्तु उपलब्धता केवल 10 से 15 की ही है। प्रत्यारोपण के लिए हर वर्ष भारत में 50,000 यकृत की आवश्यकता है परन्तु केवल 700 व्यक्तियों को ही यह मौका प्राप्त हो पाता है। कमोबेश यही स्थिति सभी अंगों के साथ है। एक अनुमान के हिसाब से भारत में हर वर्ष करीब पाँच लाख लोग अंगों के खराब होने तथा अंग प्रत्यारोपण ना हो पाने के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।अतः अंगदान एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।
उत्तर- मनुष्य में रुधिर के कई प्रकार पाये जाते हैं, जिन्हें A B O रुधिर तंत्र के नाम से सम्बोधित किया जाता है। रुधिर वर्ग का नियंत्रण तीन विकल्पियों (alleles) के आपसी तालमेल पर निर्भर करता है। ये तीनों विकल्पी एक ही जीन के भाग होते हैं तथा IA, IB तथा IO या i के द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। RBC की कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले प्रतिजन A (Antigen A) तथा प्रतिजन B (Antigen B) का निर्माण क्रमशः विकल्पी IA तथा IB द्वारा किया जाता है। विकल्पी I तथा i अप्रभावी होते हैं तथा किसी प्रतिजन के निर्माण में संलग्न नहीं होते हैं ।
किसी मनुष्य में अभिव्यक्त रक्त वर्ग किन्हीं दो विकल्पियों के बीच की पारस्परिक क्रिया पर निर्भर है। मनुष्यों में विकल्पी की उपस्थिति के आधार पर रुधिर के कुल छः प्रकार के जीन प्रारूप पाए जाते हैं। देखिए ऊपर सारणी में।
निबन्धात्मक प्रश्न
उत्तर- प्रतिरक्षी की संरचना-यह जटिल ग्लाइको प्रोटीन से मिलकर बना अणु होता है, जिसमें चार पालीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ दो भारी व बड़ी (440 अमीनो अम्ल) तथा दो हल्की व छोटी श्रृंखला (220 अमीनो अम्ल) आपस में डीसल्फाइड बंध द्वारा मुड़कर Y आकृति बनाती है। देखिए आगे चित्र में प्रतिरक्षी को प्रदर्शित किया जाता है।भारी पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला पर कार्बोहाइड्रेट श्रृंखला जुड़ी होती है। प्रत्येक भारी व हल्की श्रृंखला दो भागों में विभक्त होती है|
(1) अस्थिर भाग
(2) स्थिर भाग।
- अस्थिर भाग (Variable portion)- यह भाग प्रतिजन से क्रिया करता है तथा श्रृंखला के NH2 भाग की तरफ पाया जाता है। इसे Fab भी कहते हैं।
- स्थिर भाग (Constant portion)- यह भाग श्रृंखला के COOH भाग की तरफ होता है तथा Fc भाग कहलाता है। प्रतिरक्षी के पुच्छीय भाग (Tail portion) को स्थिर भाग कहते हैं।
अधिकतर प्रतिरक्षियों के Y स्वरूप में दोनों भुजाओं के उद्गम स्थल लचीले होते हैं जो कब्जे अथवा हिन्ज (Hinge) कहलाते हैं । लचीले होने के कारण हिन्जप्रतिरक्षी के अस्थिर भाग को प्रतिजन के छोटे-बड़े अणु समाहित कर अभिक्रिया करने में मदद करते हैं।
हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के एन्टीबॉडी उत्पन्न किये जाते हैं, जिनमें से कुछ निम्न हैं- IgA, IgM, IgE एवं IgG।
उत्तर-
यदि Rh- माता एक से अधिक बार Rh+ शिशु से युक्त गर्भधारण करती है तो Rh कारक के कारण गम्भीर समस्या उत्पन्न हो जाती है। Rh कारक वंशागत होता है। Rh+ प्रभावी तथा Rh- अप्रभावी होता है। Rh- माता से उत्पन्न Rh+ शिशु पिता से Rh कारक प्राप्त करता है। प्रसव के समय गर्भस्थ Rh+ शिशु से Rh प्रतिजन माता के रक्त में प्रवेश कर जाते हैं। माता के रक्त में इस प्रतिजन (Antigen) के कारण एन्टी Rh प्रतिरक्षी (Antibody) उत्पन्न हो जाती है। सामान्यतः प्रतिरक्षी इतनी अधिक मात्रा में नहीं होती जो प्रथम बार उत्पन्न शिशु को हानि पहुँचा सके, लेकिन बाद में गर्भधारण की स्थिति में माता के रक्त से एन्टी Rh प्रतिरक्षी अपरा (Placenta) द्वारा गर्भस्थ शिशु के रक्त में पहुँचकर शिशु के रक्त कणिकाओं का लयन (Haemolysis) कर देती है।गर्भस्थ शिशु या नवजात शिशु के इस घातक रोग को रक्ताणुकोरकता (Erythroblastosis) कहते हैं। इस रोग से ग्रसित शिशु को रीसस शिशु (Rhesus baby) कहते हैं। सामान्यतः इसका जन्म समय पूर्व होता है तथा इसमें रक्ताल्पता पाई जाती है। शिशु के सम्पूर्ण रक्त को स्वस्थ रुधिर द्वारा प्रतिस्थापित करके शिशु को बचाया जा सकता है।
चित्र-गर्भ रक्ताणुकोरकता (Erythroblastosis fetalis)
प्रथम प्रसव के 24 घण्टों के भीतर माता को प्रति IgG प्रतिरक्षियों (anti RhD) का टीका लगाकर इसका उपचार किया जाता है। इन्हें रोहगम (Rhogam) प्रतिरक्षी कहा जाता है। ये प्रतिरक्षी माता के शरीर में प्रतिरक्षी उत्पन्न होने से रोकती है।
उत्तर-
रक्ताधान की प्रक्रिया (Process of Blood Transfusion)रक्ताधान की प्रक्रिया निम्न प्रकार से की जाती है
1. रक्त संग्रहण (Blood Collection)-
- रक्त के संग्रहण से पहले रक्त देने वाले अर्थात् दाता के स्वास्थ्य का परीक्षण किया जाता है।
- तत्पश्चात् उपयुक्त क्षमता वाली प्रवेशनी (Cannula) के माध्यम से निर्जर्मीकृत थक्कारोधी युक्त थैलियों में दाता का रक्त संग्रहित किया जाता है।
- अब संग्रहित रक्त का प्रशीतित भण्डारण किया जाता है, जिससे रक्त में जीवाणुओं की वृद्धि एवं कोशिकीय चपापचय को धीमा करते हैं।
- इस संग्रहित रक्त की कई प्रकार की जाँचें की जाती हैं, जैसे
(अ) रक्त समूह
(ब) आर एच कारक
(स) हिपेटाइटिस बी
(द) हिपेटाइटिस सी
(य) एचआईवी
- दाता से रक्त लेने के पश्चात् दाता को कुछ समय के लिए चिकित्सक की देखरेख में रखा जाता है ताकि उसके शरीर में रक्तदान के कारण होने वाली किसी प्रतिक्रिया का उपचार किया जा सके। मानव में रक्तदान के पश्चात् प्लाज्मा की दोतीन दिन में पुनः पूर्ति हो जाती है एवं औसतन 36 दिनों के पश्चात् रक्त कोशिकाएँ परिसंचरण प्रणाली में प्रतिस्थापित हो जाती हैं।
2. आधान (Transfusion)-
- किसी व्यक्ति (मरीज) के रुधिर चढ़ाने (आधान) से पहले दाता व मरीज के रक्त का मिलान (ABO, Rh आदि) किया जाता है।
- आधान से पूर्व संग्रहित रक्त को 30 मिनट पूर्व ही भण्डारण क्षेत्र से बाहर लाया जाता है।
- रक्त प्रवेशनी (cannula) के माध्यम से मरीज को अंतःशिरात्मक रूप दिया जाता है। इस प्रक्रिया में लगभग चार घण्टे लगते हैं।
- रक्त चढ़ाने (आधान) के दौरान मरीज को ज्वर, ठण्ड लगना, दर्द साइनोसिस (Cyanosis), हृदय गति में अनियमितता को रोकने हेतु चिकित्सक द्वारा औषधियाँ दी जाती हैं।
रक्त के स्रोत के आधार पर रक्तदान दो प्रकार का होता है
(1) समजाते आधान (Allogenic transfusion)- इस प्रकार के आधान में अन्य व्यक्तियों के संग्रहित रक्त का उपयोग किया जाता है।
(2) समजीवी आधान (Autogenic transfusion)- इस प्रकार के आधान में व्यक्ति के स्वयं का संग्रहित रक्त का उपयोग किया जाता है।दान किए हुए रक्त को प्रसंस्करण द्वारा पृथक्-पृथक् भी किया जा सकता है। प्रसंस्करण के बाद रक्त को RBC, प्लाज्मा तथा बिम्बाणु (platelets) में विभक्त कर प्रशीतित में भण्डारण किया जाता है।
उत्तर-
अंगदान-जीवित या मृत व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को कोई ऊतक या अंग दान करना अंगदान कहलाता है। दाता द्वारा दान किया गया अंग ग्राही के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस तरह अंगदान से दूसरे व्यक्ति की जिंदगी को ना केवल बचाया जा सकता है वरन् खुशहाल भी बनाया जाता है। अधिकांश अंगदान दाता की मृत्यु के पश्चात् ही होते हैं।एक मृत देह से करीब पचास जरूरतमंद लोगों की मदद की जा सकती है। अतः अंगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। बच्चों से लेकर नब्बे वर्ष तक के लोग भी। अंगदान व देहदान में सक्षम हैं।अंगदान का महत्त्व-‘पशु मरे मनुज के सौ काम संवारे, मनुज मरे किसी के काम ना आवे।” अतः आवश्यकता है कि मानव मृत्यु (Death) के बाद प्राणिमात्र के काम आ सके। यह तभी सम्भव है जब मृत्यु उपरान्त भी हम दूसरे व्यक्तियों में जीवित रहें, हमारी आँखें, गुर्दे, यकृत, अग्न्याशय, हृदय, फेफड़े, अस्थिमज्जा, त्वचा आदि हमारी मृत्यु के पश्चात् भी किसी जरूरतमंद के जीवन में सुख ला पायें तो इस दान को सात्विक श्रेणी का दान कहा जाता है।भारत में हर वर्ष करीब पाँच लाख लोग अंगों के खराब होने तथा अंग प्रत्यारोपण ना हो पाने के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। अंगदान की भाँति देहदान भी समाज के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसके दो कारण हैं–पहला, मृत देह से अंग निकालकर रोगी व्यक्तियों के शरीर में प्रत्यारोपित किये जा सकते हैं। दूसरा, चिकित्सकीय शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र, मृत देह पर प्रशिक्षण प्राप्त कर बेहतरीन चिकित्सक बन सकें।हम अंगदान व देहदान के महत्त्व को समझें और उन लोगों की मदद करें जिनका जीवन किसी अंग के अभाव में बड़ा कष्टप्रद है। हमें इस नेक कार्य के लिए आगे आकर समाज को इस श्रेष्ठ मानवीय कार्य के लिए प्रेरित करना चाहिए। इस पवित्र कार्य हेतु शिक्षक, साधु-संत, बुद्धिजीवियों आदि की मदद से समाज में व्याप्त अंधविश्वास को दूर कर अंगदान करने के लाभ लोगों तक पहुँचना अति आवश्यक है। इस प्रायोजन से भारत सरकार हर वर्ष 13 अगस्त का दिन अंगदान दिवस के रूप में मनाती है।समाज के कई प्रतिष्ठित व्यक्ति इस नेक काम के लिए आगे आये हैं। कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने 90 वर्ष की उम्र में अपना कॉर्निया दान कर दो लोगों के जीवन में उजाला कर दिया। इसी प्रकार डॉ. विष्णु प्रभाकर, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री श्री ज्योति बसु एवं श्री नाना देशमुख आदि की भी उनकी इच्छानुसार मृत्यु पश्चात् देह दाने कर दी गई।साध्वी ऋतम्भरा तथा क्रिकेटर गौतम गम्भीर ने भी मृत्यु के बाद देहदान करने की घोषणा की है। ऐसे मनुष्य सही मायनों में महात्मा हैं तथा ये ही विचार क्रान्ति के ध्वजक हैं। हम सभी को कर्तव्यबोध के साथ रक्तदान, अंगदान तथा देहदान के लिए संकल्पित होना चाहिए ताकि इस पुनीत कार्य से हमारे समाज में रह रहे हमारे साथी जिंदगी को जिंदगी की तरह जी सकें।
उत्तर-
रुधिर वर्ग का आनुवंशिक महत्त्व-मानव में चार प्रकार के रुधिर वर्ग पाये जाते हैं, जिन्हें क्रमशः A, B, AB तथा O कहते हैं। मानव में रुधिर वर्ग वंशागते लक्षण है एवं जनकों से संततियों में मेण्डल के नियम के आधार पर वंशानुगत होते हैं। रुधिर वर्ग की वंशागति जनकों से प्राप्त होने वाले जीन्स/एलील पर निर्भर करती है। एलील्स जो मनुष्य में रुधिर वर्गों को नियंत्रित करती है, उनकी संख्या तीन होती है, जिन्हें क्रमशः IA, IB तथा IO या i कहते हैं । RBC की सतह पर पाई जाने वाली प्रतिजन का निर्माण एलील IA द्वारा, प्रतिजन B का निर्माण एलील IB द्वारा किया जाता है। एलील I तथा i अप्रभावी होते हैं जो किसी प्रतिजन के निर्माण में सहायक नहीं होते हैं।इस प्रकार मानव में एलील की उपस्थिति के आधार पर रुधिर के छः प्रकारे के जीन प्ररूप (Genotype) पाये जाते हैं।रुधिर वर्ग की आनुवांशिकता के कई उपयोग हैं। इसका उपयोग मुख्य रूप से पैतृकता सम्बन्धी विवादों को हल करने में, सफल रक्ताधान कराने में, नवजात शिशुओं में रुधिर लयनता तथा आनुवांशिक रोगों जैसे हीमोफीलिया आदि में किया जाता है। पैतृकता सम्बन्धी विवादों के हल में रुधिर वर्ग की आनुवांशिकता के ज्ञान को निम्न उदाहरण से समझा जा सकता हैजैसे कि एक शिशु जिस पर दो दंपती अपना हक जता रहे हैं, का रुधिर वर्ग B है। एक दंपती में पुरुष का रुधिर वर्ग O(ii) है तथा स्त्री का रुधिर वर्ग AB(IAIB) है। दूसरे दंपती में पुरुष A(IAIA) तथा स्त्री B(IB i) रुधिर वर्ग की है। वंशागति के नियमानुसार शिशु के रुधिर वर्ग की निम्न सम्भावनाएँ हैं
उपरोक्त चित्र से स्पष्ट होता है कि प्रथम दंपति ही B रुधिर वर्ग का शिशु उत्पन्न कर सकता है।अतः हम कह सकते हैं कि रुधिर वर्ग का आनुवांशिक महत्त्व है।
(अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर)
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(अ) Z
(ब) H
(स) Y
(द) V
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
(अ) प्रोटीन
(ब) ग्लाइकोप्रोटीन
(स) कार्बोहाइड्रेट
(द) उपरोक्त सभी
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
(अ) जिगर (Liver)
(ब) तिल्ली
(स) गुर्दै
(द) उपरोक्त सभी
(अ) 417
(ब) 317
(स) 217
(द) 117
(अ) करीब 30.
(ब) करीब 40
(स) करीब 50
(द) करीब 60
(अ) अपनी हड्डियों का
(ब) अपने धन का
(स) अपने घर का
(द) अपने बच्चों का
(अ) अस्थिमज्जा
(ब) थाइमस
(स) यकृत
(द) उपरोक्त सभी
(अ) टिटेनस के टीके
(ब) त्वचा
(स) आमाशय
(द) आंत्र
(अ) आमाशय
(ब) हड्डियों का
(स) कॉर्निया
(द) हृदय का
उत्तरमाला
1. (स)
2. (द)
3. (द)
4. (द)
5. (द)
6. (अ)
7. (स)
8. (अ)
9. (द)
10. (अ)
11. (स)
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. मां के दूध में पाये जाने वाली प्रतिरक्षी का नाम लिखिए। (माध्य. शिक्षा बोर्ड, 2018)
उत्तर-
मां के दूध में पाये जाने वाली प्रतिरक्षी का नाम IgA है।
प्रश्न 2. गर्भ रक्ताणुकोरकता रोग के उपचार में कौनसे टीके का उपयोग किया जाता है? (माध्य. शिक्षा बोर्ड, 2018)
उत्तर-
गर्भ रक्ताणुकोरकता रोग के उपचार में IgG प्रतिरक्षियों (anti RhD) के टीके का उपयोग किया जाता है। इन्हें रोहगम (Rhogam) प्रतिरक्षी कहा जाता है।
प्रश्न 3. Rh कारक की खोज किस प्रजाति के बंदर में हुई? (माध्य. शिक्षा बोर्ड, मॉडल पेपर, 2017-18 )
उत्तर-
Rh कारक की खोज मकाका रीसस (Macaca rhesus) प्रजाति के बन्दर में हुई।
प्रश्न 4. डिप्थीरिया व टिटेनस के टीके किस प्रकार की प्रतिरक्षा के उदाहरण (माध्य. शिक्षा बोर्ड, मॉडल पेपर, 2017-18)
उत्तर- ये निष्क्रिय प्रतिरक्षा के उदाहरण हैं।
प्रश्न 5. किसी मनुष्य के रुधिर का जीन प्रारूप ii है तो उसका रुधिर वर्ग लिखिए। (माध्य. शिक्षा बोर्ड, मॉडल पेपर, 2017-18 )
उत्तर- ऐसे मनुष्य का रुधिर वर्ग O होगा।
प्रश्न 6. प्रतिरक्षा विज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर- रोगाणुओं के उन्मूलन हेतु शरीर में होने वाली क्रियाओं तथा सम्बन्धित तंत्र में अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान कहते हैं।
प्रश्न 7. मानव का शरीर आसानी से रोगग्रस्त नहीं होता है। क्यों?
उत्तर- मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के कारण यह आसानी से रोगग्रस्त नहीं होता है।
प्रश्न 8. IgE प्रतिरक्षी प्राथमिक रूप से किन कोशिकाओं पर क्रिया करती है?
उत्तर- IgE प्रतिरक्षी प्राथमिक रूप से बेसोफिल तथा मास्ट कोशिकाओं पर क्रिया करती है तथा एलर्जी क्रियाओं में भाग लेती है।
प्रश्न 9. किसी दो भौतिक अवरोधों के नाम लिखिए।
उत्तर-
- त्वचा
- नासिका छिद्रों में पाये जाने वाले पक्ष्माभ।
प्रश्न 10. अधिकांश जीवाणुओं में एण्टीजनी संयोजकतो की संख्या कितनी होती है?
उत्तर- अधिकांश जीवाणुओं में एण्टीजनी संयोजकता 100 या अधिक होती है।
प्रश्न 11. प्रतिरक्षी का वह भाग जो प्रतिजन से क्रिया करता है, वह क्या कहलाता है?
उत्तर-
प्रतिरक्षी का वह भाग जो प्रतिजन से क्रिया करता है, वह पैराटोप (Paratope) कहलाता है।
प्रश्न 12. कब्जे या हिन्ज (Hinge) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रतिरक्षियों के Y स्वरूप में दोनों भुजाओं के उद्गम स्थल कब्जे या हिन्ज कहलाते हैं।
प्रश्न 13. वह कौनसा अकेला प्रतिरक्षी है जो माँ के दूध में पाया जाता है?
उत्तर-
IgA माँ के दूध में पाया जाने वाला अकेला प्रतिरक्षी है।
प्रश्न 14. प्लाज्मा का कोई एक कार्य लिखिए।
उत्तर-
प्लाज्मा आँतों से शोषित पोषक तत्त्वों को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाने का कार्य करता है।
प्रश्न 15. कई बार रक्ताधान के पश्चात् होने वाले रुधिर लयणता का प्रमुख कारण क्या होता है?
उत्तर-
इसका प्रमुख कारण आर एच बेजोड़ता (Rh incompatibility) होता है।
प्रश्न 16. रक्त के स्रोत के आधार पर रक्ताधान कितने प्रकार का होता है? नाम लिखिए।
उत्तर-
रक्ताधान दो प्रकार का होता है
- समजात आधान
- समजीवी आधान।
प्रश्न 17. जीवित या मृत व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को कोई ऊतक या अंग का दान करना क्या कहलाता है?
उत्तर-
यह अंगदान कहलाता है।
प्रश्न 18. सर्वग्राही रक्त समूह कौनसा है ?
उत्तर-
सर्वग्राही रक्त समूह AB है।
प्रश्न 19. लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर मुख्य रूप से कितने प्रकार के प्रतिजन पाये जाते हैं ?
उत्तर-
लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर मुख्य रूप से दो प्रकार के प्रतिजन (प्रतिजन ‘A’ व प्रतिजन ‘B’) पाये जाते हैं।
प्रश्न 20. प्लाज्मा का कार्य लिखिए।
उत्तर-
प्लाज्मार आँतों से अवशोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाने तथा विभिन्न अंगों से हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगों तक लाने का कार्य करता है।
प्रश्न 21. सफल रक्ताधान तथा आनुवांशिक रोगों से निदान हेतु किसकी आनुवांशिकता का ज्ञान परम आवश्यक है?
उत्तर-
सफल रक्ताधान तथा आनुवांशिक रोगों से निदान हेतु रुधिर वर्गों की आनुवांशिकता का ज्ञान परम आवश्यक है।
प्रश्न 22. मृत्यु के कितने घण्टों के भीतर देह को नेत्रदान हेतु काम में लिया जा सकता है?
उत्तर-
मृत्यु के 6 से 8 घण्टों के भीतर देह को नेत्रदान हेतु काम में लिया जा सकता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. प्रतिरक्षा विज्ञान किसे कहते हैं? विशिष्ट प्रतिरक्षा में प्रतिजन के विनाश की कार्यविधि के चरण लिखिए।
उत्तर-
प्रतिरक्षा विज्ञान-रोगाणुओं के उन्मूलन हेतु शरीर में होने वाली क्रियाओं तथा सम्बन्धित तंत्र के अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान कहते हैं।विशिष्ट प्रतिरक्षा में प्रतिजन के विनाश की कार्यविधि के चरण
- अन्तर्निहित प्रतिजन तथा बाह्य प्रतिजन में विभेद करना।
- बाह्य प्रतिजन के ऊपर व्याप्त एण्टीजनी निर्धारकों की संरचना के अनुसार बी-लसिका कोशिकाओं द्वारा प्लाविक कोशिकाओं का निर्माण।
- प्लाज्मा कोशिकाओं द्वारा विशिष्ट प्रतिरक्षियों का निर्माण।
- प्रतिजन-प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया तथा कोशिका-माध्यित प्रतिरक्षा द्वारा प्रतिजन का विनाश।
प्रश्न 2. स्वाभाविक प्रतिरक्षा व उपार्जित प्रतिरक्षा में विभेद कीजिए।
उत्तर-
स्वाभाविक प्रतिरक्षा व उपार्जित प्रतिरक्षा में विभेद
प्रश्न 3. निम्न को परिभाषित कीजिए
- प्रतिरक्षा
- एन्टीजन
- एन्टीबॉडी
- प्रतिरक्षा तंत्र।
उत्तर-
- प्रतिरक्षा (Immunity)-शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रतिरक्षा कहलाती है।
- एन्टीजन (Antigen)-शरीर में प्रवेश करने वाले जीवाणुओं, विषाणुओं एवं विषैले पदार्थों को प्रतिजन (Antigen) कहते हैं। इनको सीधे अथवा विशेष प्रतिरक्षी पदार्थों, एन्टीबॉडीज के द्वारा नष्ट किया जाता है। एन्टीबॉडीज के उत्पादन को उद्दीप्त प्रेरित करने वाले रसायन एन्टीजन कहलाते हैं।
- एन्टीबॉडी (Antibody)-शरीर में एन्टीजन के प्रवेश होने पर इस एन्टीजन के विरुद्ध शरीर की B-लिम्फोसाइट कोशिकाओं द्वारा स्रावित ग्लाइको प्रोटीन पदार्थ एन्टीबॉडी (Antibody) कहलाते हैं ।
- प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System)-शरीर का वह तन्त्र जो शरीर को बीमारी से सुरक्षा प्रदान करता है, प्रतिरक्षा तन्त्र कहलाता है।
प्रश्न 4. पैराटोप (Paratope) किसे कहते हैं? सक्रिय प्रतिरक्षा व निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पैराटोप (Paralope)-प्रतिरक्षी का वह भाग जो प्रतिजन से क्रिया करता है, पैराटोप कहलाता है।
सक्रिय प्रतिरक्षा व निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अन्तर
प्रश्न 5. सक्रिय एवं निष्क्रिय प्रतिरक्षा को समझाइए।
उत्तर-
जब परपोषी प्रतिजनों (एंटीजेंस) का सामना करता है तो शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं। प्रतिजन, जीवित या मृत रोगाणु या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षा (एक्टिव इम्यूनिटी) कहलाती है। सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी होती है और अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय लेती है।प्रतिरक्षीकरण (इम्यूनाइजेशन) के दौरान जानबूझकर रोगाणुओं का टीका देना अथवा प्राकृतिक संक्रमण के दौरान संक्रामक जीवों का शरीर में पहुँचना सक्रिय प्रतिरक्षा को प्रेरित करता है। जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाए प्रतिरक्षी सीधे हीशरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसव इम्यूनिटी) कहलाती है। दुग्धस्रवण (लैक्टेशन) के प्रारम्भिक दिनों के दौरान माँ द्वारा स्रावित पीले से तरल पीयूष (कोलोस्ट्रम) में प्रतिरक्षियों (IgA) की प्रचुरता होती है तो शिशु की रक्षा करता है। सगर्भता (प्रेग्नेंसी) के दौरान भ्रूण को भी अपरा (प्लेसेंटा) द्वारा माँ से कुछ प्रतिरक्षी मिलते हैं। ये निष्क्रिय प्रतिरक्षा के कुछ उदाहरण हैं।
प्रश्न 6. प्रतिरक्षी कितने प्रकार के होते हैं? इनमें उपस्थित भारी श्रृंखला को यूनानी भाषा में किन अक्षरों से दर्शाया जाता है?
उत्तर-
प्रतिरक्षी पाँच प्रकार के होते हैं। इनमें उपस्थित भारी पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला को यूनानी भाषा के अक्षरों α (एल्फा), γ (गामा), δ (डेल्टा), ε (एपसीलन) तथा µ (म्यू) द्वारा दर्शाया जाता है, जो निम्न हैं
प्रश्न 7. रक्त क्या है? प्लाज्मा के कार्य लिखिए। इसमें पाई जाने वाली कणिकाओं का कार्य लिखें।
उत्तर-
रक्त (Blood)-रक्त एक तरल जीवित संयोजक ऊतक है जो गाढ़ा, चिपचिपा व लाल रंग का होता है। रक्त रक्त-वाहिनियों में बहता है। यह प्लाज्मा व रक्त-कणिकाओं से मिलकर बना होता है।
प्लाज्मा के कार्य
- प्लाज्मा आँतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाने का कार्य करता है।
- विभिन्न अंगों से हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगों तक लाने का कार्य करता है।
प्लाज्मा में तीन प्रकार की कणिकाएँ पाई जाती हैं
- लाल रक्त कणिकाएँ (RBC) -इनका कार्य गैसों का परिवहन तथा विनिमय है।
- श्वेत रक्त कणिकाएँ (WBC)- इनका कार्य शरीर की रोगाणुओं से रक्षा करना है।
- बिम्बाणु (Platelets)- इनका कार्य रक्त स्राव को रोकना अर्थात् रुधिर के थक्का बनने में सहायक एवं रक्त वाहिनियों की सुरक्षा करना।
प्रश्न 8. प्रतिरक्षी की संरचना का केवल नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
प्रतिरक्षी की संरचना का नामांकित चित्र
प्रश्न 9. एक दम्पती में पुरुष A तथा स्त्री B रुधिर वर्ग की है तो उनकी संतानों के रुधिर वर्ग की क्यो सम्भावना होगी?
उत्तर-
मेण्डल वंशागति के नियमानुसार पुरुष A तथा स्त्री B रुधिर वर्ग की है, तो संतान के रुधिर वर्ग की उपर्युक्त सम्भावनाएँ हैं।
स्पष्ट है कि उनकी संतान AB रुधिर वर्ग या A रुधिर वर्ग की होगी ।प्रश्न 10.
आर एच कारक (Rh factor) क्या है? मानव में कितने प्रकार के आरं एच कारक पाये जाते हैं तथा इन कारकों की आवृत्ति बताइए।
उत्तर-
आर एच कारक-आर एच कारक करीब 417 अमीनो अम्लों का एक प्रोटीन है जिसकी खोज मकाका रीसस नाम के बंदर में की गई थी। यह प्रोटीन मनुष्य की रक्त कणिकाओं की सतह पर पाया जाता है।
मानव जाति में पाँच प्रकार के आर एच कारक पाये जाते हैं
- Rh.D.
- Rh.E
- Rh.e
- Rh.C
- Rh.c
मानव जाति में आर एच कारकों की आवृत्ति निम्नानुसार हैRh.D (85%), Rh.E (30%), Rh.e (78%), Rh.C (80%) तथा Rh.c (80%)। सभी Rh कारकों में Rh.D सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह सर्वाधिक (Immunogenic) है।
प्रश्न 11. अंगदान किसे कहते हैं? अंगदान व देहदान कौन कर सकता है? समझाइए।
उत्तर-
अंगदान (Organ Donation)-जीवित या मृत व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को कोई ऊतक या अंग का दान करना अंगदान कहलाता है।देहदान व अंगदान कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या लिंग का हो, कर सकता है। यदि किसी व्यक्ति की उम्र 18 वर्ष से कम है तो कानूनी तौर पर उसके माता-पिता की या अभिभावक की सहमति लेना जरूरी है। अंगदान करने वाले व्यक्ति को दो गवाहों की उपस्थिति में लिखित सहमति लेनी होगी। यदि मृत्यु पूर्व ऐसा नहीं किया गया है तो अंगदान व देहदान का अधिकार उस व्यक्ति के पास होता है, जिसके पास शव (Dead Body) का विधिवत आधिपत्य है।भारत में अंगदान व देहदान कानूनी रूप से मान्य है।
प्रश्न 12. प्रतिरक्षी संरचना के आधार पर अस्थिर भाग व स्थिर भाग में क्या अन्तर है?
उत्तर-
अस्थिर भाग व स्थिर भाग में अन्तरअस्थिर भाग
प्रश्न 13. रक्ताधान क्या है? रक्ताधान के दौरान बरती गई असावधानियों के कारण होने वाले रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर-
रक्ताधान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा रक्त आधारित उत्पादों जैसे प्लाज्मा, प्लेटलेट्स आदि को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के परिसंचरण तंत्र में स्थानान्तरित किया जाता है।
आधान के दौरान बरती गई असावधानियों के कारण निम्न रोग हो सकते हैं
- एच.आई.वी.-1 (HIV-1)
- एच.आई.वी.-2 (HIV-2)
- एच.टी.एल.वी.-1 (HTLV-1)
- एच.टी.एल.वी.-2 (HTLV-2)
- हैपेटाइटिस-बी (Hepatitis-B)
- हैपेटाइटिस-सी (Hepatitis-C)
- क्रुएटफेल्ड्ट्ट -जेकब रोग (Creutzfeldt-Jakob disease) आदि।
प्रश्न 14. प्रतिजन व प्रतिरक्षी में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर-
प्रतिजन व प्रतिरक्षी में अन्तर
प्रश्न 15. किन परिस्थितियों में रक्ताधान की परम आवश्यकता होती है?
उत्तर-
निम्नांकित परिस्थितियों में रक्ताधान की परम आवश्यकता होती है
- चोट लगने या अत्यधिक रक्तस्राव होने पर।
- शरीर में गंभीर रक्तहीनता होने पर।
- शल्य चिकित्सा के दौरान।।
- रक्त में बिंबाणु (Platelets) अल्पता की स्थिति में।
- हीमोफीलिया (Hemophilia) के रोगियों को।
- दात्र कोशिका अरक्तता (Sickle cell anemia) के रोगियों को।
प्रश्न 16. भौतिक अवरोधक और रासायनिक अवरोधक में विभेद कीजिए।
उत्तर-
भौतिक अवरोधक व रासायनिक अवरोधक में विभेद
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. व्युत्क्रम संकरण क्या है? जब F1 पीढ़ी का संकरण प्रभावी समयुग्मजी जनक से कराया जाता है, तो प्राप्त संतति में लक्षण-प्ररूप व जीनीप्ररूप अनुपात को समझाइए। (माध्य. शिक्षा बोर्ड, 2018)
उत्तर-
वह संकरण जिसमें ‘A’ पादप (TT) को नर व ‘B’ पादप (tt) को मादा जनक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है तथा दूसरे संकरण में ‘A’ पादप (TT) को मादा व ‘B’ (tt) पादप को नर जनक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, उसे व्युत्क्रम संकरण (Reciprocal Cross) कहते हैं।लक्षणप्ररूप (Phenotype) अनुपात-100% लम्बे
जीनीप्ररूप (Genotype) अनुपात–1 : 1, 50% TT : 50%Tt
प्रश्न 2. प्रतिरक्षा किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार की होती है एवं प्रत्येक का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्रतिरक्षा (Immunity)-शरीर में रोग या रोगाणुओं से लड़कर स्वयं को रोग से सुरक्षित बनाये रखने की क्षमता को प्रतिरक्षा कहते हैं। प्रतिरक्षा दो। प्रकार की होती है
- स्वाभाविक प्रतिरक्षा विधि
- उपार्जित प्रतिरक्षा विधि।
(1) स्वाभाविक प्रतिरक्षा विधि (Innate defense mechanism) –
यह प्रतिरक्षा जन्म के साथ ही प्राप्त होती है अर्थात् यह माता-पिता से संतान में आती है। इसलिए इसे अविशिष्ट या जन्मजात प्रतिरक्षा भी कहते हैं। इस प्रतिरक्षा में हमारे शरीर में कुछ अंग अवरोधक का कार्य करते हैं और रोगाणुओं को शरीर में प्रवेश नहीं करने देते हैं और यदि प्रवेश कर भी जाते हैं तो विशिष्ट क्रियाएँ इन्हें मृत कर देती हैं। स्वाभाविक प्रतिरक्षा चार प्रकार के अवरोधकों से बनी होती है–
- भौतिक अवरोधक।
- रासायनिक अवरोधक
- कोशिका अवरोधक
- ज्वर, सूजन (Inflammation)
(i) भौतिक अवरोधक- हमारे शरीर पर त्वचा मुख्य रोध है जो सूक्ष्म जीवों के प्रवेश को रोकता है। नासा मार्ग, नासिका छिद्रों तथा अन्य अंगों में पाये जाने वाले पक्ष्माभ (cilia) व कशाभ रोगाणुओं को रोकते हैं तथा इनमें उपस्थित श्लेष्मा ग्रन्थियाँ श्लेष्मा स्रावण करती हैं जो रोगाणुओं को अपने ऊपर चिपकाकर उन्हें अन्दर पहुँचने से रोकती हैं।(ii) रासायनिक अवरोधक-आमाशय में पाये जाने वाले एन्जाइम, आमाशय व योनि का अम्लीय वातावरण, जीवाणुओं व अन्य रोगाणुओं को नष्ट कर देता है। त्वचा पर पाये जाने वाले रासायनिक तत्व (सीवम) व कर्ण मोम (सेरुमन) आदि रोगाणुओं के लिए अवरोधक का कार्य करते हैं।(iii) कोशिकीय अवरोधक ( पेल्युलर बैरियर)-हमारे शरीर के रक्त में बहुरूप केन्द्रक श्वेताणु उदासीनरंजी (पीएमएनएल-न्यूट्रोफिल्स) जैसे कुछ प्रकार के श्वेताणु और एककेन्द्रकाणु (मोनासाइट्स) तथा प्राकृतिक, मारक लिंफोसाइट्स के प्रकार एवं ऊतकों में वृहत् भक्षकाणु (मैक्रोफेजेज) रोगाणुओं का भक्षण करते और नष्ट करते हैं।(iv) ज्वर, सूजन आदि।(2) उपार्जित प्रतिरक्षा विधि (Acquired defence mechanism)
इसे विशिष्ट प्रतिरक्षा भी कहते हैं। यह प्रतिरक्षा जन्म के पश्चात् व्यक्ति द्वारा अर्जित की जाती है तथा इसके द्वारा किसी भी जीवाणु के शरीर में प्रवेश करने पर पहचान कर विशिष्ट क्रिया द्वारा नष्ट किया जाता है। विशिष्ट प्रतिरक्षा अथवा उपार्जित प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है–
- सक्रिय प्रतिरक्षा
- निष्क्रिय प्रतिरक्षा
(i) सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity)-इस प्रकार की प्रतिरक्षा में शरीर प्रतिजन के विरुद्ध स्वयं प्रतिरक्षियों का निर्माण करता है। सक्रिय प्रतिरक्षा केवल उस विशेष प्रतिजन (Antigen) के लिए होती है जिसके विरुद्ध प्रतिरक्षी (Antibody) का निर्माण होता है।(ii) निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity)-निष्क्रिय प्रतिरक्षा में शरीर में किसी विशेष प्रतिजन के विरुद्ध बाहर से विशिष्ट प्रतिरक्षी प्रविष्ट करवाये जाते हैं। इस प्रतिरक्षा में शरीर द्वारा प्रतिरक्षी (Antibody) का निर्माण नहीं किया जाता है। उदाहरण-टिटेनस, हिपेटाइटिस एवं डिप्थीरिया आदि।
प्रश्न 3. देहदान किसे कहते हैं? उन दो प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए जिनसे देहदान आवश्यक है?
उत्तर-
देहदान-अपनी देह को अंग प्रत्यारोपण तथा चिकित्सकीय प्रशिक्षण के लिए दान करना देहदान कहलाती है।देहदान निम्न दो प्रमुख कारणों से आवश्यक है|
- मृत देह से अंग निकालकर जरूरतमंद लोगों को प्रत्यारोपित किये जा सकते हैं। प्रायः अंगदान ऐसे मृत व्यक्ति से किया जाता है, जिसकी दिमागी मृत्यु हुई हो। ऐसे मामलों में मृत व्यक्ति का दिमाग पूर्ण रूप से कार्य करना बन्द कर देता है। परन्तु शरीर के अन्य अंग कार्य करते रहते हैं। ऐसी देह से हृदय, यकृत, गुर्दे आदि अंग व्यक्तियों में प्रत्यारोपित किये जा सकते हैं। हालांकि आँकड़े बताते हैं कि एक हजार में से केवल एक व्यक्ति की मौत ही इस प्रकार से होती है। मृत्यु के 6 से 8 घण्टों के भीतर देह को नेत्रदान हेतु काम में लिया जा सकता है।
- चिकित्सीय शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी मृत देह पर प्रशिक्षण प्राप्त कर बेहतरीन चिकित्सक बनते हैं। मृत मानव की देह पर प्रायोगिक कार्य संपादन करने के बाद ही मेडिकल के विद्यार्थी मानव देह की रचना को भली प्रकार से समझ पाते हैं। इस हेतु मानव द्वारा देहदान की परम आवश्यकता है। यह मानव देह की अन्तिम उपयोगिता है।
प्रश्न 4. विभिन्न रक्त समूह (एबीओ तथा आरएच समूहीकरण) को सारणी द्वारा समझाइए।
उत्तर-
विभिन्न समूह (एबीओ तथा आरएच समूहीकरण)
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